गमगीन है बहुत जमाना जिसके लिए
वो शख़्स तो तस्वीर में मुस्करा रहा है
कुछ लोग ज़िन्दगी में बगैर बुलाये अपने आप आ जाते हैं और फिर सारी उम्र कभी पीछा नहीं छोड़ते। स्वयं यदि चले भी गये तो जाते-जाते दिल पर एक गहरी लकीर खींच जाते हैं, स्मृतियों का एक भारी बोझ सिर पर लाद जाते हैं, जिसे ढोने में, सहेजने में हम सुख अनुभव करने लगते हैं।
रतन टाटा का जाना करोड़ों लोगों को दुखी कर गया है और जो लोग उनसे मिले या उनसे जुड़े रहे, वे भावुक हैं। ‘रतन टाटा को उनकी विनम्रता, परोपकार और दयालुता के लिए याद रखा जाएगा। वह करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा थे, जिन्होंने साहस के साथ जिंदगी जी और देश के लिए उनका प्यार बहुत ज्यादा था। वह एक अलग तरह के इंसान थे। वह भारत पर एक छाप छोड़कर गए हैं, उनका हर भारतीय के जीवन पर प्रभाव है।’
भारत के रतन कहे जाने वाले दिग्गज उद्योगपति अरबपतियों में शामिल होने के बावजूद अपनी सादगी से हर किसी का दिल जीत लेते थे। उन्होंने विवाह नहीं किया और अपने निजी जीवन के बारे में बहुत गोपनीयता बरकरार रखी। उन्हें कारों और कुत्तों का शौक था और वह एक प्रशिक्षित पायलट भी रहे हैं। वह अपनी कारोबारी उपलब्धियों के साथ-साथ अपने विनम्र स्वभाव और परोपकारी कार्यों के भी लिए जाने जाते थे।
कॉर्नेल विश्वविद्यालय से डिग्री लेने के बाद इंटर्नशिप के लिए टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट आए। इसके साथ ही उद्योग जगत में उनका पदार्पण हुआ। हालांकि, उन्होंने लंबा अनुभव भी हासिल किया। इंटर्नशिप के बाद 1961 में टाटा समूह में शामिल हुए।
रतन टाटा की टाटा समूह में प्रविष्टि, टाटा स्टील में काम करना शुरू किया, जिससे उन्हें कंपनी के औद्योगिक पक्ष का व्यावहारिक अनुभव मिला। 1991 में, उन्होंने जे.आर.डी. टाटा के बाद टाटा संस के अध्यक्ष का पद संभाला। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण और संचालन में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया।
दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी टाटा संस के अध्यक्ष रहे रतन टाटा ने शीर्ष पद संभालने से कई वर्ष पहले ही परोपकारी गतिविधियां शुरू कर चुके थे। 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की थी।
रतन टाटा का प्रभाव व्यापार से कहीं अधिक विस्तृत है; वह जिम्मेदार नेतृत्व और परोपकार के प्रतीक हैं। उनके नैतिक व्यापार प्रथाओं, सामाजिक प्रभाव, और वैश्विक विस्तार पर ध्यान ने न केवल टाटा समूह बल्कि भारत के व्यावसायिक परिदृश्य को भी आकार दिया है। सेवानिवृत्ति के बाद भी, सामाजिक कारणों में उनकी निरंतर भागीदारी और नवाचार के लिए समर्थन उन्हें भारतीय व्यापार और सामाजिक परिवर्तन के अग्रणी बनाए रखते हैं।
2007 में, टाटा स्टील ने एंग्लो-डच स्टील कंपनी कोरस का 12 बिलियन डॉलर में अधिग्रहण किया। उस समय, यह किसी विदेशी कंपनी का भारत का सबसे बड़ा अधिग्रहण था, जिससे टाटा समूह की वैश्विक स्टील उद्योग में खिलाड़ी बनने की महत्वाकांक्षा को बल मिला। उनके नेतृत्व में, टीसीएस दुनिया की सबसे बड़ी आईटी सेवाओं में से एक बन गई। यह सॉफ्टवेयर सेवाओं में एक वैश्विक शक्ति बन गई, जो टाटा समूह की राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
