पर्वतों की ऊंची-ऊंची चोटियाँ, समंदर की लहरें, नदियां, झरने आदि हम इंसानों को हमेशा ही आकर्षित करते रहे हैं। किन्तु दुबई आकर मुझे पता लगा, कि रेतीली वादियां भी लोगों को बहुत आकर्षित करती है।
बर्फ से ढ़के पर्वत हों या दूर – दूर तक फैली हुई रेतीली वादियाँ! यह चंचल मन इन जगहों पर जाकर, खुल कर जीना चाहता है। अब यदि इन मुश्किल पहाड़ों पर अपनी कार दौड़ाई जाए, इस तरह की बात का दिमाग में आना ही रोंगटे खड़े कर देता हैं। क्योंकि इस तरह का साहसिक कार्य करने की हिम्मत होना ही एक बड़ा कार्य है। इन रेत के पहाड़ों पर अपने वाहन से यात्रा करना सरल कार्य नहीं है, किन्तु जिसने यह यात्रा कर ली, उसके लिए यह अनुभव बेहद साहसिक, रोमांच से भरपूर, आनंद दायक होता है।
शायद इसीलिए यहाँ के लोगों को रेगिस्तान की सुंदरता दिखाने व उसे महसूस कराने के उद्देश्य से दुबई में गल्फ न्यूज की ओर से फन ड्राइव का आयोजन पिछले कई सालों से होता आ रहा है।
जानकारी के तौर पर बताना चाहती हूँ, कि लोगों को इन रेतीली पहाड़ियों पर यात्रा का अनुभव देने के लिए सन 1986 में पहली बार यह आयोजन फन रन के रूप में जेबेल अली से हत्ता तक के मार्ग पर किया गया था, उस समय केवल 75 गाड़ियां ही शामिल हुई थी। बाद में 1990 में 400 गाड़ियां शामिल हुई, और पूरी रात का सफल आयोजन बन गया था। आने वाले सालों में यह संख्या लगातार बढ़ती ही गई, दिनोंदिन इस फन ड्राइव की लोकप्रियता को कोई रोक न सका और उत्साहित लोग आज भी इस ड्राइव का पूरे साल इंतजार करते हैं।
इन रेतीले पहाड़ों पर यात्रा के लिए हम अति उत्साहित थे। 11 जनवरी 2013 के फन ड्राइव के लिए मैंने भी अपनी कार का रजिस्ट्रेशन करवा दिया था। यह गल्फ न्यूज की ओर से 32 वां आयोजन था। इसमें हमें पूरा दिन रेतीले टीलों पर ठिब्बे खाते हुए, रेत में फंसते-निकलते यात्रा संपन्न करके, शिविरों में पहुंचना था।
एक वह समय था जब 75 गाड़ियों ने भाग लिया था, और एक यह समय था, कि इस आयोजन में बहुत बड़ी संख्या में करीब 1,000 से अधिक वाहन शामिल हो रहे थे। यह 200 किलोमीटर लंबी ड्राइव थी, जिसे ऊंचे – नीचे रेतीले टीलों से हो कर गुजरना था। यह पहला मौका था कि इस ड्राइव का 2% भाग ही पक्की रोड पर था, बाकी का 98% भाग पूरी तरह रेतीला था, साथ ही इस बार की यात्रा का यह मार्ग किसी भी अन्य अमीरात की सीमा को न छूते हुए पूरी तरह से दुबई के रेतीले मार्गों पर ही संपन्न होना था।
उस समय का यह अत्यंत ही खास मौका था, क्योंकि ड्राइव के माध्यम से ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में इस रोमांचक गतिविधि का नाम दर्ज कराने की भी तैयारी थी, इस बात से लोगों में दोगुना उत्साह देखा जा सकता था। रेतीले टीलों पर जाने के लिए साधारण छोटी कार नहीं, बल्कि बड़ी कार (SUV) लेकर ही जा सकते हैं।
