भूल जाइए कि संसद में गलत तौर-तरीकों का इस्तेमाल करके पहुंच सकेंगे आप। किसी को ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जाएगी। ‘आई ईट पोलिटीशन्स फ़ॉर ब्रेकफास्ट’।
जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए तो कानून मंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने चुनाव आयोग से संसद में पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए कहना शुरू कर दिया। शेषन ने इसका ज़ोरदार विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग सरकार का कोई विभाग नहीं है। विजय भास्कर इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पास ले गए।
टीएन शेषन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, ‘रेड्डी ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मुझसे कहा, शेषन आप सहयोग नहीं कर रहे हैं। मैंने जवाब दिया मैं कोई कोऑपरेटिव सोसाइटी नहीं हूँ। मैं चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करता हूँ।‘ प्रधानमंत्री ये सुन कर सन्न रह गए। फिर मैंने प्रधानमंत्री की तरफ मुड़ कर कहा, मिस्टर प्राइम मिनिस्टर अगर आपके मंत्री का यही रवैया रहा तो मैं उनके साथ काम नहीं कर सकता।‘
2 अगस्त, 1993 को टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई चुनाव नहीं कराया जाएगा। शेषन ने अपने आदेश में लिखा कि चुनाव आयोग ने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाला हर चुनाव जिसमें दो साल पर होने वाले राज्यसभा चुनाव, लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, अगले आदेश तक स्थगित रहेंगे। शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इससे इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने शेषन को ‘पागल कुत्ता’ तक कह डाला। वैसे पीठ पीछे उनसे परेशान लोग शेषन को ‘अलसेशियन’ भी कहने लगे थे।
15 दिसंबर, 1932 को केरल के पलक्कड़ में जन्मे श्री टीएन शेषन 12वीं की पढ़ाई उन्होंने गवर्नमेंट विक्टोरिया कॉलेज, पलक्कड़ से की। मेट्रो मैन इ श्रीधरन भी इस दौरान इसी स्कूल में पढ़ रहे थे। दोनों का चयन जवाहरलाल नेहरू टेक्निकल यूनिवर्सिटी, काकीनाड़ा आंध्र प्रदेश में हुआ। लेकिन शेषन ने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से बीएससी करना चुना और यहां से फिजिक्स में ऑनर्स लेकर स्नातक हुए।
1954 बैच के I. A.S. की परीक्षा में प्रथम स्थान पाने वाले टी एन शेषन (उम्र 21 वर्ष) सुब्रह्मण्यम स्वामी के बहुत जिद करने पर देश के 10 वें मुख्य चुनाव आयुक्त बनना स्वीकार किया था। शेषण 1953 बैच में IPS की परीक्षा में भी सर्वप्रथम आये थे और उनके बड़े भाई ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया था।
1990 में सीईसी बनने से पहले तीन दशक से अधिक समय तक नौकरशाह के रूप में कार्य करने के दौरान लोगों और प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने के बजाय, उन्होंने सरकार में अपने समय की एक लॉगबुक दी है, जिसकी शुरुआत डिंडीगुल में एक उप-कलेक्टर और मदुरै में कलेक्टर के रूप में हुई थी, जहां उन्होंने अपने प्रशासनिक वरिष्ठों का सामना एक तंज के साथ किया था कि वे जो करना चाहते हैं उसे लिखित में भेजें।
राजीव गाँधी के निर्देश पर वन और पर्यावरण सचिव रहते हुए शेषन को प्रधानमंत्री की कमजोर सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गई। शेषन ने 150 पन्नों की रिपोर्ट राजीव गाँधी को सौंपी और ये भी सुझाव दिए कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाना चाहिए।
