मनोज ‘मुतंशिर’ शायरी-गीत-ग़ज़ल की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है। वे वर्तमान समय के सबसे प्रसिद्ध फिल्म गीतकार और पटकथा लेखक हैं। सन् 2019 ई. में मनोज जी का प्रथम काव्यसंग्रह ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ वाणी प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुआ है।
मनोज जी की रचना में श्रृंगार के दोनों पक्ष मौजूद हैं। कहीं अनुराग है तो कहीं विराग, कहीं आशा है तो कहीं निराशा, कहीं आकर्षण तो कहीं विकर्षण, कहीं गरल है तो कहीं सुधा।
तुम्हारे बाद दिल के साथ क्या-क्या होता रहता है।पृष्ठ 23
xxxxx
प्यार की आख़िरी मंजिल क्या है कोइ न जाना आज तलक।पृष्ठ 45
xxxxx
मैं खँडहर हो गया पर तुम न मेरी याद से निकले
तुम्हारे नाम के पत्थर मेरी बुनियाद से निकले।पृष्ठ 47
xxxxx
दिल में किस्से हैं तेरे, याद भी तेरी ही है
ये रियासत तो तेरे बाद भी तेरी ही है।पृष्ठ 59
xxxxx
रोज लिखते थे चिट्टियाँ उसको
उन दिनों फोन नहीं होते थे।पृष्ठ 60
xxxxx
देखूँ तुम्हें तो पड़ती है दिल को जरा सी ठण्ड
और फिर महीनों तक मेरी आँखे जलती हैं।पृष्ठ 51
यदा-कदा देश प्रेम की कविताएँ और माँ पर कविताएँ भी इस संग्रह में मिलती हैं।यथा –
बावन सेकण्ड खड़े होने में तुमको हैं ऐतराज बड़े
सियाचीन की सरहद पर कोई बर्फ हो गया खड़े-खड़े।पृष्ठ 85
xxxxx
मैंने लहू के क़तरे मिट्टी में बोये हैं
खुशबू जहाँ भी है वो मेरी कर्ज़दार है
ऐ वक्त होगा इक दिन तेरा-मेरा हिसाब
मेरी जीत जाने कब से तुझ पे उधार है। पृष्ठ 205
xxxxx
उतारती है वो सदका मेरा हज़ारों बार,
मैं चिढ़ने लगता हूँ इतना सराहती है मुझे
ख़याल माँ की मेरी आज भी पुराने हैं
बिना गुलाब दिए भी वो चाहती है मुझे।पृष्ठ 146
कुछ नवगीत भी हैं-
आँखो की चमक जीने की लहक,
साँसों की रवानी वापस दे
मैं तेरे ख़त लौटा दूँगा,
तू मेरी जवानी वापस दे।पृष्ठ 88
xxxxx
आसमानों से जो अता है मुझे
वो दुआ तुम हो ये पता है मुझे।पृष्ठ 73
वैसे इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर ग़ज़ल संग्रह लिखा हुआ मिलेगा, परन्तु इसकी सारी रचना ग़ज़ल नहीं हैं। ग़ज़ल के मापदंड पर सारी ग़ज़लें खरी भी नहीं उतरती। सिर्फ पृष्ठ 133 की ग़ज़ल को छोड़कर। इसमें कुछ गज़लें हैं, कुछ मुक्तक हैं, कुछ नज्में हैं तो कुछ स्फुट शेर भी हैं। अधिकतर पृष्ठों पर एक ही शेर है। कुछ पृष्ठों पर केवल एक ही मुक्तक (अथवा शेर) है। यह पाठक को थोड़ा बोरियत महसूस कराती है, 207 पृष्ठों के स्थान पर यह लगभग 150 पृष्ठों में भी अच्छी लगती। संग्रह की कुछ रचनाएँ बहुत ही अच्छी हैं तो कुछ रचनाओं को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि यह मनोज जी की शुरुआती दिनों की रचनाएँ हैं। कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय है और इस प्रथम काव्य संग्रह के लिए मनोज मुंतशिर जी को अनेकश: शुभकामनाएँ।