गिरिराज किशोर का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फ़र नगर के एक सामन्ती परिवार में ८ जुलाई,१९३६ को हुआ। गिरिराज किशोर मंजोला कद के थे। उनका वर्ण गेंहुआ रहा। सफ़ेद दांत, हँसमुख चेहरा एवं आँखों पर चश्मे सजे हुए रहते। उनके व्यक्तित्व की झाँखी कृष्णा सोबती इन शब्दों में व्यतीत करती है, “गिरिराज में कवियोंवाला अनोखापन नहीं। गद्य लेखक वाला चुकन्नापन है। संवाद सुथरा और ‘पक्च्युएशन’ के रूप में मजबूत दांतों वाली हँसी।” १
गिरिराज किशोर ने लगभग १९५९ से कहानी का लेखनकार्य करना शुरू कर दिया था। उनकी प्रारंभिक कहानियाँ ‘सैनिक’, ‘दैनिक हिन्दुस्तान’, ‘कड़ियाँ’, ‘धर्म युग’, आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई है। गिरिराज किशोर की विशेषता रही है कि, “उन्होंने कहानी को कभी मात्र मनोरंजन के रूप में नहीं लिया। उनके लिये कहानी मनुष्य के मन, अनुभव, संघर्ष, उपेक्षा, मान-अपमान, राजनैतिक विरोधाभासों, मानवीय रिश्तों, भूख, तृप्ति, सैक्स-कुंठाओं की परतों को खोलने का सशक्त माध्यम हैं।” २ गिरिराज किशोर ने काफी कहानी-संग्रह जो १९८६ में प्रकाशित हुआ था इनके अंतर्गत आनेवाली कहानियाँ नौ है जो क्रमशः इस प्रकार है: ‘वल्दरोजी’, ‘वि-ज्ञानी’, ‘अन्वेषण’, ‘प्रत्यावर्तन’, ‘सौदाघर हिप्प…हिप्प…हुर्रे’, ‘यंत्र मानव’, बंगले वाले’, बच्चों से कौन डरता है!’ एवं ‘वे नहीं आये’। जिसमें तल्ख़ और बैचेनी पैदा करनेवाली कहानियों के अंतर्गत आती है ‘वल्दरोजी’, ‘प्रत्यावर्तन’, ‘वे नहीं आये’,बच्चों से कौन डरता है !’। वैज्ञानिक परिवेश से प्रभावित कहानियाँ है ‘वि-ज्ञानी’, ‘अन्वेषण’, ‘यंत्र मानव,’ और ‘सौदाघर हिप्प…हिप्प…हुर्रे’। ‘बंगले वाले’ कहानी के अंतर्गत निम्नवर्गीय जीवन संघर्ष का सूक्ष्म चित्रण दर्शाया गया है। यहाँ हम ‘वल्दरोजी कहानी संग्रह के अंतर्गत आनेवाली चार वैज्ञानिक परिवेश को प्रभावित करनेवाली कहानियों को उजागर करेंगे।
‘वि-ज्ञानी’ कहानी वैज्ञानिक परिवेश बोध की कहानी के अंतर्गत मानी गई पहली कहानी है। इस कहानी में देश की उच्चतम प्रौधोगिकी शिक्षा संस्था आई.आई.टी में व्याप्त इर्ष्या, पैंतरेबाजी, चापलूसी आदि प्रवृत्तियों को उजागर किया गया है। ‘वि-ज्ञानी’ कहानी का नायक रामलिंगम एक विद्वान, ज्ञानी, संशोधक एवं अध्यापक है। इन सब खूबी के बावजूद अन्य वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग किये गए हथकन्डों से कैसे सड़ता है वह दर्शाया गया है। “कोई वैज्ञानिक किस्म का आदमी बैठा हो तो वे इस बात को जानते रहते हैं कि घामड़ व्यक्ति पास में मौजुद है । ”३ इस कहानी के विज्ञानिक अपनी व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए रात-दिन तरह-तरह के षड्यंत्रो एवं दावपेचों में लिप्त है। “विज्ञान की जितनी खिड़कियों है उन्हें खोलने का जिम्मा इसी प्रकार के कमीशनों और विभागों के अध्यक्षों, सचिवों आदि के पास होता है।” ४ बड़े बड़े अधिकारियों को आमंत्रित करने, उनके लिये