प्रकृति की सुकुमार गोद में बसा नागालैंड पूर्वोत्तर भारत का एक छोटा प्रदेश है I यहाँ की शस्य- श्यामला धरती के गर्भ में अनेक रहस्य, कहानियाँ, पौराणिक आख्यान, रोमांचकारी किस्से और मिथक छिपे हुए हैं I प्रकृति यहाँ के निर्दोष और निष्पाप लोगों की सहचरी है I नागालैंड अपने अद्भुत और अनिर्वचनीय सौन्दर्य के मोहपाश में बाँध लेता है, अपने निष्कपट हाव–भाव से सम्मोहित कर लेता है, अपने अकृत्रिम आचरण से बार–बार आने के लिए आमंत्रित करता है I भीम भार्या हिडिम्बा की यह लीला भूमि अद्भुत और रोमांचक किस्से–कहानियाँ सुनाती है I यहाँ के निवासी भविष्य की चिंता में दुबले नहीं होते, बैंक बैलेंस के व्यामोह में तनाव नहीं पालते और आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपनी परंपराओं को तिलांजलि नहीं देते I वे वर्तमान में जीते हैं, जो मिल गया उसी में संतुष्ट हो लेते हैं I
नागालैंडवासियों का पाखंडहीन जीवन और निष्पाप आचरण किसी भी सभ्य समाज के लिए वरेण्य है I यहाँ की हरियाली, खूबसूरत घाटी, मनमोहक सूर्योदय और सूर्यास्त किसी कवि की कल्पना से भी अधिक चित्रात्मक, भावपूर्ण और अर्थगर्भित है I अगर कोई व्यक्ति प्रकृति के आँचल पर अपनी कल्पना के रंग भरना चाहता है तो उसे नागालैंड से बेहतर कोई जगह नहीं मिल सकती I यहाँ की मनमोहक जलवायु किसी श्रांत–क्लांत और तनावग्रस्त पथिक को चंदन का अवलेप लगाती है I उबली सब्ज़ियाँ, मांस से बने व्यंजन और चावल नागा लोगों के नियमित भोजन हैं। नृत्य और गीत इनके जीवन के अभिन्न अंग हैं I यह कहा जा सकता है कि नागा लोगों के लिए जीवन एक उत्सव है I जो लोग यहाँ के लोकजीवन से परिचित नहीं हैं उनके लिए अब भी यह एक रहस्य लोक बना हुआ है I राष्ट्रीय एकता और अखंडता की आधारशिला को मजबूत करने के लिए यह परम आवश्यक है कि हम विभिन्न प्रदेशों के लोकजीवन, संस्कृति और सामाजिक संरचनाओं से अधिकाधिक परिचित हों I जितना हम एक–दूसरे की संस्कृति से परिचित होंगे उतनी ही एकता की भावना सुदृढ़ होगी I
नागालैंड पूर्वोत्तर भारत का एक प्रमुख राज्य है, लेकिन शेष भारत इस प्रदेश के बारे में बहुत कम जानता है I यह भारत के सबसे छोटे राज्यों में से एक है I संस्कृति, भाषा, परंपरा, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार, वेश-भूषा आदि की दृष्टि से नागालैंड विविधवर्णी, रंगीन और जीवंत प्रदेश है I यहाँ अनेक आदिवासी समूह, अनेक भाषाएँ, भिन्न-भिन्न प्रकार के रहन-सहन, खान-पान और परिधान, अपने-अपने ईश्वरीय प्रतीक, धर्म और अध्यात्म की अनेक संकल्पनाएँ हैं। नागालैंड में अनेक पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें प्रदेश की संस्कृति प्रतिबिंबित होती है I
त्सोकुम त्योहार (Tsokm Festival)-‘त्सोकुम त्योहार’ नागालैंड के खिअमनीअंगन जनजाति का एक प्रमुख त्योहार है I यह समुदाय कृषि से संबंधित अनेक त्योहारों का आयोजन करता है जिनमें त्सोकुम त्योहार सबसे महत्वपूर्ण है I यह खिअमनीअंगन लोगों के लिए एकता, शांति और सद्भाव का प्रतीक है। इस त्योहार में विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान, समारोह और पशु बलि शामिल है। यह बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह अक्टूबर के पहले सप्ताह में अच्छी फसल की कामना से मनाया जाता है। खिअमनीअंगन समुदाय के सामाजिक-धार्मिक जीवन पर इस त्योहार का अत्यधिक प्रभाव है। इस त्योहार में प्रत्येक परिवार धन- धान्य और अपने पशुधन के कल्याण व मनुष्यों के आरोग्य के लिए ईश्वर (को-ए) से प्रार्थना करता है और पशु बलि के द्वारा उस परम सत्ता को प्रसन्न करने की चेष्टा