अरुणाचल प्रदेश अपने नैसर्गिक सौंदर्य, सदाबहार घाटियों, वनाच्छादित पर्वतों, बहुरंगी संस्कृति, समृद्ध विरासत, बहुजातीय समाज, भाषायी वैविध्य एवं नयनाभिराम वन्य-प्राणियों के कारण देश में अपना विशिष्ट स्थाम रखता है। लोहित, सियांग, सुबनश्री, दिहिंग इत्यादि नदियों एवं झरनों से अभिसिंचित अरुणाचल की सुरम्य भूमि में भगवान भास्कर सर्वप्रथम अपनी रश्मि विकीर्ण करते हैं। इसलिए इसे ‘उगते हुए सूर्य की भूमि’ का अभिधान दिया गया है।
इसके पश्चिम में भूटान और तिब्बत, उत्तर तथा उत्तर–पूर्व में चीन, पूर्व एवं दक्षिण–पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में असम की ब्रह्मपुत्र घाटी स्थित है। पहले यह उत्तर-पूर्व सीमांत एजेंसी अर्थात ‘नेफा’ के नाम से जाना जाता था। 21 जनवरी, 1972 को इसे केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया। इसके बाद 20 फ़रवरी 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। आदी, न्यिशी, आपातानी, तागिन, सुलुंग, मोम्पा, खाम्ती, शेरदुक्पेन, सिंहफ़ो, मेम्बा, खम्बा, नोक्ते, वांचो, तांगसा, मिश्मी, बुगुन (खोवा), आका, मिजी इत्यादि आदिवासी समूह सद्भाव एवं भाईचारे के साथ रहते हैं। अरुणाचल में अनेक पर्यटन स्थल हैं, जिनका यदि विकास और प्रचार-प्रसार किया जाए तो ये इस राज्य की आर्थिकी को गति दे सकते हैं।
ईटानगर- अरुणाचल की राजधानी ईटानगर एक पर्वतीय शहर है। ईटानगर का ईटाफोर्ट, बौद्ध मठ, जनजातीय संग्रहालय देखने लायक हैं। ईटानगर अब रेलमार्ग से भी जुड़ चुका है। प्रतिदिन गुवाहाटी से ईटानगर के लिये ट्रेन चलती है। ईटाफोर्ट के गर्भ में अनेक ऐतिहासिक तथ्य छिपे हुए हैं लेकिन उसका संपूर्ण रूप से अभी तक उद्घाटन नहीं हो सका है। यह किला किस सदी में और किसके द्वारा बनवाया गया है, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभिन्नता है। इसके संबंध में स्थानीय लोक साहित्य में अनेक आख्यान मिलते हैं। न्यीशी जनजाति के अनुसार यह ‘हिता’ नाम से विख्यात था। ऐसी भी मान्यता है कि इसका निर्माण मैदानी क्षेत्र के किसी अप्रवासी राजा ने करवाया था। यह उस राजा की राजधानी था, जिसे मायापुरी भी कहा जाता था। एक दूसरी कथा के अनुसार यह राजा रामचंद्र की दूसरी राजधानी था। राजा रामचंद्र जितारी वंश के शासक अरिमत्त के पिता थे। अरिमत्त ने अपने पिता की हत्या कर दी थी और बाद में स्वयं आत्महत्या कर ली थी। कुछ इतिहासकार इसका निर्माण काल 17वीं सदी बताते हैं।
मालिनीथान- मालिनीथान मंदिर अरुणाचल के पश्चिमी सियांग जिले में लीकाबाली के निकट स्थित है। यह उत्तर पूर्वी भारत का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण काल संभवतः दसवीं से बारहवीं सदी के बीच है। कालिकापुराण से ज्ञात होता है कि कामरूप कामाख्या के पूर्व में एक पीठस्थान था। बाद में मालिनीथान के रूप में उसकी पहचान की गई। स्थानीय लोकसाहित्य के अनुसार मालिनीथान का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी से है। रुक्मिणी कुंडिलनगर अथवा भीष्मक नगर की राजकुमारी थी। रुक्मिणी का भगवान श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया और उसने श्रीकृष्ण से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण राजा भीष्मक की राजधानी कुंडिलनगर आए और राजकुमारी रुक्मिणी का अपहरण कर द्वारिका लौट गए। रास्ते में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी ने एक स्थान पर विश्राम किया, जहाँ पर महादेव और पार्वती अपने साथियों के साथ तपस्या कर रहे थे। पार्वती ने नवदंपति को देखकर आशीर्वादस्वरुप रुक्मिणी को फूलों की माला पहनाई। फूलों की माला पहनाने के कारण श्रीकृष्ण ने पार्वती को ‘मालिनी’ के नाम से संबोधित किया। इसके बाद से यह स्थान मालिनीथान के नाम से विख्यात हो गया।