अच्छी से अच्छी शराब की व्यवस्था करते हुए दिखाई देते है। कौन किसका कार्यक्रम कब रद करा दें कुछ कहा नहीं जाता। “रामलिंगम के दिल में दिन-भर घुमड़-पुकड़ बनी रही, कहीं ये दोनों मिलकर कार्यक्रम कैंसिल न करा दें। ”५ आम लोगों यानी वेंकट और अंबाराव की तरह रामलिंगम जोड़-तोड़वाला आदमी नहीं था। चालक भी उतना नहीं था। इसलिए जनसम्पर्क से कमजोर था। कहा जाता है कि चालाकी और वाचाली के बिना जन-संपर्क नहीं चलता इसलिए वह हर बार की तरह पीछे रह जाता था लेकिन वह इस बार अपनी चालाकी में सफल होता है और एक एटोमिक एनर्जी कमीशन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति को फ़साने में सफल होता है। घर पर खाने के लिये निमंत्रित देता है। “एक आदमी के साल भर में दो जन्म दिवस ? ऐसा तो हो नहीं सकता की श्रीनिवास एक महीने की एक तारीख को आधा पैदा हुआ हो और छ: महीने बाद की किसी दूसरी तारीख को बाकी बचा खुचा पैदा हो गया हो ।” ६ अपनी प्रयुक्ति को आजमाने के लिए जन्मदिन न होने पर भी जन्मदिन के उपलक्ष में आयोजित भोज में वी.वी.आई.पी. को शामिल कर देते है। जो एटॉमिक एनर्जी का आदमी है। देश के लिये कुछ करने की बजाय अपने हित में मग्न हमारे देश के वैज्ञानिकों की सच्ची एवं खुली तस्वीर यहाँ स्पष्ट होती दिखाई देती है। ले- देकर जिस तरह वेंकट के यहाँ डिनर तय हुआ था तब वहाँ रामलिंगम ने कटवा दिया था और अपने घर रखा था।
‘वि-ज्ञानी’ कहानी करारा व्यंग्य करती है जो संस्थान का ऊँचा पद पाने के लिये और विदेश भ्रमण के लिये गलीच एवं स्वार्थी समझौते करनेवाले वैज्ञानिकों पर। ‘अन्वेषण’ कहानी आधुनिक विज्ञान पर मानवीय अस्तित्व जैसे महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालती एक विज्ञानिक कहानी है। ‘अन्वेषण’ यानी ढूँढना। एसी अज्ञात अथवा दूर की बातों, वस्तुओं, स्थानों आदि का पता लगाना जो अब तक सामने न आई हो। इस कहानी में दुसरे के बड़े शोध कार्य को अस्वीकार करना और मूल सवालों पर ध्यान न देते हुए ‘साइंस टेम्पर’ को बनाए रखने की वैज्ञानिकों की अव्याव्हारिक नीति का मार्मिक चित्रण अंकित किया है। कहानी का पात्र जीवनतत्व जो एक शोधार्थी है वह ‘जीवन-तत्व’ पर शोध कार्य कर रहा है। उनके जिस प्रकार के विषय रूचि को लेकर मुत्तुस्वामी (जिनके हाथ तले जीवनतत्व पहले काम कर चुका था ) जैसे वैज्ञानिक उसके विषय को दकियानुसी मानकर स्वीकारना नहीं चाहते। वह हॉल में बैठे हुए लोगों से सरल सवाल पूछता है, “आज जब हम लोग हॉल में बैठें इन्सान की जिन्दगी को न्यूक्लियर मेग्नेटिक रेजोनेंस के माध्यम से दीर्घ और सुखद बनाने के मन-सूबे बाँध रहे होंगे, कल्पना कीजिये, कि उसी समय सर्वशक्तिमान जीवनतत्व उस हॉल से एकाएक चहलकदमी करता बाहर चला जाय तो क्या होगा ? हम सब लोग जिस पोज में बैठें होंगे उसी में बैठें रह जायेंगे। सब लोगों की स्थिती उसी जांघिये की सी हो जाएगी जिसे बच्चा खड़ा-खड़ा नीचे सरकाकर उतार देता है और उसे वैसा ही पड़ा छोड़कर चल देता