हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।।
6 फरवरी 2022 सिनेमा ही नहीं बल्कि भारत के इतिहास के सबसे मनहूस और बेसुरे दिन के रूप में अब दर्ज हो गया है। सुबह सवा आठ बजे करीबन जैसे ही खबरें आनी शुरू हुईं कि लता मंगेशकर नहीं रहीं। स्वर साम्राज्ञी लता का निधन, भारत रत्न लता मंगेशकर का स्वर्गवास बस दिन की शुरुआत तो वहीं से खराब हो गई थी। भारत देश में सभी की शुरुआत आज भी लगभग खबरों के साथ ही होती है। पिछले लगभग एक महीने से बीमार चल रहीं लता जी के जब स्वस्थ होने, उनकी सेहत में सुधार होने की खबरें आने लगीं तो यह मन मजबूत हुआ कि शुक्र है लाखों भक्तों की दुआएं कबूल हुई। कारण वेंटिलेटर से उन्हें तब हटा दिया गया था। फिर मौत का दिन भी तो एक दिन फिक्स है। कुछ दिन बाद ही वे फिर से वेंटिलेटर पर आई और अबकी बार कोरोना तथा मल्टीपल ऑर्गन फेलियर की वजह से भारत रत्न से सम्मानित सुर कोकिला लता मंगेशकर का 92 वें साल की उम्र में मुंबई में रविवार को निधन हो गया। और इस तरह लंबे समय से बीमार चल रही लता दीदी को इस बार लोगों की दुआएं नहीं लगी।
किसे मालूम था कि लता दीदी को लेने साक्षात सरस्वती आएंगीं। 5 फरवरी सरस्वती पूजा का दिन और अगले दिन देवी सरस्वती का विसर्जन जब देश करने जाने वाला था तभी उसके पांव न्यूज चैनलों ने रोक लिए कि मानों जैसे मां सरस्वती ने कहा हो कि अब लता मेरे साथ ही प्रयाण करेंगी। देवी सरस्वती का दिन तो हर रोज होता है न? लता जी का भी तो दिन हर रोज होता था? बल्कि होता है, रहती दुनियां तक ये दिन-शामें-रातें सब लता की तरह ही तो सुरमई हुआ करेंगी? नहीं? वह लता जिसके सुरीली आवाज से हमारे दिन की शुरुआत होती थी। वह लता जिसके मधुर कंठ से हमारी शामें होती थीं। वह लता जिसने हंसना, रोना, प्यार करना, बिलखना सबकुछ सिखाया। जब इस दुनियां में शास्त्रों के अनुसार सतयुग रहा उस समय देवी सरस्वती के गान गुंजा करते थे। लेकिन हमें गर्व है कि हमने उसी शास्त्रों में वर्णित आज के कलयुग के अनुसार, उस सरस्वती को तानपुरे, वीणा आदि पर वह लोरियां गाते सुना, देखा जो तब देवताओं ने देखा था।
इस देश में ही नहीं बल्कि दुनियाँ भर में उनकी आवाज को पसंद करने वाले लाखों, करोड़ों की संख्या में है। उसका साक्षात प्रमाण मुम्बई की सड़कों ने दिखा भी दिया। जब उनकी अंतिम विदाई का कारवां चल रहा था। मुम्बई ही नहीं बल्कि आस-पास के इलाकों से भी भारी संख्या में लोग जुटे। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर फिल्मी दुनियां की हर बड़ी हस्तियों ने उनके लिए आज भर-भरके अपनी बातें कहीं, लिखीं, साझा कीं। मुम्बई की सड़कें ही नहीं बल्कि आसमान भी मानों खामोश रहा उनके जाने पर। कितना कुछ है लता के बारे में कहने के लिए हर किसी के पास। लेकिन जब फिर लौटकर हर वीडियो यूट्यूब के देख लें, गूगल के हर लेख पढ़ लें, किताबें पढ़ लें तो भी लता जी की कहानियां कभी खत्म हो सकेंगी? नहीं कभी नहीं…
