अमीना – उम्र 50-55 साल ( पुराना घाघरा और सिर पर चिथड़ा {कपड़ा})
हामिद – उम्र 5 साल ( छोटी सी निकर और शर्ट जिसका बटन टूटा हुआ)
गाँव के चार-छह बच्चे ऊँचे घराने से
गाँव का चौधरी और अन्य लोग
मेले में दुकानदार चिमटे वाला , मिठाई और खिलौने वाले
(गाँव का दृश्य)
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद आज ईद आई है। सब कुछ मनोहर दिखाई दे रहा है। वृक्षों की हरियाली, खेतों की रौनक, आसमान की लालिमा सूरज भी शीतल दिखाई दे रहा है। मानों ये सभी संसार को ईद की बधाईयाँ दे रहे हों। मेले में जाने की तैयारियां हो रही है। कोई बटन लगा रहा है। तो जूते चमका रहा है। बैलों को जल्दी ही सानी -पानी दिया जा रहा है।
तीन कोस पैदल का रास्ता, फिर सैकड़ों से भेंट, इन सबमें सबसे अधिक प्रसन्न हैं। लड़के सभी के चेहरे पर ईदगाह जाने की रौनके दिखाई दे रही है। किसी ने एक रोज़ा रखा है तो किसी ने दोपहर तक का। ऱोज ईद का नाम लेते हैं। आज वह आ गई है। तो जल्दी है ईदगाह जाने की।
चौधरी कायमअली के घर अब्बाजान बदहवास दौड़े जा रहे हैं।
महमूद – (पैसे गिनते हुए) एक-दो-दस-बारह।
मोहसिन भी पैसे गिनता है। एक-दो-आठ-नौ-पन्द्रह पैसे हैं मोहसिन के पास
(बच्चे मन में प्रसन्न हैं। और सोच रहें हैं।)
इन अनगिनत पैसों से अनगिनत चीजें लायेंगे -खिलौने,मिठाइयां, गेंद और क्या-क्या
बच्चों में सबसे ज्यादा खुश हामिद है। चार-पाँच साल का ग़रीब सूरत, दुबला-पतला। बाप गत वर्ष हैजे की भेंट चढ़ चुका है। और माँ भी एक दिन न रही। न जाने क्या बीमारी रही होगी। दिल का दिल में सहती रही और जब न सहा गया तो विदा हो गई।
(प्रकाश हामिद और अमीना पर पड़ता है। जहां हामिद अपनी दादी की गोद में सोता है। दुनियादारी से बेख़बर)
सूत्रधार – हामिद प्रसन्न है। इसलिए कि अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं। बहुत सी थैलियाँ लायेंगे और अम्मी अल्लाह के घर से अच्छी-अच्छी चीजें। आशा ही तो बड़ी चीज है और फिर बच्चों की आशा।
(प्रकाश हामिद पर पड़ता है।)
हामिद के पाँव में जूते नहीं है। सर पर पुरानी टोपी है जिसका गोटा काला पड़ चुका है। फिर भी प्रसन्न है। जब अब्बाजान और अम्मी नियामतें लेकर आयेंगी तो वह दिल के सारे अरमान निकालेगा।
(प्रकाश अमीना की कोठरी पर पड़ता है।)
अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना तक नहीं। क्या आबिद होता तो इस तरह ईद आती?
अन्धकार और निराशा में डूबी अमीना सोचती है। किसने बुलाया इस निगोड़ी ईद को?
