प्रत्येक वर्ष भगवान महावीर की जन्म जयंती हम मनाते है। ज्यादातर महावीर जयंती आयोजनात्मक होती है, प्रयोजनात्मक नहीं हो पाती। हम महावीर को केवल पूजते हैं, जीवन में धारण नहीं कर पाते।
सदियों पहले महावीर जन्मे। वे जन्म से महावीर नहीं थे। अनगिनत संघर्षों को झेला, कष्ट सहे, दुख में से सुख खोजा और तब कठिन तप एवं साधना के बल पर सत्य तक पहुंचे। उन्होंने समझ दी कि महानता कभी भौतिक पदार्थों, सुख-सुविधाओं, संकीर्ण सोच और स्वार्थी मनोवृत्ति से नहीं प्राप्त की जा सकती। उसके लिए सच्चाई को बटोरना होता है, नैतिकता के पथ पर चलना होता है और अहिंसा की जीवन शैली अपनानी होती है।
अहिंसा परमों धर्मः अर्थात अहिंसा सब धर्मों में सर्वोपरि है। सत्य और अहिंसा की जब भी बात होती है तो हमारे जहन में सबसे पहले महात्मा गांधी का नाम आता है लेकिन महात्मा गांधी से भी पहले एक ऐसी महान आत्मा ने इस जगत का अपने संदेशों के जरिये मार्गदर्शन किया था। जिन्होंने सबसे पहले अहिंसा का मार्ग अपनाने के लिये लोगों को प्रेरित किया। जिन्होंने लोगों को जियो और जीने दो का मूल मंत्र दिया। ये महान आत्मा कोई और नहीं बल्कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर (जिन्हें जैन धर्मावलंबी भगवान का दर्जा देते हैं) भगवान महावीर थे।
जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि वर्धमान ने कठोर तप कर अपनी इंद्रियों को जीत लिया, जिससे उन्हें जिन (विजेता) कहा गया। उनका यह तप किसी पराक्रम से कम नहीं माना जाता, इसी कारण उन्हें महावीरकहा गया और उनके मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाये। जैन का तात्पय॑ ही है जिन के अनुयायी। जैन धर्म का अर्थ है – जिन द्वारा परिवर्तित धर्म। भगवान महावीर 24वें तीर्थंकर हैं और वर्धमान के रूप में जन्म लेने के उनके ऐतिहासिक तथ्य भी मौजूद हैं। उन्होंनें त्याग का मार्ग चुना और सुख-सुविधाओं को जीवन से त्याग दिया।
आज समूचा विश्व प्रतिस्पर्धा की होड़ में भागा जा रहा हैं, विकास के नाम पर पृथ्वी से आसमां तक अपने ही फैलाए जाल में स्वयं ही उलझता जा रहा हैं इसलिए आज भारत ही नहीं अपितु पूरा विश्व प्रेम व सदभाव के अभाव में शुष्क होता जा रहा हैं। छल, कपट, प्रपंच , अन्याय, अत्याचार, आतंक, शक्ति व सैन्य बल दूसरों को आततायी की तरह सताते हुए संकोच नहीं करते हैं। आज मानव जाति अपने कुकृत्यों एवं मायावी वाणी से प्राकृतिक मर्यादाओं को लांघते हुए अधर्म के चक्रव्यूह में फंसते हुए, सांसारिक वातावरण को भयानक एवं प्रदूषित कर रही है।
महावीर ने कहा कि अगर राग-द्वेष, घृणा न होते तो दुःख, संताप न होते, वाद-विवाद न होते, धोखे, असत्य, अनिष्ट, कलह भी नहीं होते। अनर्थ भाव-काम न होते और ये सब न होते तो गुण धर्म का लोप भी नहीं होता जिससे शरीर, मन और आत्मा स्वस्थ होते। इतना ही नहीं मानव की शक्ति व साधन भी व्यर्थ न होते। अगर व्यक्ति के विनय के भाव होते तो हिंसा न होती।
