“फक्त सात कहानियों का संग्रह ‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की ही पहली कृति नहीं है बल्कि जिसे हम ‘नई कहानी’ कहना चाहते है उसकी भी पहली कृति है। पड़ने पर सहसा विश्वास नहीं होता कि ये कहानियाँ उसी भाषा की है जिसमें अभी तक शहर, गाँव कस्बा और तिकोने प्रेम को ही लेकर कहानीकार जूझ रहे हैं। ‘परिंदे’ से यह शिकायत दूर हो जाती है कि हिन्दी कथा-साहित्य अभी पुराने सामाजिक संघर्ष के स्थूल धरातल पर ही ‘मार्कटाइम’ कर रहा है। समकालीनों में निर्मल पहले कहानीकार है जिन्होंने इस दायरे को तोड़ा है बल्कि छोड़ा है और आज के मनुष्य की गहन आन्तरिक समस्या को उठाया है।”1
जब आप कहते हैं ’परिंदे’ नई कहानी या फिर नामवर जी यह ऊपर दिए गए कथन का प्रयोग अपनी किताब में करते हैं तो सवाल यह है कि नया क्या है? वह पुराना क्या था जिसके विपरीत में खड़ा हुआ यह नया, नया क्या है? ऐसे कई सवाल हमारे सामने प्रस्तुति प्रदान करते हैं। इसीलिए इस निबंध में हम परिंदे के द्वारा कुछ नई कहानियों की विशेषताएं और इस कहानी की अंतर्वस्तु और भाषागत विशेषताओं पर चर्चा करते चलेंगे।
कहानी का सारांश
परिंदे शीर्षक प्रतीकात्मक है, जिससे आधुनिक मानव की नियति को पकड़ने की कोशिश है। जहाँ सभी मनुष्य किसी-न-किसी के लिए प्रतीक्षित हैं। कहानी की नायिका लतिका इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है। वह एक पहाड़ी स्कूल में वार्डन है। वह कुमाऊं के कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षिका भी है। मिस्टर ह्यूबर्ट, डॉ. मुकर्जी और मिस वुड आदि उसके साथ उस स्कूल में शिक्षक हैं। कहानी में उस समय का ज़िक्र है, जब सर्दी की छुट्टियाँ होने वाली हैं और होस्टल खाली होने का समय आ गया है। पिछले दो-तीन सालों से मिस लतिका होस्टल में ही रह रही हैं और डॉक्टर मुखर्जी छुट्टियों में कहीं नहीं जाते।
कहानी की नायिका लतिका कॉन्वेंट के स्कूल के होस्टल के रंगीन वातावरण में अकेलेपन जी रही है। कुछ वर्ष पूर्व उसके जीवन में ऐसा घटित हो चुका है जिसे वह चाहकर भी भूल नहीं पा रही है । कुमाऊं रेजिमेंट सेंसर के कैप्टन गिरीश नेगी से लतिका ने प्रेम किया था और युद्ध के कारण उन्हें कश्मीर जाना पड़ा। उसके बाद गिरीश नेगी लौट नहीं सके। गिरीश की मृत्यु हो चुकी है। पर अब भी लतिका उसे भूल नहीं पाती। वह मेजर गिरीश के साथ गुज़ारे दिनों की स्मृतियों को अपना साथी बना, कॉन्वेंट स्कूल में नौकरी करते हुए दिन व्यतीत करती है।
मिस्टर ह्यूबर्ट ने एक बार लतिका को प्रेम पत्र लिखा था। लतिका को उसके इस बचकाना हरकत पर हँसी आयी थी, किन्तु भीतर- ही भीतर प्रसन्नता भी हुई थी । ह्यूबर्ट का पत्र पढ़कर उसे क्रोध नहीं आया, आयी थी केवल ममता । लतिका को लगा था कि वह अभी इतनी उम्र वाली नहीं हो गई कि उसके लिए किसी को कुछ महसूस हो ही न सके। लेकिन फिर भी उसे नहीं लगता कि उसे वैसी ही अनुभूति अब किसी के लिए हो पाएगी।लतिका अपने बीते दिनों की दुःखद घड़ियों को भूलना चाहती है, लेकिन इस भूलने की प्रक्रिया में वे उन्हीं चीज़ों को और याद करती हैं, जिसे वे भूलना चाहती हैं। इस तथ्य को वह समझती भी है- “लतिका को लगा कि जो वह याद करती है, वही भूलना भी चाहती है, लेकिन सचमुच भूलने लगती है, तब उसे भय लगता है कि जैसे कोई उसकी किसी चीज को उसके हाथों से छीने लिये जा रहा है, ऐसा कुछ जो सदा के लिए खो जाएगा।”
