1.
गुज़रती है जिधर से सींचती है
कोई सागर नहीं है ये नदी है
मुकर्रर है जो मिल जायेगा साहब
अभी रख लीजिए यह पेशगी है
कई खंज़र कई तलवार रखकर
ग़ज़ब से मुस्कराती ये सदी है
यहाँ जो बेवफ़ा हैं पूछते हैं
महब्बत क्या कोई आवारगी है
हमारी जेब के हिस्से में आई
हमारे घर की कोई बेबसी है
सियासत और शराफत एक है क्या?
हमेशा मुझसे जनता पूछती है
नहीं गुमनाम ख़ुद में रहिये ‘पंकज’
अभी तो आपकी दुनिया नयी है
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2.
तय कर लिया है लंबा सफ़र खुश हो तो कहें
अपनों से अब बिछड़ के अगर खुश हो तो कहें
शाखों से, फूल-पत्तों से, फल से लदे हुए
पंछी बिना कोई भी शजर खुश हो तो कहें
कोठे-अटारियों के रईसों के दरमियान
इंसान के बिना भी नगर खुश हो तो कहें
इस आस में कि एक दिन वो लौट आएगा
चुप चुप निहारता है डगर खुश हो तो कहें
‘पंकज’ वो शख्स शहर में खुशहाल है बहुत
गांव से दूर होके मगर खुश हो तो कहें
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3.
हर एक शख़्श को उस दम मलाल होता है
बुलंदियों से कभी जब ज़वाल होता है
वहाँ के बच्चों की तालीम किस तरह होगी
जहाँ का मसअला रोटी और दाल होता है
हमारे गाँव में मेहमाँ का होता है आदर
तुम्हारे शहर में बस हाल-चाल होता है
तुम्हारी बज़्म से मैं दूर हो गया लेकिन
हमेशा दिल में तुम्हारा ख़याल होता है
जहाँ भी हादसे होते हैं शहर में ‘पंकज’
सियासी लोगों का इसमें कमाल होता है