वर्ल्ड रिकॉर्ड के लिए वाहनों की संख्या और उनको दिए गए निर्धारित मानदंड पूरे हो रहे हैं या नहीं, इस सब पर ध्यान देने और देखने के लिए; UK के Jack Brockbank को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड के निर्णायक के रूप में बुलाया गया था।
अपनी निसान अरमाडा कार जिसे खास इसी मौके के लिए खरीदा था; उसको लेकर हम भी अपने परिवार के साथ सुबह करीब 5 बजे The 7he Sevens स्टेडियम; अल एन रोड पर पहुँच गए, क्योंकि यहाँ से सुबह साढ़े छह बजे का समय ड्राइव को शुरू करने के लिए दिया गया था। आसमान में अभी रौशनी नहीं हुई थी, किन्तु फिर भी भीड़ इकट्ठा होना शुरू हो गई थी। हल्की-हल्की बारिश की बूंदों से मौसम काफी सुहाना हो रहा था। वैसे भी दुबई में इन महीनों में ज्यादा नहीं, बस गुलाबी ठंड ही होती हैं, फिर भी मैदानी क्षेत्र में हवा के कारण ज्यादा ठंड होगी, यह सोच कर मैंने हम दोनों, व बच्चों के लिए कुछ जैकेटस, शॉल आदि गरम कपड़े गाड़ी में रख लिए थे।
स्टेडियम पर ही सभी के लिए सुबह के नाश्ते का इंतजाम था, जिसमें विभिन्न तरह के फल, केक, सीरियल्स, जूस, बेक्ड फूड, अरबी, लेबनानी, इंग्लिश, भारतीय आदि तरह तरह के पकवान शामिल थे। शाकाहारी और मांसाहारी लोगों के लिए अलग-अलग व्यंजनों की अच्छी व्यवस्था थी। भीड़ अधिक होने पर भी सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चल रहा था, कहीं भी कोई आपाधापी नहीं थी।
लोग बैठकर नाश्ता कर सकें, उसके लिए बहुत सारी गोल मेजें लगी हुई थी, और उन सभी पर गल्फ न्यूज लिखे हुए छाते भी लगे थे, जिससे वहां बैठे लोगों को बारिश की बूंदों से कोई परेशानी न हो। वैसे तो वहां चाय – कॉफी, कहवा आदि के बहुत से स्टॉल लगे थे, किंतु मुझे वहां कॉफी और कहवा वितरित करने वाले वो लोग आकर्षित कर रहे थे, जो एक छोटी सी टंकीनुमा बर्तन अपनी पीठ पर लगाए, गरमा गर्म कॉफी और कहवा कप में डालकर मेहमानों को आ-आकर दे रहे थे, उनका इस तरह का वितरण मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। नाश्ता के समय ही वर्ल्ड रिकॉर्ड की प्रक्रिया को संपन्न करने आए मेहमानों से भी मिलना हुआ, और उनके साथ तस्वीरें भी खींची।
पेट पूजा के बाद,अब समय था रेत की पहाड़ियों पर निकल कर घूमने का, सो सभी लोग अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठ गए, कोई इमारात का झंडा लगाए, कुछ लोग तो कारों को स्टिकरों या रंग बिरंगे पेन्ट से अपनी ही रुचि के अनुसार सजाए हुए थे। वहाँ से जाने के लिए सब अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार करने लगे, यात्रा का रूट कैसा होगा, इसके लिए सभी को रोड मैप दे दिया गया और रास्ते की मुश्किलों के लिए आवश्यक सामग्री के साथ, साढ़े सात या आठ बजे के करीब, रंगबिरंगे 1,001 गुब्बारों को उड़ा कर यात्रा