डॉक्टर मुखर्जी ‘परिन्दे’ का सर्वाधिक जीवंत किरदार है। लेकिन मानव नियति के वे भी लतिका की तरह शिकार हैं। पहाड़ी जीवन एवं प्रैक्टिस के बारे में मिस वुड से वह कहता है- “प्रैक्टिस बढ़ाने के लिए कहाँ-कहाँ भटकता फिरूँगा, मिस वुड । जहाँ रहो वहीं मरीज मिल जाते हैं। यहाँ आया कुछ दिनों के लिए फिर टिका रहा। जब कभी जी ऊबेगा, कहीं चलता जाऊंगा। जड़ें कहीं नहीं जमतीं, तो पीछे भी कुछ नहीं छूट जाता। मुझे अपने बारे में कोई गलतफहमी नहीं है मिस वुड, सुखी हूँ।” डॉक्टर मुखर्जी का एक दूसरा रूप भी है जब वे कहते हैं कि लतिका तो बच्ची है, मरनेवाले के साथ मरा थोड़े ही जाता है।ह्यूबर्ट अपने हृदय की सम्पूर्ण भावनाओं के साथ लतिका को प्रेम करता है । लतिका के अचेतन मन में भी ह्यूवर्ट के प्रति सहानुभूति और आकर्षण है। कहानी में यह तथ्य बाहर भी आता है- “ह्यूबर्ट के स्वर में व्यथा की छाया लतिका से छिपी न रह सकी। बात को टालते हुए उसने कहा- आप तो नाहक चिंता करते हैं, मि. ह्यूबर्ट! आजकल मौसम बदल रहा है, अच्छे भले आदमी तक बीमार हो जाते हैं। ह्यूबर्ट का चेहरा प्रसन्नता से दमकने लगा। उसने लतिका को ध्यान से देखा।” कहानी में अपने परिवार से छूटा हुआ डॉक्टर भी अकेला है। वह कहानी के प्रेमी चरित्रों के बीच हल्का-हल्का संबंध-सूत्र बनकर ही मूल संवेदना के साथ जुड़ता है।
जिस दिन मि. ह्यूवर्ट लतिका से माफी मांगते हैं, उसी रात डॉक्टर मुखर्जी उसे अचेतनावस्था में मिलते हैं।
मि. ह्यूवर्ट बेहोशी में यही बड़बड़ाते रहते हैं- “इन ए बैक लेन ऑफ द सिटी, देयर इज ए गर्ल हू लव्ज मी….
ह्यूवर्ट हिचकियों के बीच गुनगुना उठता था।” ‘परिन्दे’ टूटे हुए प्रेम के प्रतीक हैं।
लतिका आखिरी चक्कर लगाने के लिए निकलती है, और अंत में सोचकर कि शायद जूली का प्रथम परिचय ही हो, वह उसका खत उसके तकिये के नीचे रख आती है। जूली होस्टल की लड़की है जो किसी फौजी से प्रेम करती है और उसका पत्र लतिका को मिल जाता है।
परिंदे कहानी के प्रमुख पात्र
लतिका- इस कहानी की नायिका या केन्द्र बिन्दु यही है।
सुधा – होस्टल में शायद वह सबसे अधिक लोकप्रिय लड़की।
जूली- होस्टल की लड़की, जिसका प्रेमपत्र लतिका के हाथ लग गया है।
करीमुद्दीन- होस्टल का नौकर, मिलिट्री में अर्दली रह चुका था।
डॉ. मुखर्जी- आधे बर्मी थे, कुछ लोगों का कहना था कि बर्मा से आते हुए रास्ते में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी, लेकिन इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि डाक्टर स्वयं कभी अपनी पत्नी की चर्चा नहीं करते। इन्हें फिलासोफाइज करने की आदत थी।
मि. ह्यूबर्ट – संगीत शिक्षक, पियानो बहुत मन से बजाते हैं। लतिका से प्रेम करता है, भावुक याचना से भरा हुआ प्रेमपत्र भी लिख चुका था।
प्रिंसिपल मिस वुड- पोपला मुँह, आँखों के नीचे झूलती हुई माँस की थैलियाँ, ज़रा ज़रा सी बात पर चिढ़ जाना, कर्कश आवाज में चीखना- सब उसे ‘ओल्डमेड’ कहकर पुकारते हैं।
गिरीश नेगी- कुमाऊँ रेजीमेंट में कैप्टन था जिससे लतिका प्रेम करती थी।
एल्मण्ड- फादर
कहानी की अंतर्वस्तु पर चर्चा
पहाड़ के पीछे से आते हुए पक्षियों के झुंड को देखकर ‘परिन्दे’ की लतिका चलते-चलते सोचती है: “क्या वे सब प्रतीक्षा कर रहे हैं? लेकिन कहाँ के लिए, हम कहाँ जायेंगे ?” प्रश्न मामूली है लेकिन कहानी के माहौल में वह सिर्फ पक्षियों का या लतिका का व्यक्तिगत प्रश्न नहीं रह जाता। जैसे इस प्रश्न से लतिका, डॉक्टर मुखर्जी, मि० ह्यूबर्ट सबका सम्बन्ध है— इन सबका और इनके अलावा भी और सबका।2
