मैं उस समय की बात कर रहा हूँ,जब शहर में आवागमन के लिये साइकिल का प्रचलन था। दुपहिया वाहन भी इक्के दुक्के ही थे जबकि चार पहिया वाहन तो ना के बराबर थे। उस समय समाज में आपसी प्रेम भाईचारा खूब था और ईमानदारी व सादगी से लोग जीवन यापन करते थे। फिर भी मेरे पिताजी ने कभी साइकिल खरीदी ही नहीं, इसलिये साइकिल चलाने वाला प्रश्न ही बेईमानी हो जाता है। अब यह जिज्ञासा अवश्य ही होगी कि ऐसा क्यों ? तो उस पर नीचे विस्तार से बता दे रहा हूँ –
आज से 60 / 65 साल पहले एक घटनाक्रम में पिताजी के किसी परिचित द्वारा साईकल न वापरने पर जब पूछा, तब उन्होंने बताया कि मेरी ये दो टाँगें ही साईकिल वाले दो पहियें हैं। उसी बातचीत में उन्होंने अपने मित्र को बताया कि मैं तीन तल्ले पर रहता हूँ और मेरी तरह यहाँ अनेक लोग रहते हैं और सभी की साईकिलें नीचे एक के बाद एक सटी खड़ीं रखनी पड़ती है। और इनको रखने व निकालते वक्त आपसी हल्की खींचातानी न चाहते हुए भी हो ही जाती है इसलिये मैं भला और मेरी ये दोनों टाँगें।
उसके कुछ सालों बाद जब मैंने नौकरी पर जाना प्रारम्भ कर दिया तब इस विषय पर मेरे द्वारा पूछने पर उन्होंने मुझे समझाया कि यदि तुम दोनों टाँगों को साइकिल के दो पहिये मान इनके भरोसे रहोगे तो बहुत ही ज्यादा सुखी रहोगे। फिर उन्होंने मुझे निम्न बातें समझाई –
1) ऑफिस जाओ तब रोज नये रास्ते से जाना आना करो और उसके जो कारण बताये वो इस प्रकार हैं –
अ) शहर का पूरा भूगोल तुम्हें आसानी से याद भी हो जायेगा और समझ में भी आ जायेगा।
ब) आवश्यकता पड़ने पर तुम कम दूरी वाला रास्ता काम में ले पाओगे।
स) पैदल चलने पर रास्ते में पड़ने वाले हर मन्दिर का बाहर से अपने आप दर्शन हो जायेगा।
द) किस रास्ते पर किस वस्तु का बाजार बसा है , ध्यान में रहेगा।
ल) कहाँ पर कौन सी वस्तु अच्छी व उचित दाम में मिल सकती है उसका हमेशा ध्यान करते रहो ताकि किफायती में गुणवत्ता वाला सामान वापर सको।
2) पैदल चलते रहने से मोटापा पनपेगा ही नहीं।
3) पैदल चलने वाले को डायबिटीज होती नहीं।
4) पैदल चलने से टाँगे मजबूत होती हैं।
5) पैदल चलने पर किसी के भरोसे नहीं रहोगे यानी यदि साइकिल में किसी भी प्रकार की खराबी हुई तो साइकिल सवार को जरा भी पैदल चलना अखरता है।
6) पैदल चलने पर शुद्ध हवा फेफड़ों में जाती है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी होती है।
7) एक साथ सारा सामान लाने का झंझट नहीं रहेगा यानी रोज ऑफिस से लौटते समय आवश्यकता क्रमानुसार उतना ही सामान अपने थैले में डलवाओ जितना आसानी से घर तक ला पाओ। भले ही थोक भाव में सौदा कर बाकी सामान दुकानदार के पास ही रहने दो।
8) अति आवश्यकता हो तो झाका ( एक टोकरी लिये मजदूर बाजारों में उपलब्ध रहते हैं) कर उससे सामान घर भिजवा दो।
9) नित्य खरीददारी होने से ताजी सब्जी, फल व फूल घर ला पाओगे।
10) भूख भी अच्छी लगेगी जिससे भोजन समय पर कर पायेंगे जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित माना जाता है ।
11) पैदल चलने से थकावट आना वाजिब है जिसके फलस्वरूप रात को आरामदायक गहरी नींद आयेगी।
उपरोक्त को ही पिताश्री की आज्ञा मान आज तक मैं दो टाँगों को ही साईकल के पहियें मान आराम की जिन्दगी जी रहा हूँ हाँलाकि अब तो घर में साईकल के अलावा दुपहिया वाहन में मोटरसाइकिल व चार पहिया वाहन के तौर पर मोटरगाड़ी भी है। लेकिन मैं आज भी केवल उसमें बैठना ही जानता हूँ । चलाना सीखने की कभी ईच्छा ही नहीं हुई।
यह सर्वविदित है कि आज भी अनेकों ऐसे हैं जिनके पास साईकल नहीं है और यह सब इस बार कोरोना काल में सभी को परिलक्षित जब हुआ तब लोगों का झुण्ड सड़कों पर 2000 / 3000 कि० तक का सफर अपने दो टाँगों के भरोसे पूरा किया। इस कारण ही बरबस याद आ जाती है निम्न दो पंक्तियाँँ –
न बसें काम आयींं, न रेलें काम आयींं।
बुरे वक्त में साहिब, ये दो टाँगे ही काम आयींं।।