ताम्रेश्वरी मंदिर- यह मंदिर लोहित जिले में स्थित है। ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि यह मंदिर तांबे से बना हुआ था। इसलिए इसे ताम्रेश्वरी मंदिर (कॉपर टेंपल) कहा गया। इसे तामर माई भी कहा जाता है। इस मंदिर के संबंध में अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। इससे संबंधित लोककथाओं के आधार पर इतिहासकारों ने अलग-अलग मत व्यक्त किए हैं। कुछ इतिहासकारों का अभिमत है कि इसका निर्माण छठी शताब्दी में सूतिया वंश के शासनकाल में हुआ था। कुछ इतिहासकारों की मान्यता है कि इसका निर्माण राजा भीष्मक ने अपने शासनकाल में कराया था। राजा भीष्मक की पुत्री राजकुमारी रुक्मिणी प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा करने जाती थी। ब्रिटिश अधिकारी ई.ए. रॉलेट की रिपोर्ट के अनुसार 1820 ई. तक प्रत्येक वर्ष यहाँ एक विशाल मेला लगता था, जिसमें दो पुरुषों की बलि दी जाती थी। लोगों की भारी भीड़ एकत्रित होती थी और माता की जय-जयकार करती थी। मनुष्यों की बलि पाकर देवी संतुष्ट होती थी। उपस्थित जनसमुदाय ढोल-नगाड़े बजाकर और गीत गाकर देवी को प्रसन्न करने की कोशिश करता था।
भालुकपोंग- यदि पर्यटक अरुणाचल प्रदेश के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखते हुए कुछ रोमांचकारी अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें भालुकपोंग अवश्य जाना चाहिए। भालुकपोंग में लंबी पैदल यात्रा, ट्रेकिंग और नदी राफ्टिंग किया जा सकता है। भालुकपोंग के चारों ओर फैले पहाड़ आपको ट्रेकिंग पर जाने के लिए मानो निमंत्रण देते हैं। ईस्ट कामेंग जिले में अवस्थित भालुकपोंग किले का ध्वंसावशेष इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं के लिए जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। 300 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित इस किले के निर्माण काल के विषय में आज भी निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है। इस किले को किसने निर्मित करवाया था, यह भी अभी अनुमान आधारित है। यह तीन ओर से ईटों की दीवार से घिरा हुआ है। इस किले के आसपास आक जनजाति के लोग निवास करते हैं। आक समुदाय के पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह किसी जनजातीय राजा की राजधानी था। एक दूसरे आख्यान के अनुसार ये राजा भालुक की राजधानी था। राजा भालुक को आक समुदाय के लोग अपना पूर्वज मानते हैं। राजा भालुक बनराजा के पुत्र थे, जिसे श्रीकृष्ण ने युद्ध में परास्त किया था। असम स्थित तेजपुर नामक स्थान बनराजा से संबंधित है। राजा भालुक का शासनकाल सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच माना जाता है।
