बाल साहित्य के अन्तर्गत वह शिक्षाप्रद साहित्य आता है जिसका लेखन बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर किया गया हो। बाल साहित्य में रोचक शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ, बालगीत व कविताएँ प्रमुख हैं। संस्कृत साहित्य में बाल साहित्य की परम्परा बहुत समृद्ध है। पञ्चतन्त्र की कथाएँ बाल साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। संस्कृत बाल साहित्य लेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। पञ्चतन्त्रऔर हितोपदेश की कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्यम बनाकर बच्चों को बड़ी शिक्षाप्रद प्रेरणा दी गयी है।
आधुनिक संस्कृत के मनीषियों आचार्य वासुदेव द्विवेदी शास्त्री, डॉ.बलभद्र मिश्र आदि जिस बाल साहित्य की नींव रखी, उसी परम्परा को आगे बढ़ाने का कार्य किया है साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित दिल्ली निवासी युवाकवि युवराज भट्टराई ने। ‘तनीयसी’ युवराज जी के द्वारा लिखित एक नवीन शिशु गीत संकलन है। इस काव्य संग्रह में कुल 16 सचित्र बाल कविताएँ हैं- 1.शिव तारय माम् 2.जल मुक् 3.मम जीवनमस्तु सुपुष्पसमं 4. विहगी 5. अनुजस्य कथां भगिनी भणति 6.जननी 7. नगरी 8. तरु: 9. तटिनी 10. सुत जाग्रहि रे! 11.सुरभि: 12. द्विजराज: 13. शफरी 14.तनीयसी 15.मातृजीवनम् और 16.होलिका।
‘द्विजराज:’कविता के माध्यम से कवि संदेश देता है कि मनुष्य को अपना स्वभाव चन्द्र मा की तरह शीलत और कोमल रखना चाहिए ।
सुखदं तव दर्शनमस्ति सदा,
गिरिशो वहतीह मुदा शिरसा।
प्रकृतौ तव सास्ति सुशीतलता,
तिमिरेSत्र चकास्सि विभासि तथा।।
इसी प्रकार ‘सुरभि:’कविता में गाय, शफरी कविता में मछली, की स्वाभाविक कियाओं का वर्णन है।
विपिने तृणघासचयान् चरति,
कठिनास्ति न सा सरला चलति।
ससुख़ं सुचिरं दिवसे भ्रमति,
गृहमेति च सा समये सुरभि:।।
क्व नु ते शफरी परिवारजना:?
लघुदेहयुते! तव का गणना? ।
वदने लघुका: तव ते रदना: ,
गद चर्बसि किं स्वमुखे च पुनः।।
युवराई भट्टराई की‘सुत! जागृहि रे’ कविता हिन्दीे के सुप्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी की कविता ‘उठो लाल अब आँखे खोलो/पानी लाई हूँ मुँह धो लो’ की याद दिला देती है।
विगता रजनी धरणी हसति,
गगनेSतितरां च विभाति रवि:।
कुरु नित्यविधिं शयनं त्यज रे,
समुदेति रवि: सुत! जागृहि रे।।
‘तटिनी’कविता संत कबीर के दोहे ‘संत न छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत’ की याद ताजा करा देती है।
तव वक्षसि खेलति हंसखग:,
मकरोSपि सुजीवति तेSम्बुगत:।
प्रतरन्ति जले बहवो जलजा:,
नदि! ते वहनं च हिताय सदा।।
इसी प्रकार ‘तरु:’कविता ‘वृक्ष कबहुँ न फल भखै नदी न संचय नीर’ का स्मरण करा देती है ।
तरुरेव ददाति फलं मधुरम्,
अथ पल्लव-पुष्प-चयं सुखदम्।
तरुणा जनजीवनमस्ति धृतम्,
तरुरेव प्रदास्यति सर्वसुखम्।।
‘तनीयसी’कविता युवराज ने अपनी बेटी (तनीयसी) की बाल सुलभ चेष्टाओं को देखकर लिखी है ।
जननी यदि नास्ति गृहे सुलभा,
जनकस्य वशे न भवेत्तनया।
यततेSत्र निभालयितुं जनक:,
बहुचञ्चलतां कुरुते चपला।।
‘नगरी’ कविता में कवि ने महानगरों की वर्तमान स्थिति का चित्रण किया है ।
वनितासु न भाति सुकोमलता,
पुरुषेषु न साSस्ति सुपावनता।
उभयो: चरितेषु च कृत्त्रिमता,
जनते! नगरे क्व नु नैतिकता?।।
अपनी प्रत्येक कविता में कवि ने बालकों के साथ-ही-साथ बड़ो को भी नैतिकता का संदेश देने का प्रयास किया है। डॉ.टेकचन्द्रस मीणा के निर्देशन में दिल्ली विश्वविद्यालय की शोधच्छात्रा ‘हेमलता रानी’ ने अपने पीएचडी में बालसाहित्य की रचनाओं के अन्तलर्गत ‘तनीयसी’ काव्य को भी शामिल किया है। गेय छ्न्दों में निबद्ध यह काव्य पाठक को शुरू से अन्त तक बाँधे रखने की सामर्थ्य रखता है। इसके लिए कवि साधुवाद के पात्र हैं।