30 हजार से ज्यादा गाने 30-35 से ज्यादा भाषाओं में गाने वालीं लता जी के उन गानों में इतने रस के रूप हैं, प्रकार हैं जितने शायद आजतक किसी कवि , लेखक, कहानीकार या उपन्यासकार, नाटककार की कृतियों में नज़र नहीं आए होंगे। हंसी के पलों से लेकर गम के फ़सानों तक, जिंदगी शुरू होने से लेकर खत्म होने तक कि बातें सब उनमें वे अपनी आवाज से कैद करके गईं हैं। यह लता माई का जाना नहीं है यह एक अवसान है सदी का। 70 वर्षों से ज्यादा समय तक फिल्मी दुनियां में एकछत्र राज करने वालीं लता की आवाज के लिए किसी समय चलता कर दिया गया था। यह कहकर की उनकी आवाज बेहद पतली है। लेकिन फिर वह समय भी आया जब हर अभिनेत्रियों के लिए उन्होंने गाने गाए। बल्कि न जाने कितनी बार उनसे गवाने मात्र के लिए उनके हिसाब से गाने तक लिखे गए।
लता माई जो टूटी तमन्नाओं की खुरदरी जमीन पर अपने गीतों के जरिए मखमली जज़्बात रच देती थीं। उनकी आवाज इस रहती दुनियां तक गूंजती रहेगी। फिर उनका ही गाया गाना देखिए- ‘रहे न रहे हम, महका करेंगे बाग-ए-वफ़ा में।’ सचमुच उन्होंने अपने व्यक्तित्व से, अपनी सुर साधना से , अपनी महानता से, अपनी मखमली आवाज़ से, सुरों की मल्लिका जैसी न जाने कितनी उपाधियों को पाया। उनके लिए जितनी उपमाएं गढ़ी जाएं शायद सदा कम पड़ेंगी। फिर जैसे उनका ही गीत है – ‘तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे।’ सचमुच कोई ऐसा आदमी जिसने लता को न सुना हो, न देखा हो रहा होगा? तो वे सब कैसे भुला सकेंगे? टिकटॉक, इंस्टाग्राम रील्स के जमाने में लता जी वह सुकून है जो और कहीं नहीं। शहद हमने सबने चखा है लेकिन उससे भी मीठी है लता दीदी की आवाज़। जो सदियों तक इस रहती दुनियां तक गूंजती रहेगी। हमें गर्व होना चाहिए लता पर ही नहीं बल्कि अपने आप पर भी कि हमने लता को देखा है, सुना है गाते हुए, गुनगुनाते हुए, बातें करते हुए।
‘आएगा आएगा आएगा आने वाला।’ महल फ़िल्म का यह गाना तो उनकी बुलुन्दियों पर पहुंचने का मजबूत रास्ता था। ‘दईया रे दईया रे चढ़ ग्यो पापी बिछुआ।’ , ‘ए मेरे वतन के लोगों।’ , ‘तेरा मेरा प्यार अमर।’ , ‘माई री, मैं का से कहूं पीर अपने जिया की।’ , ‘प्यार किया तो डरना क्या।’ ‘आपकी नजरों ने समझा।’ , ‘मन क्यों बहका-बहका आधी रात को।’ , ‘बाहों में चले आओ।’ , ‘जिंद ले गया वो दिल का जानी।’ ‘दीदी तेरा देवर दीवाना।’ , ‘दो पल की थी ये दिलों की दास्तां।’ , ‘तेरे लिए हम हैं जीये।’ उफ़्फ़ कोई एक गाना हो तो बताऊं। लता के गाये तीस हजार गानें भी शायद आज तक कोई न सुन पाया होगा। लेकिन तीस गाने तो छोड़ो तीन गाने भी किसी ने सुन लिए तो समझो उसने देवी सरस्वती को गाते हुए देख, सुन लिया। ऐसा स्थान और मान-सम्मान लता मंगेशकर को दिया जाता रहा है।
सच कहूं तो लता को पहली बार कब गाते सुना यह तो याद नहीं। शायद तब तक मेरी समझ भी उतनी विकसित नहीं हुई होगी। लेकिन जब से गाने कानों में पहली बार पड़े तो वह यकीनन आवाज लता जी की रही होगी। ‘वीर जारा’ फ़िल्म का हर एक उनके द्वारा गाया गया गाना मेरे दिल के हमेशा करीब रहेगा। कारण की पहली बार इसी फिल्म के माध्यम से सिनेमाघर में उनकी आवाज का जादू जो सर चढ़ा वह अब मरने पर ही खत्म होगा। लेकिन आज टूट गई सरगम की माला, बिखर गए संगीत के मोती, अलाप की अप्सराएं ने विलाप कर रही हैं, सिसक रही हैं रुबाइयाँ, रूठे हुए हैं सब ताल-कहरवा, राग विहाग भैरवी सब शोक में हैं। सुबक रहा है संगीत का संसार। स्वर्गलोक की मां सरस्वती अपनी पुत्री को अपने साथ ले गईं। स्वर्गलोक की महायात्रा के लिए प्रस्थान कर गईं सुर साम्राज्ञी, भारत रत्न लता मंगेशकर।