विजयनगर- अरुणाचल के चांगलांग जिले में स्थित विजयनगर में खुदाई के दौरान बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। यहां पर ईटो से निर्मित बौद्ध स्तूप और भगवान बुद्ध की मूर्तियां मिली है। इस बौद्ध स्तूप में जिन ईंटों का उपयोग हुआ है वह अनेक आकार -प्रकार की है। ऐसा माना जाता है कि 10 वीं – 11 वीं सदी में बर्मा में पाए जानेवाले स्तूपों से इसकी काफी समानता है। वर्ष 1971 में पुरातत्ववेत्ताओं ने इस स्थान की खुदाई की। यहाँ खुदाई में एक स्तूप प्राप्त हुआ। यह स्तूप अष्टभुजे चबूतरे पर बना था। पुरातत्ववेत्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि अठारहवीं शताब्दी के मध्य में इस घाटी में सिंहफ़ो और खाम्ती जैसा विकसित बौद्ध समुदाय रहता था।
परशुराम कुंड- परशुराम कुंड प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह भगवान परशुराम से संबन्धित है। अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने अपनी माता की हत्या कर दी थी। उनके पिता जमदग्नि ऋषि ने प्रसन्न होकर दो वरदान मांगने के लिए कहा । परशुराम ने पहला वरदान मांगा कि मेरी माँ पुनर्जीवित हो जाए तथा दूसरा वरदान मांगा कि मातृहत्या के पाप से मुक्ति मिल जाए। उनकी माँ जीवित हो गईं। जमदग्नि ऋषि ने परशुराम को पाप मुक्ति का उपाय बताते हुए कहा कि आर्यावर्त के उत्तर पूर्व में घने वनों के बीच ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित एक कुंड है। उस पवित्र कुंड में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिल जाएगी। परशुराम लंबी यात्रा कर उस कुंड के निकट गए और उसमें डुबकी लगाई। कुंड में स्नान करने से उनका पाप तो नष्ट हो गया, परंतु कुंड का जल लाल (लोहित) हो गया। कुंड के अपवित्र जल को पवित्र करने के उद्देश्य से पशुराम ने कुंड के आस-पास की चट्टान को अपने परशु से काट दिया और उसके जल को बहने के लिए मार्ग बना दिया। ब्रहमकुंड से बहनेवाली जलधारा ब्रह्मपुत्र के नाम से विख्यात हुई। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के दिन यहाँ मेला लगता है और हजारों हिन्दू तीर्थयात्री इस कुंड में स्नान करते हैं।
तवांग गोम्पा- तवांग का गोम्पास बौद्ध मतावलंबियों (महायान शाखा) की आध्यावत्मिमक आस्थाब का सर्वाधिक महत्व्पूर्ण केन्द्रो है । इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध गोम्पाख माना जाता है । यह लगभग 350 वर्ष पुराना है । समुद्र तल से इस गोम्पाय की ऊंचाई दस हजार फीट है । यहां पर 500 लामाओं के ठहरने की व्यमवस्थाइ है । यह भारत का अपनी तरह का सबसे बड़ा बौद्ध गोम्पाव है । इसके आस-पास मोंपा और शेरदुक्पे।न जनजाति के लोग निवास करते हैं । यह गोम्पाव इन बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्थाऔ का सबसे बड़ा केन्द्र है । यह तवांग घाटी में बर्फीली पर्वत चोटियों से घिरा हुआ और हरित वनों के मध्यऔ में स्थि त है । इसकी स्थासपना मेरा लामा ने सत्रहवीं शताब्दीर में कराई थी । इस किलेनुमा गोम्पा् में पुस्त कालय भी है जिसमें दुर्लभ पुस्त्कें और प्राचीन अभिलेख सुरक्षित हैं ।
रोइंग- रोइंग अरुणाचल प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। यह लोअर दिबांग वैली जिले में स्थित है I इसका प्राकृतिक सौन्दर्य दुनिया के सभी हिस्सों से पर्यटकों को आकर्षित करता है। प्रकृति प्रेमियों, पुरातत्वविदों और साहसी खोजकर्ताओं के लिए यह स्थल मनोहर, शिक्षाप्रद और रोचक है I यहाँ अनेक झील और झरने हैं I शांति की तलाश करनेवाले पर्यटकों के लिए यह एक उपयुक्त स्थान है । यहाँ के शांत वातावरण में कुछ पल व्यतीत कर नई ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है I