(प्रकाश पुन: हामिद पर पड़ता है।)
जिसे किसी के मरने-जीने से कोई मतलब नहीं उसके अन्दर प्रकाश है और बाहर आशा।
विपत्ति अगर अपना सारा दल-बल लेकर आये। तो हामिद की आनन्द भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।
(प्रकाश धीरे-धीरे हामिद से अमीना की ओर पड़ता है। और हामिद अमीना दोनों पर ठहर जाता है।)
हामिद – दादी अमीना से तुम डरना नहीं अम्मां! मैं सबसे पहले आऊँगा।
अमीना का दिल बैठा जा रहा है
(गाँव का दृश्य)
प्रकाश बीच मंच पर पड़ता है। जहाँ बच्चे अपने बाप के साथ जा रहे हैं। प्रकाश धीरे-धीरे उनके साथ चलता है।
(प्रकाश पुन: अमीना पर पड़ता है।)
अमीना सोच रही है। उसके सिवा हामिद का और कौन है। उस नन्ही सी जान को अकेले कैसे जाने दे; तीन कोस चल पायेगा? जूते भी तो नहीं है। (आँखों में आँसू भरते हुए) पैर में छाले पड़ जायेंगे। वह सोचती है। थोड़ी दूर पर उसे गोद में ले लेगी। लेकिन सेवियां कौन पकाएगा यहाँ? पैसे भी तो नहीं है। नहीं तो चटपट सामान जुटा लेती। फहीमन के कपड़े सिये तो उनसे मिले आठ पैसे को ईमान की तरह बचा रही थी। ईद के लिए।
(अठन्नी की ओर देखकर हिसाब लगाती है।)
दो पैसे हामिद के दूध के लिए बचे, दो आने तीन पैसे हामिद की ज़ेब में, पाँच अमीना के बटुवे में
गाँव मेले में जा रहा है। हामिद भी साथ है। कभी सब दौड़कर सबसे आगे निकल जाते है। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े इन्तजार करते है। हामिद के पैरों में तो जैसे पंख लग गये हैं।
(चलते-चलते गाँव का दृश्य शहर में बदलता जा रहा है।)
सूत्रधार – (शहर का दृश्य) सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे, पक्की चारदीवारी, पेड़ों पर आम और लीचियां लगी हुई है। बड़ी-बड़ी इमारतें, अदालत, कॉलेज, क्लब घर आदि। लड़के कंकड़ उठाकर आम पर निशाना लगाते है। माली को उल्लू बना भाग रहे हैं। (और हँस रहे हैं। खी खी खी)
(प्रकाश हामिद पर पड़ता है।)
हामिद सोचता है। इतने बड़े कॉलेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? लड़के नहीं सब आदमी है। बड़ी-बड़ी मूँछों वाले अभी तक पढ़ते जा रहे हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर!
हामिद के मदरसे में भी दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं। तीन कौड़ी के
क्लब घर की ओर देखकर हामिद सोचता है। यहाँ जादू होता है। सुना था। मुर्दे की खोपड़ियां दौडती हैं। शाम को तमाशे होते हैं। दाढ़ी मूँछों वाले साहब लोग खेलते हैं।
(बच्चे बैट की दुकान पर तरह-तरह की बातें करते हैं।)
हमारी अम्मां को वह दे दो क्या नाम है? बैट?
महमूद – हमारी अम्मां का तो हाथ कांपने लगे ,अल्लाह कसम!
मोहसिन – हमारी अम्मी तो मनो आटा पीस डालती है। जरा सा बैट पकड़ ले तो हाथ कांपने लगे।
महमूद – लेकिन दौड़ती तो नहीं ,उछल-कूद तो नहीं सकती।
मोहसिन (फटाक से बोलता है। हाँ उछल-कूद नहीं सकती। लेकिन उस दिन गाय खुल गई और चौधरी के खेत में जा पड़ी। तो अम्मां इतनी तेज दौड़ी कि मै उन्हें न पा सका, सच!
(आगे चलकर मिठाइयों से सजी दुकानों पर बच्चे आपस में बातें कर रहे है।)
सुना है। रात को जिन्नात आकर खरीद ले जाता है और सचमुच के रुपये दे जाता है। बिलकुल असली।
हामिद यकीन न करने के अंदाज में कहता है। – ऐसे रूपये जिन्नात को कहाँ से मिल जायेंगे?
मोहसिन – जिन्न को रूपये की क्या कमी? चाहे जिस खजाने में चला जाए। लोहे के दरवाजे तक नहीं रोक पाते जनाब को।
हामिद फिर पूछता है – जिन्नात तो बहुत बड़े-बड़े होते होंगे?
मोहसिन (जवाब देता है।) – एक-एक आसमान के बराबर होता है। जमीन पर खड़ा हो जाए। तो सर आसमान से जा लगे मगर चाहे तो एक लोटे में घुस जाएं।
हामिद – लोग उन्हें कैसे खुश करते होंगे। कोई मुझे वह मंतर बता दे ,तो एक जिन्न को खुश कर लूँ।
मोहसिन – अब यह तो मैं नहीं जानता लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत से जिन्न है। जो सारे जहान की खबरें आकर दे जाते हैं।
हामिद (सोचते हुए।) – अब समझ में आया चौधरी के पास इतना धन क्यों है।
(तभी आगे पुलिस लाइन दिखाई देती है।)
मोहसिन (प्रतिवाद करता है।) – यह कानिसटीबल पहरा देते हैं?