भगवान महावीर का संदेश है “अहिंसा और सबसे प्रेम” क्योंकि अहिंसा से ही विश्व शान्ति आयेगी और प्रेम से पृथ्वी पर समृद्धि होगी और इसी से जीवन अमृतमय बन जायेगा। आज पूरा विश्व आतंक, हिंसा, घृणा, नफरत की आग में जल रहा है; ऐसे में अहिंसा परमो धर्म: का सिद्धान्त जिसमें मन, वाणी और कर्म से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देना, ऐसी जरूरत आज प्रत्येक मानव के लिए हैं चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय अथवा देश से सम्बन्धित हो।
मानवायता के गुणों का पालन हर इन्सान का नैतिक कर्त्तव्य होना चाहिए। आज मानव मानव के खून का प्यासा हो रहा है। चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या, आतंकवाद का वीभत्स ताण्डव हमारे देश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में हो रहा हैं। ऐसे में महावीर स्वामी की महान विचारधारा के तहत उनके द्वारा बताये गये सिद्धान्तों का पालन करते डर जीवन सुख-शान्ति व आनन्द से की मुख्य आवश्यकता हैं।
भगवान महावीर के अनुसार सबसे बड़ी बुराई वैचारिक मतभेद की है, और आज दुनिया इसी कारण संघर्ष कर रही है। बैचारिक मतभेद अनेक समस्याओं की जड़। महावीर ने मताग्रह छोड़ने एवं विचारों में समानता तथा सहिष्णुता पैदा करने पर बल दिया।
अनेकांत का अर्थ है वस्तु को अनेक गुणों या धर्मों में देखना। अनेके अन्ता: धर्म्म: यस्मिन् स अनेकांत। महाबीर ने कहा कि वस्तु के अनंत धर्मों और पर्यायों को अनन्त चक्षुओं से देखो, किसी एक नजरिए से नहीं। अनेकांत का सिद्धान्त मनमुटाव, द्वेष व जलन को दूर करता है। यह अवधारणा सभी झगड़ों का समाधान प्रदान करती है।
भगवान महावीर का अपरिग्रह का सिद्धान्त सीमित संसाधनों के साथ जीवन-यापन करना सिखाता है। अधिक सम्पत्ति एकत्रकरने के लिएहिंसा, झूठ, चोरी का सहारा लेना पड़ता है। तनाव, चिन्ता और बीमारियों की जड़ परिग्रह है। यहां तक कहा गया है कि दान देने के लिए भी संग्रह नहीं करना चाहिए।
भगवान महावीर नारी शक्ति एवं नारी मुक्ति के प्रणेता थे। एक बार विनोबा भावे ने कहा था कि भगवान महावीर पहले इतिहास पुरुष हैं जिन्होंने नारी शक्ति के समर्थन में पूरे साहस और विश्वास के साथ आवाज उठायी थी। महावीर द्वारा स्थापित चार तीथों में साध्वी और श्राविका को समान अधिकार और समान स्थान दिया। उस समय नारी को शिक्षा का अधिकार नहीं था तथा धर्मशास्त्र श्रवण से भी उन्हें वंचित रखा जाता था।
भगवान महावीर ने स्त्रियों के उत्थान के लिए दासता, सामाजिक समता, समान दर्जा आदि के लिए शुरूआत की। नारी मुक्ति प्रणेता के रूप में भगवान ने आराधना, धर्म साधना और निर्वाण तक की अर्हता नारी समाज को प्रदान की लेकिन आज नारी की स्थिति कैसी है, छुपी हुई नहीं है। घरेलू हिंसा, बलात्कार, उत्पीड़न, प्रताड़ना से नारी आज पीड़ित है।
