1.
छोड़ कर तू.. चला गया है मुझे
सबसे कहना ये भा गया है मुझे
क्या हुआ तू निभा नहीं पाया
सब्र करना तो आ गया है मुझे
दोस्ती में परत भी होती है
यार मेरा दिखा गया है मुझे
तुम सियासत के चोंचले रक्खो
खेल का ढंग आ गया है मुझे
जब कि मेरा ही नाम चलता है
फासले पर रखा गया है मुझे
जब जगत में न भान हो जग का
वो अवस्था सुझा गया है मुझे
रौशनी की छुअन से सहला कर
चाँद फिर से जगा गया है मुझे
फिर लगा.. वो अभी-अभी गुजरा
या, कि माज़ी भिगो गया है मुझे
जुगनुओं से अँधेरे जलते हैं
बोल कर ये.. छला गया है मुझे
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2.
चाहता रहा उसे.. मगर न बोल पा रहा
उम्र बीतती रही मलाल सालता रहा
जिंदगी की दोपहर अगर-मगर में रह गयी
शाम की ढलान पर किसे पुकारता रहा?
बाद मुद्दतों दिखा.. हवा सिहर-सिहर गयी
मन उड़ा कहाँ-कहाँ, मैं बस वहीं खड़ा रहा
आयी और छू गयी कि ये गयी कि वो गयी
मैं इधर हवा-छुआ खुमार में पड़ा रहा
रौशनी से लिख रखा है खुश्बुओं में डूब कर
खत तुम्हारे नाम का.. लिफाफा बेपता रहा !
बादलों, इधर न आ मुझे न चाहिए नमी
आग जो सुलग रही उसे अभी बढ़ा रहा..
यार मेरा चाँद है व शुक्ल का हूँ पक्ष मैं
किंतु अपने भाल का वो दाग क्यों दिखा रहा?