करता है। झूम खेती करने से पहले आयोजित होनेवाला यह त्योहार समर्पण का त्योहार है। त्सोकुम त्योहार के बाद ही नए झूम खेतों से कटा हुआ खाद्यान्न घर लाया और उसे चखा जाता है। त्योहार के बाद घर और अन्न भंडार के निर्माण और मरम्मत का कार्य शुरू होता है । इसका आयोजन एक सप्ताह तक होता है जिसमें अनेक अनुष्ठान और आयोजन के द्वारा यह समुदाय अपनी उत्सवधर्मी भावनाएं प्रकट करता है I सर्वप्रथम गांव के पुजारी (अम-पाओ) द्वारा त्योहार के लिए तिथि की घोषणा की जाती है, उसके बाद प्रत्येक परिवार उत्सव को भव्य तरीके से मनाने की तैयारी शुरू कर देता है I
उत्सव की तैयारी के पहले दिन को ‘सुमई जेमदाव’ कहा जाता है। इस दिन प्रत्येक परिवार की महिलाएं पर्याप्त मात्रा में मदिरा (राइस बीयर) तैयार करती हैं । महिलाएं अपनी मदिरा (चावल निर्मित मदिरा) को स्वादिष्ट और बेहतर बनाने का प्रयास करती हैं। दूसरे दिन को ‘सुमई जंकोम’ कहा जाता है। इस दिन पुरुष मिथुन, भैंस या गाय की तलाश में जंगल में जाते हैं। मिथुन, भैंस या गाय को लाने का क्रम तीसरे दिन भी जारी रहता है। चौथे दिन को ‘पाईपियु’ कहा जाता है I इस दिन आनुष्ठानिक पेड़ को लाया जाता है I यह दिन उन अमीर व्यक्तियों/योद्धाओं के लिए समर्पित रहता है जिसने मिथुन, भैंस या गाय की बलि देकर सामुदायिक भोज का आयोजन किया है I पाँचवाँ दिन हर व्यक्ति, परिवार, गाँव या समुदाय के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन प्रत्येक परिवार अपने धान के खेतों में पालतू जानवरों जैसे सूअर, कुत्ते, या मुर्गे की बलि देता है। यह अनुष्ठान और बलि भरपूर फसल और परिवार के सदस्यों के आरोग्य की कामना से किया जाता है। इस अनुष्ठान में धान के खेतों में बलि पशुओं के रक्त का छिड़काव किया जाता है और मारे गए जानवरों के जिगर और आंत को अनुष्ठान स्थल पर बिखेर दिया जाता है। छठे दिन को ‘जंगलाव’ कहा जाता है। इस दिन सामुदायिक दावत का आयोजन करनेवाले अमीर लोग/योद्धा पारंपरिक संस्कार और समारोह का आयोजन कर मिथुन, भैंस या गाय की बलि देते हैं । ‘जंगलाव’ समारोह में ‘खेल’ या गाँव के केवल परिपक्व और विवाहित पुरुष ही भाग लेते हैं क्योंकि पत्नी को पूरे त्योहार और पशु बलि के दौरान कुछ महत्वपूर्ण संस्कार और औपचारिक अनुष्ठान करने होते हैं। सामुदायिक भोज आयोजित करनेवाले व्यक्ति को समुदाय या ग्रामीणों द्वारा ‘जंगलाव मेईमेई’ के रूप में सम्मानित किया जाता है। सातवाँ दिन ‘जंगलाव अनो‘ का आयोजन होता है I यह उन परिवारों के सम्मान में विश्राम का दिन है जिन्होंने इस त्योहार के लिए भोज और पशु बलि का आयोजन किया है I इस दिन प्रत्येक व्यक्ति मदिरा पीकर और मांस खाकर आनंदोत्सव मनाता है I त्योहार का समापन आठवें दिन होता है जिसे ‘इम्यामयम‘ कहा जाता है। गाँव के पुरुष सामुदायिक तालाबों की सफाई, फुटपाथ की मरम्मत और सुधार जैसे सामुदायिक कार्यों के लिए जाते हैं । इस दिन युवा लड़के और लड़कियां पारंपरिक खेल खेलते हैं जिससे आपसी समझ, सहयोग और एकता की भावना सुदृढ़ होती है I इस प्रकार रिश्तेदारों, दोस्तों और मेहमानों को और यहां तक कि आनेवाले अजनबियों को भी भोजन, मांस और मदिरा साझा करने के साथ त्योहार का समापन होता है।