की शुरूआत करी गई। एक-एक कर नियत राह पर गाड़ियां आगे बढ़ने लगी। बहुत से परिवारों के उत्साहित बच्चे, मेरे बच्चों की तरह ही कार की छत को खोल कर खड़े हो गए और बाहरी नजारों का आनंद लेते हुए, सब तस्वीरें खींच रहे थे। बाहर तेज ठंडी हवाएं चल रही थी, इसके कारण मैंने थोड़ी ही देर बाद कार की छत को बंद करवा दिया था, और भीतर से ही बैठ कर फोटोग्राफी करने के लिए बोला।
हम लोगों के लिए यह पहला मौका था, अतः कुछ मित्र जो पहले भी इस आयोजन का हिस्सा बन चुके थे, उन्होंने रेतीले रास्तों के लिए बहुत से ऐसे तरीके बताए जो इस तरह की ड्राइव में काफी मददगार साबित होंगे। रेतीले क्षेत्र में जाने से पहले मेरे पति ने कार के पहियों की हवा कम कर दी, क्योंकि रेत में थोड़े से फ्लेट पहियों से ही ड्राइव करना संभव होता है, ऐसी सलाह दी गई थी।
रेत के टीलों और पहाड़ों पर रास्ता भूलने का डर अधिक रहता है, इसलिए कोई भी ड्राइवर रास्ता न भटके इसके लिए पूरे रास्ते मैं मार्ग सूचक छोटे – छोटे झंडे लगाए गए थे, जिससे आने वाले सभी ड्राइवर समझ सकें, कि वो आगे सही रास्ते पर जा रहे हैं।
इन रेत से भरे हुए रास्तों और ऊंचे नीचे टीलों पर यदि कभी कोई गाड़ी फंस जाए, तो मदद के लिए जगह- जगह मार्शल तैनात थे। इन मार्शलों की गाड़ी पर एक विशेष तरह का निशान और झंडा लगा हुआ था, जिससे लोग इन्हें दूर से ही पहचान सकें और मदद के लिए बुला सकें।
इस फन ड्राइव को जिन रास्तों से गुजरना था, वहाँ पर बीच में विभिन्न तरह के खाने-पीने के स्टॉल लगाए गए थे, वहाँ से पानी, जूस और खाने की आवश्यक सामग्रियों के पैकेट्स दिए जा रहे थे,जिससे रास्ते में किसी को भी खाने पीने संबंधी कोई परेशानी न हो। कई कंपनियां अपना प्रचार करने के लिए सामान से भरे गुड़ी बैग, कोई स्लीपिंग बैग तो कोई छतरियाँ आदि वितरित कर रही थी।
जैसे – जैसे आगे बढ़ रहे थे, वैसे ही रेत का पहला टीला देखते ही मेरे मन में एक भय सा आया, क्योंकि मुझसे आगे जो गाड़ियां जा रही थी उनमें से कुछ तो रफ्तार के साथ निकल गई, किन्तु कुछ टीले के ऊपरी भाग पर पहुँचने से ठीक पहले उतना ही पीछे फिसल कर आ जा रही थी। इसी जद्दोजहद में बार-बार प्रयास करना पड़ रहा था, इसमें हमें भी दो बार के प्रयास के बाद तीसरी बार में टीला पार करने में सफलता मिली थी, अपनी गाड़ी को इन टीलों के उतार चढ़ाव पर ले जाने का अनुभव धीरे-धीरे रोमांचक होता जा रहा था। साफ और बारीक रेत में गाड़ी फंसती, और आगे बढ़ने के प्रयास में पहिया एक ही जगह पर घूमता रहता, पहिये के घूमने के साथ ही रेत भी उतनी ही तेजी से उड़ती थी।