महावीर की नजर सदैव “बंधन मुक्ति” पर टिकी थी। वे स्वयं अपने को भी वे बंधनों से मुक्त देखना चाहते थे तथा समाज और राष्ट्र के साथ पूरी मानव जाति को भी बन्धन मुक्त करना चाहते थे। महावीर दास प्रथा उन्मूलन के महान संकल्पी थे। उनके समय में दास प्रथा चरम स्तर पर थी पशुओं की तरह दार्सों की बोलियां, हाट बाजारों में लगती थी। वे इस अमानवीयता से उद्वेलित थे। महावीर शोषण के विरुद्ध थे लेकिन आज भी शोषणवृत्ति जारी है, अमीर गरीब का शोषण कर रहे हैं।
उनका मानना था कि जाति-पाति से न कोई श्रेष्ठ एवं महान बनता है और न ही उसका कोई स्थायी मूल्य होता है। इसलिए मानव मात्र के प्रति प्रेम और सदुभावनाओं की स्थापना की। उन्होंने कहा कि सब जीवों की आत्मा अपनी आत्मा जैसी होती है। आत्मा परमात्मा का अंश हैं। अतः प्राणी मात्र से प्रेम करो। अर्थात “मित्ति में सव्व भूवेषु वैरम मज्ज न केणई”।
“महावीर जीता-जागता शास्त्र हैं” जिसको जितना अपने जीवन में उतारो उतना ही जीवन सिद्धान्तों की ओर मुड़ जाता है। महावीर मात्र एक नाम नहीं है, मात्र उच्चारण नहीं है उसका सम्बन्ध तो आचरण से है। महावीर एक शब्द मात्र नहीं, व्यापक
जरूरी है कि हम में से हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे, तभी समस्याओं से मुक्ति पाई जा सकती है। महावीर वही व्यक्ति बन सकता है, जो लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित हो, जिसमें कष्टों को सहने की क्षमता हो। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रख सके। जिसके मन में सभी प्राणियों के लिए सहअस्तित्व की भावना हो। जो पुरुषार्थ के द्वारा अपना भाग्य बदलना जानता हो।
महावीर का जीवन हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसमें धर्म के सूत्र निहित हैं। आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं, बल्कि उनके द्वारा जीये गए मूल्यों के पुनर्जन्म की अपेक्षा है। जरूरत है हम बदलें, हमारा स्वभाव बदले और हम हर क्षण महावीर बनने की तैयारी में जुटें, तभी महावीर जयंती मनाना सार्थक होगा।
महावीर बनने की कसौटी है- देश और काल से निरपेक्ष तथा जाति और संप्रदाय की कारा से मुक्त चेतना का आविर्भाव। भगवान महावीर एक कालजयी और असांप्रदायिक महापुरुष थे, जिन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत को तीव्रता से जीया। वे इस त्रिपदी के न केवल प्रयोक्ता थे, बल्कि प्रणेता भी।
पदार्थ के अभाव से उत्पन्न दुख को सद्भाव से मिटाया जा सकता है, श्रम से मिटाया जा सकता है, किंतु पदार्थ की आसक्ति से उत्पन्न दुख को कैसे मिटाया जाए? महावीर ने कहा, असंचय से। जीव बलवान है या कर्म -महावीर ने कहा कि अप्रमत्तता की साधना से जीव बलवान बना रहता है और प्रमाद से कर्म। जीव का सोना अच्छा है या जागरण -महावीर ने कहा कि पाप में प्रवृत्त जीवों का सोना अच्छा है और धर्म परायण जीवों का जागरण। इस तरह भगवान ने प्रवृत्ति और निवृत्ति दोनों का समर्थन किया।