सुकरुन्ये त्योहार (Sukrunyie Festival)-चाकेसांग जनजाति के लोग वर्ष में सात त्योहार मनाते हैं I ये सभी त्योहार कृषि चक्र पर आधारित हैं। ‘सुकरुन्ये’ इस समुदाय का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे 15 जनवरी को मनाया जाता है। परंपरागत रूप से सुकरुन्ये महोत्सव 19 दिनों तक चलता है I ‘न्येदे’ से इस उत्सव की शुरुआत होती है और ‘वुटा झोंगू’ के दिन यह उत्सव समाप्त होता है I अब इस त्योहार को छह दिनों तक सीमित कर दिया गया है। “सुकरू” का अर्थ है पिता द्वारा शुद्धिकरण अनुष्ठान करना I इस अनुष्ठान में नई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है I पुरुष महिलाओं द्वारा लाए गए जल का उपयोग नहीं करते हैं I पुरुष प्रातःकाल में ही गांव के कुएँ पर जाते हैं और शुद्ध जल से स्नान करते हैं I यह ध्यान रखा जाता है कि पशु-पक्षियों के स्पर्श करने से पहले ही ताजे जल में स्नान कर लिया जाए। स्वयं को पवित्र करने के बाद शुद्ध जल को घर लाया जाता है, अग्नि प्रज्वलित करने की पारंपरिक पद्धति से आग जलाई जाती है और एक निर्दोष मुर्गे की बलि दी जाती है I पवित्र जल से मुर्गे को पकाया जाता है और लड़के का शुद्धिकरण करने के उद्देश्य से उसे खाया जाता है। नया घर बनाते समय भी सुकुरु अनुष्ठान किया जाता है I ‘न्ये’ शब्द का अर्थ त्योहार है। सभी पुरूष चिड़िया पकड़ने के लिए जाते हैं I सुकरुन्ये के पांचवें दिन ‘चेदी’ अनुष्ठान किया जाता है । इस दिन जानवरों को मारकर हर घर पर पशुओं के खून की छाप लगायी जाती है I पका हुआ मांस और हेज़ो (चावल से बनी मदिरा) सर्वप्रथम पुजारी और गांव के बुजुर्गों को दिया जाता है। इसके बाद पुजारी और गांव के बुजुर्ग उपहार देनेवालों को आशीर्वचन देते हैं । ‘थूनो नुसो’ अनुष्ठान का आयोजन केवल महिलाओं के लिए किया जाता है। माँ अपनी युवा कुंवारी बेटी के शुद्धिकरण के लिए यह औपचारिक अनुष्ठान करती है। वे एक निर्दोष मुर्गी को मारती हैं और अपने पूरे जीवन के शुद्धिकरण के लिए यह अनुष्ठान करती हैं। इस त्योहार के दौरान युवा पुरुष और महिलाएं हेज़ो पीकर एक साथ नृत्य करते हैं और गीत गाते हैं । परंपरागत खेल जैसे, कुश्ती, संगीत प्रतियोगिता, थुल्वा (एक जंगली फल के साथ खेला जानेवाला खेल) आदि आयोजित किए जाते हैं। त्योहार के अंतिम दिन ‘गेन्ना’ अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है ताकि सौभाग्य और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए देवताओं को धन्यवाद दिया जा सके।
तोखु एमोंग (Tokhu Emong)-तोखु एमोंग नागालैंड की लोथा जनजाति का प्रमुख त्योहार है जो नवम्बर के प्रथम सप्ताह में मस्ती और उत्साह के साथ मनाया जाता है I तोखु एमोंग त्योहार नागालैंड के वोखा जिले के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। बहुत धूमधाम और जोश के साथ यह त्योहार मनाया जाता है । यह कृषि से संबंधित त्योहार है । फसलों की कटाई के बाद जब घर अन्न से भर जाता है और लोग कठिन परिश्रम से मुक्त होकर आराम कर रहे होते हैं उस समय यह त्योहार उत्साहपूर्वक मनाया जाता है । यह नौ दिनों तक चलता है। पहले त्योहार के लिए कोई विशेष तिथि निश्चित नहीं थी। बाद मे एक निश्चित तिथि की आवश्यकता महसूस की गई और इसके आयोजन हेतु 7 नवंबर की तारीख तय की गई । सभी ग्रामवासी इस उत्सव में भाग लेते हैं। प्रत्येक घर में भोजन और पेय पदार्थ तैयार किए जाते हैं तथा दोस्तों व पड़ोसियों को एक-दूसरे के घर में आमंत्रित किया जाता है I यह पर्व नौ दिनों तक चलता है। सभी लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा धारण कर इस त्योहार मे शामिल होते हैं । महोत्सव के दौरान भोजन और पेय पदार्थों के उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। पके मांस के टुकड़ों की संख्या दोस्ती और संबंधों की गहराई को दर्शाती है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने दोस्त को मांस के 12 टुकड़े प्रदान करता है तो इससे संकेत मिलता है कि वह अपनी