भोजपुरी हमार माँ
मॉरीशस का इतिहास प्रवासी भारतीयों के बिना पूरा नहीं होता। इस देश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले शिवसागर रामगुलाम के पूर्वज भी बिहार के भोजपुर के रहने वाले थे। स्वाभाविक है कि इस संपूर्ण भोजपुरी भुभाग से सम्बंध रखने वाले वंशज अपनी संस्कृति के साथ मातृ बोली भोजपुरी और हिन्दी को अपने सीने में संजोये रहे। यह प्रेरणा उन्हें अपने पूर्वजों के साथ लाए रामचरित मानस जैसे ग्रंथ से मिलती रही। यही कारण है कि जब भारत की पहल से विश्व हिन्दी सम्मेलन और प्रवासी भारतीय सम्मेलन प्रारम्भ हुए, दोनों में ही मॉरीशस सबसे पहले आगे आया।
अभिलेखों में दर्ज दस्तावेजों के अनुसार 2 नवंबर, 1834 को भारतीय मजदूरों का पहला जत्था गन्ने की खेती के लिए कलकत्ता से एमवी एटलस जहाज पर सवार होकर मारीशस पहुंचा था। आज भी वहां हर साल दो नवंबर को ‘आप्रवासी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ऐतिहासिक आप्रवासी घाट को “कुली घाट” के नाम से भी जाना जाता है। जिस स्थान पर भारतीयों का यह जत्था उतरा था वहां आज भी आप्रवासी घाट की वह सीढ़ियां स्मृति स्थल के तौर पर मौजूद हैं। इधर की प्रत्येक ईंट और पत्थर धैर्य, संघर्ष एवं बहादुरी की कहानी कहता है।
ब्रिटिश सरकार उनके पुरखों को गिरमिटिया श्रमिक के रूप में मॉरीशस लेकर गई थी, गन्ने के खेतों में काम करवाने के लिए। इन श्रमिकों ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कमाल की जीवटता दिखाई और घोर परेशानियों से दो-चार होते हुए अपने लिए जगह बनाई। अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर जाकर बसने के बावजूद इन्होंने अपने संस्कारों को छोड़ा नहीं। अनिरुद्ध जगन्नाथ के लिए अपना धर्म, भाषा और संस्कार बेहद खास थे। हालांकि वे मॉरीशस के मूल्यों को भी पूर्णत: आत्मसात कर चुके थे। दरअसल ब्रिटेन को 1840 के दशक में गुलामी का अंत होने के बाद श्रमिकों की जरूरत पड़ी, जिसके बाद भारत से गिरमिटिया मजदूर बाहर के देशों में जाने लगे। बेशक भारत के बाहर जाने वाला प्रत्येक भारतीय अपने साथ एक छोटा भारत ले कर जाता था। इसी तरह भारतवंशी अपने साथ तुलसी रामायण, हिन्दी भाषा, खान पान एवं परंपराओं के रूप में भारत की संस्कृति ले कर गए थे।
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को कामकाज की भाषा बनाने का जो प्रयास अटल जी ने शुरू किया, उसमें अनिरुद्ध जगन्नाथ का भी योगदान है। इस तरह हिन्दी और प्रवासी भारतीयों यानी भारतवंशियों को एक साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए। यहां उल्लेख करना जरूरी है कि “प्रवासी भारतीय’ की जगह “भारतवंशी” संज्ञा हिन्दी पक्षधर और कानूनविद लक्ष्मीमलल सिंघवी ने दी। विदेशों में रह रहे भारतवंशियों का हिन्दी के प्रति लगाव वहां के राष्ट्र नायकों के कारण भी आगे बढ़ता रहा। इसमें मॉरीशस का योगदान विशिष्ट है। कुछ तो है कि जहां अनिरुद्ध जगन्नाथ को भारत का नागरिक सम्मान मिला, तो वहां के साहित्यकार अभिमन्यु अनत को भारत की साहित्य अकादमी ने सम्मनित करने के साथ अपना मानद सदस्य भी बनाया। अभिमन्यु अनत को मॉरीशस का प्रेमचंद माना जाता है।
