1.
बस तू है तेरी आस है, हद्दे निगाह तक
छाया हुआ उजास है, हद्दे निगाह तक
मंज़र है गुलबदन-सा, तबस्सुम है जा-ब-जा
ख़ुशबू-सा इक लिबास है, हद्दे निगाह तक
उम्मीद-ए-वस्ल में हैं निगाहें ये मुन्तज़िर
इक अनबुझी सी प्यास है, हद्दे निगाह तक
यादें थिरक रहीं हैं तेरी, बन के चाँदनी
मन जैसे बिछली घास है, हद्दे निगाह तक
मुद्दत के बाद साज़ ये दिल का बजा है आज
हर गूँज में मिठास है, हद्दे निगाह तक
तेरा ही ज़िक्र आठों पहर, बात-बात पर
क़िस्सा तेरा ही ख़ास है, हद्दे निगाह तक
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2.
तुम्हारे बाद किसी की नहीं है चाह हमें
तमाम उम्र को काफ़ी है अब ये दाह हमें
तुम्हीं पे छोड़ दिया है सफ़र अब आगे का
तुम्हीं दिखाओ तो कोई दिखाओ राह हमें
तुम्हारे साथ का ऑरा हमारे हर – सू है
लगेगी कैसे कहो अब कोई भी आह हमें
हम आँख मूँद के सोचें तुम्हें तो लगता है
ख़ुशी से चूम रही है कोई निगाह हमें
ख़ुदा ने ख़्वाब में आकर हमें ये बोल दिया
कि हैं मुआफ़ मुहब्बत में सौ गुनाह हमें
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3.
मुहब्बत भीड़ में तन्हाई के एहसास जैसी है
नज़र से दूर रह कर भी जिगर के पास जैसी है
कभी तो ये मिलन की चाह में पगलाई सी ज़िद है
कभी विरहा को रह-रह झेलते वनवास जैसी है
यही है छाछ छछिया भर, नचाया जिसने मोहन को
यही सखियों की अँखियों में दरस की प्यास जैसी है
ये ऐसी बाँसुरी है जो सभी को मोह लेती है
ये मधुबन में कन्हैया के रचाए रास जैसी है
पियाला ज़ह्र का जिसने पिया हँसकर मुहब्बत में
जो नाची तोड़ कर घुँघरू , ये उस बिंदास जैसी है