पंजाब के ग्रामीण इलाकों में रची-बसी हवेलियों का एक सच यह भी रहा है कि जब कभी पितृसत्तात्मक समाज में उनकी झूठी आन-बान-शान को बचाने की जरूरत पड़ी तो धियाँ यानी बेटियाँ ही आगे आईं हैं। फिर वो चाहे किसी भी रूप में हो।
ओटीटी के जमाने में और उसकी भीड़ में अब हर राज्य अपना ओटीटी लांच कर रहा है। पंजाब का ओटीटी है ‘हीरोज़’ जिस पर आज रिलीज़ हुई है पाँच एपिसोड की सीरीज ‘हवेली वाले’। इस सीरीज की कहानी है पंजाब के एक प्रांत में बसी हवेली और उसमें आने वाले वारिस को लेकर षड्यंत्र और उसके बचाव के साथ-साथ इस पंजाबी खानदान की इज्ज़त को बचाने की।
पंजाब का यह सच भी है कि सरदारों में रिश्ते जमीनों को देखकर किये जाते हैं। खानदान या लड़का देखकर नहीं। जिसके जितनी ज्यादा जमीन उसके यहाँ सबसे पहले रिश्ता पक्का, फिर भले उसके लिए दूसरी बीवी ही क्यों न लाई जा रही हो। सीरीज भी ऐसा ही कुछ दिखाती है। इन हवेली वालों के यहाँ 17-18 साल से लड़के का मुँह देखने, उसे गोद में खिलाने का चाव चढ़ा हुआ है लेकिन हर बार जब पता चलता है वारिस आने वाला है तब वह किसी न किसी तरह से गिर जाता है। इसमें भी एक षड्यंत्र सा नजर आता है। अब इस परिवार की एक बेटी को इश्क हुआ है इस हवेली वालों के ही ड्राइवर से, तो दूसरी तरफ़ उस सरदार के लिए उसकी दूसरी बीवी लाने की तैयारी चल रही है। वह भी अपनी ही बहन की छोटी बहन यानी बच्चों की मासी को लाने की। उसका भी अफेयर किसी और से चल रहा है।
अब इस चक्कर खाती सीरीज का अंत क्या होगा? क्या जो बच्चों की मासी है उससे जीजा की शादी होगी? क्या इस हवेली की धी यानी बेटी का इश्क मुकम्मल होगा? क्या हवेली को वारिस मिलेगा? या क्या सरदार जो नौकरानी से इश्क लड़ा रहा है वह वारिस देगी या फिर उस सरदारनी से ही वारिस मिलेगा। वारिस की खोज में यह हवेली वालों का सच तो दिखाती ही है। साथ ही पंजाबियों की लाज भी बचाती है। किस तरह से ये बेटियां लाज बचाएंगी उसके लिए इस प्यारी सी सीरीज को देखा जाना चाहिए।
एक्टिंग की बात करें तो सरदार शेर प्रताप सिंह के किरदार में संजू सोलंकी ने बढ़िया काम किया है। वढी बेबे के रूप में धरमिंदर कौर और सरदारनी के बापू के रूप में मलकीत रौनी जमे हैं। मलकीत पंजाबी इंडस्ट्री का बड़ा नाम है। वे इससे पहले भी ‘पाणी चे मधाणी’ , ‘बंटवारा’ , ‘तेरी मेरी गल्ल बण गई’, ‘अरदास करां’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में नजर आ चुके हैं। बड़ी बेटी (वढी कुड़ी) के किरदार में अंकिता सैली ने सीरीज में, सीरीज या फ़िल्म के बजाए किसी धारावाहिक की अभिनेत्री के रूप में काम किया लगता है। जिस वजह से वे कमजोर नजर आती हैं। इसके पहले अंकिता सैली पंजाब के धारावाहिक ‘तेरा रंग चढ्या’ में भी नजर आई हैं। नौकरानी पम्मी बनी प्रभजोत रंधावा, ड्राइवर बने अनमोल गुप्ता, सास बनी कविता शर्मा, पिंडर के रूप में प्रदीप कौर, माँ के रूप में सिंदरपाल कौर, छिंदा के किरदार में गुरविंदर सिंह का अभिनय मिला-जुला असर छोड़ता है।
इस सीरीज की जान है तो इसका लेखन। इस तरह का लेखन धियाँ यानी बेटियां जब करती हैं तो लगता है वे स्वानुभूत साहित्य की सृजना कर रही हैं और समाज की सोच बदलने का काम अपने हिसाब से ठीक कर रही हैं। अगर सीरीज की पंजाबी भाषा में कहूँ तो लगता है ऐसा ही होता रहा तो आपो अपणी थां ते सब ठीक होजुगा एक दिन। जैसा कि सीरीज भी कहती है ‘रब्ब वी पता नी किथे बै के धियाँ दे लेख लिखदा है। जे दो अक्खर वद लिख देंदा ते ओंदा की घट जांदा।’ तो मैं कहूंगा चिंता न करो धियों तुस्सी आप अपने आप नूं इन्ना काबिल बणा लेया है ते बणा लवोगी एक दिन के तुहानु रब्ब दे लिखे वारे सोचण दी लोड नहीं पैणी।