(फिर आप ही बोलता है।)
अजी यही चोरी करवाते हैं और दूसरे महोल्ले में बोलते है। जागते रहो।
हामिद (पूछता है।) – यह लोग चोरी करवाते तो कोई इन्हें पकड़ता क्यूँ नहीं?
मोहसिन (हामिद की नादानी पर दया दिखाते हुए।) – अरे पागल, इन्हें कौन पकड़ेगा? पकड़ने वाले तो ये खुद हैं। हराम का माल हराम में जाता है। अल्लाह इन्हें सजा भी खूब देते हैं।
(ईदगाह स्थल)
ईदगाह की ओर जाने वाली टोपियाँ नजर आने लगती है। और इधर अपनी विपन्नता से बेखबर हामिद के गाँव का छोटा सा दल चला जा रहा था। ईदगाह स्थल पर नीचे पक्का फर्श जिस पर जाजिम बिछा हुआ है। यहाँ सब बराबर है। लाखों सिर एक साथ सजदे में झुकते हैं और फिर एक साथ खड़े होते हैं। मानों लाखों बत्तियां एक साथ प्रदीप्त हो और बुझ जाए।
नमाज खत्म हो गई है। लोग आपस में गले मिल रहे हैं। तब मिठाइयों ,झूलों और खिलौनों की दुकानों पर बच्चों के हुजूम इकट्ठे हो जाते हैं। कोई हिंडोला लेता है। कोई हाथी, घोड़े की पीठ पर चक्कर काट रहा है।
(झूलों के बाद बारी आती है खिलौनों की।)
महमूद (सिपाही की और हाथ बढाता है।) – खाकी वर्दी लाल पगड़ी ,कंधे पर बन्दुक रखे हुए।
मोहसिन भिश्ती पसंद करता है। – कमर झुकी हुई। ऊपर मशक का एक हाथ मुँह से ढके हुए।
नूरे को वकील से प्रेम हुआ है।
सभी दो-दो पैसे के खिलौने हैं और हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं। और ऐसे खिलौने किस काम के, जो हाथ से छूटते ही चूर हो जाएं!
(सभी अपने-अपने खिलौनों की विशेषता बताते हैं और उनके द्वारा किये जाने वाले काम भी)
हामिद खिलौनों की निंदा करता है। परन्तु भीतर ही भीतर उसका बालपन ललचा भी रहा है।
(खिलौनों के बाद सब मिठाई की दुकान पर हामिद को चिढ़ाने का अभिनय करते हैं।)
मोहसिन (रेवड़ी दिखाते हुए।) – हामिद रेवड़ी ले जा, खुशबूदार हैं।
हामिद जानता है। सभी उदार नहीं है। फिर भी हाथ बढाता है।
मोहसिन हाथ बढ़ा कर पुन: ले लेता है। बच्चे तालियाँ बजाते हैं।
मोहसिन –अच्छा अबकी जरुर देंगे।
हामिद (प्रतिउत्तर में) – रखे रहो, क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं! मिठाई कौन बड़ी नेमत है! किताबों में कितनी बुराइयां लिखी हुई हैं!
मोहसिन – दिल में कह रहे होंगे, मिले तो खा लें।
(मिठाई की दुकान के बाद कुछ दुकानें लोहे, गिल्ट तथा नकली गहनों की है। लड़कों को यहाँ कोई आकर्षण नहीं दिखाई देता। वे आगे बढ़ जाते हैं। परन्तु हामिद वहीँ ठिठक जाता है। उसे तवे से रोटियाँ उतारती दादी की याद आती है। हाथ का जलना आदि।)
हामिद (ठिठक कर सोचते हुए।) – दादी को चिमटा ले जाकर दे तो उनके हाथ नहीं जलेंगे। और घर में एक काम की चीज भी हो जाएगी।
(बाकी बच्चे शरबत की दुकान पर शरबत पी रहे हैं।)
हामिद (दुकानदार से) – यह चिमटा कितने का है?
दुकानदार (हामिद की ओर देखता है और अकेला पाकर बोलता है।) – यह तुम्हारे काम का नहीं है।
हामिद (पुन: दुकानदार से) – बिकाऊ है या नहीं?
