माँ पापा वैसे तो मैं ठीक हूँ ,
बस धमाकों से डर जाता हूँ,
खाने को यहां नहीं है कुछ,
बामुश्किल दो चार बिस्कुट ही पाता हूँ।
तुम करना ना चिंता,
बस दुआएं करना,
बहन की शादी तक पहुंच पाऊं,
प्रभु से ऐसी अर्ज़ करना।
अभी-अभी यहाँ,
एक उम्मीद की किरण ने जन्म लिया है,
इतनी मुश्किल हालात में भी,
एक परी ने जन्म लिया है।
पता नहीं मुझको,
यह इंतजार कितना लंबा होगा,
किस माह के किस शुभ दिन,
अपनों से मिलना होगा।
क्यों इंसान को यहाँ,,
शांति नहीं भाती,
युद्ध करते देशों को,
जरा शर्म नहीं आती।
उजड़ रहें है परिवार,
बिछड़ रहें हैं अपने,
डूब रहे वो सारे,
जो देखे थे कभी सपने।
कोई लड़ाई कोई युद्ध,
कभी सफल नहीं होता,
जीतने वाला भी जीत कर,
अमर सम्राट नहीं होता।
ऐसी जीत किस काम की,
जो इंसानी लहू से मिले,
इससे तो शांति गरीबी अच्छी,
चाहे रोटी रूखी सूखी मिले।