साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत, नेशनल चैनल द्वारा प्रसारित संस्कृत वार्तावली के प्रस्तोता, युवा कवि युवराज भट्टराई उम्र के लिहाज से भले ही कम है परन्तु काव्य रचना की दृष्टि से वह किसी भी समकालीन कवि से कमतर नहीं हैं। आज कोई भी कवि सम्मेलन हो उनकी उपस्थिति रहती ही है।
‘वाग्विलासिनी’ युवराज भट्टराई द्वारा विरचित 12 खण्डों में विभाजित एक स्तुति परक काव्य है। जिसमें शारदा, सरस्वती, श्रीकृष्ण, विष्णु,शिव आदि की स्तुतियाँ हैं। इन स्तुतियों में कहीं निवेदन है तो कहीं उलाहना। यथा-
‘अशेषशब्दजन्मदां सरस्वतीं नमाम्यहम्’ कविता में कवि माँ शारदा से निवेदन करता है कि वे उसे सद्बुद्धि प्रदान करें।
सुहृद्वरा: ! श्रृणोमि काव्यकोविद: विचक्षणा:
कृपामवाप्य तेऽभवन् युगान्तरे यश्स्विन: ।
समुद्यतोऽस्म्यकिञ्चनो जन: कृपोलब्धये
प्रदेहि शारदे! नु शेमुषीं समर्चकाय मे ॥ 9॥ पृष्ठ 37
‘प्रदातुमेहि चण्डिके! मुहूर्तमेव दर्शनम्’ कविता में युवराज जी लिखते है – हे! माँ चण्डिका मुझ अनाथ पर कृपा कीजिए क्योंकि आपके अतिरिक्त इस जगत में मेरा अपना कोई नहीं हैं।
पिता न पालकोऽस्ति मे न पालिकाऽम्बिकऽस्ति मे
न बन्धुवर्गसज्जना: सहायका: भवन्ति ते ।
सुहृद्गण: पलायते स्वकार्यसिद्धताङ्गते
ह्यत: करोमि वन्दनं मयि प्रसीद चण्डिके ॥ 8॥ पृष्ठ 67
युवराज भट्टराई कहते हैं कि- तुम ही इस जगत् को उत्पन्न करती हो, तुम ही इसको धारण करती हो और तुम ही इस जगत् का विलय करती हो । हे अम्बिके! तुम ही समस्त विश्व मण्डल में लोगों के द्वारा गाई जाती हो । परन्तु अम्बे! मुझे यह बताओ कि विधि के दोष के कारण मैं तुम्हारी कृपा से वञ्चित हूँ या तुम अपनी दया के सागर का एक कण भी मुझे प्रदान करना नहीं चाहती?
त्वया जगत् प्रसूयते सुधार्यते विलीयते
समस्त विश्वमण्डले त्वमम्बिके! प्रगीयसे ।
किमम्ब ! मे सुकीर्तिनेऽथवाऽस्ति दूषणं विधे:
कणं वयाऽम्बुधे: प्रदित्ससे कथं न मत्कृते? ॥4॥ पृष्ठ 70
अपनी बात कहने के लिए युवराज अन्योक्ति का भी आश्रय लेते हैं ।
धनेच्छ्या सुधोपमं सुखं त्यजन्ति मानवा:
विहाय शुद्धसंस्कृतं जनांग्लमाश्रयन्ति हा! ।
मृगाधिपोऽद्य कुक्कुरं सुसेवते विनिन्दितं
जनैरुपेक्ष्यतेऽद्य भारते सुरभारती कथम् ।।2॥ पृष्ठ 109
इसके अतिरिक्त इसमें राष्ट्रगौरव, मित्र, देववाणी की प्रशंसा भी की गई है।
कम शब्दों में ज्यादा कह देने का प्रयास करते दिखने वाले समय के सजग इस कवि का यह काव्य अवश्य पढ़ा जाना चाहिए।