नामवर जी ने इस कहानी की आत्मा इन अल्फाजों में हमारे सामने पेश कर दी। शायद नई कहानी में एक अस्तित्व की तलाश,अकेलेपन से भागने की तलाश थी । जब आप नई कहानी आंदोलन की कई कहानी पढ़ते हैं तो साफ तौर पर आधुनिकता का सामने पर्दाफाश होते देखते हैं। उसके दुष्परिणामों को समझ पाते हैं। उन लोगों में अकेलेपन को भर देना जो कि परिंदे, कमलेश्वर की कहानियों ‘दिल्ली की एक मौत’ ‘खोई हुई दिशाएं’ आदि कई कहानियों में साफ झलकता है ,पर, एक बात गौर करने वाली है; सब अकेले हैं परंतु सबके अकेलेपन में अंतर है आधुनिकता हमको अकेला करती है। इतना दर्द किसी से बांटना नहीं चाहते है। इस बात को आप परिंदे कहानी के चरित्र में देखते हैं अपने अतीत के कष्टों से बात कर अपना दर्द कम नहीं करेंगे उन्हें अपनी बीवी के बारे में बात करना पसंद नहीं है।
अतीत की अगर बात चीज है तो शायद नामवर जी ने इस कहानी की समीक्षा करते हुए ठीक ही लिखा है कि:–
स्वतंत्रता या मुक्ति का प्रश्न जो समकालीन विश्व साहित्य का मुख्य प्रश्न बन चला है, निर्मल की कहानियों में प्राय: अलग-अलग कोण से उठाया गया है। एक तरफ से देखा जाय तो ‘परिन्दे’ को सतिका की समस्या स्वतंत्रता मुक्ति की समस्या है! अतीत से मुक्ति, स्मृति से मुक्ति उस चीज से मुक्ति जो हमें चलाए पलती है और अपने रेसे में हमें पोट जाती है। इन कहानियों के प्राय: सभी व्यक्ति चरित्र अपने अतीत की स्मृति से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील है। सारी कहानियाँ इस मुक्ति की पीड़ा की मार्मिक अभिव्यंजना हैं। सर्वत्र कोशिश यही है कि इतिहास से अपने को मुक्त करके एक साक्षा ‘विटनेस’ के रूप में उसे देखा जाय मुक्ति का यह क्षण जिसमें मनुष्य स्वयं | अपना साक्षी हो जाता है, निर्मल की अनेक कहानियों का केन्द्र है। और उस क्षण के आलोक में ही व्यक्ति देखता है कि “यह मुक्त है ओर सारी दुनिया उसकी प्रतीक्षा कर रही है। इस प्रकार से कहानियाँ जोवन की विभिन्न स्थितियों के सन्दर्भ में आज के सबसे बड़े मानव मूल्य मानव मुक्ति को परिभाषित करती है।3
एक बार निर्मल वर्मा जी की कलम से अल्फाज जो डॉक्टर मुखर्जी के मुख से कहानी में पहुंचे हैं उन पर निगाह डाल लेते हैं।
“वैसे हम सबकी अपनी-अपनी जिद होती है, कोई छोड़ देता है, कोई आखिर तक उससे चिपका रहता है।” डॉक्टर मुखर्जी अँधेरे में मुस्कराये। उनकी मुस्कराहट में सूखा-सा विरक्ति का भाव भरा था। “कभी-कभी मैं सोचता हूँ मिस लतिका, किसी चीज को न जानना यदि गलत है, तो जान-बूझकर न भूल पाना, हमेशा जोंक की तरह उससे चिपटे रहना, यह भी गलत है। 4
कहानी का हर पात्र एक अतीत की कहानी से जुड़ा हुआ है। राजेंद्र यादव की एक किताब है ‘एक दुनिया समानांतर’ शायद नई कहानी के किरदार एक समांतर दुनिया में चलते हैं यहां समांतर दुनिया थी उन सब के अतीत। आधुनिकता और अतीत में गहरा संबंध साफ नजर आता है परिंदे कहानी में लतिका, मिस्टर मुखर्जी ,आदि किरदार। सब अपने अतीत से चिपके हैं ।उसकी तकलीफ और परेशानियों को समकालीन समय में राई का पहाड़ बना कर खड़े हैं। मानसिक मुक्ति की तलाश लवर्स कहानी के पात्र भी करते हैं और परिंदे कहानी के भी। आधुनिकता अतीत को गर्व से देखती है कि जो हम आज हैं वह हमारे अतीत की वजह से इसलिए शायद वह कष्ट जो हमने जिए होते हैं। उनको हम ग्लोरिफाई कर कर बड़ा बनाकर अपने आपको समाज में एक बड़ा शक्स बनाते हैं। क्योंकि हम यह कहना चाहते हैं कि हमारे अनुभव कुछ इस प्रकार के कष्टमयी थे।
जब आप यह कहानी पढ़ते हैं तो एक सवाल सामने प्रत्यक्ष खड़ा होता है लतिका उस लड़की को क्यों रोकती है?
