अज़ीब सा सन्नाटा पसरा है चाय दुकानों पर आजकल,
मेरे शहर में एक कप चाय पीना भी गुनाह है इन दिनों।
सुबह सूर्योदय से पहले ही उठ जाते थे चाय वाले, शहर के जगने से पहले वह अपने होटल की साफ-सफाई व पूजा अर्चना कर चाय बनाना शुरू कर देते थे। चाय के शौकीन उनके आने से पहले ही बाट जोते, चाय पर चाय का दौर चलता। कुछ लोग अखबार लेकर बैठ जाते, खबरों का सिलसिला शुरू होता, शहर के राजनैतिक घटनाक्रम पर बहस होती, शहर में नवीन घटना की जानकारी मिलती। छोटे शहरों में मल्टीप्लेक्स या ऐसी रौनक वाली जगह कहा होती है भला! जो भी रौनक होती है वह चाय की टपरियों पर मिलती है।
पिछले एक साल से मानो ज़िन्दगी को नज़र लग गयी है, ज़िन्दगी पहले जैसी नहीं रही। फरवरी-मार्च में जीवन कुछ पटरी पर लौटने लगा था, लेकिन पुनः सबकुछ ठप्प पड़ गया। ज़िन्दगी थम गई, अब सुबह पहले जैसी नहीं रही। सूर्योदय के बाद शहर में निकलते है तो चाय की टपरियों होटलों पर एक अजीब सा सन्नाटा दिखता है।
24 तारीख को लॉक डाउन खुलेगा या नहीं, अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन सुबह सवेरे कुछ चाय वाले घण्टे भर चोरी से चाय बेचते है। अब मजबूरी कहे या हालात, बहुत दुश्वारियां है आम आदमी की ज़िंदगी में, किसी को होम लोन की किश्त चुकानी है, किसी के मकान का किराया देना है, किसी को रोटी का जुगाड़ करना है तो किसी को दवाई लानी है, अपनी-अपनी जरूरतें हैं यहाँ।
ऐसे ही एक आज सुबह बहुत दिनों बाद बाज़ार जाना हुआ, एक चाय वाले से चाय पीते हुए हम चारों तरफ ऐसे देख रहे थे जैसे बहुत बड़ा गुनाह कर रहे हो। चाय वाला बोला, जिसने चाय पी ली है वह जल्दी निकल जावे, पुलिस वाले आ गए तो मुश्किल हो जाएगी। एक कटिंग चाय पीना भी अब मेरे शहर में गुनाह है, ऐसे हालात की जीवन में कल्पना नहीं की थी।
बहुत कुछ खो दिया है हमने, कुछ लोग कोरोना से हमेशा हमेशा केलिए जा चुके थे, ऐसे चेहरे भी है जो रोज शहर की होटलों पर नज़र आते थे, जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा तब कुछ चेहरे नहीं दिखेंगे, तब क्या चाय की सिप गले से उतरेगी? शायद चाय पड़ी-पड़ी ठंडी हो जायेगी, शायद आँसुओं की कुछ बूंदें भी चाय में टपकेगी.. कुछ दिन इस नमकीन चाय का स्वाद चखना पड़ेगा। आखिर कुछ ज़ख्म भरने में समय लगेगा।
राजस्थान व देश के कुछ हिस्सों में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया जा रहा है, ऐसा सुना है, केस आ रहे हैं। दिल बैठ सा जाता है, आखिर कब पहले जैसी ज़िंदगी गुजार सकेंगे? एक तरफ कोरोना, दूसरी तरफ ब्लैक फंगस, सरकार कहती है भीड़ से बचना है… आने वाले काफी दिनों तक यही हालात रहेंगे, ऐसे में आम आदमी को भीड़ से बचते हुए इस बन्द में भी रोटी तो चाहिए! कैसे होगा सब। सरकारी फाइलों के गरीब, वास्तविक वाले गरीब नहीं होते, यह भी विडम्बना है। हमारे यहाँ गरीब दिखने वाला गरीब नहीं है, भूखा गरीब नहीं है, जिसकी छत टपकती है वह गरीब नहीं है, गरीब के लिए सरकारी कागज चाहिए। गरीबी का सर्टिफिकेट बनाने के लिए अमीर होना जरूरी है!?
इस देश का गरीब तो आदी है जैसे तैसे जी लेगा, उसके हिस्से की रोटी दूसरे छीन लेंगे वह भी बर्दाश्त कर देगा व फिर उन्हीं चेहरों पर ऐतबार करते हुए लोकतंत्र के नाम पर वोट भी दे देगा, आखिर वह पैदा ही तो वोट देने के लिए हुआ है। लोकतंत्र को जीवित व साक्षात रखने की जिम्मेदारी भी तो आम आदमी के हिस्से ही आती है। सरकार का क्या? सरकार के चेहरे बदलते है आत्मा नहीं, सरकार के वादें बदलते हैं नियत नहीं..ऐसा ही चलेगा शायद।
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की शुभकामनाओं के आदान-प्रदान के बीच चाय वाले सलामत रहे, यह शुभकामनाएं भी इस बार जरूरी है क्योंकि हो सकता है कि चाय की टपरी व होटल जब खुलने लगे तब किसी चाय वाले को हम देख न पाये, आखिर इस दौर में जीवित रहना भी तो कठिन सा प्रतीत होता है।
जल्दी वह सूर्योदय भी हो जब चाय की होटलों व टपरियों पर भोर की आहट होते ही लोग नज़र आये, चाय पीते, कोई मीठी व कोई फीकी चाय मांगते, कोई कटिंग के पैसे देने के नाम पर होटल वाले से झगड़ते, कोई अखबार पढ़ते, कोई शहर की चर्चा करते, कोई खुशखबरी सुनाते, कोई हादसे की जानकारी देते। वो दिन भी जल्दी आये जब चाय पीकर जब किसी मन्दिर के बाहर से गुजरे तो सुबह की आरती गाते भक्तजन की आवाज़ सुनकर हमारे कदम भी रुक जाए, चप्पल उतार कर भगवान के समक्ष हम श्रद्धा से से झुककर आगे बढ़ जावे क्योंकि हमें जल्दी है, आखिर नहा-धोकर ऑफिस/दुकान भी तो जाना है। सभी को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की शुभकामनाएं।