ऐसी आवाजें मानवता को सदियों में ही मिला करती हैं। सुना है वे जब भी गाने के लिए जातीं तो नंगे पांव गाया करतीं थीं। सुना तो ऐसे ही बहुत कुछ है। उन्हें धीमे-धीमे जहर देने की बातें हों या उनकी आवाज़ पर हंसने वालों की बातें। सभी को करारा जवाब दिया तो केवल अपनी सुर साधना से। पांच वर्ष की उम्र से गाना शुरू करने वाली लता ने 75-80 बरस की उम्र तक गाया। और हमेशा अपने इंटरव्यूज में कहती रहीं। यह सब आप लोगों का आशीर्वाद है कि आपको मेरी आवाज पसन्द आ रही है। जबकि उन्हें खुद अपनी आवाज सुनने में डर लगता था। उन्हें लगता था कि कहीं वे अपने ही गाने सुनेंगी तो उनमें कमियां नज़र आएंगीं उन्हें। यह सच है कि लता न होतीं तो इन रुपहले पर्दों पर इश्क़ में इतना आकर्षण न होता। लेकिन जब नूरजहां बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गईं तो हिंदुस्तान में लता की राहें कुछ आसान होने लगीं। ऐसा भी कई लोगों का मानना है। क्योंकि वे मानते हैं साथ ही लता जी खुद भी कहती थीं कि वे नूरजहां जी की आवाज की मुरीद हैं।
खैर बातें हजार हैं और रहती दुनियां तक होती रहेंगी। लता न होती तो फिल्मी दुनियां में हुस्न की इतनी दीवानगी न होती। लेकिन आखिरकार सबकुछ छोड़कर अंनत में विलीन हो गईं 28 सितंबर 1929 इंदौर, मध्यप्रदेश में जन्मी लता। उनके पिता दीनानाथ संगीत और थियेटर की दुनिया का बड़ा नाम थे। कहते हैं एक बार 1939 में उनके पिता ने एक नाटक ‘भाव बंधन’ में लतिका की भूमिका की थी। वे उस चरित्र से बेहद प्रभावित हुए और तभी उन्होंने मेरा नया नामकरण ‘लता’ कर दिया था। इसके पहले वे कहती हैं कि मैं हृदया नाम से जानी जाती थी। हालांकि कई जगह यह नाम हेमा भी लिखा मिलता है। ऐसे ही उन्हें धीमे-धीमे जहर देने की बातें भी जगजाहिर हैं। ऐसे ही उनके नाम के आगे मंगेशकर लगने की बात के पीछे का कारण वे बताती हैं कि जिस जगह गोवा में वे लोग रहते थे उसी कॉलोनी के नाम को बदलकर मंगेशकर उन्होंने अपनी जाति बना ली।
1950 के बाद कई दशकों तक लता मंगेशकर ने संगीत की दुनिया पर एक छत्र राज किया था। लता मंगेशकर ने शंकर जयकिशन, मदन मोहन, जयदेव, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, एस डी बर्मन, नौशाद और आर डी बर्मन से लेकर ए आर रहमान तक की हर पीढ़ी के संगीतकारों के साथ काम किया। उनके बाबा दीनानाथ मंगेशकर के बारे में लता ने ही बताया था एक बार कि – वे दरअसल हम लड़कियों के आगे बढ़ने के खिलाफ नहीं थे बल्कि वह तो खुद ही हमें भी संगीत सिखाते थे। लेकिन वे हमारे फिल्मों में जाने के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि अगर तुमने फिल्मों में गाना गाया तो मैं तुम्हें इस घर में नहीं घुसने दूंगा। उस जमाने में फिल्मी दुनिया के बारे में काफी कुछ उलटा-सीधा सुनने में आता था और इसलिए बाबा नहीं चाहते थे कि उनकी कोई बेटी इस लाइन में जाए। लेकिन कमाल देखिए उसी सिने मा ने इस सुरों की देवी को सिर आंखों पर बैठाए रखा।