वैसे भी इस पितृसत्तात्मक समाज ने जब कभी अपनी झूठी शानो-शौकत को बचाना चाहा है तो ये बेटियाँ ही ढाल बनकर सब अपने ऊपर लेकर लाज बचाती आईं है। निर्देशक चाहते तो और बेहतर अभिनय करवा सकते थे। एकमात्र गीत म्हला पुन्नी का लिखा हुआ आँखें नम कर जाता है। म्यूजिक इस तरह की कहानियों में ऐसा ही अमूमन देखने को मिलता है। सिनेमेटोग्राफी ठीक तो सीरीज की कलरिंग औसत है। एडिटर जैस सिंह सिराही ने सीरीज की कसावट को बरकरार रखा जिसके लिए भी सीरीज देखने लायक हो जाती है। इस हफ्ते कुल मिलाकर एक अच्छा पैकेज ‘हीरोज़’ पंजाबी ओटीटी पर देखने को मिलेगा।
अपनी रेटिंग – 3 स्टार/5
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ये है असली ‘आई ड्रीम ऑफ़ जिन्नी’
अलादीन का चिराग घिसकर ज़िंदगी में सुख,चैन, दौलत, शोहरत दिखाने वाले हमारी फिल्मी दुनिया के निर्माता, निर्देशक, लेखकों आंखें खोलकर देख लो। जो तुमने चमत्कार के नाम पर हज़ारों, लाखों लोगों को भरम में डाला था उसका जवाब इस तीन एपिसोड की छोटी सी सीरीज से तुम्हें मिल जाएगा।
एक लड़का है अरुण ज़िंदगी से थका , हारा, परेशान हाल भगवान को हरदम कोसने वाला, किताबों में पढ़ी हुई चमत्कार की कहानियों में हकीकत ढूंढने वाला साथ ही जिंदगी में चमत्कार की तलाश करता हुआ। जिसे दोस्त इज़्ज़त नहीं देते तो चाचा रहने नहीं देता, गर्लफ्रैंड इसे ठीक मुंह बात भी नहीं करती। गरीब सा, नकारा सा जो केवल चमत्कार की आस लगाए उसके साथ कौन रहना चाहेगा।
ऐसे में मिलता है उसे एक चराग जिसमें से निकलता है जिन्नात। इस जिन्न को भी लगता है इंसान अलग होंगे, विशेष होंगे। इसे कई भाषाओं का ज्ञान है, जो इसने सीखीं हैं। यह खाता-पीता भी है तो बच्चों की तरह घर को खिंडाता भी है। अब जिन्न को सीखने कौन आया? इस जिन्न ने क्या चमत्कार किया या कुछ पाठ सिखाया उस नकारा लड़के को। या और मुश्किलों में डाल दिया उसके जीवन को।
अलादीन की कहानियों को सुनकर, देखकर, पढ़कर बड़ी हुई पीढ़ी को यह सीरीज लुभावनी लगेगी तथा जीवन में चमत्कार से आस लगाए बैठे लोगों को पाठ सिखाकर जाएगी। ‘चमत्कार’, ‘जिसने निकाला उसने पाला’, ‘थैंक्यू’ नाम से इसके तीन एपिसोड बेहद हल्के अंदाज़ में तथा हँसी-खुशी के साथ बड़ी सीख देकर जाते हैं।
इस सीरीज में या तो 1,2 एपिसोड और होने चाहिए थे या फिर इसकी कहानी को थोड़ा बड़ा करके फ़िल्म बनाई जाती मुकम्मल तो बेहतर होता। हर बार मैं फिल्मों, सीरीज की लंबाई को कम करने की बातें लिखता,कहता आया हूँ लेकिन इस बार इसकी कम लंबाई अखरती है। कहानी को अच्छे तरीके से फ़ैलाया जाता, उसकी तसमें कसी जाती तो इसका निखार दोगुना हो सकता था।
निर्देशक गोपाल सिंह का निर्देशन ठीक है। वे इससे पहले ब्रीणा, अदरक, पगड़ी द ऑनर (नेशनल अवॉर्ड विजेता) फ़िल्म की टीम का हिस्सा रहे हैं। नवीन मिश्रा के द्वारा की गई सिनेमेटोग्राफी ऐसी सीरीज के एकदम माकूल है। निखिल जोशी के लेखन का सत्व ही है कि यह असल दुनिया दिखाती है। और मानों कहती हो जैसे कि धरती पर आ जाओ चमत्कारी दुनिया पर विश्वास करने वालों। तोष नंदा का बैकग्राउंड स्कोर, एडिटर लोकेश महाजन की सधी हुई एडिटिंग, जिन्न के रूप में के. के. गोस्वामी प्रभावित करते हैं अपने कद काठी एवं जिन्न के परफेक्ट रोल के कारण। अरुण के किरदार में नवीन राकेश शर्मा, गर्लफ्रैंड नेहा के किरदार में श्लेषा मिश्रा जमे हैं। एक्टिंग कुल मिलाकर ठंडा-मीठा सा अहसास कराती है। ऐसी फिल्मों, सीरीज के प्रोडक्शन टीम के लिहाज से अनिल कबरा, अंशुल कुमार आदि का जुड़ना अच्छा फैसला दिखाता है।
अपनी रेटिंग – 3 स्टार
इस सीरीज को एम एक्स प्लेयर पर देखा जा सकता है।