प्रकृति की सुकुमार गोद में बसा मेघालय पूर्वोत्तर भारत का एक लघु पर्वतीय प्रदेश है। मेघालय का अर्थ मेघों का आलय अर्थात मेघों का आवास है। सचमुच यहाँ बादल अठखेलियाँ करते हैं। 21 जनवरी 1972 को मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। इसके उत्तर और पूर्व में असम तथा दक्षिण व पश्चिम में बंगलादेश स्थित है। यहां की अधिकांश भूमि पहाड़ों और वनों से आच्छादित है। यहां खासी,जयंतिया और गारो तीन प्रमुख आदिवासी समुदाय के अतिरिक्त तिवा, राभा, हाजोंग, लाखेर,कार्बी, बाइते, कुकी आदि जनजातियों के लोग निवास करते हैं।
मेघालय राज्य भाषा अधिनियम 2004 के अनुसार अंग्रेजी यहाँ की राजभाषा है। इसके अतिरिक्त ईस्ट खासी हिल्स, वेस्ट खासी हिल्स, जयंतिया हिल्स और रि-भोई जिलों में खासी भाषा सहायक राजभाषा है। ईस्ट गारो हिल्स, वेस्ट गारो हिल्स और साऊथ गारो हिल्स जिले में गारो भाषा सहायक राजभाषा है। यहाँ खासी भाषा बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक है। यहाँ लगभग 48 प्रतिशत लोग खासी और 32 प्रतिशत लोग गारो भाषा बोलते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ बंगला, नेपाली, हिंदी, मराठी और असमिया भाषा भी बोली जाती है।
मेघालय के आदिवासीमूल रूप से जड़ात्मवादी (Animistic)अथवा प्रकृतिपूजक थे, लेकिन ईसाईकरण के बाद धर्म संबंधी अनेक धारणाएं परिवर्तित हो गई हैं। यहाँ के आदिवासी समुदाय पहले सूर्य, चन्द्रमा, नदी, पर्वत, पृथ्वी, झील, जलप्रपात, तारे, वन इत्यादि प्राकृतिक शक्तियों की पारंपरिक विधि से पूजा करते थे। 18वीं सदी में मेघालय में ईसाई धर्म का प्रसार आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम अंग्रेजों ने खासी जनजाति के लोगों में ईसाई धर्म का प्रसार किया। 1830 के दशक में मेघालय में अनेक ईसाई मिशनरियों का आगमन हुआ। अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान मेघालय की जनजातियों का बड़े पैमाने पर ईसाईकरण हुआ। वर्तमान में मेघालय के लगभग 83.3% लोग ईसाई धर्म में आस्था रखते हैं। यहाँ प्रेस्बिटेरियन और रोमन कैथोलिक दो सबसे प्रभावशाली ईसाई पंथ हैं।
मेघालय का समाज मातृवंशीय या मातृसत्तात्मक है। सबसे छोटी पुत्री समस्त संपत्ति की मालकिन होती है। छोटी पुत्री ही वृद्ध माता-पिता एवं अविवाहित भाई-बहनों की देखभाल करती है। परिवार में कोई पुत्री नहीं होने की स्थिति में माता-पिता किसी निकटतम महिला संबंधी को अपनी संपत्ति की उत्तराधिकारी बना देते हैं। खासी और जयंतिया समुदाय के लोग अपने पारंपरिक मातृवंशीय नियमों का पालन करते हैं जहां सबसे छोटी पुत्री परिवार की सभी जिम्मेदारियां निभाती है। गारो जनजाति में भी सबसे छोटी बेटी मूल रूप से पारिवारिक संपत्ति की वारिस होती है। जब माता-पिता किसी अन्य लड़की को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हैं तो उसका दावा स्वतः समाप्त हो जाता है। खासी और गारो दोनों जनजातियों में पिता को बाहरी व्यक्ति माना जाता है। बच्चे अपनी माता के नाम से जाने जाते हैं। परिवार की सम्पूर्ण सत्ता माँ के हाथों में होती है। बच्चे अपनी माँ का उपनाम धारण करते हैं। इस समाज में पिता की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है। सभी संपत्ति पर माँ का अधिकार होता है। माँ की मृत्यु के बाद माता की संपत्ति पर उसकी सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है। बच्चों का गोत्र वही होता है जो माँ का गोत्र होता है।
