वर्षो आयो नवो है जनजनहृदये
हर्ष छायो बहूत
धीरै धीरै बढ़ैगो शिशुगतिरिव य:
पांव फैलाय जाण।
बढ़्यां तो बोल सोणा मधु मधु कुरुते
हंसता हंसता रे!
कांई कांई करैगो मनसि हि सुमना:
आज थोड़ो विचार।। 1
प्रत्ननूत्नाब्दौ
राजेते चन्द्रसूर्यौ
माघघण्टावत्।।2।।
भो: समायात:
चिरप्रतीक्षितोऽसौ
नवीनो वर्ष:।।3।।
विलोक्यतेऽद्य
संसारसागरोयं
नूतनतर्ष:।। 4 ।।
शाश्वती: समा:
सम्भाव्येत कृत्स्नश:
प्रमोदवर्ष: ।। 5।।
कलौ युगेस्मिन्
परस्परसापेक्षं
वर्धतां मर्ष:।। 6।।
नित्यं बाधते
भृशं हिमानीपात:
क्व हर्षोत्कर्ष:।। 7।।
दूरङ्गत: क्व
वीणानिनादे तव
स राजहंस:।। 8।।
काव्यावतार:
ऋतौ परिवर्तने
मनोऽवतंस:।। 9।।