शेषन लिखते हैं, “राजीव ने कहा कि आपने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जो सुझाव दिए हैं उनको आपको ही लागू करवाना होगा। मैंने उनसे पूछा, मैं इसमें आपकी किस तरह मदद कर सकता हूँ? राजीव ने जवाब दिया- सुरक्षा को अपने नियंत्रण में लेकर।”
जब एसपीजी एक्ट बनाया गया तो उसमें प्रावधान था कि एसपीजी प्रधानमंत्री के अलावा उनके परिवारजनों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी लेगी। शेषन राजीव गाँधी के पास प्रस्ताव लेकर गए कि इसमें पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिजनों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
शेषन लिखते हैं, “मैंने राजीव से कहा आज आप प्रधानमंत्री हैं। कल आप इस पद से हट सकते हैं। लेकिन आपकी जान पर ख़तरा बना रहेगा। अमेरिका का उदाहरण दिया जहाँ एफ़बीआई उनका कार्यकाल समाप्त हो जाने और उनके निधन के बाद भी उनके परिवार वालों को सुरक्षा प्रदान करती है।”
लेकिन राजीव इस बात के लिए राज़ी नहीं हुए। उन्हें लगा कि लोग सोचेंगे कि वो ऐसा अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। मैंने उनको मनाने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुआ।
राजीव की सुरक्षा पर नज़र रखने के लिए शेषन अक्सर राजीव गाँधी के निवास पर जाने लगे। धीरे धीरे वो राजीव के नज़दीक आते चले गए। लेकिन राजीव अपनी सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लेते थे। ऐसे भी मौके आए जब शेषन ने उनके मुँह से बिस्कुट निकाल लिया। उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री को ऐसी कोई चीज़ नहीं खानी चाहिए जिसका परीक्षण न किया जा चुका हो। शेषन उनके कोलम्बो जाने के सख़्त ख़िलाफ़ थे। लेकिन राजीव ने उनकी बात नहीं मानी। नतीजा ये हुआ कि वहाँ एक श्रीलंकाई नौसैनिक ने राजीव पर राइफ़ल के बट से हमला किया।
विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने के अगले ही दिन इस बात पर विचार करने के लिए एक बैठक बुलाई गई कि राजीव गाँधी और उनके परिवार को एसपीजी कवर दिया जाए या नहीं। कैबिनेट सचिव के तौर पर शेषन ने सलाह दी कि राजीव गाँधी को वही सुरक्षा मिलनी चाहिए जो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर मिल रही थी। लेकिन वीपी सिंह सरकार इसके लिए राज़ी नहीं हुई और बदले में शेषन का तबादला कर कैबिनेट सचिव की जगह योजना आयोग का सदस्य बना दिया गया।
जब वीपी सिंह की सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने तो उन्हें शेषन को दोबारा कैबिनेट सचिव बनाने की पेशकश की गई लेकिन शेषन ने कहा कि वो जल्द ही रिटायर होने वाले हैं। तब चंद्रशेखर ने सुब्रह्मण्यम स्वामी के ज़रिए उनके पास मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का प्रस्ताव भेजा।
राजनीतिज्ञों के साथ उनकी नोंकझोंक, 6 घण्टे में 6 बार ट्रांसफर, ईमानदारी से कर्तव्यपालन के लिए इस सीमा तक प्रतिबद्ध कि सनक भरा अधिकारी के लिए भी उन्हें याद किया जाएगा, किन्तु वे ही थे जिन्होने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां क्या हो सकती हैं और वो सिस्टम को ठीक करने के लिए क्या कुछ कर सकता है, इसका परिचय हमें कराया वरना उनके पहले मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर कौन है ये सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों तक ही सीमित था।
मध्यवर्ग के मन में शेषन की छवि आने वाले कई दशकों तक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व चुनाव के महापुरोहित यानि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में कायम रहेगी जिसने सिर्फ वही किया जो संविधान में लिखा है। खुद कानून की चौहद्दी में रहा, दूसरों को इस चौहद्दी के भीतर रहने की हिदायत दी और अगर किसी ने इस हिदायत का जरा सा भी उल्लंघन किया तो चाहे वह कोई भी हो -इस महापुरोहित के कोप का शिकार हुआ।