चढ़ाई पर आगे बढ़ने के लिए गाड़ी को एकदम से तेज गति देना जरूरी था, यदि थोड़ी भी रफ्तार कम हुई, तो गाड़ी फिसलकर उतना ही पीछे आ जाएगी, कभी तो चढ़ाई पर पहुंचकर भी रेत के शीर्ष से गाड़ी नीचे की ओर फिसलने लगती, बेहद ही खतरनाक स्थिति तब होती थी, जब चढ़ाई के नीचे हिस्से पर भी एक गाड़ी जा रही हो और उसी के समानांतर ऊपरी हिस्से से उसकी तरफ ही दूसरी गाड़ी फिसलते हुए आ जाए, ऐसी स्थिति में गाड़ी को संभालना बहुत ज्यादा मुश्किल होता था।
जिस तरह बर्फीली पहाड़ियों पर चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है, ठीक वैसे ही यहाँ पर भी दूर दूर तक रेत के सिवा कुछ भी नहीं दिख रहा था। किन्तु यह अदभुत था, कि रेगिस्तान के बीच में पानी के तालाब जैसे कुछ स्थान भी मिले, जिनको oasis बोला जाता है, आश्चर्य होता है कि इतनी रेत के बीच में पानी का भंडार दिख रहा था।
खुले रेतीले क्षेत्र में बाहर निकल कर देखना सहज नहीं था, पाँव रेत में धँसता जाता था, ठीक इसी तरह कहीं कहीं जब रेत काफी नरम होती थी, तो वहाँ पर कार के पहिए भी धँस जाते थे, इस स्थिति में कार से उतर कर, सभी मिल कर पहिये के आसपास की रेत को हटाते थे, और कभी गाड़ी को सभी मिलकर एक ही दिशा से धक्का देकर तिरछा करते, जिससे पहिए रेत से बाहर आ सकें, ऐसा करने पर गाड़ी निकालने में कभी तो सफलता मिल जाती तो कभी असफल होकर मार्शल की मदद लेना पड़ती थी। इस तरह के खुले रेतीले क्षेत्र में बाहर निकल कर कार्य करना भी सहज नहीं था, क्योंकि हवा भी इतनी, कि पूरे शरीर पर रेत ही रेत हो जाए।
पूरा दिन इन टीलों पर यात्रा करते हुए, शाम तक हम सब थकान महसूस कर रहे थे। किन्तु अभी भी शिविरों तक हम नहीं पहुँच पाए थे, क्योंकि जब भी गाड़ी थोड़ी बहुत रेत में अटकी तो साथ के लोगों की सहायता से बाहर आ गए, पर दो बार गाड़ी ऐसी फंसी कि बाहर आने का कोई भी तरीका काम न आया और हमको दोनों ही बार मार्शल की सहायता लेनी पड़ी।
एक बार हमारी कार रेत के टीले से उतरते हुए कुछ इस तरह फंसी कि अब हम न तो आगे ही बढ़ पा रहे थे, और गाड़ी पीछे की ओर भी नहीं हो रही थी, रेत में बहुत बुरी तरह फंस चुके थे, काफी मशक्कत करने के बाद भी तिल भर भी सफलता न मिल सकी। आखिर में मदद के लिए मार्शल को बुलाना पड़ा, फिर उन्होंने रस्सी का प्रयोग किया उसका एक शिरा हमारी गाड़ी के हुक में फसाया और दूसरा ओर से उसे अपनी कार से खींचते हुए थोड़ी सी देर में ही मेरी गाड़ी को बाहर निकाल दिया। इस तरह की स्थितियों के लिए मार्शलों के पास रस्सी आदि के साथ ही उच्च कोटि के कई औजार व ऐसी ड्राइविंग तकनीकें होती हैं, कि जिससे वो गाड़ियों को आसानी से बाहर निकाल पाते हैं।
दूसरी बार उनके दिए रूट से हम रास्ता भटक गए, क्योंकि जो रास्ता दिखाने के लिए झंडे लगे थे, वो गाड़ियों की आवाजाही से इधर-उधर हो गए और हम जिस रास्ते पर मुड़ गए थे, वहाँ चारों ओर दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था, किन्तु कुछ ही देर में मैंने देखा कि मेरे पीछे-पीछे करीब तीन चार गाड़ियां आ रही हैं, शायद वो भी भटक कर आ गई होगी, यह सोच कर मन को थोड़ा चैन मिला कि यहाँ साथ के लिए कोई ओर भी है।
