पीडालङ्कृतपटकथामश्रुबिन्दुनासा द्य।
नेत्र तरले मीलिते कान्तकलं प्रतिपाद्य।
पीडा की नवपटकथा आँसू बनकर बैन।
कहकर सारी बात को,बन्द हुए नत नैन।
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क्लान्ताननरेखादलैर्जीवनफलं निशम्य।
शुष्काधरयोस्तर्पणं ह्यश्रुधारयाचम्य।
चेहरे की रेखाओं में, पढ़ जीवन का सार।
तर्पण रूखे अधर का करती असुवन धार।
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नवकुशाग्रभागेन हि कुसुमदले चान्यत्र।
प्रेमपत्रमलिखत्कविस्त्वं जानासि न मित्र !
तीखी कुश की नौंक से कमलपत्र पर मित्र!
लिखा अश्रु से प्रेम का कवि ने अन्तिम पत्र।
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मुखमन्यत् नगरे मुखे धरति नागरो ह्यत्र।
द्वन्द्वमाचरञ्जीवति ह्यात्मवञ्चकस्तत्र।
चेहरे पर चेहरा लिये नागर चतुर सुजान।
रचता है परवंचना बनकर कहत महान्।
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हृद्यं गरले मज्जितं वाचि मधूनि सरन्ति।
कर्षयितुं नगरेSधुना काञ्चनमृगा भ्रमन्ति।
भरा हलाहल हृदय में,वाणी घुली मिठास ।
ललचाने को नगर में स्वर्ण मृगों का वास।
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ज्ञात्वैवामरताविधिं महाजनाननुसृत्य।
आदिनमस्ति महोत्सवः संसारं विस्मृत्य।
मिला अमरता मंत्र तो बनकर हमें फकीर ।
रोज दिवाली मन रही अब अपनी तकदीर।
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स्मृतेःकोषतो मोहनं क्षणमेकञ्चाश्रित्य।
तृप्तमहो हृदयं मम नयनाभ्यां संस्पृश्य।
यादों ने भेजा मधुर चित्र कोई अभिराम।
नयनों से ही चूमकर झूमत अपने राम।
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नृत्यति मत्तो मानवो नश्वरसुखमास्वाद्य।
आत्मानं नहि पश्यति भ्रमति भोगमासाद्य।
है कितना नादान नर स्वयंसिद्ध शाबास।
खुद को अनदेखा किये रमता भोगविलास ।
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निर्यातः कालोधुना वयःपत्रमादाय ।
दूरमितश्चल रे मनः स्वप्नकुलं निर्माय ।
चिट्ठी लेकर उम्र की निकल गया है काल
चल रे मन चल दूर तू ,सपने सभी संभाल।
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गन्तव्यं दूरं परं विघ्नाः पथि विचरन्ति ।
धन्यास्ते रसिकाः सखे ! गायन्तो विलसन्ति।
दूर बहुत गन्तव्य है, विघ्न हजार हजार
धन्य वही जन जो यहां गाते करत विहार।