आज का आदमी भ्रम में जी रहा है। जो सुख शाश्वत नहीं है, उसके पीछे मृगमरीचिका की तरह भाग रहा है। धन-दौलत, जर, जमीन, जायदाद कब रहे हैं इस संसार में शाश्वत? पर आदमी मान बैठा कि सब कुछ मेरे साथ ही जाने वाला है। उसको नहीं मालूम की पूरी दुनिया पर विजय पाने वाला सिकंदर भी मौत के बाद अपने साथ कुछ नहीं लेकर गया। फिर भी इंसान आसक्ति के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाता। चाह सुख-शांति की, राह कामना-लालसाओं की, फिर कैसे मिले सुख-शांति? क्या धधकती तृष्णा की ज्वाला में शांति की शीतल बयार मिल सकती है? क्या कभी इच्छा की सुरसा का मुंह भरा जा सकता है? सुख-शांति का एकमात्र उपाय है- इच्छाओं पर नियंत्रण। जिसने इच्छाओं पर नियंत्रण करने का थोड़ा भी प्रयत्न किया, वह सुख के रास्ते को पा गया।
असीमित कामनाएं दीमक की तरह हैं, जो सुखी और शांत जीवन को खोखला कर देती हैं। कामना-वासना के भंवरजाल में फंसा मन, लहलहाती फसल पर भोले मृग की तरह इंद्रिय विषयों की फसल पर झपट पड़ता है। आकर्षक-लुभावने विज्ञापनों के प्रलोभन में फंसा तथा लिविंग स्टेंडर्ड की आड़ में आदमी ढेर सारी गैरजरूरी चीजों को चाहने लगता है जिनका न प्रारंभन है न अंत । एक समय ऐसा था जब इंसान कुछ ही चीजों में संतोष कर लेता था, पर आज ऐसा नहीं है। तमाम चीजों को पाने की होड़ लगी हुई है। इसकी अंधी दौड़ में आज का इंसान इस कदर भागा जा रहा है कि उसके लिए कहीं विराम नहीं है। यह हालत भी तब है जब विविध वैज्ञानिक सुविधाओं के बावजूद आज का इच्छा-पुरुष तनावपूर्ण जीवन जीने को विवश नजर आ रहा है।
ऐसे में भगवान महावीर का जीवन-दर्शन हमारे लिए आदर्श है क्योंकि उन्होंने अपने अनुभव से यह जाना कि सोया हुआ आदमी संसार को सिर्फ भोगता है, देखता नहीं जबकि जागा हुआ आदमी संसार को भोगता नहीं, सिर्फ देखता है। भोगने और देखने की जीवनशैली ही महावीर की सम्पूर्ण जिंदगी का व्याख्या सूत्र है। अगर यही व्याख्या सूत्र जन-जन की जीवनशैली बने, तभी इंसान इन समस्याओं से मुक्ति पाकर सुखी और शांतिपूर्ण जीवन का सुख पा सकता है।
समय-समय पर हमारे देश में ऐसे-ऐसे महान व्यक्तित्व पैदा होते रहे हैं जिन्होंने महानता व यशस्वी काया से मानव जीवन तथा समाज के प्रत्येक अंधेरे कोने को प्रकाशित करने का प्रयास सद्मार्ग द्वारा प्रशस्त किया है। अपनी मानवीय करुणा, दया तथा सहज सहानुभूतियों के द्वारा मानवता को जागृत रखा हैं। ऐसे महान व्यक्तित्व किसी एक जाति या वर्ग के लिए नहीं वरन् सारे मानवता के लिए चरम अनुकरणीय बन गये। ऐसी ही मनवता के मसीहा भगवान महावीर हुए हैं। आज के भौतिक युग में जब मानवतावाद को अवधारणा शिथिल पड़ती जा रही है, चहूं ओर हिंसा और अधर्म की पराकाष्ठा व्याप्त हो रही है तब ऐसे महापुरुष की विचारधारा और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
यद्यपि, भगवान महावीर ने ईसा से 599-527 वर्ष पूर्व लोगों के जीवन दर्शन की राह दिखलाई थी तथापि लगभग 2600 वर्ष पश्चात भी उनके बताये गये सिद्धांत पूर्णतः; जस के तस प्रासंगिक हैं। कल-आज और कल हर वक़्त प्रासंगिक है।