यादें
तुम्हारी तस्वीरें।
तुम्हारी मोहब्बतें।
तुम्हारी बातें।
तुम्हारी मासूमियत।
तुम्हारी हँसी।
तुम्हारी ख़ुशबूएँ।
तुम्हारी यादें।
बस गई है एक बस्ती सा,
मेरे हृदय में जमकर।
मैं एक-एक कर गुजरता हूँ,
हर बस्ती से होकर।
महसूस करता हूँ तुम्हे,
कुछ देर वहाँ ठहरकर।
मन को करता हूँ शांत धीर।
परन्तु,
चित्त मेरा हो जाता है अधीर
आँखों से टपक पड़ता है नीर
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लड़की से औरत
कुछ फैसले ही तो चाहिए,
लड़की से औरत बनने के लिए।
पहला,अपने प्रेम से समझौता।
दूसरा,अपने स्वतंत्रत आकांक्षाओं को मारना।
और फिर समाज के सम्मुख
सतीत्व का प्रमाण पेश करना।
इस तरह बन जाती है
एक स्त्री स्वयं को मारकर।
सिमट जाती है चारदिवारी के अन्दर।
प्रतिदिन रोटी को गोल करते करते
स्वयं का संसार गोल करती जाती है।
उसकी इन छोटी सी गोल संसार में
कुछ नहीं रहता है
बस,रह जाता है केवल
अतित की सारी यादें
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निश्छल प्रेम
आज मैं महसूस कर रहा हूँ,
जैसे खंडहरों के निचे दबा हूँ।
वर्षों तक दबा रहूँगा।
मेरे कलेजे पर खंडहरो के अवशेष पड़े हैं।
बर्षों बाद कोई पुरातत्ववेत्ता
यदी करे उत्खनन।
पाएगा मेरी ही आकृति में बनी खाली जगह।
तब एक-एक कर स्पष्ट होता जाएगा
सबसे पहले संवेदनाएँ जाग जाएगी।
मिट्टी से सनी,थैली में लिपटी,
प्रेम की कुछ यादें,
खोदकर निकाला जाएगा।
जंग लगी हुई मोतियों के मालिंद,
कुछ आँसू के बूँद प्राप्त होंगे।
लेकिन प्रमाण के लिए
न मेरी हड्डी बचेगी,न शरीर।
तब,
अनुमान के आधार पर कह दिया जाएगा।
यह एक निश्छल प्रेम का मृत्यु था।