1.
ऐसे होते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
मिल के रोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
जब भी उठते हैं कोई ख़्वाब नया बुनते हैं
साथ सोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
वस्ल की आग में जल जाते हैं कितने ही बदन
हिज्र बोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
दाग़ दिल के यूँ छुपाए हैं हसीं चहरों ने
अब चुभोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
रात सोने में गँवा देते हैं जो दीवाने
सुब्ह खोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
दर्द बहता है किसी आँख से आँसू की तरह
लोग ढोते हैं हर इक रोज़ मुलाक़ात के ग़म
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2.
आँखों आँखों में प्यार की बातें
दिल को दिल से क़रार की बातें
भौरों को फूल से जुदा करके
करता है ऐतबार की बातें
नींद में चाँद नज़र आया है
आज होंगी खुमार की बातें
रात भी थम सी गयी है सुनकर
अब मेरे रू-ए-यार की बातें
दर्द सुनते है दर्द कहते है
फिर उसी गम-गुसार की बातें
जब भी मिलते है वो तो होती है
इस दिल-ए-बे-क़रार की बातें
कौन कम्बखत यहां करता है
दीदा-ए-अशक-बार की बातें
(रू-ए-यार : face of the beloved
गम-गुसार : comforter
दीदा-ए-अशक-बार : tearful eyes)