उत्तर सरल है कि मैं अपने दुख के कारण या अपने अनुभव से उसको बचाने की कोशिश कर रही है। शायद आधुनिकता हमको जनरलाइजेशन करने पर विवश कर देता है। हम अपने दुखों को अपने अनुभवों को औरों पर लादने की कोशिश करते हैं। यह भी उस अतीत के साथ एक गहरे रिश्ते के चलते होता है। इस अतीत को हम अनुभूति अनुभव मानकर इतना ग्लोरिफाई कर देते हैं कि उससे मुक्ति कठिन असंभव प्रतीत होती है । ऐसा ही ‘परिंदे’ कहानी के दो मुख्य किरदारों लतिका और डॉक्टर मुखर्जी के साथ है । लतिका ज्यादा इस जाल में फंसी है। मुखर्जी उसके बारे में बात ना करके एक स्थिति में रहते हैं। लतिका अपने आपको स्थिति में निरंतर फंसा कर हर चीज अतीत की यादों से जोड़कर अपने आप को और ज्यादा कष्ट पहुंचाने में लगी हुई है।
खत ना देने का कारण मुझे उसके वार्डन टाइप की लगी। इस बात को एक विस्तार देते हैं। आधुनिकता के साथ मनुष्य के भीतर या यह कहिए कि आधुनिकता के कारण नैतिकता बड़ी ऊंची होती है। वार्डन, मां-बाप की गैर हाजिरी में बच्चों के अच्छे बुरे का फैसला लेने की नैतिकता रखती है। साथ ही पत्र को ना पढ़ने की नैतिकता को भी कायम करती है। इसीलिए शायद जाने से पहले मैं उसको वापस दे देती है। लतिका ही नहीं फादर अलमेंड, प्रिंसिपल सब इस नैतिकता, खोखले आदर्शों के वाहक हैं इस कहानी में, लवर्स में भी और कमलेश्वर या निर्मल वर्मा की कई कहानियों में जैसे ‘सितंबर की एक शाम’ में भी शायद आधुनिकता अपने साथ नैतिकता का भारी वजन ,अतीत से जुड़ाव, अतीत का ग्लोरिफिकेशन ,अतीत से मुक्ति या एक दुनिया समांतर और अंत में अकेलापन लाती है ‘परिंदे’ कहानी एक लव स्टोरी ना होकर आधुनिक समाज के मानव की समीक्षा है।
निर्मल इस कहानी को दो स्थानों पर रचते हैं। एक शिमला और दूसरा सब का अतीत। शिमला का एक गर्ल्स स्कूल जो कुमाऊं रेजिमेंट के पास है वहां रचित है पूरी कहानी का कथा शहर यह कहानी शायद आधुनिक मानव के मनोविज्ञान को लिखने के रची गई । निर्मल की बाकी कहानियों की तरह मुक्ति और बंधन, लवर्स में लव तो परिंदे में अतीत ऐसे क्या जो इन परिंदों को उड़ान भरने से रोकता है। एक जगह बांध देते हैं इस बात के साथ में एक अटकल लगा रहा हूं कि रेलिंग एक जगह, जहां से शायद विचारों का बड़ा मैदान दिखता है। तो कहानी का कनेक्शन पॉइंट बनकर रहता है और मुझको ऐसा लगा लतिका कहानी में वहां रहकर अपने अतीत से मुक्ति की राह तलाश कर रही है और कल क्या क्या होने वाला है यह सोच रही है इतने में डॉक्टर मुखर्जी मिस्टर ह्यूबर्ट को नशे की हालत में लेकर वहां पहुंचते हैं। यह सिर्फ मेरी अटकल बाजी है इसका कोई सैद्धांतिक पक्ष मुझे नजर नहीं आता। विचार प्रस्तुत हुआ तो मैंने सोचा कि आपको बता दिया जाए तो अगली बार अगर आप परिंदे पढ़ें तो इस बात पर एक विचार या नजर जरूर रखेगा कि क्या लतिका उस रेलिंग के पास खड़े होकर कल सब कुछ होने की बात सोच रही है या फिर कहानी दरअसल में घटती है और रेलिंग एक कनेक्शन पॉइंट की तरह कहानी में जगह-जगह नजर आता है।
