धपक के चलते आदमी पर आप तरस खाते हैं। हँस देते हैं। दरगुज़र करते या टीवी पर पैर से लिखते/पेंटिंग करते देख ताली बजाते हैं। शायद ही कभी सुना हो किसी की लंगड़ाई चाल को भी लड़कियाँ अदा कह के दीवानी हो जाएं।
मजाज़ के बाद सबसे ज़्यादा मास अपीलिंग पर्सनैलिटी, “हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद” जैसी दिलफरेब ग़ज़ल कहने वाले यह हैं राही मासूम रज़ा। हिन्दी फिल्म के हीरो के मल्टी टैलेंटेड होने से मुराद ऐक्टिंग, डांसिंग, ऐक्शन, कॉमेडियन होना है। लेकिन किसी लिटरैरी शख्सियत के मल्टी टैलेंटेड होने से मुराद राही मासूम रज़ा होना है।
वे जॉन स्टुअर्ट मिल नहीं थे कि लिख के गिराए कागज़ को नौकर से उठवाते। होटल का एकान्त कमरा भी नहीं चाहिये था उन्हें। न मेज़ की दराज़ में रखे सड़े सेब की महक।
हमेशा अपने घर के हॉल में तकिए पर लेट कर लिखते। लोग आ रहे, जा रहे। उन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था. एक वक़्त में तीन क्लिप बोर्ड पर बारी-बारी लिखते। एक पर रूमानी। दूसरे पर जासूसी तो तीसरे पर किसी अखबार के लिये मज़मून।
क़व्वालियाँ सुनने की शौक़ीन बीवी की पसंद बजती रहती। घर आया कोई मेहमान बतियाया करता। और लिखना जारी रहता।
उर्दू में ग़ज़ल/नज़्म, हिन्दी में उपन्यास के बाद कई बॉलीवुड फिल्मों के लिये स्क्रीनप्ले और डायलॉग लिखे। “मैं तुलसी तेरे आँगन की”, ” मिली” और “लम्हे” के लिये फिल्मफेयर अवार्ड भी जीता। लेकिन उन्हें अमर, बहुचर्चित, बहुप्रशंसित बनाया नब्बे के दशक के बी.आर.चोपड़ा द्वारा निर्देशित टी. वी. सीरियल “महाभारत” ने।
हालांकि राही लिखने के लिये तैयार नहीं थे। लेकिन निर्देशक चोपड़ा ने अखबार वालों को पटकथा लेखक के तौर पर राही का नाम बता दिया। लोगों को यह बात पसंद नहीं आई कि एक मुसलमान, हिन्दू धर्मग्रंथ लिखे। जनता ने गाली भर भर चिट्ठियाँ बी.आर.चोपड़ा के पते पर भेजीं और पूछा, देश भर के सारे हिन्दू लेखक मर गये हैं क्या जो वे एक मुसलमान से लिखवा रहे हैं!
चोपड़ा साब ने सारे खत उठा कर राही को भिजवा दिये। गंगा को अपनी दूसरी माँ और खुद को गंगा पुत्र कहने वाले राही ने जब तमाम खुतूत पढ़े तो बोले, अब तो महाभारत मैं ही लिखूंगा। मुझसे ज़्यादा भारतीय सभ्यता और संस्कृति की समझ किसे होगी भला।
सीरियल छा गया। पहली बार ‘समय’ को स्टोरीटेलर बनाने वाले राही नये ज़माने के ‘व्यास’ हो गये।
गंगा को माँ मानने वाले राही ने अपनी नज़्म “वसीयत” में ख्वाहिश की, मरने के बाद उन्हें गाज़ीपुर की गंगा में समो दिया जाए।
एक नरम रफ्तार दरिया है जिसमें
कई और नदियों का पानी मिला है
यहां जो भी आया है
शफ़फ़ाफ़ पानी की सौगात लाया है
लेकिन इसी रूद ए गंगा में गुम हो गया है कोई आरया है
न तैमूर ओ बाबर की संतान कोई
न कोई अरब है ना अफ़गान कोई
न जादू अलग है
ना खुशबू अलग है
ना जमुना अलग है
ना सरजू अलग है
बस एक रूद ए गंगा है हद्द ए नज़र तक
कत्तई ताज्जुब नहीं कि ‘नमामि गंगे’ से जुड़े लोगों ने अब तक राही की वसीयत और नज़्म “गंगा” नहीं पढ़ी होगी वरना जानते कि गंगा अकेले हिंदुओं की नहीं है।
गंगा पुत्र राही मासूम रज़ा का आज हैप्पी वाला बर्थडे है। वे जहाँ भी हों, हमारी तरफ से उन्हें खूब सारा स्नेह पहुँचे।