बोमडिला- बमडिला अरुणाचल का एक छोटा शहर है जो पूर्वी हिमालय की विशाल पर्वतमाला के बीच में स्थित है। यह अरुणाचल प्रदेश राज्य के पश्चिम कामेंग जिले का मुख्यालय है। बोमडिला के बर्फ से ढके पहाड़ हिमालय का मनोरम दृश्य पेश करते हैं । यह अरुणाचल प्रदेश राज्य के उत्तर-पश्चिमी भाग में समुद्र तल से 2,530 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । बोमडिला अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ- साथ अपने बौद्ध मठों और सेब ऑर्किड के लिए प्रख्यात है। यहाँ जुलाई और सितंबर के बीच भरपूर वर्षा होती है I यहाँ यात्रा करने का सर्वोत्तम समय अप्रैल और अक्टूबर के बीच है I बोमडीला का कोई लिखित इतिहास उपलब्ध नही है, लेकिन कहा जाता है कि मध्यकाल में यह तिब्बत का हिस्सा था। भूटान और स्थानीय आदिवासी शासकों ने समय-समय पर यहाँ शासन किया । असम के अहोम शासकों ने स्थानीय जनजातियों के शासन में कोई हस्तक्षेप नहीं किया । अंग्रेजों ने 1873 में अरुणाचल प्रदेश के इस क्षेत्र को वर्जित क्षेत्र घोषित किया था। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच विवाद का कारण बना हुआ है । चीन ने 1962 में बोमडिला के आसपास के क्षेत्र पर हमला किया, लेकिन बाद में अपनी सेना वापस बुला ली । बोमडिला के आसपास के क्षेत्रों में कई ट्रेकिंग और लंबी पैदल यात्रा ट्रेल्स हैं जो रोमांचप्रेमी खिलाडियों और पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। बोमडिला से तवांग तक की यात्रा प्रकृति को निकट से जानने का अवसर प्रदान करती है । इसके पास हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन नहीं है। स्थानीय बस या जीप द्वारा असम के तेजपुर शहर से बमडिला पहुंचा जा सकता है। यह सड़क द्वारा अरुणाचल प्रदेश और असम के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। यदि आप हिमालय पर्वत श्रृंखला का आश्चर्यजनक हिमपात देखना चाहते हैं तो बोमडिला एक उपयुक्त जगह है I यहाँ का शांत वातावरण और सुंदर परिवेश प्रकृति से हमारा साक्षात्कार कराता है। बोमडिला का हस्तशिल्प अत्यंत मनमोहक होता है I
जिरो- जिरो घाटी को आपातानी घाटी के रूप में जाना जाता है I यह आपतानी समुदाय का निवास क्षेत्र है I इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में चिन्हित किया गया है I जिरो अरुणाचल प्रदेश के कुछ सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। यहाँ तैली घाटी, वन्य जीव अभयारण्य आदि देखने योग्य है I अन्य अरुणाचली जनजातियाँ जहां झूम खेती करती हैं, आपातानी लोग स्थायी खेती करते हैं। इनके पास खेतों की सिंचाई करने की उत्तम कृत्रिम व्यवस्था है। आपातानी घाटी को चावल का प्याला कहा जाता है। यहाँ सैकड़ों वर्षों से आपतानी जनजाति के लोग धान -सह -मछली पालन करते हैं I
पासीघाट- पासीघाट अरुणाचल प्रदेश का सबसे पुराने शहर है जिसे वर्ष 1911 में अंग्रेजों ने स्थापित किया था। यह अरुणाचल प्रदेश का प्रवेश द्वार है I पूर्वी सियांग जिले का मुख्यालय पासीघाट तुलनात्मक रूप से एक विकसित शहर है। यह सियांग नदी के तट पर स्थित है और समुद्र तल से 155 मीटर ऊपर है। इस जगह को प्रकृति की ओर से भरपूर आशीर्वाद प्राप्त हुआ है I भव्य नदी ब्रह्मपुत्र तिब्बत से पासीघाट होकर बहती है। आदी समुदाय के आगमन से पहले पासीघाट दिबु-मारंग लोगों का निवास स्थान था। कुछ लोगों का मानना है कि उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक या नोएल विलियमसन की पहली यात्रा के दौरान ब्रिटिशों के आगमन के बाद शहर को ‘पासीघाट’ नाम दिया गया । वे कहते हैं कि ‘पासीघाट’ आदी जनजाति की उपजनजाति ‘पासी’ शब्द से उत्पन्न हुआ है। डॉ डाईंग इरिंग के नेतृत्व में इस क्षेत्र में विकास और सामाजिक परिवर्तन के एक नए युग का सूत्रपात हुआ I वर्ष 1964 में पासीघाट में जे.