दोस्ती का ख्याल रखता है I बदले में दूसरा दोस्त भी अपने दोस्त को मांस के 12 टुकड़े देता है I इस प्रकार उनकी मैत्री अटूट बंधन में बंध जाती है और भविष्य मे एक–दूसरे पर संकट आने की स्थिति में वे तन, मन, धन से एक–दूसरे की सहायता करते हैं I परिचित लोगों को मांस के केवल छह टुकड़े दिए जाते हैं । सर्वप्रथम गाँव का पुजारी त्योहार शुरु करने का संकेत देता है I प्रत्येक घर से चावल एकत्रित किया जाता है। पुजारी मुट्ठी भर चावल लेकर इष्ट देव की प्रार्थना करता है । एकत्रित किए गए चावल से सूअर खरीदे जाते हैं और बाकी चावल का उपयोग मदिरा बनाने में किया जाता है। सूअर को मारकर उसका मांस ग्रामवासियों में वितरित किया जाता है। यदि कोई अतिथि गांव में मौजूद होता है तो त्योहार शुरू होने से पहले उसे दो विकल्प दिए जाते हैं I या तो सूर्यास्त से पहले वह गाँव छोड़ दे अथवा त्योहार समाप्त होने तक उसे गाँव में रहना पड़ेगा । इस त्योहार में दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना की जाती है। उस वर्ष जिनका निधन हो गया हो वैसे सगे–संबंधियों का अंतिम संस्कार किया जाता है I तोखु के बाद युवा लड़के-लड़कियां शादी करते हैं I इस त्योहार के समय ग्रामीण प्रवेशद्वार का पुनर्निर्माण, कुओं की सफाई और घरों की मरम्मत की जाती हैI यह नौ दिवसीय त्योहार फसल कटने के बाद आयोजित किया जाता है । परिश्रम करने के बाद उसका फल प्राप्त होता है और खेत का अनाज घर में आ जाता है तब उत्सवपूर्वक मनाया जाता है । त्योहार के अवसर पर पुरुष और महिलाएं अपने रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधान धारण करते हैं I इस त्योहार में एकता और भाईचारे की भावना प्रबल होती है। त्योहार के अवसर पर समुदाय के लोग एक-दूसरे के प्रति सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। इस त्योहार में नागा संस्कृति प्रतिबिंबित होती है । पारंपरिक गीत-नृत्य त्योहार के अभिन्न अंग हैं । इस त्योहार में विभिन्न प्रकार के मांस से बने नागा व्यंजनों का स्वाद भी लिया जा सकता है जो अपने उत्तम स्वाद के लिए प्रसिद्ध हैं।
नगदा त्योहार (Ngada Festival)-नगदा नागालैंड की रेंगमा जनजाति का प्रमुख त्योहार है जो नवंबर के अंतिम सप्ताह में धूमधाम के साथ मनाया जाता है I रेंगमा जनजाति का नगदा त्योहार वास्तव में आभार प्रदर्शन का उत्सव है । यह फसल कट जाने के बाद मनाया जानेवाला त्योहार है I अच्छी फसल होने के बाद यह त्योहार मनाया जाता है। रेंगमा जनजाति के लोग उल्लासपूर्वक सामुदायिक स्तर पर यह त्योहार मनाते हैं। यह त्योहार आठ दिनों तक चलता है I इस रंगारंग उत्सव में संगीत का महत्वपूर्ण स्थान है। नगदा त्योहार कृषि वर्ष के अंत का प्रतीक है। रेंगमा समुदाय के लोगों की मान्यता है कि मृतकों की आत्माएं हर साल एक बार विशेष रूप से इस त्योहार के समय अपनी कब्रों पर और अपने रिश्तेदारों के घर जाती हैं। सर्वप्रथम गाँव के पुजारी नगदा त्योहार के शुरू होने की सूचना देते हैं। वह चंद्रमा की गति के अनुसार महीने की गणना करने के बाद शुभ दिन की घोषणा करता है। त्योहार के शुभ दिन की घोषणा करते समय पुजारी इस तथ्य को ध्यान में रखा जाता है कि प्रत्येक गृहस्वामी अपनी फसल काट चूका हो और इस त्योहार के बाद अपने अन्नभंडार में अन्न का भंडारण करने की स्थिति में हो। इस त्योहार के बाद किसी भी अनाज को घर में लाना वर्जित है। नगदा त्योहार सभी प्रकार के पेय पदार्थों की तैयारी के साथ शुरू होता है। दूसरे दिन घरों और आसपास की सफाई की जाती है। पुरुषों द्वारा कब्र और जंगल की सफाई की जाती है । तीसरे दिन को ‘ज़ू