है । ”७ मुत्तुस्वामी कमरे में ही बोलते है, “अच्छा, तो फिर तुम जीवन-भर जीवनतत्व का साक्षात्कार करते रहो… आज में यहाँ एक प्रस्ताव रखूँगा की ऐसे लोग जो साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इस तरह के प्रश्न उठाकर दिशा-भ्रम उत्पन्न कर रहे है उनको वैज्ञानिक नहीं माना जाना चाहिए ।” ८ दोनों में इस बारे में बहस होती है। जीवनतत्व कहता है तो जो में इस विचार में सफल हो गया तो में साइंस की दुनियावालों को नहीं बताऊंगा उसका राज और स्वतंत्र रहूँगा खुद। जीवनतत्व पढनेवाला था जो पेपर उसक विषय था ‘जीवन शक्ति, विज्ञान और विज्ञान-उपकरण की अपर्याप्तता । ’ मुत्तुस्वामी का राष्ट्रीय समितियों से संबंध होने के कारन राष्ट्र की साइंस और टेक्नोलॉजी की नीति को भारतीय परम्पराओं से जोड़ने में बहोत बड़ा योगदान रहा। प्रो.घटक,प्रो.बर्क ने बारी-बारी से अपना मत प्रकट किया। जीवनतत्व को हॉल में आने से और पढ़ने से मना किया था फिर भी वह आया। उसे देखकर ,मुत्तुस्वामी के होंस¬-कोश उड़ गए। प्रवचन में ही उनके माथे पर पसीने की बूँद छलकने लगी। “डॉक्टरों, इंजीनियरों, भौतिक एवं रसायन शास्त्रियों को अनुसंधान के लिये अधिक से अधिक आर्थिक सुविधाएँ प्रदान की जायें। यदि हम इसमें सफल हो सके तो मनुष्य के जीवन को सुरक्षित करने की दिशा में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा ।” ९ जीवनतत्व ने उठ़कर कहा की मैं एक सवाल पूछना चाहता हूँ तभी मुत्तुस्वामी धम्म से बैठ गए। डॉक्टरी सारवार के लिये ले जाने पड़ते है। प्रथम सत्र समाप्त करके दूसरा सत्र स्थगित करने की घोषणा दी गई। तीसरे सत्र के प्रारंभ में ही प्रो.घटक सूचना देते है की प्रो.मुत्तुस्वामी की आत्मा को शांति मिले और उनकी इच्छा पूरी करने के लिये जीवनतत्व को अपना पेपर पढने के लिये बुलाते है –”उनके निकटतम छात्र और सहयोगी जो हमारे यहाँ जीवनतत्व जैसे विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं, अपना पेपर पढ़े, इससे अधिक संतोष की बात हम सबके लिये और क्या हो सकती है…”१० इतना कहकर वह भावातिरेक में आकर बैठ जाते है। जीवनतत्व उठता है पर हॉल में से बाहर आ जाता है। प्रतीक्षा करने पर भी वापिस नहीं लौटता।
‘यंत्र मानव’ कहानी में वर्तमान यांत्रिकी युग में मानव यंत्रों के अत्यधिक प्रयोगशीलता की प्रवृत्ति के कारण पूरी तरह यंत्र बनते जा रहा है वह दर्शाया गया है। मानो मनुष्य अपनी पहचान यंत्रों के माध्यम से करना चाहता हो। रोबोट बनने की नियति में वह अपनी मनुष्यता की पहचान भूलता चला जा रहा है। कृष्णन साहब अपनी संस्थान के बारे में प्रवचन देते हैं। प्रवचन में काफी चर्चा के बाद अंत में कहते है कि, “हमारा संस्थान यंत्र-मानव यानी रोबोट के क्षेत्र में पहल करने जा रहा है। भारतीय प्रोद्योगिकी और विज्ञान के क्षेत्र में यह अनुसंधान कार्य एक नए क्षितिज को उद्घाटित करेगा ।” ११ लोग शांति के प्रतिक के रूप में बैठकर सुन रहे थे। मुख्य अतिथि की बारी आती