भाषा की विशेषताएं
नई कहानी कहने को तो उसी भाषा की कहानी है जिस भाषा में ग्रामीण जीवन की कहानियां ,किसानों की कहानियां कहीं जा रही थी।अपनी भाषा के स्तर पर अलग ही जादू करती है। आपको यह बात समझनी होगी कि जब नामवर सिंह जी की किताब पढ़ते हैं, कहानी नई कहानी उसमें परिंदे कहानी में संगीत का स्थान और कहानी का प्रभाव डालने के तरीके पर जो चर्चा करते हैं वह समझने लायक है। नामवर जी कहते हैं कि शायद संगीत एक ऐसी वस्तु है जो हर चीज को, हर मानव को छूती है इसीलिए कहानी में संगीत का प्रयोग काफी अच्छे तरीके से हुआ है ।इसके कई सारे उदाहरण है जैसे मिस्टर ह्यूबर्ट जब रात को संगीत बजा रहे हैं तो उनकी हाथों से संगीत फिसल कर अंधेरे में मिलकर अंधेरे का साथ ही बन रहा है। कमरुद्दीन जो हॉस्टल का नौकर है वह भी हारमोनिका पर बॉलीवुड संगीत की धुन बजाता रहता है। इस संगीत इंसान पर प्रभाव पड़ता है उसे समझ में आता है कहानी निर्मल जी जिस तरह कहानी लिखते हैं और आप जब कहानी पढ़ते हैं, आपको ऐसा लगता है कि आप एक सुव्यवस्थित संगीत कि कोई मेलडी या राग सुन रहे हो जिसमें कभी सूर ऊंचाई है तो कभी सूर ऊंचे नीचे स्वरों में लिखी गई कहानी की तरह प्रतीत होती है। निर्मल जी ने कहानी में जगह-जगह प्रकृति का इतना बखूबी इस्तेमाल किया है कि आप कहानी पढ़ते हुए शिमला पहुंच जाते हैं । बिम्बों का इस्तेमाल करते हुए चित्रात्मक कहानी रचना उसके भाषागत विशेषताओं में ही सम्मिलित होता है। साथ में एक बात और है नई कहानी ज्यादातर संवादों से मुक्त होती है पर इस कहानी में संवाद और विवरण दोनों का समन्वय काफी हद तक समान मात्रा में हुआ है, तो, यह नहीं कहा जा सकता कि यह संवादात्मक कहानियां या विवरणात्मक कहानी है। अगर आपको इसको इस परिभाषा में बताना होगा तो आप सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि यह कहानी संवाद – विवरणात्मक कहानी है। साथ में इस कहानी में जो पूर्व दीप्ति इस्तेमाल हुई है। वह भाषा के स्तर पर बड़ी रोचक है क्योंकि वह कहानी का अंग लगती है ऐसा नहीं लगता कि आप एक अलग समय में जाकर उस चीज को महसूस कर रहे हैं ।आप उन चीजों को ऐसे देखते हैं जैसे वह इसी समय में जी रही हैं वह समकालीन समय में कहानी के समय में चल रही है ।साथ में कहानी लंबी होने के कारण उबाऊ हो सकती थी ।उसकी जो भाषा में एक चीज है वह सब चीजें उसे इंटरेस्टिंग और आपको रोचक बनाए रखती है कहानी में जोड़े रखता है। एक बात ध्यान देने योग्य और है कहानी की भाषा में भी सस्पेंस घुल मिल गया है आप उस चिट्ठी के बारे में शायद भूल जाते हैं या रेलिंग के बारे में आप भूल जाते हैं पर निर्मल जी उसको बनाए रखते हैं और अपनी कहानी के अंत तक आपको आकर बताते हैं कि उन चीजों के बारे में बात होनी थी और बात हुई भी।