रतन टाटा ने टाटा नैनो की लॉन्चिंग की, जो एक किफायती कार थी जिसका उद्देश्य लाखों भारतीयों को कम लागत वाली वाहन उपलब्ध कराना था। हालांकि यह वाणिज्यिक रूप से सफल नहीं रही, यह एक सामाजिक आवश्यकता को पूरा करने का महत्वपूर्ण प्रयास था। रतन टाटा के कार्यकाल की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक 2008 में ब्रिटिश लक्जरी कार ब्रांड्स जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण था। इसे व्यापक रूप से एक साहसिक रणनीतिक निर्णय माना गया, जिसने जेएलआर को टाटा मोटर्स का लाभदायक विभाजन बना दिया।
रतन टाटा हमेशा एक उद्योगपति से कहीं बढ़ कर थे, उन्होंने विज्ञान और कला के विकास में अनूठा योगदान दिया। भारतीय संस्कृति, संस्कार, धरोहर, परंपरा, शालीनता, कर्तव्यनिष्ठा, स्वदेशी, और परोपकार की मूर्ति, ट्रस्टीशिप सिद्धांत पर आधारित अर्थव्यवस्था और सत्ता के विकेंद्रीकरण में अटूट विश्वास रखने वाले व्यक्तित्व के धनी रतन टाटा ने हमेशा श्रमिकों को, उत्पादकता को, उद्यमिता को, गुणवत्ता को, सुरक्षा को सर्वोपरि महत्व दिया।
रतन टाटा ने प्रॉफ़िट को कभी खराब शब्द नहीं माना। वे ‘प्रॉफ़िट इज नॉट ए डर्टी वर्ड’ में विश्वास रखते थे। परंतु अपने प्रॉफ़िट से सामाजिक दायित्व, सामाजिक समरसता, क्षेत्र के विकास, शिक्षा, विज्ञान, भारतीयता, राष्ट्रीयता पर लाभ का एक सही हिस्सा खर्च करने में कभी संकोच नहीं किया।
टाटा ग्रुप के अंडर 100 से ज्यादा कंपनी आती हैं। टाटा की चाय से लेकर 5 स्टार होटल तक, सूई से लेकर स्टील तक, लखटकिया नैनो कार से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ मिलता हैं। उन्होंने 1991 से दिसंबर 2012 तक नमक से लेकर सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी ‘टाटा संस’ के अध्यक्ष के रूप में टाटा ग्रुप का नेतृत्व किया। टाटा ग्रुप की प्रमुख कंपनियों में एयर इंडिया, टीसीएस, टाटा मोटर्स, टाटा नमक, टाटा चाय, जगुआर लैंड रोवर, टाइटन, फास्ट्रैक, तनिष्क, स्टारबक्स, वोल्टास, जारा, वेस्टसाइड, कल्ट फिट, टाटा एआईजी, टाटा एआईए लाइफ, टाटा प्ले, टाटा वन एमजी और टाटा कैपिटल ब्रांड्स शामिल हैं। टाटा समूह की कंपनियों ने हाल ही में देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण में भी कदम रखा है।
अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद रतन टाटा भारत लौटे और 1962 में उस समूह के लिए काम करना शुरू किया जिसकी स्थापना उनके परदादा ने लगभग सौ साल पहले किया था। अपनी सेवा के दौरान उन्होंने टाटा समूह की कई टाटा कंपनियों में काम किया, जिनमें टेल्को (अब टाटा मोटर्स लिमिटेड) और टाटा स्टील लिमिटेड जैसी कंपनियों शामिल हैं। आगे चलकर उन्होंने टाटा की एक अन्य इकाई नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में घाटे को खत्म करके बाजार हिस्सेदारी बढ़ाई जिससे उनकी अलग पहचान बनी।
जिस क्षेत्र में अपने उद्योग को स्थापित किया उस क्षेत्र की कला- संस्कृति, जल, वायु, प्रदूषण क्षेत्र के लोगों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व और उनके उद्योग और व्यवसाय पर निर्भर उद्यमियों को हमेशा ध्यान में रखते हुए उनका हर संभव सहयोग और सहभागिता के लिए हमेशा तत्पर रहे। संकल्प, समर्पण, स्थायित्व, निरंतरता एवं पारदर्शिता पर आधारित उनके सभी निर्णय सर्वमान्य थे।
भारत-ब्रिटेन आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में उनके योगदान के लिए रतन टाटा को ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (KBE) के मानद नाइट कमांडर से नवाजा गया था। राष्ट्र के प्रति उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा के लिए उन्हें वर्ष पद्म भूषण (2000) तथा देश के उद्योग में उनके योगदान के लिए भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण (2008) से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें 2013 में कॉर्नेल का एंटरप्रेन्योर (उद्यमी) ऑफ द ईयर भी नामित किया गया।
