(पंत जयंती-20 मई 2021)
नवल हर्ष यह नवल वर्ष यह
कल की चिंता भूलो क्षण भर
लाल के रंगों की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर
भारतीय संस्कृति,जीवन मूल्य एवं राष्ट्रीय जीवन को निर्मित करने में साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी साहित्य के आरंभ और विकास में कई महान् कवियों और रचनाकारों का योगदान रहा है,उनमें छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक प्रमुख हैं सुमित्रानंदन पंत। सुमित्रानंदन पंत अपने समय के ही नहीं बल्कि शताब्दी के प्रख्यात राष्ट्रीय कवि, विचारक तथा मानवतावादी रचनाकार हैं।उन्होंने साहित्य का जो स्वरूप हमारे सामने प्रस्तुत किया उसमें सामाजिक रूढ़ियों पर तीव्र कटाक्ष एवं परिवर्तन की प्रेरणा है। हिंदी साहित्य में छायावादी युग के प्रतिनिधि कवि होते हुए भी पंत जी का साहित्य सत्यम्, शिवम्, सुंदरम् के आदर्शों से प्रभावित रहा तथा निरंतर परिवर्तन की ओर अग्रसर रहा। पंत जी का स्वभाव फक्कड़ व फकीराना था। जन्म से प्रकृति से जुड़े रहने के कारण उनकी कविताओं में प्रकृति और सौन्दर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं। छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के चित्रण उनके काव्य में देखे जा सकते हैं।
पंत जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भाषा में निखार लाने के साथ-साथ भाषा को संस्कार देने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया है। आपने अपने शब्दों के जादू से जिस प्रकार नैसर्गिक सौंदर्य को शब्दों में ढाला है इससे उन्हें हिंदी साहित्य का *वर्ड्सवर्थ* कहा गयाहै।
पंत जी ने 7 वर्ष की उम्र से लिखना प्रारंभ किया था जो जीवन पर्यन्त चलता रहा। बस वाद बदलते रहे। छायावाद के पश्चात 1930 में पंत महात्मा गांधी के साथ नमक आंदोलन में शामिल हुए और देश सेवा सेवा में जुट गए। इस दौरान वह कालाकांकर में कुछ समय के लिए रहे। यहां उन्हें ग्रामीण जीवन की संवेदना से रूबरू होने का सौभाग्य मिला। उन्होंने किसानों की दशा को ‘वे आंखें’ कविता में पिरोया है-
अंधकार की गुहा सरीखी,
उन आँखों से डरता मन
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीर रोदन
पंत जी ने प्रगतिवादी दौर में ग्रामीण जीवन के मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्रण किया है। कल्पनाशीलता के साथ-साथ रहस्यानुभूति और मानवतावादी दृष्टिकोण उनके काव्य की मुख्य विशेषताएं हैं।
युग प्रवर्तन के साथ पंत जी की काव्य चेतना बदलती रही, जो उनकी रचनाओं में देखी जा सकती है। छायावादी दौर में उनके काव्य में रोमानी दृष्टि से मानवीय सौन्दर्य का चित्रण है, तो प्रगतिवादी दौर में ग्रामीण जीवन के मानवीय सौन्दर्य का यथार्थवादी चित्रण है। कल्पनाशीलता के साथ-साथ रहस्यानुभूति और मानवतावादी दृष्टिकोण उनके काव्य में मुखर रूप से परिलक्षित होता रहा। पंत जी अपने अंतिम दौर में अरविंद दर्शन से प्रभावित रहे।
प्रगतिवाद में मानव की दुर्दशा का चित्रण ‘ताज’ कविता में किया है-
शव को दे हम रूप रंग आदर मानव का
मानव को हम कुत्सित चित्र बना दें
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मानव! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति
आत्मा का अपमान, छाया से रति
गांधीवाद और मार्क्सवाद से प्रभावित होकर पंत जी ने काव्य रचनाएं की है। सामाजिक वैषम्य, विद्रोह का एक उदाहरण देखिए-
जाति पांति की कड़ियां टूटे मोह द्रोह मत्सर छूटे
जीवन के वन निर्झर फूटे वैभव बने पराभव
पंत जी को प्राकृतिक परिवेश से अत्यंत प्रेम था। उनकी स्वच्छंद कल्पना में प्रकृति के प्रति अपार प्रेम है। इसका श्रेय वह अपने जन्मस्थान को देते हैं, क्योंकि पर्वत प्रदेश में जन्म लेने के कारण प्रकृति से सदैव जुड़े रहे। वे लिखते हैं….
“कविता की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति के निरीक्षण से मिली, जिसका श्रेय मेरी जन्मभूमि को है। कवि जीवन से पहले भी मुझे याद है मैं घंटों एकांत में बैठा प्राकृतिक दृश्य को एकटक देखा करता था।”
पंत के यहां प्रकृति निर्जीव जड़ वस्तु होकर साकार और सजीव सत्ता के रूप में उपस्थित हुई है। उसका एक एक अणु, प्रत्येक उपकरण मन में जिज्ञासा उत्पन्न करता है। यहां संध्या का एक जिज्ञासा पूर्ण चित्र दर्शनीय है-
कौन तुम रूपसी
व्योम से उतर रही चुपचाप
छिपी निज माया में छवि आप
सुनहला फैला केश कलाप
मंत्र मधुर मृदु मौन
इस पूरी कविता में संध्या को एक आकर्षक युवती के रूप में मौन मंथर गति से पृथ्वी पर पदार्पण करते हुए दिखाकर कवि ने संध्या का मानवीकरण किया है ऐसे प्रकृति के दुर्लभ मनोरम चित्र पंत जी ने प्रस्तुत किए हैं।
साधारणतः प्रकृति के सुंदर रूप ने ही पंत जी को अधिक लुभाया है। उसी का काव्य में उपयोग भी किया है। प्रकृति का सुंदर रूप ग्रहण करने के कारण ही पंत जी में मनन और चिंतन की शक्ति आई है। उनकी विचारधारा अवश्य बदलती रही है, पर प्रकृति के प्रति प्रेम अटूट रहा है। उन्होंने हिंदी साहित्य को स्वर्ण काव्य प्रदान किया है। यदि उन्हें बाढ़ या उल्का की प्रकृति से लगाव होता तो निश्चय ही वे निराशावादी होते। वे कहते हैं “प्रकृति का उग्र रूप मुझे कम रुचिता है। सुंदर चित्र ही मनोहारी लगते हैं।”
इस प्रकार कवि पंत जी ने छायावाद और प्रगतिवाद दोनों ही काव्य धाराओं पर अपनी लेखनी चलाई है। वह आधुनिक काल के श्रेष्ठ कवि हैं। काव्य में प्रकृति सुंदरी का सुकुमार चित्र अंकित कर उसके सहज सौंदर्य के चितेरे और कोमल भावनाओं के कवि के रूप में पंत जी अमर रहेंगे।