उन्होंने उस जमाने में रॉयल्टी के भी बहस की थी। यही वजह है कि 25 रुपए एक गाने के एवज में लेने वाली लता को उनके इस दुनियां से जाने के पहले तक करीबन 40 लाख रुपया महीना रॉयल्टी मिल रही थी। पूरे दिन न्यूज चैनलों पर लता फिर से छाई रहीं। यूँ तो वे बहुत पहले से ही छा चुकी हैं सबके दिलों पर। लेकिन एक अनगढ़ संसार को बनाने के बाद शायद विधाता पछताया होगा। फिर भूल सुधार के लिए उसने लता के कंठ को बड़े मनोयोग से बनाया होगा। अपनी सारी रचनात्मक प्रतिभा उसने यहीं खर्च कर दी होगी। हर तीज-त्यौहार, संस्कार, पूजा-विधान, देशभक्ति के रंगों को उन्होंने अपनी आवाज से रंग भरे हैं।
किसी ने नहीं सोचा होगा तब उनके घर में कि एक दिन यह आवाज रूह बनकर दुनियां के दिलों में कहीं गहरे उतर जाएगी। जीवन में कई कष्ट झेले उन्होंने। मात्र 13 बरस की उम्र में पिता को खो देने के बाद सारी जिम्मेदारी उन पर आन पड़ी। परिवार को सम्भालने की खातिर उन्होंने कभी शादी करने के बारे में सोचा तक नहीं। एक मराठी फिल्म से गाने की शुरूआत तो हुई लेकिन वह गाना फ़िल्म से हटा दिया गया। इसके पांच साल बाद भारत के आजाद होने पर उन्होंने हिंदी फिल्मों से गायन की ऐसी दमदार शुरुआत की कि वह कई दशकों तक टिकी रहीं। ‘तकदीर जगाकर आई हूं।’ जैसे हजारों गाने वाकई उनके गाये गए हर गानों की तरह मायने आज भी खासे महत्व रखते हैं। लता पैदा नहीं होती… लता बनती हैं मेहनत से, लगन से, परिश्रम से, साधना से, तपस्या से। इसलिए कहते हैं कि लता जैसी आत्माएं अवतरित होती हैं। उनके जाने के साथ ही आज बेनूर हो गईं है मौसिकी के माशुकों की गुलनाज़ महफिलें। धड़कनों पर अपना अधिकार कर लेने वाली जादुई आवाज अलग-अलग पीढ़ियों की जुबान पर हमेशा रहेगी। ये एक शरीर का प्रस्थान हो सकता है। ये एक आत्मा का विश्राम हो सकता है। मगर दुनियां को संगीत का संसार उपहार में देने वाली लता के गीत कहते रहेंगे ‘तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे।’ भूलें भी तो भला कैसे क्योंकि लता के गानों में स्त्री मन ने धड़कना सीखा। प्रेम करना सीखा। विद्रोह करना सीखा। रूठना-मनाना सीखा। धोखा खाने के बाद खड़े होना सीखा। उदासी से उबरना सीखा।
गुलज़ार साहब के लिखे बोल और लता दीदी के गाये इन अल्फाजों के साथ उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धाजंली अर्पित करता हूँ। साथ ही परम् पिता परमात्मा से यह कामना करता हूँ कि वे उन्हें जन्नत में आला मुक़ाम अता फ़रमाए। साथ ही इस देश-दुनियां में उनके तमाम चाहने वालों को भी थोड़ी सहनशक्ति दे कि उन्हें अहसाह हो सके कि लता जी अब स्थूल शरीर रूप में हमारे बीच नहीं है। है तो केवल सूक्ष्म रुप से अपनी जादूगरी आवाज़ के रुप में। क्योंकि कुछ नाम स्वयं में ही अलंकार हो जाया करते हैं … ऐसे ही जैसे कुछ आवाज़ें स्वयं ही साज हो जाया करती हैं … वही एक आवाज़ जो जन्म के बाद से ही हर घर का अलंकार और श्रृंगार थी … यदि आप ख़ुश हैं तो भी आपके साथ है … आप दुखी हैं तो भी आपके साथ है … कुछ आवाज़ें जो आपको गुदगुदातीं हैं … कुछ आवाज़ें जो आपको प्रेम करना सिखाती हैं … कुछ आवाज़ें जो आपको थपथपाती ताकि आप नींद की आगोश में आ जाएं … तब अगर लता ये कहे कि वह दोबारा जन्म नहीं लेना चाहेंगी तो हम समझ सकते हैं कि उस सुरों की देवी ने भी कितने दर्द, कष्ट झेले होंगे इस दुनियां में। उम्र के किसी भी पड़ाव का आदमी हो उसने भले लता को आमने-सामने न