सूर्यास्त का सुंदर दृश्य
शाम हो कर जल्दी ही अंधेरा होने वाला था, हमारी गाड़ी टीले के ऊपरी हिस्से पर थी, समझ नहीं आ रहा था कि इतनी ऊंचाई से कैसे उतरा जाए, इस स्थिति में मेरा मन थोड़ा डर सा गया, इस परेशानी में अच्छी बात यह थी कि जहाँ पर हम लोग अटके थे, वहाँ से सूर्यास्त बहुत ही सुंदर दिख रहा था और कुछ समय के लिए सारी परेशानी को भूलकर हम लोग उस दृश्य की खूबसूरती निहार रहे थे। अस्ताचल को जाते हुए सूर्य की बंदनी लालिमा लिए उसकी किरणें, दूर-दूर तक फैली रेत पर बिखर रहीं थी, और देखते-देखते ही सूर्य दूर क्षितिज में समाहित हो गया, और आसमान का रंग हल्का होते होते अंधेरे की चादर ओढ़ने को तैयार हो रहा था। खैर किसी तरह मार्शल तक सूचना पहुंचाई, फिर उनकी मदद से हम सब वहाँ से बाहर आने में कामयाब रहे।
हमारी गाड़ी शिविर की ओर बढ़ रही थी, दूर से ही वहाँ की लाइटिंग देख कर सुकून मिल रहा था, कि अब हम जल्दी ही पहुँचने वाले हैं। वहाँ पर इतनी बड़ी संख्या में आई गाड़ियों को खडा करने के लिए पार्किंग का काफी बड़ा क्षेत्र सुरक्षित किया गया था। वहाँ पहुँच कर पार्किंग में हमने अपनी गाड़ी खड़ी की, और रात रुकने के लिए, वहाँ पर बहुत सारे टेंट कतारों में लगे हुए थे। सभी परिवारों के लिए अलग टेंट थे, मतलब एक परिवार के लिए एक टेंट था। हम भी अपने टेंट में पहुंचे, सारा समान बैग आदि रखे, और चाय पीकर थोड़ी देर आराम किया। क्योंकि सारा दिन कार में बैठ कर थकान लग रही थी। फिर हम सब फ्रेश होकर, बाहर जाने के लिए तैयार हुए। यहाँ पर आवश्यक सारी जरूरी व्यवस्थाएं बाथरूम आदि अलग से बने हुए थे।
टेंट क्षेत्र से घूमते हुए बाहर निकले, वहाँ कुछ ही दूरी पर एक स्टेज बना हुआ था, और उसके सामने की ओर लोगों के बैठने के लिए बड़ी संख्या में कुर्सियाँ लगी हुई थी। स्टेज पर कलाकार सामने से ही वाद्य यंत्रों का प्रयोग कर संगीत बजा रहे थे।
बच्चों को व्यस्त रखने और खेलने के लिए एडवेंचर वॉल को बनाया गया था, साथ ही सायकल ट्रेक भी बना था। बच्चे थोड़ी देर उछल-कूद में व्यस्त रहे, अब बच्चों के साथ ही हम लोगों को भी भूख लगने लगी थी, इसलिए हम मैदान के उस क्षेत्र में आ गए जहाँ पर भोजन इत्यादि की व्यवस्था थी।
यहाँ पर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के लोगों के लिए अनेक प्रकार के व्यंजनों की पूरी व्यवस्था थी। भोजन क्षेत्र में हमें कई अन्य मित्र भी मिल गए, उन सभी से गप्पें मारते हुए, शुरुआती भोजन के लिए पहले सूप सलाद आदि ले लिया, इन सबसे ही पेट भरा सा महसूस हो रहा था, तो मुख्य डिनर कुछ देर बाद करेंगे , यह सोच कर बातें करते हुए बैठे रहे। तब तक बच्चे खेल खत्म करके हाथ में जूस लिए हुए आ गए थे। माइक की आवाज यहाँ तक आ रही थी, जिससे आगे के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी मिल रही थी।
