1)
टूटे ख़्वाबों को यूँ तामीर किया है उसने
चूम कर दर्द, मुझे मीर किया है उसने
तोड़ कर आज ज़माने की सभी दीवारें
ख़ुद को राँझे के लिए हीर किया है उसने
मैं भी इतराता हुआ घूमूँ , इसी चाहत में
अपने दिल को मेरी जागीर किया है उसने
अब्र-सी अपनी दुआओं की नज़र बरसा कर
मेरा मरुथल-सा जिगर नीर किया है उसने
मेरे गर्दिश में सितारे हैं, पता चलते ही
मुझ-से दर-दर को बग़लगीर किया है उसने
2)
वाइज़ तेरे बिहिश्त की चाहत नहीं हमें
मौला तेरी तलाश की आफ़त नहीं हमें
पत्तों के टूटने की सदा सुन रहे हैं हम
जाओ किसी के वास्ते फ़ुर्सत नहीं हमें
हैं जो भी हम,हैं जैसे भी,अच्छे हैं या बुरे
अपनी किसी लकीर से नफ़रत नहीं हमें
हम पर हैं जो भी दाग़ इन्हें यूँ ही रहने दो
इन तमग़ों के बग़ैर भी राहत नहीं हमें
कहलाए बेवफ़ा भी, सौ बदनामियाँ हुईं
सच तो है ये कि प्यार में बरकत नहीं हमें