केफे जोन‘ के नाम से जानते हैं । प्रातःकाल में सभी गृहणियां कब्र पर जाती हैं। घर के सभी सदस्य अपने दोस्तों या पड़ोसियों के घर जाते हैं और मिल-बांटकर खाद्य पदार्थ और पेय का आनंद लेते हैं । चौथे दिन को ‘केनीहुन जोन‘ के नाम से जानते हैं । यह सांस्कृतिक गतिविधियों का दिन है। पुरुष योद्धा की पारंपरिक वेशभूषा धारण करते हैं और जुलूस निकालकर गांव के चारों ओर घूमते हैं। महिलाएं उन्हें पेय, चावल और मांस पेश करती हैं। पेश करने पर प्रत्येक व्यक्ति को इन वस्तुओं का स्वाद लेना पड़ता है। अंत में वे मोरंग (युवागृह) में इकट्ठा होते हैं और बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपने दुश्मनों का सामना किया और कैसे उन्होंने संघर्ष करते हुए ट्रॉफी जीती । त्योहार के पांचवें दिन नृत्य और पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा के अनुसार सम्मानित किया जाता है। छठे दिन को ‘रुंगसु जोन‘ कहते हैं I इस दिन सभी लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं। सातवें दिन भव्य भोज की तैयारी की जाती है और भोज के लिए जंगल से जलावन की लकड़ी, केले के पत्तों और सब्जियों का भंडारण किया जाता है। आठवें दिन भव्य भोज का आयोजन होता है और बेहतर भविष्य के लिए कुछ अनुष्ठान किए जाते हैं। आशा और उत्साह के साथ यह त्योहार समाप्त होता है ।
मोन्यू त्योहार (Monyu Festival)-फोम नागालैंड की एक प्रमुख जनजाति है I यह समुदाय चार प्रमुख त्योहार मनाता है जिसमें मोन्यू सबसे महत्वपूर्ण है I अन्य त्योहार हैं–मोहा, बोंगवुम और पांगमो I मोन्यू 1-6 अप्रैल को शरद ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में मनाया जाता है I यह बारह दिवसीय त्योहार है जिसमें सामुदायिक भोज, नृत्य, गीत का आयोजन किया जाता है I इस अवसर पर साफ–सफाई और पुल आदि की मरम्मत भी की जाती है I इस त्योहार में पुरुष अपनी विवाहिता पुत्रियों के प्रति स्नेह और सम्मान का प्रदर्शन करने के लिए मदिरा और विशेष व्यंजन प्रस्तुत करते हैं I त्योहार आरम्भ होने के पूर्व विशेष धुन पर पारंपरिक लॉग ड्रम बजाय जाता है ताकि ग्रामवासियों को ज्ञात हो जाए कि एक–दो दिनों में त्योहार की शुरुआत होनेवाली है I पुजारी और गाँव के बुजुर्ग भविष्यवाणी करते हैं कि यह त्योहार ग्रामवासियों के लिए वरदान सिद्ध होनेवाला है अथवा अभिशाप I
आओलियंग त्योहार (Aoleang Festival)-आओलियंग नागालैंड की कोन्यक जनजाति का एक प्रमुख त्योहार है I प्रत्येक वर्ष 1-3 अप्रैल को इस त्योहार का आयोजन किया जाता है I नए खेत में बीज बोने के बाद यह त्योहार मनाया जाता है। यह पुराने वर्ष की विदाई और नए वर्ष का स्वागत करने का त्योहार है । इस त्योहार के अवसर पर भरपूर फसल व धन–धान्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है। इस त्योहार का आयोजन अत्यंत धूमधाम और उत्साह के साथ किया जाता है। इस त्योहार के प्रत्येक दिन का अपना महत्व, रीति रिवाज और परंपरा है। यह त्योहार प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी प्रतिबिंबित करता है I इस अवसर पर कोन्यक जनजाति के स्वदेशी नृत्य, गीत और खेल का प्रदर्शन किया जाता है । त्योहार के पहले दिन को “मान लाई याह नइह” के नाम से जाना जाता है जो त्योहार की तैयारी करने का दिन है। “यिन मोक फो न्यह” त्योहार का दूसरा दिन है I इस दिन नए युवकों को शिकार करना सिखाया जाता है । त्योहार के तीसरे दिन शिकार किए गए जानवरों को मारा जाता है I इस दिन को “यिन मोक शेक न्यह” कहा जाता है। त्योहार का चौथा दिन सबसे महत्वपूर्ण दिन है जिसे “लिंग्यु न्यह” कहा जाता है । “लिंग न्यह” त्योहार का पाँचवाँ दिन है I इस दिन कोन्यक समुदाय के युवा अपने बुजुर्गों का सम्मान करते हैं और उनका आभार व्यक्त करते हैं । त्योहार के अंतिम दिन को “लिंगशान न्यह” कहा जाता है I इस दिन घरों और गाँवों की साफ़-सफाई की जाती है I