मॉरीशस में हिन्दी लेखकों की परंपरा आज बहुत समृद्ध है। कुछ विशिष्ट लेखकों में रामदेव धुरंधर, पूजानंद नेमा, भानुमति नागदान, धनराज शंभु, कृष्ण लाल बिहारी, ब्रजेन्द्र कुमार भगत “मधुकर’, सोमदत्त बखोरी, हरीनारायण सीता, ठाकुरदत्त पाण्डेय, दुनीशवस्लाल चिन्तामणि के नाम उदाहरण भर। यह सूची अति विस्तृत है। निश्चित ही इस सूची में भारतवंशियों का अपनी भाषा से लगाव झलकता है। फिर भी इसे बढ़ाने में 52 साल के आजाद देश मॉरीशस में 18 वर्ष तक प्रधानमंत्री और करीब नौ साल तक राष्ट्रपति रहे अनिरुद्ध जगन्नाथ का योगदान अविस्मरणीय है। वे 91 साल के थे। उन्होने भरपूर जीवन व्यतीत किया। भारत और हिन्दी के प्रति अपने खास लगाव के लिए पहचाने जाने वाले अनिरुद्ध जगन्नाथ को प्रथम प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजा गया था।
वे हिन्दी और भोजपुरी भाषा को दिल से चाहते थे। वर्ष 2009 में मॉरीशस में विश्व भोजपुरी सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने उद्घोष किया कि ‘भोजपुरी हमार माँ’ और वादा किया कि उनकी पार्टी जब सत्ता में आएगी तो भोजपुरी भाषा को मान्यता देगी, और सत्ता में आने के बाद उनका वादा उनकी पार्टी द्वारा निभाया भी गया।
अगर भारत से हजारों किलोमीटर दूर बसे मॉरीशस को लघु भारत कहा जाता है तो इसका श्रेय़ अनिरुद्ध जगन्नाथ जैसे वहां के जन नेताओं को भी देना होगा। उन्होंने दोनों देशों के लोगों को सांस्कृतिक और भाषा के स्तर पर जोड़े रखने की जीवनपर्यंत कोशिशें कीं। मॉरीशस के निवासियों का भारत के साथ कितना आत्मीय एवं गहरा लगाव है कि मॉरीशस-निवासी कभी भी भारत को भारत नहीं बल्कि ‘देश’ के नाम से संबोधित करते हैं। भारत से बाहर एक लघु भारत ही लगता है। उसे इस स्थिति तक पहुंचाने में अनिरुद्ध जगन्नाथ और उनसे पहले शिवसागर राम गुलाम जैसे भारतवंशी नेताओं का अहम भूमिका रही है।
अनिरुद्ध जगन्नाथ 1983 में ब्रिटिश महारानी के प्रिवी कौंसिल के सदस्य रहे एवं सन 1988 में ब्रिटिश महारानी के द्वारा ‘सर’ की उपाधि से भी नवाजा गया था। 2009 में आपको मॉरीशस यूनिवर्सिटी (सिवल लॉ) सहित दुनिया के तीन प्रमुख विश्व विध्यालयों द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि के साथ ही कई अन्य सम्मानजनक उपाधियों/ पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति रहे ‘सर’ अनिरुद्ध जगन्नाथ का निधन पड़ोसी देश के एक राजनेता भर का इस दुनिया से चले जाना नहीं है। भारत और मॉरीशस के मध्य द्विपक्षीय सम्बंधों को प्रगाढ़ बनाने में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2020 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। जगन्नाथ 2003 से 2012 तक मॉरीशस के राष्ट्रपति पद पर भी रहे। उन्हें ‘1980 के दशक के मॉरीशस के आर्थिक चमत्कार का जनक’ माना जाता था। भारत के लोग उनके निधन से दुखी हैं। खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के वे परिवार जगन्नाथ से अपना नाता जोड़कर गर्वपूर्ण दुख में डूबे होंगे। आखिर उनके पूर्वज कभी गिरमिटिया मजदूर बनकर मॉरीशस जैसे देश में गए और धीरे-धीरे अपनी लगन और सेवा के बूते वहां के नियामक बन गये।
अनिरुद्ध जगन्नाथ का निधन हिन्दी के साथ-साथ भोजपुरी भाषा के लिए भी बड़ी क्षति है। अनिरुद्ध जगन्नाथ के निधन से भारत का मित्र और भारत से बाहर सबसे बड़ा भारतीय का अवसान हो गया है।