1.
दिया है दर्द अगर वो दवा भी देता है
कई दफ़ा वो कई ग़म दबा भी देता है
ग़मों की आग न झुलसा दे तेरी मुस्कानें
तपिश के साथ तभी वो सबा भी देता है
नही है जानता कोई भी उसकी मर्ज़ी, पर –
कभी इशारों में वो कुछ बता भी देता है
गुरूर तुझमें अगर आ गया उड़ानों का
कटी पतंगों-सा वो फिर गिरा भी देता है
ख़याल उसको भी रहता है तेरी मंज़िल का
दिखा के राह वो तुझको पता भी देता है
ग़मों की तीरगी जो तुझको घेरने लगती
चराग़ दर पे वो तेरे जला भी देता है
दिया शरीर ये उसने औ’ सांस भी “बादल”
वो आब-दाना भी देता हवा भी देता है
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2.
मैंने पूछे हैं सवालात ख़ुदा ख़ैर करे
दिन में ही मेरी हुई रात ख़ुदा ख़ैर करे
पूछती ख़ाली मेरी ज़ेब हुकुमरानों से
क्या से क्या हो गए हालात ख़ुदा ख़ैर करे
देखता है नहीं कोई कभी इंसाँ मुझमें
पूछता धर्म कोई ज़ात ख़ुदा ख़ैर करे
रात – दिन एक किया चैन – सुकूँ पाने को
खो के सब प्यार के लम्हात ख़ुदा ख़ैर करे
उम्र कहती है मेरी लुत्फ़ लूँ मैं जीवन के
मैं हूँ बैठा लिए सदमात ख़ुदा ख़ैर करे
अब तो करता ही नहीं क़द्र कोई अश्क़ों की
मैं छिपाने लगा जज़्बात ख़ुदा ख़ैर करे
मैंने लड़ने की सभी करके रखी तैयारी
मुश्क़िलें छिप के करें घात ख़ुदा ख़ैर करे
चल दिया सच की कठिन राह पे नादाँ ‘बादल’
हर क़दम मिलती मुझे मात ख़ुदा ख़ैर करे
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3.
सूखते रिश्तों के पौधे खाद पानी मांगते
कुछ तुम्हारी कुछ हमारी, ये कहानी मांगते
टूट कर बिखरे हैं जिनकी चाह में हम, देखिये
वो सबूतों के लिए हमसे निशानी माँगते
उनकी नज़रें देख हमको इक इशारा ग़र करें
हम भी अपने दिल में उनकी मेज़बानी मांगते
हम कहाँ कहते हैं तुमसे नोटरी से लिख के दो
हम तो क़समें प्यार की केवल ज़ुबानी मांगते
काश बच्चे फिर बनें हम चाहते हैं ये जवान
और बच्चे आजकल के हैं जवानी मांगते
हमको कांटे ही मिले इमदाद में “बादल” यहाँ
मांगने की छूट होती रातरानी मांगते
Photo Credit: Syed Akhtar Hussain