मोआत्सू मोंग (Moatsu Mong Festival)–मोआत्सु मोंग नागालैंड की आओ जनजाति का प्रमुख त्योहार है जो खेतों में बुवाई का कार्य पूरा होने का प्रतीक है। यह तीन दिवसीय त्योहार है जो प्रत्येक वर्ष 1 से 3 मई तक पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है I इसका आयोजन मोकोकचुंग जिले में किया जाता है I झूम खेती के लिए जंगल साफ़ करने और उसमें आग लगाने, कुओं एवं मकानों की सफाई व मरम्मत करने के उपरांत यह त्योहार मनाया जाता है । सर्वप्रथम कुओं की सफाई की जाती है और त्योहार के लिए मदिरा तैयार की जाती है। त्योहार के दौरान लोग स्थानीय व्यंजनों का स्वाद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेते हैं। पुरुष पारंपरिक युद्ध नृत्य करते हैं और महिलाएं गीत गाकर उनका उत्साहवर्द्धन करती हैं। यह एक रंगारंग त्योहार है और समृद्ध नागा संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है। पर्व के दौरान अनेक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं I इस त्योहार के दौरान एक प्रतीकात्मक समारोह आयोजित किया जाता है I इस अनुष्ठान में एक बड़ी अंगीठी जलाई जाती है जिसके चारों ओर पुरुष- महिलाएं बैठते हैं I सभी लोग अपने पारंपरिक परिधान और गुड़ियों की माला धारण करते हैं I महिलाएं पुरुषों को चावल से बनी मदिरा और मांस परोसती हैं । जो पुरुष अधिक लोकप्रिय होते हैं उनको अधिक से अधिक महिलाएं-लडकियां मदिरा और मांस परोसती हैं I इस अवसर पर सूअर और गाय की बलि दी जाती है I त्योहार के दौरान सर्वश्रेष्ठ मदिरा बनाने और सर्वोत्तम सूअरों और गायों की बलि देने के लिए प्रतिस्पर्धा होती है । महिलाएं और लडकियां पारंपरिक वस्त्रों की बुनाई करती हैं और खुद को सजाती-संवारती हैं । वे नृत्य-संगीत, खान-पान और युद्ध गीत तैयार करने में पुरुषों का साथ देती हैं I वे अपने प्रेमी के लिए प्रेम गीत गाती हैं और गाँव के बुजुर्ग पुरुष युवाओं को प्रेम करने व प्रेम का इजहार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं I युद्ध नृत्य और युद्ध गीत इस त्योहार का अभिन्न अंग है I
मेदमनिओ त्योहार (Medmneo Festival)-मेदमनिओ नागालैंड की यिमचुंगर जनजाति का प्रमुख त्योहार है जो 4-8 अगस्त को मस्ती और उत्साह के साथ मनाया जाता है I यह कृषि से सम्बंधित त्योहार है जिसका आयोजन बाजरे की फसल कट जाने के बाद किया जाता है I त्योहार का उद्घाटन गाँव के बुजुर्ग द्वारा किया जाता है I यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है I त्योहार के प्रथम दिन “सीटो” उत्सव आयोजित किया जाता है I इस दिन गाँव की सफाई तथा सड़कों की मरम्मत की जाती है I दूसरे दिन “जिह्दो” उत्सव का आयोजन किया जाता है I इस दिन खेतों में जानेवाले रास्तों की मरम्मत की जाती है एवं रास्ते पर पड़े मिट्टी, पहाड़ आदि अवरोधों को साफ़ किया जाता है I त्योहार के तीसरे दिन को “जुम्दो” कहा जाता है I इस दिन दूसरे गाँवों को जोड़नेवाली सड़कों की मरम्मत की जाती है I चौथे दिन “किहरेसुक” उत्सव आयोजित किया जाता है I इस दिन जल स्रोतों की मरम्मत की जाती है I त्योहार के पांचवें और अंतिम दिन को “सिरेसुक” उत्सव कहते हैं I इस दिन खेती से सम्बंधित उपकरणों की सफाई और उसकी पूजा की जाती है I इस दिन उस वर्ष जिन लोगों का निधन हुआ होता है उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है I सभी लोग अपने दोस्तों व सम्बन्धियों को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं तथा उपहारों का आदान–प्रदान करते हैं I यह दिन लड़के–लड़कियों के विवाह की बातचीत को फाइनल करने के लिए उत्तम माना जाता है I
