उम्मीदों की नाव पर चल दिया,
जो मुसाफिर तू होकर सवार।
ना बिसरा देना अपनी सुध-बुध,
ना गलत माझी को पकड़ाना पतवार।।
यह जीवन है अग्निपथ,
चलना होगा तुझे संभलकर।
बहुत चेहरे मिलेगे पथ पर,
निकालेंगे काम अपना बनकर।।
ना तू कपटी-बेइमान,
ना हदय में रखता मैल।
पर श्रंगाल की खाल ओढ़े,
घूमते यहां अनगिनत भेड़।।
मुसाफिर हो जाएगी देर,
जो तू ना चला संभलकर।
तिनका-तिनका जोड़कर भी,
ना सवार पाएगा अपना सफर।।
प्रथम स्वयं को बना श्रेष्ठ,
पूरे होंगे तेरे भी ध्येय।
सवर जाएगे अनेक,
जो तू बन गया सर्वश्रेष्ठ।।