दिसंबर 1990 की एक ठंडी रात करीब एक बजे केंद्रीय वाणिज्य मंत्री सुब्रह्मण्यम स्वामी की सफेद एम्बेसडर कार नई दिल्ली के पंडारा रोड के एक सरकारी घर के पोर्टिको में रुकी। ये घर उस समय योजना आयोग के सदस्य टीएन शेषन का था। स्वामी बहुत बेतकल्लुफी से शेषन के घर में घुसे। वजह ये थी कि साठ के दशक में स्वामी शेषन को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके थे। हालांकि वो शेषन से उम्र में छोटे थे।
सुब्रह्मण्यम स्वामी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दूत के तौर पर वहाँ पहुंचे थे और आते ही उन्होंने उनका संदेश दिया था, “क्या आप भारत का अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना पसंद करेंगे?” स्वामी दो घंटे तक उन्हें ये पद स्वीकार करने के लिए मनाते रहे तो शेषन ने उनसे कहा कि वो कुछ लोगों से परामर्श करने के बाद अपनी स्वीकृति देंगे। शेषन ने इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से सलाह ली।
‘शेषन- एन इंटिमेट स्टोरी’ (टीएन शेषन की जीवनी) लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार के गोविंदन कुट्टी बताते हैं, “स्वामी के जाने के बाद शेषन ने राजीव गाँधी को फ़ोन मिला कर कहा कि वो तुरंत उनसे मिलने आना चाहते हैं। जब वो उनके यहाँ पहुंचे तो राजीव गाँधी अपने ड्रॉइंग रूम में थोड़ी उत्सुकता के साथ उनका इंतज़ार कर रहे थे।”
“शेषन ने उनसे सिर्फ़ पाँच मिनट का समय लिया था, लेकिन बहुत जल्दी ही ये समय बीत गया। राजीव ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, ‘फ़ैट मैन इज़ हियर।’ क्या आप हमारे लिए कुछ ‘चॉकलेट्स’ भिजवा सकते हैं? ‘चॉकलेट्स’ शेषन और राजीव दोनों की कमजोरी थी।”
“थोड़ी देर बाद राजीव गांधी ने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद स्वीकार करने के लिए अपनी सहमति दे दी। लेकिन वो इससे बहुत खुश नहीं थे। जब वो शेषन को दरवाज़े तक छोड़ने आए तो उन्होंने उन्हें छेड़ते हुए कहा कि वो दाढ़ी वाला शख़्स उस दिन को कोसेगा, जिस दिन उसने तुम्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फ़ैसला किया था।” दाढ़ी वाले शख़्स से राजीव गांधी का मतलब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से था।
इसके बाद शेषन ने कांचीपुरम के शंकराचार्य की सलाह ली। शंकराचार्य ने कहलवाया- ये सम्मानजनक पद है. इसे शेषन को ले लेना चाहिए। 10 दिसंबर, 1990 को शेषन के नवें मुख्य चुनाव आयुक्त बनने का आदेश जारी हुआ।
टीएन शेषन ने चुनाव सुधार की शुरुआत 1995 में बिहार चुनावों से की थी। चुनावों में धांधली के लिए बिहार बुरी तरह बदनाम था। उन्होंने बिहार में कई चरणों में चुनाव कराए, यहां तक कि चुनाव तैयारियों को लेकर वहां कई बार चुनाव की तारीखों में बदलाव भी किया। उन्होंने बिहार में बूथ कैप्चरिंग रोकने के लिए सेंट्रल पुलिस फोर्स का इस्तेमाल किया। शेषन के इस कदम पर लालू यादव ने उन्हें खुलेआम चुनौतियां दी थीं। उन्होंने चार बार बिहार चुनाव की तारीखों में बदलाव किया था। जरा सी भी गड़बड़ी मिलने पर वह फौरन तारीख बदल देते थे। उस दौरान बिहार में चुनावों में बड़ी संख्या में बूथ कैप्चरिंग, हिंसा और गड़बड़ी होती थी। शेषन ने इसे चुनौती के रूप में लिया। निष्पक्ष चुनाव के लिए पहली बार उन्होंने चरणों में वोटिंग कराने की परंपरा शुरू की। पांच चरणों में बिहार का विधानसभा चुनाव कराया। वह चुनाव मील का पत्थर बना था।