येमशे त्योहार (Yemshe Festival)-येमशे नागालैंड की पोचुरी जनजाति का प्रमुख त्योहार है I यह नागालैंड में व्यापक रूप से मनाए जानेवाले फसल त्योहारों में से एक है। नागालैंड के अधिकतर त्योहार फसल चक्र पर आधारित हैं। इस महत्वपूर्ण फसल उत्सव को मनाने के लिए पूरी पोचुरी जनजाति एकत्रित होती है। इस त्योहार में पोचुरी संस्कृति से संबंधित कुछ अनुष्ठान किए जाते हैं। इस त्योहार के अवसर पर लोग पारंपरिक नृत्य, लोक संगीत और दावत के माध्यम से अपनी खुशी का प्रदर्शन करते हैं। सभी लोग अपने पारंपरिक परिधान पहनते हैं और उल्लासपूर्वक त्योहार में शामिल होते हैं। इस त्योहार का आयोजन नागालैंड की राजधानी कोहिमा में अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में किया जाता है। त्योहार आमतौर पर सितंबर के अंतिम सप्ताह में शुरू होता है और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक चलता है। इस त्योहार के दौरान किए जाने वाले बांस नृत्य का बहुत महत्व है और विश्व स्तर पर इस नृत्य रूप को मान्यता मिली है। यह त्योहार अच्छी फसल की कामना से मनाया जाता है। इस त्योहार में आयोजित होनेवाले भोज और अन्य समारोहों में मक्के और बाजरा को छोड़कर चावल का उपयोग किया जाता है । त्योहार के दौरान पुजारियों द्वारा विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और समारोह आयोजित किए जाते हैं I
मोंगमोंग त्योहार (Mongmong Festival)–संगतम जनजाति के लोग मुख्य रूप से नागालैंड के किफिरे जिले में रहते हैं। संगतम जनजाति द्वारा कुल बारह त्योहार मनाए जाते हैं जिनमें से मोंगमोंग सबसे अधिक महत्वपूर्ण त्योहार है I यह त्योहार गर्व व उत्साह के साथ मनाया जाता है। राज्य की एक व्यापक रूप से प्रशंसित जनजाति होने के नाते इनके मोंगमोंग त्योहार को नागालैंड के लोकप्रिय त्योहारों में से एक माना जाता है। मनोरंजन इस त्योहार का मूल तत्व है जिसके कारण इस त्योहार का नागालैंड के समृद्ध पर्यटन में प्रमुख योगदान है। यह त्योहार मुख्य रूप से फसल की विषयवस्तु पर केंद्रित है। सुख-समृद्धि की कामना से भगवान की पूजा की जाती है और इस त्योहार के माध्यम से उनको धन्यवाद दिया जाता है। इस उत्सव की तैयारी के लिए पूरे जिले में छुट्टी घोषित कर दी जाती है I इस अवसर पर अनेक समारोह, भोज और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। त्योहार का प्रमुख विषय गृह देवता की पूजा और चिमनी में खाना पकाने के तीन पत्थरों से संबंधित हैं। यह त्योहार हर साल सितंबर के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। ‘मोंगमोंग’ त्योहार का अर्थ ‘हमेशा के लिए एकता’ है I यह त्योहार छह दिनों तक मनाया जाता है । इस अवसर पर अच्छी फसल और भरपूर अनाज के लिए ईश्वर से प्रार्थना की जाती है ।
