तारा देवी पांडे का जन्म सन् 1914 ई0 में और वर्ष 2001 में देहांत हुआ था। अपने अनगढ़पन के कारण यह काफी प्रसिद्ध रही हैं। यह महादेवी वर्मा और सुमित्रानंदन पंत की समकालीन थी। चौदह वर्ष की आयु से ही साहित्य सृजन करने वाली तारा पांडे के जीवनवृत्त पर नमिता गोखले ने ‘माउन्टेन एकोज़’ किताब लिखा है। 1942 में तारा जी को संग्रह ‘आभा’ के लिए सेकसरिया पुरस्कार मिला और 1998 में उ.प्र. हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान का सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार’ प्राप्त है। इनकी रचनाएं – वेणुकी, अंतरंगिणी, विपंची, काकली, सुघोष, मणि पुष्पक, पुष्पहास, स्मृति सुगंध तथा छिन्न तूलिका और सांझ इत्यादि.प्रमुख कृतियाँ : ‘सीकर’, ‘शुक-पिक’, ‘आभा’, ‘गोधूलि’, ‘वेणुकी’, ‘अंतरंगिणी’, ‘विपंची’, ‘काकली’, ‘बल्लकी’, ‘पावस’, ‘साँझ’, ‘रंजना’, ‘संबोधिनी’, ‘भावगंधा’, ‘पँखुडि़याँ’, ‘अनल कली’, ‘हिम-पंकज’, ‘पारिजात’, ‘सुघोष’, ‘मणि पुष्पक’, ‘पुष्पहास’, ‘स्मृति सुगंध’ तथा ‘छिन्न तूलिका’ (कविता-संग्रह); ‘रेखाएँ’ एवं ‘गीतों के पंख’ (गद्य काव्य); ‘उत्सर्ग’ (कहानी-संग्रह) प्रकाशित हैं।
महादेवी वर्मा की भांति इनकी रचनाओं में भी दर्शन और वेदना की अभिव्यक्ति है। इनके वेदना के गीत बड़े सुंदर बन पड़े हैं। इन्हें संसार में पीड़ा ही सर्वत्र दिखाई देती है और वही सर्वोपरि है। यह निराला की भांति वेदना में कहती हैं –
मैं दुख से श्रृंगार करूंगी
जीवन में जो थोड़ा सुख है
मृगजल है
उसमें भी दुख है
इनके भाव में मौलिकता है। इनकी रचनाओं में गूढ़ता नहीं बल्कि भाव की सहज अभिव्यक्ति है। इनकी रचनाओं में सत्य अनुभूति और संवेदनात्मक अभिव्यक्ति की आलोचकों ने सराहना की है। मैथिलिशरण गुप्त इनके प्रकृति प्रेम, राय कृष्ण दास इनके नारी हृदय की वेदनात्मक अभिव्यक्ति से विशेष प्रभावित थे। 1964 को छपी उनकी पुस्तक ‘सांझ’ की प्रस्तावना मैथिलीशरण गुप्त ने लिखी थी। इस भूमिका में वे लिखते हैं – साँझ उनके गीतों का नवीनतम संकलन है जिसकी भाषा सरल है। श्रीमती तारा जी के गीतों में माधुर्य है, उनकी कविता में प्रवाह है। प्रकृति से उन्हें सदा प्रीति रही है और उनके गीतों में अनुभूति की सत्यता है। तारा जी के लिए मेरे मन में आदर है, इसका कहना ही क्या। उनकी साहित्य साधना सदा होती रहे यही कामना है।
रहस्यवाद और छायावाद की झलक इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। तारा जी ने प्रकृतिपरक काव्य बहुत सुंदर लिखी हैं। इनकी कविताओं में छायावादी भाव स्पष्ट दिखाई देता है। प्रकृति के अलावा देश प्रेम और भक्ति की रचनाएं भी उन्होंने की है। देश प्रेम की एक रचना में वह कहती हैं –
मेरा देश बुलाता मुझको
होते व्याकुल प्राण हैं
मुखर हो उठे कंठ हैं
बलिदानों के गाने
(तारा पांडे, भाव गंध पृष्ठ 12)
