डेल्टा के बाद अब नए कोविड वेरिएंट ओमिक्रोन के आसन्न संकट को लेकर दुनिया भर में फिर से चिंता की लकीरें उभर आई हैं। भारत में भी अब जब ओमिक्रोन के मामले बढ़ने लगे है, तो इसके कारण सबसे पहले बच्चों के प्रभावित होने की आशंका को देखते हुए ऑफलाइन स्कूली शिक्षा को एक बार फिर ब्रेक करने का खतरा मंडराने लगा है। गौरतलब है कि देश में करीबन तीन साल में मुश्किल से छह-सात महीने ही ऑफलाइन क्लासेस शुरू हुए थे कि अब फिर से स्कूलों के बंद होने की खबरें सामने आ रही है। महाराष्ट्र की राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने दिसंबर से सभी सार्वजनिक और प्राइवेट स्कूलों को फौरन बंद करने की घोषणा की है। प्रशासन ने बढ़ते कोरोना केसेज और बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए यह निर्णय लिया है। वहीं दिल्ली समेत देश के कई राज्य सरकारों ने भी कोविड के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के कारण स्कूलों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया हैं और बच्चों को फिर से ऑनलाइन शिक्षण की ओर धकेल दिया है।
पूर्व में ना केवल हमारे देश में बल्कि पूरी दुनिया में कभी भी ऑनलाइन शिक्षण के दूरगामी प्रभावों को लेकर विचार-विमर्श नहीं किया गया। बहरहाल, दिल्ली में स्कूलों के बंद होने के बाद दूसरे राज्यों के अभिभावकों की चिंता बढ़ने लगी है। अधिकतर अभिभावक यह सोचकर चिंतित हैं कि क्या फिर से लॉकडाउन लगेगा? और क्या स्कूल फिर से बंद हो जाएंगे? दरअसल, कोविड-19 के कारण जब ऑनलाइन शिक्षण शुरू हुआ, तो एक समय बाद इसके कई नकारात्मक प्रभाव देखने में आ रहे हैं। हालांकि कम समय के लिए ऑनलाइन शिक्षण का उपयोग इतना खतरनाक नहीं रहा, जितना की इसके लंबे समय तक उपयोग के कारण खतरे सामने आ रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दिखाई देने लगा हैं। मोबाइल, टेबलेट, पीसी आदि के स्क्रीन पर लम्बी अवधि तक समय बिताने से बच्चों में मानसिक तनाव, हताशा, व्यग्रता आदि नकारात्मक प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं।
इस संबंध में हाल ही में कनाडा में हुआ शोध देखा जाना चाहिए जिसका निष्कर्ष बेहद डराने वाला है। टोरंटों स्थित हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रेन के विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में विभिन्न प्रकार के स्क्रीन टाइम उपयोग और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध होने का खुलासा किया है। जिसमें बताया गया है कि ऑनलाइन स्टडी के कारण बड़े बच्चों में अवसाद और अति व्यग्रता बढ़ने का खतरा बहुत बढ़ गया है। कनाडा में महामारी के दौरान 2026 स्कूली छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य रिपोर्ट के विश्लेषण से यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट की खास बात यह है कि यह रिपोर्ट इन छात्रों के अभिभावकों ने ही उपलब्ध कराई थी। रिपोर्ट के डेटा विश्लेषण में उन्होंने पाया कि बड़ी उम्र के छात्रों में अभिभावकों द्वारा दी गई रिपोर्ट और अवसाद एवं व्यग्रता बढ़ने के बीच स्पष्ट संबंध है। अध्ययन में शामिल मनो-वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि महामारी के दौरान छोटे बच्चों में अधिक देर तक स्क्रीन पर टाइम व्यतीत करने से, जिसमें पढ़ाई के साथ ही अन्य गैर शैक्षणिक गतिविधियों जैसे, गेम खेलने से भी भारी मात्रा में अवसाद, व्यग्रता, व्यवहार संबंधी समस्याएं और अति सक्रियता की समस्या देखी गई।
हमारे देश में भी ऑनलाइन शिक्षा के बच्चों पर प्रभाव को लेकर एक व्यापक शोध कार्य किया जाना चाहिए, जिससे कि हम वस्तु स्थिति से समय रहते अवगत हो सकें। अभिभावकों की राय ली जानी चाहिए। सरकार को स्कूलों को बंद करने से पहले अभिभावकों की राय जाननी चाहिए। अभिभावकों के निर्णय को जानने के लिए एक लिखित में फॉर्म भरवा कर सर्वे किया जाना चाहिए। उसके बाद ही स्कूलों को बंद करने या नहीं करने जैसा कोई बड़ा निर्णय लिया जाना चाहिए। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि सावधानी के साथ शारीरिक तौर पर कक्षाएं चालू रखनी चाहिए। ध्यान यह रखना है कि स्कूल संचालकों को कोविड-उपयुक्त व्यवहार का सख्ती से पालन करना चाहिए। साथ ही शासन प्रशासन द्वारा बराबर निगरानी की जाए तो संभावित किसी बड़े खतरे से बचा जा सकता है। शासन-प्रशासन को केवल अपने स्तर पर ही इस निर्णय को तुरंत ही नहीं लेना चाहिए इसमें भी अगर अभिभावकों की राय के अनुसार जो अभिभावक नियमित कक्षाओं में अपने बच्चों को भेजना चाहते हैं उन बच्चों की पढ़ाई नियमित रूप से चालू कर देनी चाहिए। और उसमें भी बच्चों की ओड-ईवेन इबन उपस्थिति के आधार पर एक दिन छेड़कर के स्कूल आने का विकल्प दिया जाना चाहिए, जिससे वह नियमित कक्षा कक्ष से जुड़े रह सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक और बहुत ही महत्वपूर्ण बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें उन्होंने यह आशंका व्यक्त की है कि बच्चों को घर पर ही रखना भी इस बात की गारंटी नहीं है कि वे कोविड संक्रमित नहीं होंगे। घर की बजाय स्कूलों में कोविड सुरक्षा नियमों का पालन ज्यादा सही तरीके से किया जा सकता है। घर में अक्सर परिजन और दूसरे पारिवारिक सदस्य भीड़भाड़ वाली जगहों जैसे बाजार, शादी समारोह या दूसरे रिश्तेदारों और मित्रों से लगातार मिलते रहते हैं। फिर वह जब घर पर आते हैं तो तब बच्चों से उनकी मुलाकात संक्रमण की आशंका को और ज्यादा बढ़ा देती है। जैसे भी घरों में कोविड-19 नियमों की सख्ती से पालन नहीं करवाई जा सकती क्योंकि यह उनका यहां निजी मामला रह जाता है। इसलिए सर्वोत्तम उपाय यही है कि बच्चों का टीकाकरण जल्द से जल्द शुरू करके शिक्षण संस्थानों को ऑफलाइन पढ़ाई के लिए चालू रखा जाना चाहिए। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा को लेकर निर्णय किया जाना चाहिए।
जो अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा घर पर ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से पढ़ें तो उसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था को ही रखा जाना चाहिए, और स्क्रीन पर टाइम बिताने के लिए कोई सख्ती नहीं की जानी चाहिए। बच्चा अपनी सुविधा अनुसार ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करें इसका पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए, ताकि बच्चों की बड़ी संख्या को ऑनलाइन स्टडी के मानसिक प्रभाव से बचाया जा सके। अगर हम बच्चों की मानसिक सुरक्षा में भी विफल रहते हैं तो यह एक तिहाई आबादी के मनोरोग में तब्दील होने की ओर खतरनाक कदम होगा।