मुक्त मंच की ‘रोजगार के अवसर और चुनौतियाँ’ विषयक संगोष्ठी
जयपुर 11 जून। मुक्त मंच, जयपुर की 84वीं संगोष्ठी रोजगार के अवसर और चुनौतियाँ विषय पर परमहंस योगिनी डॉ .पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य, बहुभाषाविद डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम की अध्यक्षता, पूर्व आईएएस अरुण ओझा के मुख्य आतिथ्य और शब्द संसार के अध्यक्ष श्री श्रीकृष्ण शर्मा के संयोजन में सम्पन्न हुई।
अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम ने कहा कि रोजगार का व्यापक अर्थ जीवन प्रबंधन से है। रोजगार का अर्थ नौकरी ना होकर जीवन यापन का कर्म करना है। रोजगार की वर्तमान समस्या भौतिकता से ओतप्रोत हमारी बढ़ती हुई जीवनशैली है, श्रम की गरिमा की उपेक्षा और व्यक्ति और समाज की सुविधापरक मानसिकता है। एक जमाना था जब गाँव आत्मनिर्भर थे, सामाजिक सद्भाव था किन्तु आज गावों से पलायन और शहरों में हताशा निराशा है। सामाजिक प्रतिष्ठा, स्थायित्व, पेंशन और अपेक्षाकृत अधिक मासिक आय के कारण सरकारी नौकरियों के प्रति सम्मोहन है। अत: गाँवों को आत्मनिर्भर बनाया जाए ताकि रोजगार बढ़ सकें। सरकार को सर्वांगीण विकास का संकल्प लेना होगा तभी लोकतंत्र सफल होगा और बेरोजगारी मिटेगी।
मुख्य अतिथि पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण ओझा ने कहा कि हमें गाँधी की ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था की ओर लौटना होगा जिससे गाँवों में निर्माण कार्य हो और उत्पादन को शहरों में लाया जाए तो हर आदमी को रोजगार मिल जाएगा पर हम कॉरपोरेटाइजेशन के चक्कर में फंस गए । कौशल विकास की कई योजनाएँ हैं पर वे जितनी प्रभावी होनी चाहिए नहीं हो पाई।
संगोष्ठी संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि जनसंख्या को लेकर 2047 तक भयावह स्थिति बन जाएगी। बढती सामाजिक असमानताओं पर ठोस कार्यवाई और लक्षित परियोजनाओ के बावजूद एससी,एसटी,ओबीसी,एमबीसी के लोग आज भी उच्च पदों से बहुत दूर है। अनेक उपायों के बावजूद बेरोजगारी बढ़ी है।
कम्प्यूटर विज्ञान विशेषज्ञ दामोदर चिरानिया ने कहा कि आजीविका और रोजगार के क्षेत्र मे विस्तार हुआ है परन्तु तकनीकी एवं वैज्ञानिक हस्तक्षेप से चुनौतियाँ बढी हैं। पूर्व बैंकर एवं चिन्तक इन्द्र भंसाली ने कहा कि एक तरफ उद्योगों, व्यापारों. व्यवसायों को गुणवत्ता युक्त कुशल कार्य करने वाले कर्मचारी अनुपलब्ध हैं जबकि लाखों व्यक्ति रोजगार की तलाश में घर बैठ गए हैं। विभिन्न रोजगारपरक परीक्षाओं के पेपर लीक की प्रवृति को रोका जाना चाहिए।
प्रतिष्ठित साहित्यकार फ़ारूक आफरीदी ने कहा कि जैसे चीन ने अपनी बेरोजगारी और बढती हुई जनसंख्या का समाधान किया वैसी ही नीति अपनाकर हमें बेरोजगारी दूर करनी चाहिए। कुशल.अकुशल श्रमिकों की बेरोजगारों का सर्वेक्षण कर सटीक निदान किया जाए। 45 साल में बेरोजगारी सर्वोच्च स्तर पर पहुँचना विस्फोटक है।चिन्तक एवं प्रो. एस.सी. गुप्ता ने कहा कि शासन.प्रशासन की विकृत नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ी है। शासन धन कुबेरों को सम्पन्न बनाने में लगा हुआ है। उसे गरीबों की परवाह नहीं है जिससे वे महँगाई के बोझ तले दब रहे हैं । एआई और टेक्नोलॉजी के विस्तार से भी बेरोजगारी बढी है।
विट्ठल पारीक ने कहा कि विकास का रास्ता पूँजीवादी सोच का परिणाम है। जिसे काम मिल जाता है वह कामचोरी करने लगता है और इसके विपरीत काम की तलाश में बैठे शिक्षित बेरोजगार भटकते रहते हैं। रौबदाब, व्हाइट कॉलर वाला, प्रतिष्ठित पाँच जीरो वाला वेतन चाहे तो कोई उपाय नहीं। संगोष्ठी में पूर्व आईएएस आर.सी.जैन, डॉ सत्यवीर ऋषिराजदेव पौली, कलाकार अरुण ठाकर, श्रीमती मुदिता ठाकर, जनसम्पर्ककर्मी सुमनेश शर्मा ने वैचारिक अवदान किया। कविवर भूपेन्द्र भरतपुरी ने अपनी रोचक कविता सुना श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अन्त में परम विदुषी योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग ने आभार व्यक्त किया।