एन. कॉलेज की स्थापना न केवल पासीघाट बल्कि पूरे अरुणाचल प्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटना थी I यह कॉलेज पूरे राज्य के लिए प्रेरणा स्रोत साबित हुआ । इस कॉलेज ने कई नेताओं, नौकरशाहों, वकीलों, शिक्षाविदों, पत्रकारों, शासकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को पैदा किया । पांगिन और डेयिंग एरिंग वन्यजीव अभयारण्य यहां के दो प्रमुख आकर्षण हैं।
एलोंग- अरुणाचल प्रदेश के खुबसूरत पर्यटन स्थलों में से एक एलोंग असम की सीमा के पास स्थित है I यह घाटी चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई है I नदियां इस शहर का श्रृंगार करती हैं। यहां स्थित केन वन्यजीव अभयारण्य में हाथियों और हिरण की अनेक प्रजातियां हैं I सियांग नदी पर बेंत और बांस से निर्मित हैंगिंग ब्रिज देखने लायक है I यह स्थान नदी राफ्टिंग और ट्रेकिंग के लिए भी जाना जाता है ।
सेप्पा- सेप्पा अरुणाचल प्रदेश के ईस्ट कामेंग जिले का मुख्यालय है I सेप्पा पहले सपला के नाम से जाना जाता था I सपला का अर्थ स्थानीय भाषा में दलदली भूमि होता है I यहाँ मुख्य रूप से निशी, सुलुंग और आका जनजाति के लोग निवास करते हैं I सेप्पा में एक हेलीपेड है, लेकिन जनसामान्य के लिए हेलिकोप्टर की नियमित उड़ान उपलब्ध नहीं है I सेप्पा से तेजपुर 190 किलोमीटर, गुवाहाटी 355 किलोमीटर और ईटानगर 220 किलोमीटर दूर है I
दापोरिजो- दापोरिजो अरुणाचल प्रदेश के अपर सुबनसिरी जिले का मुख्यालय है I हरित पहाड़ियों से घिरा यह अरुणाचल प्रदेश का एक सुंदर शहर है। ‘दापो’ का अर्थ सुरक्षा अथवा अवरोध है और ‘रिजो’ का अर्थ घाटी है I दापोरिजो का अर्थ महामारी या बुरी शक्तियों से घाटी की सुरक्षा करना है । यह तागिन जनजाति का निवास क्षेत्र है I तागिन के अतिरिक्त यहाँ गालो, हिलमिरी, मिश्मी समुदाय के लोग रहते हैं I दापोरिजो समुद्र तल से 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । यह अरुणाचल प्रदेश की प्रमुख नदियों में से एक सुबनसिरी नदी के निकट स्थित है जो ब्रह्मपुत्र की एक प्रमुख सहायक नदी है I सुबनसिरी नदी शहर का एक विशाल दृश्य प्रस्तुत करती है। एलोंग – जिरो मार्ग पर अवस्थित यह शहर एक ही स्थान पर विविध जातीय संस्कृतियों के मिलन स्थल के लिए जाना जाता है।
खोंसा- खोंसा अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले का मुख्यालय है जो हिमालय पर्वतमाला से घिरी तिरप घाटी में स्थित है। जलधाराओं, गहरी घाटियों, घने जंगलों और बर्फ से आच्छादित पहाड़ियों से घिरा यह छोटा -सा शहर प्रकृति का अनुपम वरदान जैसा है I समुद्र तल से लगभग 1,215 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित खोंसा एक सुंदर पहाड़ी स्टेशन है जिसके चारों तरफ प्राकृतिक सौन्दर्य बिखरा पड़ा है। इसके पूर्व में म्यांमार और दक्षिण में असम राज्य स्थित है I खोंसा उत्तर-पूर्व का एक महत्वपूर्ण सैन्य क्षेत्र है। पास में ही खेती और लाजो नामक आदिवासी गांव हैं जहाँ आदिवासी लोगों के जीवन और संस्कृति की झलक मिलती है। यदि तिब्बती संस्कृति का अनुभव प्राप्त करना हो तो मियाओ अवश्य जाना चाहिए जो चांगलांग जिले में खोंसा से लगभग 154 किमी की दूरी पर स्थित है I