भारत में मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत शेषन के द्वारा ही की गई। उन्होंने अपने कार्यकाल में बोगस वोटिंग पर भी विराम लगा दिया था। शेषन ने वोटों की खरीद-फरोख्त पर सख्त कार्यवाही की और चुनाव में सुधार के लिए कई काम किए। पोलिंग बूथों को स्थानीय दबंगों के चंगुल से आजाद करने के लिए केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती शेषन के दौर का अहम फैसला था। यही नहीं, उम्मीदवारों को अपने चुनाव प्रचार में कितना खर्च करना है और पोस्टर-बैनर से निजात दिलाने में भी उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। शेषन ने ही चुनाव खर्च की सीमा और कैंडिडेट को जांच के लिए लेखा-जोखा देने का प्रावधान भी लागू किया। उन्होंने चुनाव के दौरान शराब पर प्रतिबंध लगा दिया और धर्म के नाम पर चुनाव प्रचार पर भी रोल लाने का काम किया।
एक अक्टूबर, 1993 चुनाव आयुक्त पर काम के दबाव को काम करने हेतु दो अन्य चुनाव आयुक्तों का पद सृजन कर सरकार ने जीवीजी कृष्णामूर्ति और एमएस गिल को नया चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया। कांग्रेस के प्रवक्ता विट्ठलराव गाडगिल ने व्यंग करते हुए कहा, ये फ़ैसला शेषन के काम में हाथ बँटाने के लिए लिया गया है। न्यायविद् फली नरीमन ने कहा था, “ये सब मुख्य चुनाव आयुक्त की ताक़त को कम करने के लिए किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना ने इस अध्यादेश की ये कहकर आलोचना की थी कि इस पर पहले संसद में चर्चा होनी चाहिए थी।
इस नियुक्ति पर टिप्पणी करते हुए शेषन ने लिखा, “मेरा वर्कलोड हुआ करता था सुबह 10 मिनट और शाम 3 मिनट का। दिन के बाकी समय मैं अपना वक्त टाइम्स ऑफ़ इंडिया की क्रॉसवर्ड पज़ल हल करने में बिताता था। ये थी मेरी तथाकथित व्यस्तता की असली तस्वीर। उस पर तुर्रा ये था कि कोई मेरी इस व्यस्तता को और कम करने की कोशिश कर रहा था। इन दोनों चुनाव आयुक्तों का वेतन भी टीएन शेषन के बराबर तय किया गया था।
टीएन शेषन एन अनडॉक्यूमेंटेड वंडर: द मेकिंग ऑफ द ग्रेट इंडियन इलेक्शन के लेखक भी हैं। टीएन शेषन द्वारा लिखित ‘थ्रू द ब्रोकन ग्लास: एन ऑटोबायोग्राफी’ 2019 में उनके निधन के 4 साल बाद प्रकाशित हुआ है। इस आत्मकथा में 1990 से 1995 तक सीईसी के रूप में उनके कार्यकाल को भी शामिल किया गया है। 1996 में टीएन शेषन को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यदि श्री टीएन शेषन को भारत में चुनाव सुधार के पितामह का दर्जा दिया जाये तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने भारतीय राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण चुनाव सुधारों को लागू किया था। बीते दशकों में टीएन शेषन से ज़्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया है. 90 के दशक में तो भारत में एक मज़ाक प्रचलित था कि भारतीय राजनेता सिर्फ़ दो चीज़ों से डरते हैं। एक ख़ुदा और दूसरे टी एन शेषन से और जरूरी नहीं कि उसी क्रम में!।
शेषन के काल को भारत में चुनाव आयोग का स्वर्णिम काल कहा जाता है। नवंबर 2022 में लोगों को एक और बार शेषन की हैसियत का अंदाजा लगा, जब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की नियुक्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “ज़मीनी स्थिति खतरनाक है। अब तक कई सीईसी रहे हैं, मगर टीएन शेषन जैसा कोई कभी-कभार ही होता है। हम नहीं चाहते कि कोई उन्हें ध्वस्त करे। तीन लोगों (सीईसी और दो चुनाव आयुक्तों) के नाज़ुक कंधों पर बड़ी शक्ति निहित है। हमें सीईसी के पद के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति खोजना होगा।”