नायोध्यास्ति सुरक्षिता भुवि हरे! श्रीगोकुलं हे प्रभो!
नैवेयं मथुरा न चास्ति भगवन्! मोदावहा काशिका।
एषा श्रीयमुनापि हन्त मनुजै: सन्दूषिताहर्निशं
हे योगेश्वर! कृष्ण! दिव्यवसुधां हृच्चौर! रक्षेश्वर! १
राष्ट्रेऽस्मिन् विचरन्ति देव! दुहितुर्हा शत्रवोऽसङ्ख्यका
ये घ्नन्तीव सुतां हरन्ति दनुजा दु:शासनाख्या: खला:।
हे देवेश! महाप्रभो! कुघटना लक्ष्यन्त एवंविधा
हे योगेश्वर! कृष्ण! भारतभुवं हृच्चौर ! रक्षेश्वर! २
कंसा: सन्ति सहस्रश: कलियुगे विध्वंसका भारते
चान्ये सन्ति महासुरा: कतिपये धूर्ता जगत्पीडका:।
वंशीरावमये प्रियं मुरलिकापाणे! मुहु: श्रावय
हे योगेश्वर! कृष्ण! गोपललना हृच्चौर! रक्षेश्वर! ३
कन्योद्धारपरायण! द्रुतमये! पातुं स्वकन्या इमा
धृत्वा रूपमहो चमत्कृतिशतं नो दर्शयन् दृश्यसे?
कं भागं प्रिय! वर्णयानि भगवन्! देशस्य कन्यादृशा
हे योगेश्वर! कृष्ण! देशतनया हृच्चौर! रक्षेश्वर! ४
राष्ट्रं भारतवर्षमद्य कुरुते नित्यं महाभारतं
कश्चिन्नैव महारथी न च भवान् वा सारथि: सङ्गरे।
कर्ण: कर्णयुगं पिधाय रमते दुर्योधनस्येच्छया
हे योगेश्वर! कृष्ण! भारतसुता हृच्चौर! रक्षेश्वर! ५
वृद्धो द्रोणगुरुर्विषीदति रणे भीष्मेण साकं कृपा-
चार्य: पश्यति हन्यते कुरुकुलं नित्यं निजैर्बान्धवै:।
भूपोऽन्धो न हि चेतते गुणिजनै: सम्प्रेरितो लोभतो
हे योगेश्वर! कृष्ण! विश्वतनया हृच्चौर! रक्षेश्वर! ६
लब्ध्वा जन्म वटस्य पत्रपुटके बालश्शयान: पुनर्
भाद्रे भद्रजनानवेति महतामाराधनीय! प्रभो!
धर्मं रक्ष कवीन्द्रसेव्य! सपदि श्यामाऽविलम्बं हरे!
हे योगेश्वर! कृष्ण! वन्द्य! तनया हृच्चौर! रक्षेश्वर! ७
लीला लास्यमयी नृलोकललनालीलां जयेदुज्ज्वला
देशे नस्तव पूजनीय! मनुजा वृन्दावनावासिन:।
काङ्क्षन्तीव मुहुर्मुहुर्विगलिताश्चक्रिन्! सुजन्माष्टमीं
हे योगेश्वर! कृष्ण! राष्ट्रतनया हृच्चौर! रक्षेश्वर! ८
कृष्णजन्माष्टमी भूयात्कन्यानां रक्षिका शुभा।
प्रजानां पालिनी राष्ट्रे दुष्टानाञ्च विनाशिनी।।
अरविन्दकृतं नव्यं कविकर्मविभावकम्।
कृष्णाष्टकमिदं साधून् सुकवीन्नन्दयेद् ध्रुवम्।।