नया वर्ष मनाने लोग न जाने कहाँ-कहाँ जाते हैं, जाना चाहते हैं। मैं भी बहुत जगहों के बारे में सोच रहा था। देश से बाहर बाली, क्वालालंपुर, सिंगापुर या श्रीलंका भी एक विकल्प हो सकता था। देश में दक्षिण भारत में केरल या लक्ष-द्वीप वगैरह जहाँ सर्दियों से राहत मिल सके। देश के बाहर जाना महंगा सौदा था दक्षिण जाना हो सकता था पर कहाँ जाया जाए यह तय नहीं कर पा रहा था। वैसे काफी कुछ तो घूमा हुआ ही है फिर भी बहुत कुछ बचा हुआ है। दूर के विकल्प छोड़ दिये जा रहे थे। अतः सोचा राजस्थान में ही कहीं चला जाए। राजस्थान में रहते हुए पैंतीस वर्ष हो गये। काफी जगहें देखी हुई हैं। कोटा, जयपुर और बारां में नौकरी की है। रिटायरमेंट के बाद सवाई माधोपुर में पिता रहने लगे थे। झालावाड़ और बाड़मेर में बहनों का ब्याह हुआ है। कई जगह नौकरी के सिलसिले में जाना हुआ है, कहीं-कहीं साहित्यिक कार्यक्रम भी अटैंड किये हैं और कुछ जगहें पर्यटन की दृष्टि से घूमी हैं। चित्तौड़गढ़, हल्दीघाटी, उदयपुर, रणकपुर, आबू, भीलवाड़ा, अजमेर, जोधपुर, जैसलमेर आदि। बस बीकानेर जाना नहीं हो सका तो सोचा कि चलो बीकानेर ही चलते हैं।
पहले खुद गाड़ी चलाकर हर जगह जाता था पर दो एक वर्षों से गाड़ी चलाने के प्रति अरुचि विकसित हुई है इसलिए ड्राइवर लिया और पहली तारीख को सुबह साढ़े नौ बजे हमने (पति-पत्नी) कूच कर दिया। सीकर तक तो दो-तीन बार जाना हुआ है पर आगे जाना नहीं हो सका था। रास्ते में कुछ लेखक मित्रों से मिलना तय हुआ। सीकर के दूसरे किनारे पर श्री रामेश्वर बगड़िया जी जो भडदरा गाँव में रहते हैं उनसे भेंट हुई। आगे बढ़कर लक्ष्मणगढ़ का किला देखा।
लक्ष्मणगढ़ का किला पूरी दुनिया में किला वास्तुकला का एक अनूठा नमूना है क्योंकि यह संरचना विशाल चट्टानों के बिखरे हुए टुकड़ों पर बनी है। यह किला 300 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है। किले के पत्थर ऐसे हैं, जिन्हें छेनी और हथौड़े से थोड़ा नहीं जा सकता। पूरे किले में 23 मीनारें बनी हैं। 25 फीट गहरा पानी का टैंक बना है। कई सुरंगें हैं। किले के दरवाजे को ‘गोमुख’ शैली में डिजाइन किया गया है। 23 सीढ़ियां चढ़ने के बाद किले का प्रवेश द्वार आता है। इसे सिंह द्वार भी कहते हैं। द्वार के बाद 47 सीढ़ियां हैं, जिसे पार करने के बाद किला शुरू होता है। किले में 2 झरोखे भी हैं।
सीकर से 30 किलोमीटर (19 मील) दूर स्थित, इसे 1805 में सीकर के राव राजा लक्ष्मण सिंह ने बनवाया था, जिन्होंने 1807 में लक्ष्मणगढ़ के नाम से एक गाँव भी बसाया था।
सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह ने 19वीं सदी की शुरुआत में कान सिंह सलेधी द्वारा समृद्ध शहर सीकर की घेराबंदी के बाद किले का निर्माण करवाया था। इस किले को 1805 में बनाना शुरू किया गया था। 2 साल के अंदर किला बन गया था। इस किले पर 1882 में खेतड़ी, फतेहपुर और मंडावा के शासकों ने कई बार हमला किया। हमलों से बचने के लिए राजा ने डूंगजी जवाहर जी की मदद ली। किले पर बंदूक के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। इस किले में आज भी वो तोपें हैं, जिनसे दुश्मनों पर वार किया जाता है। कहा जाता है किला बनने से पहले यहां छोटा सा गांव हुआ करता था, जिसका नाम बेर था। फतेहपुर से लौटते समय राव राजा लक्ष्मण सिंह ‘बेर’ गांव में आराम कर रहे थे तभी उन्होंने भेड़िये को नवजात मेमने पर हमला करते हुए देखा। भेड़िये को मेमने की मां ने भगा दिया। राजा और उनके साथियों ने इस घटना के बाद किला बनवाया।
इस किले को राजाओं ने रहने के लिए कभी इस्तेमाल नहीं किया। आजादी के बाद राव राजा कल्याण सिंह की आय बंद हो गई। उन्हें सिर्फ पेंशन मिल रही थी, जो उनके लिए पूरी नहीं पड़ रही थी। इसी को देखते हुए उन्होंने संपत्तियां बेचना शुरू कर दिया।1960 में झुनझुनवाला के कल्याण सिंह ने इसे खरीद लिया। इसके बाद से इस किले में आम लोग नहीं जा सकते हैं।