गारो जनजाति मेघालय की प्रमुख जनजाति है। उत्पत्ति, परंपरा, संस्कृति और भाषा की दृष्टि से गारो जनजाति का असम की बोडो कछारीजनजाति से निकटता है। मेघालय का गारो हिल्स जिला गारो समुदाय का प्रमुख निवास क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त असम के कार्बीओंगलोंग, नार्थ कछार हिल्स, कामरूप एवं ग्वालपारा जिलों में भी गारो लोग रहते हैं। भाषिक दृष्टि से गारो भाषा तिब्बती–बर्मी परिवार की भाषा है। ग्रियर्सन ने इसे बोडो वर्ग की भाषा बताया है। गारो समुदाय अनेक गोत्रों में विभक्त है। मुख्य रूप से इसके तीन गोत्र हैं–मराक, मोमीन और संगमा। बाद में तीन गोत्र और बनाए गए–अबेंग, अरेंग और सीरा। श्री मिल्टनसंगमा ने लिखा है कि गारो समाज में मूल रूप से दो ही गोत्र थे–संगमा और मराक। बाद में तीन गोत्र सृजित किए गए–मोमीन, अरेंग और सीरा। ऐसा विश्वास है कि मोमीन गोत्र एक गारो लड़की एवं बिहार के एक मुस्लिम लडके के विवाह के परिणामस्वरुप उत्पन्न हुआ जबकि अरेंग की उत्पत्ति मराक से तथा सीराकी उत्पत्ति संगमा से हुई।
सभी गोत्र अनेक उपगोत्रों में विभक्त है जिसे मचोंग कहते हैं। मचोंगका शाब्दिक अर्थ मातृत्व (मदरहुड) है। मचोंगइस समुदाय की सबसे छोटी इकाई है। यह परिवार से भिन्न संस्था है। मचोंग के सभी सदस्य एक ही माँ की संतान माने जाते हैं। मचोंग का नामकरण प्रायः पशुओं, पक्षियों, वृक्षों, नदियों आदि के नाम पर किया गया है। यह एक मातृसत्तात्मक समाज है। बच्चे अपनी माता के नाम से जाने जाते हैं। परिवार की सम्पूर्ण सत्ता माँ के हाथों में होती है। बच्चे अपनी माँ का उपनाम धारण करते हैं। इस समाज में पिता की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती है। सभी संपत्ति पर माँ का अधिकार होता है। माँ की मृत्यु के बाद माता की संपत्ति पर उसकी सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है। यदि किसी महिला को कोई संतान नहीं हो तो उस मचोंग की किसी अन्य महिला को वह संपत्ति मिल जाती है। सबसे छोटी पुत्री को नोकना कहते हैं जिसका अर्थ है उत्तराधिकारिणी। नोकना की अनुमति के बिना उसकी बड़ी बहनें भी मकान में नहीं रह सकती हैं। पुत्री नहीं होने पर कोई महिला अपनी बहन की बेटी को नोकना के रूप में गोद ले सकती है। पुत्री नहीं होने के बावजूद माता के निधन के बाद उसकी संपत्ति पर उसके पुत्रों का कोई अधिकार नहीं होता है। विवाह गोत्र के बाहर होते हैं, समगोत्रीय विवाह वर्जित है। बच्चों का गोत्र वही होता है जो माँ का होता है। यदि माँ संगमा हो और पिता मोमीन हो तो बच्चों का गोत्र संगमा माना जाता है।
लड़कियों को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी स्वतंत्रता है। विवाह के प्रस्ताव कन्या पक्ष की ओर से आते हैं। विवाह के उपरांत लडके अपनी पत्नी के माता–पिता के घर चले जाते हैं। गारो समुदाय में एक अनोखी परंपरा है। यदि श्वसुर की मृत्यु हो जाती है तो उसके सबसे छोटे दामाद को अपनी विधवा सास से विवाह करना पड़ता है। इस प्रकार वह एक ही साथ माँ और पुत्री दोनों का पति हो जाता है। इस समुदाय में मामा की पुत्री से शादी करना पहली प्राथमिकता है, परन्तु बुआ की पुत्री से शादी प्रतिबंधित है। मामा के पास विवाह योग्य पुत्री नहीं होने पर उसका दायित्व होता है कि वह अपने गोत्र की किसी लड़की का चयन कर अपने भांजे का विवाह कराए। पुरुष अपनी इच्छा के अनुसार कितनी भी शादियाँ कर सकता है। दूसरी शादी करने से पुरुष को अपनी प्रथम पत्नी से अनुमति लेनी पड़ती है अन्यथा उसे अपनी पहली पत्नी को हर्जाना देना पड़ता है। प्रथम पत्नी को जिक-मामुंग तथा अन्य पत्नियों को जिक–गितेस कहा जाता है। इस समाज में वधू मूल्य की परंपरा नहीं है। तलाक लेना अत्यंत सरल है। किसी कारण का उल्लेख किये बिना भी तलाक लिया जा सकता है, लेकिन तलाक के इच्छुक व्यक्ति को दाई के रूप में साठ रुपए की राशि दूसरे पक्ष को भुगतान करनी पड़ती है।