देखा हो मिलन न हुआ हो, उस सुरों की देवी से रूबरू न हुए हों फिर भी कहने के लिए उनके पास हजारों किस्से होंगे। हजारों बातें होंगी। जैसे मैं अपना कहूँ तो एक बार जब मुम्बई जाना हुआ शोध के सिलसिले में तब लता जी को ईमेल मेल किया था। मेल आईडी देरी से मिला। उन तीन दिनों के मुम्बई प्रवास से लौट आने के कुछ दिन बाद जब मेल का रिप्लाई आया कि वे अस्वस्थ हैं और अभी नहीं मिल सकेंगी तो उनसे न मिलने का दुःख तो बहुत हुआ लेकिन फिर अगले ही पल हाथ दुआओं के लिए उठे और वे जल्द स्वस्थ हो गईं। उसके बाद न मुम्बई जाना हुआ और न ही उनसे मिलना हो पाया।
‘ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, ए जाने वफ़ा हम क्या करें। , सचमुच लता दीदी न आपकी आवाज के बिना ये दिल कभी लगता था और न कभी आपके बिना लगेगा। फिर भी स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। कुछ आत्माएं इस संसार में अजर-अमर होती हैं। यूँ तो भले गीता में कह दिया गया हो कि आत्मा कभी मरती नहीं, न उसे आग जला सकती है, न उसे पानी में डुबोया जा सकता है। लेकिन आत्माएं तो इंसानों के जिंदा रहते ही मरती आ रही हैं। हमने सबने देखा ही है। फिर आपकी आत्मा ऐसे समय में अजर-अमर हुई है जब देश को हमेशा आपकी जरूरत थी। लता आप कहती थीं कि आप दोबारा जन्म नहीं लेना चाहतीं। लेकिन मैं कहूंगा आपने अब भी जन्म क्यों लिया? क्यों हमें जीवन के हर रंग दिखाने के लिए आप आईं? और आईं तो आईं फिर आप चली भी गईं। मैं मानता हूं और जानता हूँ कि मनुष्य शरीर नश्वर है उसे एक दिन बैकुंठ धाम जाना ही है। लेकिन ये कैसा जाना हुआ दीदी? कि आपके जाने से दुनियां में अब हर चौथा आदमी खुद को अनाथ समझने लगा है। सिनेमा पर लिखते हुए यह मेरे लिए सबसे बुरा दिन है कि आपकी यादों को संजोने के लिए लिखना पड़ रहा है। आपकी रूह की शांति के लिए एक सिनेमा को प्यार करने वाले आदमी को ऐसा कभी लिखना पड़ेगा सोचा न था।
आपको जीवन के जितने रस चाहिए सब मिलेंगे। बस चले जाइये लता की संगीतमय बगिया में। लता जो अपने स्वरुप से ऐसे भी घनी होती है। जो एक पेड़ का सहारा पाकर उसे ही अपने स्नेह, दुलार से आच्छादित कर देती है। वैसे ही आप हो लता माई। आपको जिनका भी एक हल्का सा सहारा बचपन में मिला आपने अपने आप को उस सहारे से इतना ऊंचा उठा लिया, इस कदर इस दुनियां में, संगीत की दुनियां में आच्छादित हो गईं कि अब वैसा दूसरा हमारे रहने तक को न मुमकिन होगा। हम रहें न रहें लेकिन आप हैं… थीं …. और रहेंगी …. इस रहती दुनियां तक। जन्म से लेकर आख़री बेला तक के गीत, भाव जो आपने दिए हैं उसके लिए यह पूरी कायनात कर्जदार रहेगी। जब सिने मा अपने 100 साल पूरे कर रही थी तब आप ही ने तो कहा था सिने मा 100 साल का हो गया है तो 71 तो इसमें मेरे भी हैं। सचमुच कोई इस कदर कैसे घुल सकता है। ऐसे तो कभी शहद भी न घुला होगा, ऐसे तो कभी शक्कर भी न घुली होगी। जैसे आप इस दुनियां के हर आदमी-औरत के दिलो-दिमाग में घुल गईं। घुली भी तो ऐसीं कि आपके जाने पर हर कोई लतामय हो उठा। क्योंकि शायद ही कोई गाना हमें याद होगा जिसने सारे मानक न तोड़े हों। तिस पर जब आप ही के रसोईये के द्वारा आपको जहर दिया जा रहा था तो यकीनन कोई बेहद करीबी या घर-परिवार का ही रहा होगा कि आपने उसका नाम बाहर न आने दिया। जिस परिवार को आपने जिस मजबूती से थामा ऐसे कितने लोग होंगे जो ये सब कर पाते होंगे कि आपने अपने तक को भुला दिया। ‘कहीं दीप जले कहीं’ बीस साल बाद फ़िल्म का यह गाना सचमुच जीवन के कई रंगों को बेरंग होने की कहानी कहता है। ‘तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो।’ खानदान फ़िल्म का यह गाना हो या ‘आप मुझे अच्छे लगने लगे, नैन सारी रैन जगने लगे।’ जीने की राह फ़िल्म का यह गाना। लता होना ही मानों भाव रगों में बहते थे। ऐसे ही थोड़े बड़े गुलाम अली साहब ने ऐसे कह दिया कि ‘कमबख्त कभी बेसुरी नहीं होती।’ कहा भले ही उन्होंने ये प्यार से, असल में थी सच्चाई ही। गुलाम हैदर अली ने जो कहा वह भी अक्षरशः सच साबित हुआ कि एक दिन तुम बहुत बड़ी कलाकार बनोगी। सचमुच आप बड़ी कलाकार बनी। आपको जिस भी उम्र के हिसाब से गाना होता आप वैसी ही बन जाती। भारतीय सिनेमा में आपका जादू हमेशा सर चढ़ कर बोला और बोलता रहेगा। आपका हर वर्ग, हर उम्र पर समान अधिकार रहा है, रहेगा।
हमारे बाप-दादाओं ने लता को सुना, हमारी पीढ़ी भी उसमें आकंठ डूबी हुई है। आने वाली सदियों तक ये पीढ़ियां इसमें यूँ ही डूबी रहेंगी। आपके गीतों में जो पवित्रता थी यह उसी का नतीजा था। एक बार जब ऑकलैंड में उनका प्रोग्राम था तो वहां लोग उनके कार्यक्रम में इस तरह मंत्रमुग्ध हुए कि उनके पैरों में डॉलर चढ़ाने लगे थे। प्रकृति की माया भी देखिए ऊष समय सरस्वती के पांवों में लक्ष्मी आन पड़ी थी। मानों देवी लक्ष्मी ने साक्षात दण्डवत किया हो। यह गाना था ‘वैष्णव जन ते तेने कहिए।’ गीतों के जज्बात और उनकी आवाज की नजाकत पर बात करना बेहद मुश्किल काम है। लेकिन सात दशकों तक कोई भी फ़िल्म लता की आवाज के बगैर अधूरी सी लगती थी तो यह वाग्देवी का आशीर्वाद ही था। ‘लिखने वाले ने लिख डाले मिलन के साथ विछोडे।’ यकीनन यह गीत गाने वाली इस वाग्देवी ने सच ही तो बताया था। गिनीज वर्ल्ड बुक रिकॉर्ड हो या फ़िल्म फेयर पुरस्कार , भारत रत्न हो या कोई पदम् सम्मान हर सम्मान उनके व्यक्तित्व और गीत-संगीत की साधना के पीछे छोटा पड़ता चला गया। जो उन्होंने गाया वह हूबहू लगता था जीवन के गीत और सच बताते हुए जैसी उसकी परिभाषाएं गढ़ देता था। मधुबाला तो उनके गानों के बैगर फ़िल्म करने तक मना कर देती थीं। यही वजह थी कि मधुबाला से लेकर वैजयंती माला, गिप्पी ग्रेवाल, नूतन, श्री देवी, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय बच्चन, उर्मिला मातोंडकर, रानी मुखर्जी, करीना कपूर, तब्बू, प्रीति जिंटा, जूही चावला तक की पीढ़ी के हुस्न को उन्होंने अपने कंठ से सजाया, सँवारा। उसमें वे अलंकार जड़े जिनके बिना शायद सिनेमा अधूरा रहता, ने नायिकाएं अधूरी रहती। न जाने कितनी नायिकाओं के लिए पहली बार गाने गाए और वहीं से वह गाने तो हिट ही नहीं सुपरहिट हुए साथ ही उन नायिकाओं को भी उन्होंने सुपरहिट बना दिया। गुलज़ार के लिखे शब्दों के साथ उन्हें भावपूरित श्रद्धाजंली।
हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू।
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो।।
सिर्फ अहसाह है ये रूह से महसूस करो।
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो।।