चंचले मा चंचला भव धीरतामवधारय।
लोकमानसपद्महासं मा कराचिद्धर्षय।।
पश्य ते भर्ता सदा वसुधाविलाससहायक:।
तद्विरोधे मा कदाचिद्दीप्तिभीतिं दर्शय।।
त्वं सुशीला भर्तृकल्पितमानसे भव पद्मिनी।
भाग्यनाथविरोधिभावप्राँगनं किल दाहय।।
लोकलीलारक्षणे निजदीप्तिसेनां योजय।
वज्रपातनकौशलं रसमन्दिरे नहि दर्शय।।
शक्तिरेषा संगरे शिवसाधिकेति विनिश्चितम्।
पर्णशालादाहनेन न दिव्यदीप्तिं दूषय।।
त्वद्बलेन तव प्रिय शतनेत्रकार्मुकसाधक:।
त्वं तदीयां कीर्तिरेखां मा क्वचिद्ध्यवहेलय।।
पत्युरंके मानिनीनां मानमस्ति महोज्ज्वलम्।
त्वं तदंकान्निर्गता मानाञ्चलं न विदाहय।।
त्वं समर्थासीति जानन्तीह लोके के न हि।
शान्तिमन्त्रेणाम्बिकार्चनपद्धतिं ननु दर्शय।।
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