मेघालय का जयंतिया हिल्स जिला जयंतिया समुदाय का प्रमुख निवास क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त असम के कार्बीओंगलोंग तथा नार्थ कछार हिल्स जिलों में भी जयंतिया जनजाति के लोग रहते हैं। मेघालय की सीमा पर अवस्थित असम के कुछ गाँवों में भी इनका निवास है। जयंतिया समुदाय का कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। अतः इनके देशांतरमन और उत्पत्ति के संबंध में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है। ऐसा माना जाता है कि ये लोग सुदूर पूर्व अथवा चीन से बर्मा होते हुए आए एवं जयंतिया पहाड़ी पर अपना राज्य स्थापित किया। कहा जाता है कि जयंतिया राजा बहुत पराक्रमी व दूरदर्शी थे। उन्होंने अहोम और कछारी राजाओं से राजनयिक संबंध स्थापित किए। जयंतिया के अंतिम राजा राजेंद्र सिंह ने 15 मार्च 1835 तक जयंतीपुरराज्य पर शासन किया। जयंतिया को पनारभी कहते हैं। इस समाज में गोत्र को कुर कहा जाता है।
कुर समाज की लघुतम इकाई है। गोत्र कई उपगोत्रों में विभक्त है जिसे कपोहकहा जाता है। एक गोत्र के सभी सदस्यों को एक ही माता (पूर्वज) की संतान माना जाता है। खासी समुदाय की तरह जयंतिया समाज भी मातृसत्तात्मक है। माता के गोत्र ही बच्चों के गोत्र कहलाते हैं। इस समुदाय में लगभग 38 गोत्र हैं। परिवार में पिता का कोई महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। बच्चों का परिचय माता के नाम से दिया जाता है। विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के साथ उसके घर में रहता है, फिर भी पति को आजीवन बाहरी व्यक्ति ही माना जाता है। पत्नी की संपत्ति में पति का कोई अधिकार नहीं होता है। विवाहित पुत्र द्वारा अर्जित संपत्ति पर उसकी माता का अधिकार होता है, पत्नी का नहीं। इस समाज में माँ ही परिवार की मुखिया होती है, परिवार पर माँ का ही पूर्ण नियंत्रण होता है। वह परिवार की एकमात्र रक्षिका होती है। विवाह के बाद दामाद सम्पूर्ण रूप से अपनी पत्नी के माता–पिता के घर रहने के लिए नहीं आता है, बल्कि सूर्यास्त के उपरांत वह अपनी पत्नी के साथ रात व्यतीत करने के लिए आता है और प्रातःकाल में काम करने एवं खाने–पीने के लिए अपनी माँ के घर चला जाता है। मृत्यु के बाद भी उसकी अंत्येष्टि पत्नी के सगे–संबंधियों द्वारा नहीं की जाती है, बल्कि उसके कुर (गोत्र) के सदस्यों द्वारा की जाती है। शिक्षा के प्रसार और मानसिकता में परिवर्तन के फलस्वरूप अब अनेक पति–पत्नी और बच्चे साथ–साथ रहने व कामकाज करने लगे हैं।
मेघालय के पूर्वी और पश्चिमी खासी हिल्स जिले खासी समुदाय के प्रमुख निवास क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त असम के कार्बीओंगलोंग तथा नार्थ कछार हिल्स जिलों में भी खासी जनजाति के लोग रहते हैं। खासी जनजाति के कुछ गाँव त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों में भी मौजूद हैं। खासी समुदाय के उद्भव और मूल निवास के संबंध में अनेक आख्यान तथा मिथक प्रचलित हैं। एक आख्यान के अनुसार सर्वप्रथम ईश्वर ने स्वर्ग में 16 परिवारों की सृष्टि की। ये परिवार सोने की सीढ़ी के द्वारा स्वर्ग से पृथ्वी की दूरी तय कर सकते थे। इन 16 परिवारों में से नौ परिवारों ने ईश्वर के साथ स्वर्ग में ही निवास करने का निर्णय लिया जबकि शेष सात परिवार पृथ्वी पर आ गए और खासी व जयंतिया हिल्स में निवास करने लगे। खासी व जयंतिया समुदाय के लोग इन सात परिवारों के वंशज माने जाते हैं।
