विद्यावती कोकिल का जन्म 26 जुलाई 1914 को मुरादाबाद में हुआ था| इनके पिता का नाम कहीं त्रिलोकीनाथ सिन्हा और कहीं शिव प्रसाद श्रीवास्तव मिलता है। इनका निधन 10 जुलाई 1990 को हुआ था। विद्यावती जी के प्रमुख रचनाएं हैं – अंकुरित, मां, सुहागिन, सुहाग गीत, पुनर्मिलन, सप्तक, अमर ज्योति, फ्रेम बिना तस्वीर, ऋतायन और आरती। सप्तक संग्रह (1959) में अरविंद की अंग्रेजी रचनाओं को इन्होंने हिंदी में अनुदित किया है और अरविंद के सावित्री महाकव्य का हिंदी अनुवाद भी किया है। सुहाग गीत (1953) लोक गीतों का समीक्षात्मक संग्रह है।
अपने रचना क्षेत्र के संदर्भ में विद्यावती जी अंकुरित काव्य संग्रह में कहती हैं कि –“ मैंने कभी किसी बात से प्रभावित होकर नहीं लिखा है। गीत तो अनजाने किसी अंतः प्रेरणा से फूट निकलते हैं। आत्मा में एक साथ एक हुलास एक मूर्ति होती है और उसकी अभिव्यक्ति के लिए मैं विवश हो उठती हूं।“ कालखंड के अनुसार इनके जन्म से लेकर इनके संग्रह के प्रकाशन तक का समय भारत की पराधीनता से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक फैला है। 1913 की शिक्षा संबंधी नीतियां तथा 1917 के सेंडलर आयोग के सुझाव तथा पुनर्जागरण आदि के कारण शिक्षा और व्यवस्था बदली थी। पुनर्जागरण के कारण स्त्री केंद्र में आई और सुधार दो दिशाओं में जा रहा था — पहली तो वह दिशा थी जो पूर्णतया मर्यादित, सहज व शांत थी और दूसरी धारा में विद्रोह का स्वर दिखाई देता है। विद्यावती जी की रचनाओं में मर्यादित सहजता है और यथार्थ अभिव्यक्ति भी उस में सम्मिलित है। इनकी कविताओं का स्वर विद्रोहात्मक नहीं है। इनके काव्य में कोमल भावाभिव्यक्ति का चित्रण किया गया है। शब्द अपने माधुर्य के साथ उपस्थित हैं —
हँसी नहीं रुकती कलियों की
फूलों के दो आंसू हंसते-हंसते
छुटपन से पाँव हो जाता भारी
जादू भरी चली जब नागर की पिचकारी
कुछ लोगों को यह कविताएं साधारण और अप्रासंगिक लगेंगी पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एक पितृसत्तात्मक रूढ़ि में आबद्ध स्त्री उन परिस्थितियों में सृजन करने के लिए तत्पर है और निरंतर सृजन करके अपने अस्तित्व को सबके सामने मजबूती से खड़ा करती है, चाहे इतिहास उसे स्थान दे या ना दे। तत्कालीन परिस्थितियों में स्त्री को स्वतंत्रता उस तरह से नहीं प्राप्त थी जिस तरह से आज है। संसार के अनदेखे सत्य को देखने का साधन उपलब्ध न होने के साथ ही भावात्मक संबल का अभाव, सकारात्मक सहयोग की कमी के बीच सृजन करना ही अपने आप में अद्भुत व उत्कृष्ट है।
जब स्त्री का घर से निकलना कठिन कार्य था तब विद्यावति का नाम कवि सम्मेलनों में बहुत आदर के साथ लिया जाता था। रेडियो में इनके गीत सुनने के लिए लोग व्याकुल रहते थें। इनकी रचनाओं में वेदना तत्व समाहित रहा है जिसमें दार्शनिकता का भी गुण गुम्फित है। पीड़ा को इन्होंने यौवन और मधुमास कहा है परंतु इनकी रचनाओं को अश्रु गीत कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि इनकी रचनाओं में वेदना की नकारात्मकता नहीं है बल्कि रचनात्मकता है।
मैं प्रेम लोक की वासी
मधु पिकर इन साकी के
प्यालो से मैं छक जाऊँ
विद्यावती जी अपने काव्य में प्रकृति और वात्सल्य के विविध रूप पाठक को अनुभूत कराने में सिद्धहस्त रही हैं। माँ पर लिखी एक खूबसूरत कविता माँ संग्रह से देखे
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी मां
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुकनी जैसी मां
बीवी बेटी बहन पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां
मां, भक्ति, सुहाग गीत जैसी कविताओं में स्त्री जीवन की छोटी-छोटी भावनाएं चित्रित की गई हैं। आरती काव्य संग्रह में वह भक्ति भावना और प्रकृति चित्रण दोनों रुपायित करती हैं। इनकी रचनाओं में श्री अरविंद की विचारधारा दिखाई देती है। ज्ञान और कर्म का भेद नष्ट करके भक्ति साधना के लिए वह कहती हैं
मेरा ज्ञान भजन बन जाता
पीड़ा में क्या आह निकालो
और विजय में नाद करूं क्या
आत्मा की फुल कन बन जाता
छायावादी भाव बोध की कविताओं से इतर विद्यावती जी ने देश प्रेम की रचनाएं ज्यादा की हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में यह जेल भी जा चुकी हैं। भारत माता के लिए उनके यह शब्द उनकी इसी भाव का प्रमाण है
पर्वत और मैदान नदी की यह रेखाएं
मनोज बुद्धि के वेयर विरोधियों की बाधाएं
रचती है निजरूप नीति यह अभिनव नाना
क्योंकि अंतर नैना तुम्हें पहचाना
देशभक्ति और प्रकृति का मिलाजुला सम्मिश्रण इनकी कविताओं का वैशिष्ट्य रहा है।
मुझ को आता देखकर
चिड़िया क्यों उड़ जाती है
मेरे सींचे हुए आम की,
इन बौराई डालो पर
कठिन गगन यात्रा से थक कर
पहर पहर सुस्ताती है
यही पेड़ के नीचे अपनी
शाला नित्य लगाऊंगी
ताकूँगी गूंगे फूलों पर
क्यों इतना पतियाती है (बाल सखा पत्रिका मई 1940)
नवम्बर 1957 ई0 में फ्रेम बिना तस्वीर नामक नाटक की रचना करके इन्होनें गद्य में भी सुंदर लेखन किया है। इंग्लैंड के वातावरण में पूर्व पश्चिम, ज्ञान और अध्यात्म का सामंजस्य इस नाटक का कथ्य है। विद्यावती कोकिल पर लिखा यह लेख उनके रचना संसार की एक झलक मात्र है। विद्यावती जी को समर्पित यह कविता सत्य मी डॉट ओआरजी गूगल से साभार प्रस्तुत कर रही हूँ —-
काव्य की धनी नाम विद्यावती कोकिल
स्त्री प्रधान अभिव्यक्त समस्या छलके
जल के शब्द कविता सर झील
मां कैसी है उकेरा मां बन और
नारीत्व बन सुहागन
जन्म जन्म पुनर्मिलन है
यह अमरजोत कविता है
वर्ण जन गीतों को सुहाग गीत बनाया
जड़ी फ्रेम बिना तस्वीर
सप्तक रचा भास्कर नव रश्मि
शुभ जन्मदिवस विद्यावती नरवीर
जुलाई माह विद्यावती जी की जयंती तथा पुण्य तिथि दोनों है। उन्हें शत शत नमन।