बहुचर्चित नाटक ‘सिंहासन खाली है’ एक राजनीतिक हास्य व्यंग्य नाटक है। जिसमें कहीं कहीं ब्लैक कॉमेडी भी नज़र आती है। कल शाम जयपुर के रविन्द्र रंगमंच में इस नाटक का मंचन हुआ। जिसका निर्देशन राजस्थानी कलाकार दिनेश प्रधान ने किया था।
नाटक सूत्रधार से आरंभ होता है, जहां वह लोगों से अपील करता है कि जो कोई प्रेक्षागृह में उपस्थित अपने को सिंहासन के लिए सुपात्र समझता है वह अपनी दावेदारी करे। तभी प्रेक्षागृह में बैठी दर्शक दीर्घा में से एक महिला और उसका पति दावेदार बनता है फिर कुछ और लोग। प्रेक्षागृह में बैठी दर्शक दीर्घा जिसमें राजनीतिक दलों के साथ, अलग-अलग क्षेत्र और जातियों के नेता, संभ्रांत और आदिवासी और एक पति-पत्नी अपनी दावेदारी जताने लगते हैं। तभी से नाटक आपको उत्सुकता से आगे बढ़ाता हुआ ले चलता है।
सिंहासन हासिल करने के लिए किस तरीके के षड़यंत्र, दुष्प्रचार और हथकंड़ों का सहारा लिया जाता है इसका नाटक में बखूबी चित्रण हुआ। नाटक में आदिवासी राजा का आज के नेता से तुलना कर नया कलेवर देने का प्रयास किया गया। नाटक में राजनीतिक हालातों पर व्यंग भी किया गया जिस पर दर्शकों ने जमकर तालियां बजाई।
कुर्सी के लिए शुरू हुआ द्वंद्व करीब एक घंटे बीस मिनट तक चलता है इसी बीच में अगले कुछ दृश्य में पात्रों को प्राचीन काल में ले जाकर दिखाया जाता है कि यहां आदिवासी राजा लोगों पर शासन करता था। राजा स्वार्थी और अपने भ्रष्ट बुद्धि के द्वारा अपना भला करने की कोशिश करता है और प्रजा के भरोसे को मार देता है फिर इसके बाद नाटक धीरे-धीरे दर्शकों को वर्तमान में लाता है। जहां सूत्रधार बताता है कि प्राचीन काल से अब तक लोगों को लोकतंत्र के नाम पर मूर्ख बनाया जा रहा है। जहां वह फिर से यही कहता है कि अब समय आ गया है कि हम सही व्यक्ति का चयन करें और सिंहासन पर बिठाएं।
हास्य व्यंग्य से भरपूर इस नाटक ने लोगों का मनोरंजन तो किया ही साथ ही उसमें बहुत सारे संदेश भी दिए। ‘सिंहासन खाली है’ नाटक की कहानियां एक त्रिकोण के दो पक्षों नेता, राजनेता और आम आदमी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। जिसमें जनता का, महिलाओं का शोषण जिस तरह से दिखाया गया वह काबिले तारीफ था।
निर्देशक दिनेश प्रधान ने नाटक का निर्देशन भी बहुत ही शानदार तरीके से किया। इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।