खासी जनजाति के उद्भव के संबंध में एक दूसरा आख्यान भी प्रचलित है। इस मिथक के अनुसार सर्वप्रथम ईश्वर ने स्वर्ग और माता पृथ्वी का सृजन किया। माता पृथ्वी के पांच बच्चे हुए–चन्द्रमा (पुरुष), सूर्य (स्त्री), जल, वायु और अग्नि। चन्द्रमा और सूर्य से तारामंडल की उत्पत्ति हुई तथा शेष तीनों से धरती पर पाए जानेवाले सभी वस्तुओं की उत्पत्ति हुई। माँ पृथ्वी ने ईश्वर से निवेदन किया कि धरती पर शासन और नियंत्रण करने के लिए एक शासक का सृजन किया जाए। तदोपरांत ईश्वर ने आदिवासियों की सोलह पंचायतों को अपने साथ रहने के लिए आमंत्रित किया। कुछ समय साथ रहने के उपरांत ईश्वर ने गुण–दोषों के आधार पर निर्णय लिया कि सोलह में से सात पंचायत पृथ्वी पर बसने के पात्र हैं। इन सातों पंचायतों को पृथ्वी पर शासन करने के लिए भेजा गया। खासी समुदाय इन सात पंचायतों के वंशज हैं। इसलिए खासी लोग स्वयं को सात झोंपड़ियों एवं सात घोंसलोंवाले मानव कहते हैं।
कुछ विद्वानों ने अंत्येष्टि क्रिया की समानता के आधार पर यह मत व्यक्त किया है कि मेघालय की खासी जनजाति एवं झारखंड की हो तथा मुंडा जनजाति एक ही वृहत प्रजाति परिवार के सदस्य हैं। कालांतर में कुछ कारणवश ये पृथक हो गए। खासी एक मातृसत्तात्मक समाज है। बच्चे अपनी माता के नाम से जाने जाते हैं। परिवार की सम्पूर्ण सत्ता माँ के हाथों में होती है। परिवार की संपत्ति पर माता का पूर्ण अधिकार होता है। पिता के गोत्र (कुर) को गौण माना जाता है। प्रारंभ में खासी जनजाति के सात ही गोत्र थे, बाद में अनेक गोत्रों की उत्पत्ति हुई। इस समुदाय में विषमगोत्रीय विवाह होते हैं। माता के गोत्र ही बच्चों के गोत्र कहलाते हैं। बच्चों का परिचय माता के नाम से दिया जाता है। बच्चे माता का उपनाम धारण करते हैं। विवाह के बाद पति अपनी पत्नी के साथ उसके घर में रहता है। पत्नी की संपत्ति में पति का कोई अधिकार नहीं होता है। खासी लड़का अपनी बुआ की पुत्री से शादी कर सकता है। लड़की को अपना जीवन साथी चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता है। विवाह की विधि अत्यंत सरल है। जयंतिया समुदाय में पिता को बाहरी व्यक्ति समझा जाता है तथा परिवार में उसकी कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती है, परन्तु खासी परिवार में पिता की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। पिता बच्चों की देखभाल करने तथा परिवार को सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी निभाता है। इस समाज में गोत्र को कुर कहा जाता है।
कुर समाज की लघुतम इकाई है। इस समाज में माता का कुर ही प्रमुख माना जाता है। खासी समाज में बच्चों का जन्म उत्सव के समान है। ऐसा विश्वास है कि परिवार के ही किसी मृत व्यक्ति का बच्चे के रूप में पुनर्जन्म हुआ है। इस जनजाति में बच्चों के नामकरण संस्कार की एक अनोखी परंपरा है। नामकरण संस्कार के अवसर पर समुदाय के ही किसी बुजुर्ग व्यक्ति अथवा नवजात बच्चे के मामा को आमंत्रित किया जाता है जो चावल से बनी मदिरा की बूंदे गिराता है। मदिरा गिराने के साथ–साथ मृत सदस्यों के नामों का उच्चारण किया जाता है। मदिरा की आखिरी बूँद गिराने के समय जिस नाम का उच्चारण होता है बच्चे को वही नाम दिया जाता है।
यदि नवजात लड़का हो तो मृत पुरुषों के नामों का उच्चारण किया जाता है और यदि लड़की हो तो मृत महिला सदस्यों के नामों का उच्चारण किया जाता है। इस समाज में सभी संपत्ति पर माँ का अधिकार होता है। संपत्ति का सबसे बड़ा भाग सबसे छोटी पुत्री को मिलता है क्योंकि वही सभी धार्मिक कार्यों का आयोजन करती है, परन्तु अन्य बहनों की अनुमति के बिना वह परिवार की संपत्ति को बेच नहीं सकती है। वह अपने पैतृक घर में रहती है तथा विवाह के बाद उसके सभी भाई–बहन अपने लिए अलग मकान की व्यवस्था करते हैं। माँ की मृत्यु के बाद माता की संपत्ति पर उसकी सबसे छोटी बेटी का अधिकार होता है। पुरुष द्वारा विवाह पूर्व अर्जित संपत्ति उसकी माता को मिल जाती है। यदि किसी परिवार में लड़की नहीं हो तो उत्सव–संस्कार आदि आयोजित करने के लिए दूसरे परिवार से किसी लड़की को आमंत्रित किया जाता है तथा उस परिवार की संपत्ति पर उसी लड़की का अधिकार होता है। प्रकारांतर से यह गोद लेने जैसी व्यवस्था है।