दुकानदार से मोल भाव कर हामिद वह चिमटा तीन पैसे का ले लेता है और चिमटे को शान से कंधे पर रख कर बाकी साथियों के पास जाता है।
सूत्रधार – चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया; लेकिन अब पैसे किसके पास धरे हैं। फिर मेले से भी तो दूर निकल आये हैं, नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही है। घर पहुँचने की जल्दी भी तो है।
अब बालकों के दो दल बन गये है। एक ओर हामिद अकेला तो दूसरी और बाकी सब।
शास्त्रार्थ हो रहा है। सम्मी तो विधर्मी हो गया है। दूसरे पक्ष से जा मिला है। हामिद के पास न्याय का बल है। और नीति की शक्ति। एक और मिट्टी है। तो दूसरी और लोहा।
(हामिद की तर्क शक्ति के सामने सभी बच्चे निरुत्तर हैं।)
विजेता को हारने वालों से जो सत्कार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। ओरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए। पर कोई काम की चीज न ले सके।
हामिद ने तीन पैसों में ही रंग जमा लिया है। खिलौनों का क्या भरोसा? हामिद का चिमटा बरसों बना रहेगा।
(बच्चों में भी संधि की शर्तें तय होने लगी।)
मोहसिन – जऱा अपना चिमटा दो। हम भी देखें।
(सभी अपने खिलौने हामिद के सामने पेश करते हैं।)
हामिद (बाकी बच्चों के आँसू पोंछते हुए।) – मैं तुम्हें चिढ़ा रहा था, सच। कहाँ? यह लोहे का चिमटा और कहाँ? ये खिलौने। मानो अभी बोल उठें।
मोहसिन – लेकिन कोई हमें दुआ तो नहीं देगा।
महमूद – दुआ को लिए फिरते हो, उलटे मार ना पड़े।
हामिद स्वीकारता है कि खिलौने को देखकर किसी की माँ इतना खुश नही होंगी, जितना उसकी दादी चिमटे को देख होगी। तीन पैसों में ही तो उसे सब कुछ करना था। फिर अब तो चिमटा रुस्तमे-हिन्द है।
रास्ते में वापिस लौटते हुए। महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने को दिये।
महमूद ने केवल हामिद को साझी बनाया। यह उसके उस चिमटे का प्रसाद था।
(पुन: गाँव का दृश्य)
ग्यारह बजे सारे गाँव में हलचल हो गई। मेले वाले आ गये। मोहसिन की बहन ने दौड़ कर भिश्ती उसके हाथ से छीन लिया। और सारी ख़ुशी के मारे तो मियां भिश्ती तो नीचे आ रहे। इसी तरह नूरे के वकील का अंत उसके प्रतिष्ठा के अनुरूप हुआ। उनकी अम्मां ने शोर सुन तो बिगड़ी और दो-दो चांटे भी लगाए।
रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गाँव का पहरा देने बैठा दिया। पालकी सजाई गई। और बच्चों का शोर पीछे-पीछे “छोनेवाले,जागते लहो” इसी बीच सिपाही की एक टांग टूट जाती है। गूलर के दूध से जोड़ने का प्रयत्न किया जाता है।
इधर हामिद की आवाज सुनते ही उसकी दादी दौड़ी। और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देख चौंक पड़ती है और पूछती है।
‘ यह चिमटा कहाँ था?’
हामिद – मैंने मोल लिया है।
दादी अमीना – कै पैसे में ?
हामिद – तीन पैसे में।
अमीना (छाती पीट लेती है। और मन ही मन) – कैसा बेसमझ लड़का है। कि दो पहर हुआ। कुछ खाया न पिया। लाया क्या? यह चिमटा!
हामिद (अपराधी भाव से बोलता है।) – तुम्हारी अंगुलियाँ तवे से जल जाती थीं । इसलिए मैंने इसे ले लिया।
बूढी दादी अमीना का क्रोध तुरंत गुस्से से स्नेह में बदल जाता है। यह स्नेह मूक स्नेह है जिसमें खूब ठोस ,रस और स्वाद भरा हुआ है
(सारा प्रकाश हामिद और अमीना पर आकर ठहर जाता है।)
तभी एक विचित्र बात होती है। जहां हामिद बूढ़े हामिद का पात्र बन जाता है। और बुढ़िया अमीना, बालिका अमीना। वह रो रही है और दामन फैलाकर दुआएं देती जाती है। सारा गाँव हामिद को दुआएं दे रहा है।
(पर्दा गिरता है।)