वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान देश में लोगों के स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ा ही है लेकिन इसके साथ साथ रोजगार व शिक्षा भी इस दौर में चौपट हुए हैं। हालांकि इस दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान को तेज करते हुए आपदा को अवसर में बदलने का भी आह्वान किया,लेकिन उनके इस आह्वान का कितना असर हुआ वह सबके सामने है। इसी बीच डिजिटल इंडिया को भी बढ़ावा देने की बात कही गई। इसी डिजिटल इंडिया के मिशन को कामयाब करने वह कोविड-19 के दौर में बंद चल रही शिक्षण संस्थाओं की वजह से विद्यार्थियों के लिए डिजिटल एजुकेशन की भी शुरूआत की गई। देशभर में नर्सरी क्लास के बच्चों से लेकर कॉलेज में यूनिवर्सिटी तक डिजिटल तरीके से पढ़ाई करवाने के अवसर तलाशने गए। शिक्षा के मंदिर बंद होने के दौरान घर बैठे बच्चों को शिक्षा देने के लिए इससे अच्छा विकल्प सरकार व देशभर के शिक्षा विभाग प्रदेश के शिक्षा विभागों के पास उपलब्ध नहीं था। शुरूआत में सरकार के इस प्रयास को सराहना भी मिली। जिस डिजिटल एजुकेशन को हमारे देश में अब लागू किया जा रहा है, यह विकसित देशों इटली,ब्रिटेन, जापान व अमेरिका सहित विभिन्न देशों में पहले से लागू है।
डिजिटल एजुकेशन को लागू करते हुए शुरूआत से ही हुई एक छोटी सी चूक वर्तमान तक खुद शिक्षकों से लेकर बच्चों को भी परेशान कर रही है। यह चूक है एजुकेशन टेक्नोलॉजी की कमी। इतना सभी जानते हैं कि देश भर के स्कूल कॉलेज में यूनिवर्सिटीज में शिक्षक बनने के लिए ट्रेनिंग जरूरी है। प्राथमिक स्तर के स्कूलों में पढ़ाने के लिए 2 वर्षीय डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन, माध्यमिक स्तरीय विद्यालय में अध्यापक बनने के लिए ग्रेजुएशन के साथ 2 वर्षीय डिप्लोमा इन एजुकेशन/बैचलर इन एजुकेशन, इसी प्रकार कक्षा 9 से 12वीं तक के विद्यालयों में पढ़ाने के लिए संबंधित विषय में स्नातकोत्तर के साथ बैचलर इन एजुकेशन की डिग्री जरूरी है। यहां यह भी बताना उचित होगा कि प्राथमिक,माध्यमिक,उच्च व वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक बनने के लिए डिप्लोमा इन एजुकेशन या बैचलर इन एजुकेशन (बीएड) जरूरी है। लेकिन देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में जिनमें ग्रेजुएशन से लेकर पीएचडी व डी लिट तक की पढ़ाई करवाई जा रही है, में असिस्टेंट प्रोफसर,एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर बनने के लिए किसी भी प्रकार को प्रोफेशनल डिग्री की कोई आवश्यकता नहीं है। महज संबंधित विषय में मास्टर डिग्री करने के बाद राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) उत्तीर्ण कर लिया जाए तो उसे योग्य माना जाता है। नई शिक्षा नीति 2020 में भी असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए पीएचडी को ही अनिवार्य किया गया है लेकिन पढ़ाने की तकनीक अब भी शामिल नहीं की गई है। सिर्फ रेफ्रेशर कोर्स या फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम से ट्रेनिंग नहीं मिल पाती। दूसरी तरफ भारतीय स्कूल शिक्षकों के पास भी कागजी ट्रेनिंग तो है लेकिन वास्तविक ट्रेनिंग से देशभर के 60 फीसदी से अधिक शिक्षकों के पास ट्रेनिंग नहीं है। बात कड़वी है,लेकिन सच्चाई यही है, क्योंकि हमारे देश में नॉन अटेंडिंग डिप्लोमा इन एजुकेशन, बैचलर इन एजुकेशन व मास्टर इन एजुकेशन का प्रचलन जोरों पर है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब अध्यापकों के पास एजुकेशन टेक्नोलॉजी ही नहीं है तो ऐसी सूरत में ऑनलाइन एजुकेशन बेहतर तरीके से कैसे करवाई जा सकती है? व्हाट्सएप या टेलीग्राम ग्रुप बनाकर उसमें पीडीएफ फाइल भेजने मात्र से बच्चों की शिक्षा पूरी नहीं हो सकती। दूसरी तरफ जूम, वेबेक्स या गूगल मीट सहित विभिन्न प्लेटफार्म भी उपलब्ध है, लेकिन फिर भी ट्रेनिंग न होना सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
खास बात यह है कि इस दौरान किसी प्रदेश के शिक्षा विभाग ने अपने शिक्षकों को किसी प्रकार की ट्रेनिंग देने के प्रयास भी नहीं किए। ऐसी सूरत में डिजिटल एजुकेशन का सपना कैसे पूरा हो सकता है ? यह सबसे बड़ा सवाल मन को कचोट रहा है। अब यह भी नहीं है ऑनलाइन एजुकेशन के दौरान बच्चों को बिल्कुल ही शिक्षा नहीं मिली। शिक्षा तो मिली है। देशभर के बच्चों को प्रदेश व देश से बाहर निकल कर विश्व स्तरीय शिक्षा प्रणाली में गोते लगाने का भी मौका मिला है। लेकिन ऐसे डिजिटल एजुकेशन प्रणाली को जानने वाले बच्चों की संख्या 5 फीसदी भी नहीं है। जो बच्चे अपने शिक्षकों व अभिभावकों के मार्गदर्शन में सही तरीके से ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़े रहे, उनको फायदा मिला है,पर अधिकतर बच्चे ऐसे हैं। जो सही जानकारी के अभाव में अपने घरों में एंड्रॉयड फोन हाथों में लेकर बैठे तो रहे लेकिन इस दौरान वे एजुकेशन से दूर ही रहे। यह भी एजुकेशन टेक्नोलॉजी की ही कमी रही, क्योंकि एजुकेशन टेक्नोलॉजी ने लैपटॉप, कंप्यूटर, एजुसेट व टेलीविजन इनका तो जिक्र है लेकिन कहीं भी मोबाइल एजुकेशन का जिक्र नहीं है। अभी भी समय है यदि देशभर में डिजिटल एजुकेशन का सपना साकार करना है तो एक शिक्षक की ट्रेनिंग में मुख्य तौर पर एजुकेशन टेक्नोलॉजी को ईमानदारी से शामिल करना होगा। जब पूरी तरह से ट्रेनिंग या टेक्नोलॉजी के बिना एक चिकित्सक बीमार व्यक्ति का इलाज सही तरीके से नहीं कर सकता तो बिना एजुकेशन टेक्नोलॉजी के बच्चों की पढ़ाई कैसे पूरी हो सकती है? इस दिशा में गहनता से सोचने की जरूरत है।