इस प्रकार की अनेक ओजस्वी और देशभक्ति की कविताएं तारा जी ने लिखी है पर उस समय के छायावादी भाव बोध के संकुचित दृष्टिकोण में इन रचनाओं का मूल्यांकन करना जरूरी नहीं समझा परंतु तत्कालीन परिवेश में अपने को प्रमाणित करती इस प्रकार की रचनाएं तारा पांडे की निजी विशेषता रही है। इन्होंने छायावादी प्रेम रहस्य इन सब को अलग करके अपने को देश प्रेम के लिए समर्पित किया इसके अतिरिक्त देश प्रेम का इन का दूसरा रूप था प्रकृति का चित्रण पर वह प्रकृति चित्रण छायावादी प्रकृति चित्रण से अलग था इस प्रकृति चित्रण में हमें देश प्रेम की भावना दिखाई देती है।
तारा पांडे का काव्य संग्रह अतरंगिणी 1945 में प्रकाशित हुआ था जिसमें वह कहती हैं कि “मेरी अन्य रचनाओं की भांति तरंगिणी में भी काव्य का कोई चमत्कार नहीं, कल्पना की ऊंची उड़ान नहीं और संगीत का सौंदर्य भी नहीं, किंतु जीवन का हास रुदन सुख और दुख मन को जिस भावना से भरते हैं उसी से प्रभावित होकर जो तार आप ही बजे उठते हैं यह तो उसी का झंकार मात्र है।“
लेखिका की यह स्वीकारोक्ति उनकी लेखन की सरलता को भी प्रदर्शित करता है उनके भावों की सभ्यता सहायिका एक प्रेम भी गीत में देखा जा सकता है वह कहती हैं कि –
संध्या की बेला यह सुनी
बांध तुम्हें क्या मुक्त बनी मैं
पीड़ाओं की बनी धनी मैं
समझोगे तब, खो जाऊंगी
जब मैं अपने सूनेपन में
तुम को बांध चुकी हूं मन में
(अतरंगिणी पृ०)
तारा पांडे के भाई मोहन बल्लभ पंत यह बताते हैं कि सीकर का द्वितीय संस्करण उसकी प्रसिद्धि का प्रतीक है। उत्सर्ग इनका कहानी संग्रह है। इन कहानियों में स्त्री जाति की मां पत्नी और बहन के रूप में अपने को उत्सर्ग किया है, इसलिए इस संग्रह का नाम उत्सर्ग है।
तारा जी के गद्य गीतों का संग्रह रेखाएं नाम से प्रकाशित हुआ था जब उस विधा प्रचलन भी नहीं था। संग्रह में 52 गद्य गीत है। भाषा शैली और विषय नवीनता की दृष्टि से रेखाएं हिंदी साहित्य में अपना अलग स्थान रखती है। संग्रह में शामिल मन में, पावस है राही, प्रतीक्षा इत्यादि रचनाएं गीत नवीन परम्परा के है।
काव्य-संग्रह ‘पाँच नायिकाएँ’ की भूमिका में लिखा है कि ‘पाँच नायिकाएँ’ में भारतीय समाज की श्रेष्ठम पाँच पौराणिक नायिकाओं—सीता, सती, शकुंतला, पांचाली एवं यशोधरा—के जीवन एवं कृतित्व को पद्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन कविताओं की अनुभूति की सत्यता और अभिव्यक्तिं की प्रवाहशीलता को अनेक विद्वानों ने लक्षित किया है तथा उनके प्रकृति-प्रेम को हृदय से सराहा है। इन कविताओं में कवयित्री ने इन पाँच महाविभूतियों के चरित्रों को लेकर मौलिक चिंतन प्रस्तुत किया है। ‘पाँच नायिकाएँ’ काव्य-ग्रंथ की कविताएँ काव्यात्मक होने के साथ-साथ विचारोत्तेजक एवं मन को झकझोर देनेवाली हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास से ओझल अपने विशिष्ट योगदान के लिए तारा पाण्डेय सदैव स्मरणीय रहेंगी।