केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के सीएसयू लखनऊ परिसर में 13-14 फरवरी, 2024 तक आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी जी के संरक्षण में किया गया । कुलपति प्रो.वरखेड़ी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के कथा साहित्य को लेकर संगोष्ठी के आयोजन से अनेक भाषाओं के कथा साहित्यों के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर उन्मीलित होगा जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा विशेषकर भारतीय साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो सकता है ।
लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय कथा साहित्य अपने काल खण्डों के साथ अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखते हुए नवाचारी प्रयोग के साथ अविच्छिन्न गति से बढ़ता रहा है। डीन अकादमी प्रो.बनमाली बिश्बाल ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि भारतीय कथा साहित्य का उत्स वैदिक वाङ्मय ही रहा है जिसके बीज से संस्कृत कथा साहित्य का विकास हुआ और अनेक काल खण्डों में परिवर्तित हो कर अपनी विविधाओं की भी श्रीवृद्धि की है । इसी संदर्भ में उन्होंने पुट कथा के साथ ललित निबंधों तथा पत्र काव्यों का भी जिक्र किया।केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के ही भोपाल प्रो.रमाकान्त पाण्डेय ने संस्कृत कथा तो क्लासिकल है ही । लेकिन लोक भाषा के रूप में भी जाने अनजाने सर्वत्र व्याप्त है। यह भी एक प्रकार भाषिक दृष्टि से संस्कृत कथा की सर्वगामिता का लक्षण माना जाना चाहिए।
संस्कृत साहित्य विद्या शाखा प्रमुख तथा उर्दू एवं फारसी भाषा के विदुषी प्रो. गज़ाला अंसारी ने अतिथियों का स्वागत करते कहा कि संस्कृत भाषा की सर्वगामिता इस मायने में भी ग़ौरतलब है कि संस्कृत कथाओं में जिन मूल्यों की चर्चा की गयी है उसी से मिलते जुलते अनेक प्रसंगों को हदीस में भी पढ़ा जा सकता है । इतना ही नहीं कुरान के कथानकों को भी संस्कृत के अदब में तर्जुमा किया गया है जिसका साया पेंगुइन प्रकाशन से किया गया है। अतः सारी भाषाओं का चिन्तन अमूमन एक ही समन्वित केन्द्र पर सहभागी हो कर मिलता जुलता देखा जा सकता है। इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक तथा संस्कृत पाली के युवा नदीष्ण विद्वान डॉ.प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठी के विषय प्रवर्तन में स्पष्ट किया कि कैसे संस्कृत भाषा की कथाएं विशेष कर पंचतंत्र ने कथा साहित्य के रूप में अरब के देशों में अपनी भूमिका का सिक्का जमाते बाल साहित्य के लिए रोल मॉडल के रुप में काम किया । इस सत्र का संचालन तथा डॉ. शिवानन्द मिश्र ने किया तथा व्याकरण शास्त्र के नदीष्ण विद्वान प्रो.भारत भूषण त्रिपाठी ने विशिष्ट अतिथियों तथा सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद किया।
दोनों दिवसों में अनेक महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों को प्रस्तुत किये गये जिसमें अनेक सार्थक प्रश्न भी उभर कर प्रकाश में आये जिससे तस्दीक होता है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी बहुत ही गुणात्मक परिणाम वाला निकला । इसकी पुष्टि विभिन्न सूत्रों के अध्यक्षों की पढ़ें गये पत्रों पर टिप्पणियों से भी हुई। एक सत्र अध्यक्ष के रुप में डॉ. अजय कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफेसर तथा मीडिया कौन्वेनर और पीआरओ ने कहा कि संस्कृत कथा साहित्य अपने आप को प्राचीनतम से आधुनिक कड़ियों से जीवन्त तथा अविछिन्न रुप में जुड़ कर प्रवाहित होती रही है । उसकी पुष्टि इस संगोष्ठी में पत्र वाचकों के विविध गवेषणात्मक विषयों तथा नाना काल खण्डों से जुड़े विमर्श से भी होती है। लेकिन यह भी सत्य है कि मूल बिम्बों में समकालीन छटा तथा रोचकता को बनाने के लिए कथाकारों को थोड़ा सजग भी होना होगा । साथ ही साथ वैश्विक परिदृश्य पर भी विमर्श होनी चाहिए कि आखिर क्या कारण है हैरी पॉटर के अनेक खण्ड हाथों हाथ तथा रातों रात बिक जाती हैं। संस्कृत के युवा कवि,लेखक एवं आलोचक डॉ.अरुण कुमार निषाद ने कहा कि केवल लेखन मात्र से ही संस्कृत का भला होने वाला नहीं है। आवश्यकता है इसे प्रकाश में लाने की और इस पर शोध कार्य करने की । लखनऊ विश्वविद्यालय की शोधछात्रा शिखारानी ने कहा कि प्राचीन ग्रन्थों के साथ-ही-साथ आधुनिक ग्रन्थों पर भी शोधकार्य होने चाहिए ।
इस सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रख्यात विद्वान कवि तथा उपन्यासकार प्रो. रामसुमेर यादव, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत प्राकृत विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ने अपने मुख्य अतिथि के रुप के सम्बोधन में संगोष्ठी के विषय की सार्थकता की भूरि-भूरि प्रशंसा करते शोध वाचकों बधाई दी इस सत्र की अध्यक्षता निदेशक तथा पूर्व कुलपति प्रो. सर्वनारायण झा ने की तथा ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. मदन मोहन पाठक ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी के महत्त्व के विषय में बताया । डॉ.प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठियों में पढ़ें गये शोध पत्रों की सार्थकता पर प्रकाश डालते अपना प्रतिवेदन को प्रस्तुत किया । प्रो.सर्वनारायण झा के सानिध्य में शोध पत्र प्रमाण पत्र का भी सोल्लास वितरण किया गया ।
डॉ. शिवानन्द मिश्र ने मंच का संचालन किया तथा पाली भाषा तथा बौद्ध दर्शन के विद्वान प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी ने संगोष्ठी की सफलता के लिए भावपूर्ण धन्यवाद ज्ञापन किया।