आगे रतनगढ़ की हवेलियां देखने की इच्छा थी लेकिन बाईपास की कृपा से रतनगढ़ छूट गया। शाम होने लगी थी अतः वापस लौटने का मन नहीं हुआ। श्रीडूंगरगढ़ में राजस्थानी और हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्याम महर्षि जी से मिलना तय हुआ था जो राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के अध्यक्ष हैं। वहाँ से राजस्थली और जूनी ख्यात नामक पत्रिकाओं का संपादन करते हैं। पूर्व में राजस्थान साहित्य अकादमी बीकानेर के अध्यक्ष भी रहे हैं। वे प्रतीक्षा ही कर रहे थे। श्रीडूंगरगढ़ पहुंच कर समिति के अतिथि कक्ष में ठहर गये। कुछ देर बातें हुई कल यानी अगले दिन कार्यक्रम के बारे में जाना। स्थानीय श्रीडूंगरगढ़ महाविद्यालय में व्याख्यान देना था और दोपहर बाद समिति में एकल काव्यपाठ रखा था। ठहरने और भोजन का प्रबंध कर महर्षि जी घर चले गये। समिति के सामने राजमार्ग है पर आसपास कोई आबादी नहीं है। कोई हलचल नहीं। छोटी जगह का यही संकट है। सर्दी अच्छी थी हीटर चला लिया और कमरा बंद कर लिया। इस तरह समय गुजारना भी कठिन होता है बहरहाल रात गुजरी। सुबह आठ बजे महर्षि जी अपने पोते के साथ गर्म पानी और चाय के फ्लास्क लेकर उपस्थित थे। उनका आतिथ्य ससम्मान सर माथे। दोपहर बारह बजे व्याख्यान हुआ, तीन बजे काव्य पाठ और सम्मान। शाम पाँच बचे बीकानेर के लिए रवानगी डाली, साढ़े सात बजे बीकानेर पहुंच कर होटल चिराग में ठहरे। यह होटल हमारे पूर्व सहकर्मी सुधीर कुमार सिंह ने बताई थी। होटल अच्छी थी पर इलाका अविकसित दिखा। रात्रि भोजन सुधीर जी के यहाँ हुआ। सुबह लेखक मित्र नवनीत पांडे और नीरज दइया से संक्षिप्त भेंट हुई।
होटल से निकलकर हम राष्ट्रीय अश्व और उष्ट्र अनुसंधान केंद्र देखने पहुंचे तो पता चला दोपहर बाद खुलेंगे अतः जूनागढ़ फोर्ट देखने निकल गये।
बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के लोग बेफिक्री के साथ अपना जीवन यापन करते है। बीकानेर नगर की स्थापना के विषय मे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने राव जोधा से कहा कि आपने भले ही राव सातल जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये। वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नाथा जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह राजपुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने राव बीका जी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ राव बीका जी ने बीकानेर की स्थापना की।
बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीरे धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँग्य में कहा “मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं”। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृपा हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है-
पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर
यह शहर पारंपरिक ढंग से बसा हुआ है। नगर के भीतर बहुत सी भव्य इमारतें हैं, जो बहुधा लाल पत्थरों से बनी है। इन पत्थरों पर खुदाई का काम उत्कृष्ट है। राजस्थानी चित्रकला की एक प्रभावी शैली का जन्म बीकानेर से हुआ जो राजस्थान का दूसरा बड़ा राज्य था। बीकानेर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। सुदूर मरुप्रदेश में राठौरवंशी राव जोधा के छठे पुत्र बीका द्वारा बीकानेर की स्थापना की गई। बीकानेर राज्य के उत्तर में वहाबलपुर (पाकिस्तान), दक्षिण-पश्चिम में जैसलमेर, दक्षिण में जोधपुर, दक्षिण-पूर्व में लोहारु व हिसार जिला एवं उत्तर पूर्व में फिरोजपुर जिले से घिरी हुई थी। गजनेर व कोलायत यहाँ की प्रसिद्ध झीलें हैं।
