कर्मभूमि के मंच पर इस बार एक खास रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जैसा कि हम जानते हैं कि हर साल सत्ताईस नवम्बर को महाकवि श्री हरिवंश राय बच्चन जी की जयंती मनाई जाती है। बारह नवम्बर की खूबसूरत शाम को कर्मभूमि एवं हस्ताक्षर द्वारा आयोजित “श्री हरिवंशराय बच्चन जी की कृतियों पर चर्चा” कार्यक्रम के लिए कर्मभूमि के सभी सदस्यों को आमंत्रित किया। सभी ने ज़ोर शोर से इस चर्चा में भाग लिया।
मंच संचालन की कमान विनीता ए कुमार के हाथों सौंप दी गयी। कार्यक्रम का आगाज़ बच्चन जी के संक्षिप्त परिचय के साथ बहुत ही बढ़िया रहा। सुश्री चेतना को कविता ‘जो बीत गयी, सो बात गयी’ और ‘पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले’ पढ़ने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने बच्चन जी के जीवन से जुड़ा एक प्रेरक प्रसंग भी साझा किया।
उसके बाद विनीता जी ने बच्चन जी की आत्मकथा ‘क्या भूलूँ, क्या याद करूँ’ पर लाजवाब वक्तव्य दिया। साथ ही बच्चन जी के खट्टे मीठे निजी अनुभवों पर प्रकाश डाला।
अब बारी थी कर्मभूमि की सहसंस्थापक सुश्री नीरजा भटनागर जी के, हरिवंश राय बच्चन जी के साथ पत्राचार चर्चा की। जी हाँ! बिलकुल ठीक पढ़ा आपने, नीरजा जी का बच्चन जी के साथ बचपन में सालों साल पत्र- व्यवहार चला था। बच्चन परिवार और बच्चन जी की, कितनी ही बातें, कितने ही किस्से सुनाये गए। सुनकर हम सब मंत्रमुग्ध हुए बिना न रह सके। मानो हम सब चिट्ठियों की दुनिया में पहुँच गए हों।
उसके बाद वरिष्ठ कवियत्री, लेखिका और अनुवादक सुश्री मल्लिका मुख़र्जी ने निशा निमंत्रण की रचना प्रक्रिया को विस्तार से समझाया। उनका वक्तव्य धारा प्रवाह और संवेदनशील था।
सुश्री मधु सोसि गुप्ता ने प्रेम और विरह से परिपूर्ण कविता ‘इस पार प्रिय मधु है, उस पार न जाने क्या होगा’ को अद्भुत भाव भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत किया। मधु जी ने इस कविता को अपने जीवन से जोड़ कर, इसे अपनी ख़ुद की ही व्यथा बताया। सुनकर हम सबकी आँखें नम हो गयी थीं। इसे कवि की सफलता ही माना जायेगा।
और अंतिम प्रस्तुति का क्या कहना! वरिष्ठ और प्रतिष्ठित कवियत्री सुश्री प्रणव भारती जी की प्रस्तुति ‘मधुशाला’ ने हम सबको और सभी दर्शकों को निशब्द ही कर दिया। उन्होंने बचपन से ही मधुशाला को रोज़ सुना था, पढ़ा था। प्रणव जी ने बताया कि कैसे हर बार मधुशाला ने उन्हें जीवन के नये अर्थ समझाये और नयी प्रेरणा दी। उन्होंने हम सबको मधुशाला की न केवल गूढ़ बातें ही बतायीं बल्कि मधुशाला को पढ़ने के लिए भी प्रेरित किया। कार्यक्रम का इससे खूबसूरत अंत नहीं हो सकता था।
तस्वीर: मल्लिका मुखर्जी के सौजन्य से