“शक्तिदायिनी, शक्ति दो माँ l
भक्तिदायिनी, भक्ति दो माँ l
दुखियों के दुःख, हर लो माँ l
सुःख से झोली भर दो माँ l”
आज की गोष्ठी में, माँ वीणापाणि को चेतना जी द्वारा समर्पित पंक्तियाँ!
परम् आदरणीय श्री नरेश नाज़ जी द्वारा स्थापित “अंतर्राष्ट्रीय महिला काव्य मंच” की अहमदाबाद (पश्चिम) इकाई की मासिक गोष्ठी का आयोजन 29 सितम्बर को पश्चिम इकाई सचिव सुश्री विनीता ए.कुमार के निवास स्थान पर धूमधाम से किया गया l
सुश्री विनीता जी ने लाज़वाब मेज़बानी और संचालन करते हुए आज की गोष्ठी का ख़ूबसूरत आगाज़ किया और सभी कवयित्रियों को बधाई देते हुए, सदा ही सकारात्मक बने रहने की अपील की l सुश्री विनीता जी और सुश्री ममता जी द्वारा निराला जी की सुन्दर सरस्वती वंदना से चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो गयाl
कार्यक्रम का श्रीगणेश पश्चिम इकाई अध्यक्ष सुश्री प्रीति अज्ञात जी के अध्यक्षीय उद्बोधन द्वारा किया गयाl हमारी मुख्य अतिथि कर्मभूमि की सह-संस्थापक सुश्री नीरजा भटनागर जी का सुखद साथ अंत तक बना रहा। आज की विशिष्ट अतिथि के रूप में सुश्री महाश्वेता जी उपस्थित थींl उन्होंने प्रसिद्ध रवींद्र संगीत के मधुर तार कुछ ऐसे छेड़े कि सब साथी अपनी सुधबुध खो, मंत्रमुग्ध हो देखते ही रह गए l नवरात्रि के अवसर पर,सुश्री मीरा जी ने माँ दुर्गा के अद्भुत अष्टरूप को विस्तार में बताया l
सुश्री प्रीति ने प्रकृति के दर्द का मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया और सबसे प्रकृति को बचाने की गुहार लगायी l सुश्री ममता जी ने ग़ज़ब की ग़ज़लनुमा प्रस्तुति दी –
“तुम बदलते रहे हो बरस दर बरस
सदियों से हम क्योँ वही रह गए”
सुश्री सीमा जी ने “उन दिनों की बात है” की मीठी यादें ताज़ा करायीं, जब हम मम्मी के हाथ का अचार,पापड़ खाकर भी खुश रहा करते थे। हमारी युवा कवयित्री दीपा जी का क्या कहना- “जूही की खुशबू तुम्हें महका जाएगी, चाय के कप से मिट्टी की सौंधी खुशबू आएगी, जब तुम आओगेl”
रूबी जी के भोजपुरी भाषा के माधुर्य की जितनी तारीफ़ हो, कम ही होगी। कैसे आधुनिकता की आड़ में पिज़्ज़ा, बर्गर खाकर हमारी नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है, उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से इस सच को सामने रखा। लीना जी ने एक से बढ़कर एक शेर पेश किये, तो उनकी ग़ज़ल में डूब जाना लाज़मी था। उनके अल्फ़ाज़ का तानाबाना अद्भुत था।
“उन्होंने मुझे उस नदी में डुबकी लगाने को कहा
मैंने देखा नदी में हर तरफ नफ़रत की छाया है
….और मैंने ना कह दिया!”
ये पंक्तियां थीं विनीता कुमार जी की, जिन्होंने सशक्त संदेश देते हुए, गलत को गलत कहने का साहस दिखाने की पैरवी की।
चेतना जी ने अपनी कविता “शक्तिरूपा” से नारी शक्ति को जागृत किया l मानो समस्त नारियों को एक सुन्दर सन्देश दे रहीं हों, “ले चलो समाज को सतयुग की ओर।”
एकता जी ने अपनी माँ के साथ कितनी ही पुरानी यादों को फिर से जीने की तमन्ना जाहिर की। उनकी सशक्त प्रस्तुति दिल को छू लेने वाली थीlमैं पूरा एक साल माँ के साथ
गुज़ारना चाहती हूँ l
सारे त्योहार फिर से मनाना चाहती हूँ l
सुश्री नीरजा जी,और सुश्री महाश्वेता जी शुरू से अंत तक सभी कवयित्रियों की हौसला अफ़ज़ाई करती रहीं। कार्यक्रम के अंत में, सुश्री सीमा शर्मा जी ने उपस्थित कवयित्रियों को धन्यवाद ज्ञापित किया l चेतना जी और एकता जी ने कैमरे में सबकी तस्वीरों और वीडियो को सदा के लिए कैद कर लिया l
विनीता जी के आतिथ्य और सत्कार के साथ,आज की सुरीली और सजीली शाम,एक ख़ूबसूरत समाँ बांधती, नवरात्रि की धूम मचाते, माँ जगदम्बे के प्रसिद्ध भजन के साथ सम्पन्न हुईl
महफ़िलें सजती रहें
कविताएं लिखती रहें
तस्वीरें समाज की,
लेखनी बदलती रहे