बीकानेर शहर की स्थापना सन 1472 में हुई जो जूनागढ़ किले के चारों तरफ फैला हुआ है इतिहासकारों का ऐसा कहना है कि जूनागढ़ किले को हासिल करने के लिए कई राजाओं ने इस पर हमले किए लेकिन एक राजा के अलावा सभी असफल रहे। महाराज राम तेज सिंह के शासनकाल के दौरान बाबर के पुत्र कामरान मिर्जा ने सन 1534 में केवल 1 दिन के लिए जूनागढ़ किले को हासिल कर लिया था इसके पश्चात किले के छठे शासक राजा राय सिंह के शासनकाल के दौरान किले को विकसित किया गया। जिन्होंने जूनागढ़ किले और बीकानेर पर सन 1571-1611 तक शासन किया राजा राय सिंह ने बाद में मुगल शासन को स्वीकार किया।
जहांगीर और अकबर के शासनकाल के दौरान सर्वोत्तम पद प्राप्त किया राजा राय सिंह ने कई युद्धों में जीत हासिल करने के बाद 17 फरवरी 1589 में जूनागढ़ किले का भव्य निर्माण शुरू करवाया जो 17 जनवरी 1594 में पूरा हुआ।
रायसिंह एक कलाप्रेमी राजा थे जिन्होंने किले का निर्माण बेहद ही सुंदर और भव्य थार मरुस्थल के बीच करवाया।
जूनागढ़ किला राजपूताना के अनेक प्रसिद्ध किलों में से एक है जिसकी बेहद ही आकर्षक वास्तुकला है यह किला किसी एक वास्तुकला से निर्मित नहीं है बल्कि कई संस्कृतियों का मिश्रण है।
सर्वप्रथम किले को राजपूत शैली से निर्मित किया गया था लेकिन उसके पश्चात जूनागढ़ किले को राजधानी शैली और मुगल शैली से भी निर्मित किया गया।
जूनागढ़ किला 63119 वर्गगज क्षेत्रफल में फैला हुआ है जो आयताकार संरचना के साथ-साथ 1078 यार्ड की लंबाई में भी बना हुआ है सर्वप्रथम यह किला पुराने पत्थरों से निर्मित था लेकिन बाद में इस किले का निर्माण भव्य और सुंदर वास्तुकला शैली से किया गया।
इस की समस्त संरचना उन राजाओं से प्रभावित है जो किले पर शासन किया करते थे जूनागढ़ किला विशेष प्रकार के लाल पत्थर और किले के महलों की दीवारें सुंदर संगमरमर के पत्थरों से निर्मित है।
किले के अंदर कई प्रमुख महल बने हुए हैं जिन्हें करण महल, गंगा महल, बादल महल, फूल महल और अनूप महल के नाम से जाना जाता है।
फूल महल –
फूल महल का निर्माण महाराज राय सिंह के द्वारा करवाया गया था इतिहासकारों ऐसा कहना है कि यह फूल महल जूनागढ़ किले का सबसे प्राचीन महल है।
चंद्र महल –
चंद्र महल जूनागढ़ किले का सबसे सुंदर और शानदार नकाशीदार महल है और यह महल सौंदर्य से भरपूर है।
करण महल –
करण महल का निर्माण सन 1680 में करण सिंह के द्वारा करवाया गया था ऐसा है कि इस महल का निर्माण औरंगजेब से युद्ध में जीत के कारण बनवाया था।
गंगा महल –
गंगा महल का निर्माण राजा गंगा सिंह के द्वारा 20 वीं शताब्दी में करवाया था वर्तमान समय में गंगा महल को एक संग्रहालय में बदल दिया गया है।
अनूप महल –
जूनागढ़ किले में स्थित अनूप महल का उपयोग प्राचीन समय में विशेष रूप से राज्य के प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में किया जाता था यह एक इमारत के रूप में है जिसमें कई मंजिलें बनी हुई है और विशेष प्रकार की डिजाइन से सजाया गया है।
बादल महल –
बादल महल का निर्माण अनूप महल को भव्य विस्तार करके बनाया गया है इस महल में कई प्राचीन शानदार पेंटिंगो को रखा गया है।
इन सभी महलों की अलग -अलग खासियत और अलग -अलग नकाशी से निर्मित है जोकि किले की सुंदरता पर चार चांद लगाती है इसके अलावा जिले में आकर्षित करने वाली कई सुंदर इमारतें भी मौजूद है।
जूनागढ़ किले में 7 द्वार मौजूद हैं जिनमें से करण द्वार और सूरजपोल मुख्य द्वार हैं सूरजपोल पूर्व में स्थित होने के कारण इसे सूरजपोल नाम दिया।
जब द्वार पर सूरज की रोशनी पड़ती है तो सूरजपोल का दृश्य सुनहरा होता है सूरजपोल दरवाजे को लाल पत्थर से बनी हाथियों की दो मूर्ति और महीन नकाशीदार शैलियों से सजाया गया है।
किले में चांदपोल, फतेह पोल और दौलत पोल (डबल गेट) अन्य द्वार हैं जिनमें से दौलत पोल पर कई महिलाओं के हाथ के निशान बने हुए हैं ऐसा कहा जाता है कि यह हाथ के निशान उन महिलाओं के हैं जिनके पति युद्ध में मारे गए थे जिसके बाद उन महिलाओं ने भी आत्महत्या कर ली थी।साथ में ही म्यूजियम था वह भी देखा। नवनीत जी की सलाह के मुताबिक फोर्ट और म्यूजियम देखने के बाद देशनोक के लिए प्रस्थान किया जहाँ चूहों का मंदिर देखना अद्भुत रहा। चूहों से मिलने के बाद वापस जयपुर का रुख किया।