है भाषण देने की। खड़े होकर दिप प्रज्वलित जैसी औपचारिकता निभाने के बाद जब वह ‘स्पीकर्स-स्टैंड’ पास पहोंचते है तो कैमरे उधर मुड़ जाते है उनकी फोंटों लगातार खींचती चली गई। तब तक अतिथि खड़े ही रहे जब कैमरे की आँख ने फोटो खींचना कम नहीं किया। धीरे से हँसते हुए बोले, “हम इन्हें नाराज नहीं कर सकते, ये हमारी कमजोरी और जरुरत दोनों है…।” १२ जिन की समज में आया उन्होंने इस बात को लेकर हँस दिया लेकिन जो पीछे खड़ा हुआ अंगरक्षक था वह ज्यों का त्यों बूत की तरह ही खड़ा पाया जाता है। प्रवचन में कहते है, “विज्ञान का प्रकाश फैलता जा रहा है। संसार में हुई औद्योगिक क्रांति में तो हम अपनी भागीदारी नहीं निभा पाये थे क्योंकि हम गुलाम थे, साधनहीन थे। लेकिन अब इलेक्ट्रॉनिक्स की इस क्रांति में हम जमकर हिस्सा ले सकते है। हम आज आजाद है, हमारे पास बुद्धि है, साधन है, उपयुक्त मानव-शक्ति है। ”१३ मुख्य अतिथि ने अपना भाषण पुरे प्रवाह में देना शुरू का दिया था। ईश्वर के बाद चमत्कार करनेवाली कोई शक्ति है तो वह विज्ञान है। प्रोधोगिकी है। पीछे से उनके बोले गए वाक्यों के बाद बदतमीजी से कुछ और वाक्य भी बोले जाते थे। आशु वाक्य बोलते समय मुख्य अतिथि को खाँसी शुरू हो जाती है। खाँसकर थोड़ी देर बाद फिर से अपना प्रवचन देना शुरु करते है। मंच में बिराजमान लोग भी आस-पास देखते रहते थे। मुख्य अतिथि ने भी मदद के लिये इधर-उधर देखा। सचिव भी उठकर खड़े हो गए। खाँसते हुए अंतिम बार मुख्य अतिथि ने धन्यवाद कहकर शुभकामनाएँ दी और खाँसते हुए बैठ गए। आयोजन सम्पूर्ण समाप्त हो जाने के बाद मुख्य अतिथि ने महसूस किया कि, “कुर्सी के पीछे कोई खड़ा है। घूमकर देखा। पानी का गिलास प्लेट में लिये एक आदमी खड़ा था। डरने की बजाय उन्होंने कृतज्ञता के साथ देखा …।”१४
वैज्ञानिक परिवेश-बोध आधुनिक जीवन-बोध से जुड़ा एक अन्य पहलू माना गया। उसके अंतर्गत वैज्ञानिक द्रष्टिकोण और वैज्ञानिक सभ्यता के विकास के परिणाम स्वरूप उत्पन्न विविध जीवन सन्दर्भों एवं जटिल जीवन सन्दर्भों एवं जटिल स्थितियों को देखा जाने लगा है। एक वैज्ञानिक और प्रोधोगिक संस्थान से संबंध होने के कारण गिरिराज किशोर की उपयुक्त कहानियों में उनका वह परिवेश व्यापक स्तर पर अभिव्यक्त हुआ है। “कहीं ऐसा तो नहीं कि हम मनुष्य होने की नियति से पीछा छुड़ा रहे हों और रोबोट बनते जाने को अपनी अस्मिता का चिन्ह समझते जा रहे हो? ये कहानियाँ कहीं न कहीं इन सरोकारों से जुड़ती हैं।” १५
संदर्भ-सूचि
१ सोमदत्त, साक्षात्कार, सितम्बर- अक्तूबर – १९८३ पृ.१५४
२ गिरिराज किशोर, सम्पूर्ण कहानियाँ, खंड-१,फ्लैप से
३ गिरिराज किशोर, वल्द रोजी पृ.२३
४ वहीं; पृ.२४
५ वहीं; पृ.२६
६ वहीं; पृ.२६-२७
७ गिरिराज,वल्द रोजी,अन्वेषण पृ.३९
८ वहीं; पृ.४४
९ वहीं; पृ.४८
१० वहीं; पृ.४९
११ गिरिराज किशोर,वल्द रोजी,यंत्र मानव पृ. ७८
१२ वहीं; पृ. ७९
१३ वही; पृ. ८०
१४ वही; ८३
१५ गिरिराज किशोर, वल्द रोजी (मुख पृष्ठ के पहले फ्लैप से)