1. नीलांबरी
तन सुकोमल कुमुदिनी सा रूप राशि का लिए सघन जाल
चंद्रमा झुककर आसमां से चूम लेता है तेरे गोरे लाल गाल
सलिल भी पाकर तेरा प्रतिबिंब प्रेमी अति निहाल है होता
यौवन करता अठखेली जैसे बहता कल कल जल का सोता।
चपला सा परिहास उज्ज्वल केश राशि भी नभ घटा सी
ठहर जाता काल भी लख अप्रतिम सौंदर्य की छटा सी
देहयष्टि सुपुष्ट सी है अधर रक्तिम नयन जैसे पंछी खंजन
स्वयं पुष्प थाल सजा कर मनसिज करता दुखों का भंजन।
वन, पवन, उपवन मुदित मन, झूमते है मानो सभी संग में
और प्रकृति भी आ गई ,सजीले भव्य रूप के रुपहले रंग में
श्रृद्धा के प्रसून अंजुरी में भर भरकर करें प्रेमी सब अर्पित
पर मैंने ये मेरा जीवन किया है ए प्रिया तुझको ही समर्पित।
सौंदर्य से परिपूर्ण हो तुम जैसे बाण भट्ट नायिका कादंबरी
झील से नीलवर्ण नयनों से झांकती है दैवीय सी नीलांबरी।।
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2. सांझ की बेला
थोड़ी सी सांसे ले उधार, करने आये, जग में विहार
बचपन, यौवन, वृद्धावस्था, सब बीत चले पाये असार
ईश्वर को हमने भुला दिया अस्तित्व को अपने जला लिया
जो मिला समय बहुमूल्य हमें मिट्टी में उसको मिला दिया।
गलती करके जो सोता है, दिन रात यहाँ पर रोता है
मायावी जग के फेरे में, वो प्रेम प्रभु का खोता है
अब सिर धुन कर पछताता है बीती बातें दोहराता है
जीवन की आपाधापी में वह हर अवसर ठुकराता है।
रिश्ते नाते सब झूठ यहाँ क्यों शांति ढूँढता यहाँ वहाँ
झांको तुम अपने अंतस में रहता है पावन प्रभु जहाँ
आ गयी सांझ की बेला भी सब राग द्वेष अब तो छोड़ो
हो लो विकार से स्वयं मुक्त माया के प्रबल बंधन तोड़ो।
कुछ लेना नहीं उधार वहाँ हर पल चलता व्यापार जहाँ
सांसो की पूंजी कर निवेश कर ले अपना उद्धार यहाँ।।
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3. जीवन का उत्तरार्ध
था समय हमारी मुठ्ठी में सारे सपने साकार किए
जब खिले फूल प्रेमांगण में, हम दोनों एकाकार हुए
सौंदर्य शिखर पर बैठी तुम मैं मधुप बना गुंजन करता
स्वप्निल आँखों में झाँक तेरी मैं रूप राशि दृग में भरता।
जब प्रेम शिखर पर पहुँचा तो होता भावों का संप्रेषण
खोकर एक दूजे में अक्सर करते थे सुखों का अन्वेषण
संग देखे जीवन में ऊँच नीच हमने बहुधा निस्पृह होकर
बांटी खुशियों की भेंट यहाँ अपनी सारी निजता खोकर
यौवन तो पीछे छूट गया अब कंपित गात हमारे हैं
आँखों के तारे दूर गये हम अपने स्वयं सहारे हैं
अव्यक्त हो चुका प्रेम मुखर, श्रृद्धा का सागर बहता
करता हूँ अब भी प्यार तुम्हें हर साँस मेरा यह कहता।
फूलों की वेणी गूँथ केश, मैं मधु प्रेम का पीता हूँ
जानूँ जीवन का उत्तरार्द्ध, प्रति पल तेरे संग जीता हूँ।।