हम लोग अब स्टेज के सामने पहुंचकर कुछ देर तक रेगीस्तानी ड्रम कला और संगीत का आनंद लेते रहे। बाद में सर्कस का खेल शुरू हुआ जिसमें आग से खेलते हुए लोग स्टेज पर आए और उनमें से कोई आग के रिंग में से निकल रहा था, तो कोई जलती हुई मशाल या बोतल जैसी कोई चीज, एक से अधिक संख्या में उछाल – उछाल कर पकड़ते हुए करतब दिखा रहे थे। मनोरंजन के लिए बहुत सी चीजें दिखाई जा रही थी। जादू के खेल बच्चों को अधिक आकर्षित कर रहे थे। देर रात को वैली डांसरों ने नृत्य दिखाया, जो सच में अचरज में डालने वाला नृत्य था।
रेतीले टीलों के आकार वाला का केक
अंत में कार्यक्रम का समापन करते हुए, एक रेतीले ऊंचे-नीचे टीले के आकार वाला बड़ा सा केक भी काटा गया। इस केक की सजावट भी बिल्कुल वैसे ही की गई थी, जैसे एक रेगिस्तान होता है, रेत में उगने वाले पेड़-पौधे, टीलों पर बग्गी और गाड़ियां चलाते हुए लोग इत्यादि बखूबी से दर्शाए गए थे। हर एक छोटी से छोटी चीज को बड़ी ही बारीकी से ध्यान देकर सजाया गया था।
कार्यक्रम की चकाचौंध में समय का पता ही नहीं लगा, कि रात कितनी हो गई, मेरी बेटी तो वहीं ऊँघने लगी थी, फिर उसको गोद में उठा कर टेंट तक लेकर गए, तब वहाँ आराम से हम सब सोए। दूसरे दिन सुबह जल्दी नहीं, बल्कि आराम से जागेंगे ऐसा सोचा था, किन्तु बाहर सुबह से ही लोगों की चहलकदमी और बच्चों की शैतानियों की आवाजों से जल्दी ही
आँख खुल गई। कुछ लोग सुबह-सुबह खुली हवा में सैर करने के लिए निकले, तो कुछ सायकल चलाने के लिए निकले, क्योंकि वो अपने साथ गाड़ियों में सायकल भी लेकर आए थे।
वहाँ पर ऊंट सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। जो अच्छे से सज – धज कर तैयार खड़े थे, जिन पर लोगों को सवारी कराई जा रही थी, उस पर बैठा कर आसपास के निर्धारित क्षेत्र तक घुमाया जाता था। हम सब ने भी ऊंट की सवारी का आनंद लिया, किन्तु जैसे ही ऊंट पीठ पर बैठा कर खड़ा होने लगा, तो मेरी बिटिया रानी डर कर जोर – जोर से चिल्लाने लगी, और नीचे उतारने की जिद करके वो उससे उतर आई, क्योंकि उस स्थिति में ऊंट पूरी तरह से आगे और पीछे की ओर झुक जाता था।
सभी गतिविधियों को निपटाने के बाद, पेट में जोरों से चूहे दौड़ लगा रहे थे, तो अब हम चाय-नाश्ता करने के लिए आ गए, विभिन्न तरह के नाश्तों के साथ ही, माहौल को हल्का संगीतमय बनाने के लिए कलाकार अपने वाद्ययंत्रों को बजाने के साथ ही गीत गा रहे थे। यहाँ से नाश्ता करके, अपने टेंट में आए, सारा सामान, कपड़े आदि जो बिखरे पड़े थे, उनको समेट कर रखा और यहाँ की सुनहरी यादों को मन में बसा कर, हम सब अपने – अपने घरों को वापस निकल पड़े।