चांगलांग- चांगलांग अरुणाचल प्रदेश के एक जिले का नाम है जिसका मुख्यालय भी चांगलांग है I पौराणिक कथा के अनुसार चांगलांग का मूल नाम स्थानीय भाषा में “चांगलांगकन” है जिसका अर्थ पहाड़ी स्थल होता है जहां लोगों ने विषैली जड़ी -बूटी की खोज की I उस विषैली जड़ी का उपयोग नदी में मछली को विष देने के लिए किया जाता है। चांगलांग जिले के उत्तर में लोहित जिला और असम का तिनसुकिया जिला, पश्चिम में तिरप जिला और दक्षिण-पूर्व में म्यांमार स्थित है। पटकई बुम हिल्स नागालैंड तक पहुंचनेवाले ग्रेटर हिमालय का विस्तार हैं जो चंगलांग और म्यांमार के बीच प्राकृतिक अवरोधक का कार्य करता है । यह जिला तांगसा, नोक्ते, सिंह्फो और लिसू जनजाति का निवास क्षेत्र है I चांगलांग में नोआ-दिहिंग, नामचिक, तिरप, नमफुक, दफा, नमफई, टिसू, तारित, तारा, टिकेंग और टिगिंग नदियां प्रवाहित होती हैं जिनमें से अधिकांश अंततः बुरी-दिहिंग नदी में मिल जाती हैं। चांगलांग वनस्पतियों और जीवों की विभिन्न प्रजातियों से समृद्ध है । पर्यटन का मुख्य आकर्षण नामदफा राष्ट्रीय उद्यान है I नामदफा राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 96 स्तनधारी प्रजातियां, 453 एवियन प्रजातियां और 50 सरीसृप प्रजातियां हैं I डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, मार्गरीटा और मिआओ से सड़क मार्ग द्वारा चांगलांग जा सकते हैं । शहर का निकटतम हवाई अड्डा डिब्रूगढ़ है और निकटतम रेलवे स्टेशन तिनसुकिया है। यात्रा के लिए नवंबर से फरवरी तक का मौसम सर्वोत्तम है I
कोलोरिआंग- समुद्र तल से 1,040 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कोलोरिआंग एक छोटा सा शहर है जो अरुणाचल प्रदेश राज्य के कुरुंग कुमे जिले में स्थित है। यह कुरुंग कुमे जिले का मुख्यालय भी है I इसके उत्तर में चीन और अरुणाचल का सुबनसिरी जिला, दक्षिण- पश्चिम और दक्षिण पूरब में ईस्ट कामेंग एवं लोअर सुबनसिरी जिले स्थित हैं I वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार कोलोरियांग की जनसंख्या 2345 है I कुरुंग नदी के तट पर स्थित यह खूबसूरत शहर एक पुराना प्रशासनिक केंद्र है। ‘कोलोरियंग’ दो शब्दों के योग से बना है – ‘कोलो’ उस व्यक्ति का नाम है जो इस क्षेत्र का मालिक था तथा ‘रियांग’ का अर्थ भूमि है। इस प्रकार ‘कोलोरियांग’ का शाब्दिक अर्थ इस क्षेत्र की भूमि का स्वामी है I यह शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है I प्रकृति में रुचि रखनेवाले लोगों के साथ-साथ ट्रेकिंग के लिए भी यह एक आदर्श स्थान है। जिरो से कोलोरिआंग जाने के रास्ते में कई पिकनिक स्थल हैं I कोलोरिआंग का निकटतम हवाई अड्डा लीलाबारी है जो 245 किलोमीटर दूर असम राज्य में स्थित है I तेज़पुर हवाई अड्डे की दूरी 435 किलोमीटर और गुवाहाटी हवाई अड्डे की दूरी 600 किलोमीटर है I निकटतम रेलवे स्टेशन हारमती है जो 250 किलोमीटर दूर है I बड़ा रेलवे स्टेशन तिनसुकिया है I इसके अलावा कोलोरिआंग के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है। गुवाहाटी से कोलोरिआंग के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है I ग्रीष्मकाल इस खूबसूरत शहर की यात्रा करने का सबसे उपयुक्त समय हैI
– वीरेन्द्र परमार