रतन टाटा ने 2012 में टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के उपरांत, वह टाटा समूह और व्यापक रूप से भारतीय उद्योग में एक प्रभावशाली व्यक्ति बने रहे। उनके नेतृत्व की शैली और नैतिक व्यापार के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें भारत और वैश्विक स्तर पर व्यापक सम्मान दिलाया है। रतन टाटा को हमेशा अपनी करुणा और जरूरतमंदों को सहायता देने की उनकी इच्छा के लिए जाना जाता है।
वर्ष 2018 में, ब्रिटेन के शाही राजमहल बकिंघम पैलेस के एक कार्यक्रम में ब्रिटेन के शाही राजकुमार प्रिंस चार्ल्स (अब किंग चार्ल्स III) भारतीय उद्योगपति रतन टाटा को उनके परोपकारी कार्यों के लिए एक लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देना चाहते थे, किन्तु अपने बीमार कुत्ते की देखभाल के लिए रतन टाटा ने उस कार्यक्रम में शामिल होने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था और कहा कि मैं इसे बीमार हालत में छोड़ कर वहां नहीं आ सकता हूं। कार्यक्रम में नहीं शामिल होने के कारण जानने के बाद प्रिंस चार्ल्स ने कहा, ‘इंसान ऐसा होना चाहिए। रतन टाटा कमाल के इंसान है। यही कारण है कि टाटा हाउस आज इस स्थिति में है।’
मुंबई में पाकिस्तानी आतंकियों के हमले के बाद रतन टाटा ने पाकिस्तान के साथ न सिर्फ अपने व्यापारिक संबंधों को समाप्त कर दिया, बल्कि पाकिस्तान के व्यापारियों से मिलने से भी इनकार कर दिया।
आज जब रतन टाटा नही रहें तो मुझे “भारतरत्न” की उपाधि और उसको प्रदान करने की प्रक्रिया की प्रासंगिकता पर पुनः संदेह होता है। वोट की राजनीति के लिए, सरकार नियमों में संशोधन कर सचिन तेंदुलकर को भारतरत्न से सम्मानित कर दिया, जिसने जीवन भर अपने व्यक्तिगत उपलब्धि के लिए ही क्रिकेट खेला पर रतन टाटा को उनके जीते जी यह सम्मान नहीं दे सके, जबकि भारतीय उद्योग जगत, उसकी कार्य प्रणाली और कॉर्पोरेट-एथिक्स में रतन टाटा के योगदान अतुलनीय है। उन्होंने देश के उन्नति-प्रगति में न केवल महती योगदान दिया है बल्कि कई सारे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अधिगृहीत करके भारत और भारतीय उद्योग जगत का लोहा पूरे विश्व में मनवाया। जब ऐसा व्यक्ति, जिसने भारत को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया हो वो भारतरत्न डिजर्व नहीं करता, तो कौन करता है? कल अगर रतन टाटा को मरणोपरांत भारतरत्न दे भी दिया गया तो वो महज खानापूर्ति ही लगेगी।
करीब 86 वर्षीय ‘वास्तविक भारत रत्न’ श्रद्धेय रतन टाटा साहब का महज शरीर ही शांत हुआ है, लेकिन वे मरे नहीं हैं … वे तो आने वाले कई दशकों तक अपने करोड़ों चाहने वालों और क़द्रदानों की स्मृति में ऐसे ही ‘जीवित’ रहेंगे .. आने वाली नस्लों के लिये प्रेरणा देने वाली क़तार के वो अग्रिम पंक्ति के लोगों में प्रमुखता से शुमार थे, हैं और रहेंगे भी .. मेरी नज़रों में वो महापुरुषों की श्रेणी के भी एक शिखर पुरुष थे। मेरे आदर्श थे, वो किसी ताजे पुष्प की मनमोहक ख़ुशबू की भाँति हमारे आसपास/ हमारी स्मृतियों में जीवित ही नहीं अपितु जीवंत भी रहेंगे। रतन टाटा ऐसी विभूति हैं, जिन्हें अगर अद्वितीय कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं। ऐसे रत्न सदियों में चुनिंदा ही होते हैं।
दुख की कोई सीमा नही, जैसे हमने अपना वतन खो दिया / तन्हा रात के अंधेरे में, हमने अपना रतन खो दिया।।