सेकरेन्यी त्योहार (Sekrenyi Festival)–सेकरेन्यी नागालैंड की अंगामी जनजाति का प्रमुख त्योहार है I प्रत्येक वर्ष 25 फ़रवरी को धूमधाम के साथ इस त्योहार का आयोजन किया जाता है I इस त्योहार का संबंध युद्ध से है I यह दस दिवसीय उत्सव है जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। मुख्य त्योहार से दो दिन पहले जलावन की लकड़ी एकत्र की जाती है। अगले दिन भोज के लिए जानवरों का शिकार किया जाता है। इसके बाद मुख्य उत्सव शुरू होता है। प्रथम दिन गाँव के बाहर के कुएँ को पुरुषों द्वारा साफ किया जाता है । केवल युवा और पवित्र कुंवारे लड़कों को ही कुएँ की साफ़–सफाई करने की अनुमति है। अगली सुबह लोग कुएँ पर जाकर स्नान करते हैं और अपने कपड़ों एवं हथियारों पर पानी का छिड़काव करते हैं। इसके बाद वे घर की महिलाओं के लिए उसी कुएं से पानी लाते हैं क्योंकि उस दिन किसी और को पानी लाने की अनुमति नहीं होती है। कुएँ से लौटकर प्रत्येक व्यक्ति मुर्गे का वध करता है। 6-7 वर्ष की आयु के बाद ही सेकरेन्यी समारोहों में शामिल होने की अनुमति दी जाती है । परंपरा के अनुसार हाथों में ही मुर्गों को मारा जाता है I मुर्गे के निचले हिस्से को काट दिया जाता है और आंतों को बाहर निकाला जाता है। चिकन को घर की मुख्य रसोई से दूर एक अलग अस्थायी चूल्हे पर पकाया जाता है। खाना खाने से पहले ईश्वर से प्रार्थना की जाती है-‘हे ईश्वर ! अगर कोई दुश्मन मुझे मारने आता है तो मुझे वह ताकत दो कि मैं दुश्मन को मार दूं ।‘ चावल से बनी मदिरा कुएं पर अर्पित की जाती है और कुएं से प्रार्थना की जाती है कि वह गाँव को शुद्ध पानी उपलब्ध कराता रहे तथा कुआँ हमेशा जल से भरा रहे । अगले दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं । तीसरे दिन वे बाँस काटकर भूनते हैं। त्योहार का चौथा दिन युवा जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण है। वे जंगल में जाते हैं और हार, कंगन और अन्य विभिन्न गहने बनाने के लिए कॉर्क, पत्थर, लकड़ी के टुकड़े आदि इकट्ठा करते हैं। उनके बीच उपहारों का आदान-प्रदान होता है । पांचवें दिन युवा अपने माता-पिता के घर जाते हैं और गहने, भाले, दाव और अन्य सामान बनाते हैं जिसे वे भविष्य में उपयोग के लिए रखते हैं। छठे और सातवें दिन लोग छुट्टी मनाते हैं। इन दिनों लोग घर पर रहकर अपने दोस्तों और परिवार के साथ आनंद मनाते हैं। कुछ गाँवों में सातवें दिन शिकार करने का रिवाज है । त्योहार के अंतिम दिन वे मांस पकाते हैं और इसे ग्रामीणों के बीच वितरित करते हैं।
हॉर्नबिल उत्सव (Hornbill Festival)–नागालैंड एक बहुजातीय समाज है I यहाँ अनेक पर्व- त्योहार मनाए जाते हैं I असंख्य त्योहारों के कारण नागालैंड को त्योहारों की भूमि कहा जाता है I यहाँ का प्रत्येक समुदाय अपना अलग–अलग त्योहार मनाता है I नागालैंड के प्रायः सभी त्योहार कृषि कैलेंण्डर पर आधारित हैं I नागालैंड पर्यटन विभाग द्वारा प्रति वर्ष दिसंबर माह में ‘हॉर्नबिल उत्सव’ आयोजित किया जाता है जिसमें राज्य की सभी जनजातियों के लोग अपने पारंपरिक शिल्प और खाद्य पदार्थों का प्रदर्शन करते हैं I इस त्योहार के अवसर पर नागालैंड के सभी समुदाय नृत्य, गीत, भोजन और पेय पदार्थों का प्रदर्शन करते हैं I इसलिए इसे “त्योहारों का त्योहार” कहा जाता है I इस सामूहिक उत्सव के माध्यम से सभी आदिवासी समुदाय अपनी संस्कृति व परंपरा का प्रदर्शन करते हैं I इस उत्सव में नागा जीवन और संस्कृति की झलक दिखाई देती है I वार्षिक हॉर्नबिल फेस्टिवल 01 से 10 दिसंबर तक दस दिनों के लिए आयोजित किया जाता है । नागालैंड की सभी जनजातियों और उपजनजातियों के लोग जफु पर्वत की तलहटी में स्थित नागा हेरिटेज गांव “किसमा” में एकत्रित होते हैं I “किसमा” हॉर्नबिल फेस्टिवल का उत्सव स्थल है। यहाँ एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रम, देशी खेल, शिल्प, संगीत कार्यक्रम, फैशन, साइकिल चालन, मोटर स्पोर्टिंग, बच्चों के कार्निवल, पुष्प प्रदर्शन, भोजन व पेय, फिल्म समारोह और अन्य अनेक गतिविधियों एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।