लार्ड मैकाले ने 2 फ़रवरी, 1835 की Minute on Education नाम से एक रिपोर्ट भारत की शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की सिफ़ारिश की थी और स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि भारत को … है, तो इसकी ‘देशी और सांस्कृतिक शिक्षा प्रणाली’ को पूरी तरह से ध्वस्त कर देना चाहिए और इसे ‘अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली’ से बदल देना चाहिए और उसके बाद ही भारतीयों के शरीर में ही अंग्रेजी का जन्म होगा और जब वे इस देश के विश्वविद्यालय को छोड़ देंगे, तो वे हमारे हित में काम करेंगे।
सुनक ने शायद मैकाले (भारतीयों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित करने पर जोर देने वाले) को भी गौरवान्वित किया होगा, जिनके बनाए सिस्टम ने एक ऐसे वर्ग को तैयार किया जो खून और रंग से तो भारतीय हैं लेकिन रुचि, विचारों, नैतिकता और बुद्धि में वे इंग्लिश हैं।
वक्त ने करवट ली है। जिस मुल्क ने भारत पर 200 साल तक राज किया, आज उस देश का मुखिया एक भारतवंशी बन बैठा है। जिस साम्राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था, वह अब एक भारतीय नौजवान से चमकने की उम्मीद लगाए बैठा है। पूरी दुनिया में रहने वाले भारतीय इस पर गर्व महसूस कर रहे हैं। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू लिखते हैं कि वह ब्रिटेन जो अब ग्रेट नहीं रहा, एक ऐसा किंगडम जो काफी मुश्किल से एकजुट है, उसने अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने और राजनीतिक स्थिरता लाने के लिए साम्राज्य के एक नौजवान को चुना है।
दुनिया के कुछ देशों में मंगलवार को जब ग्रहण काल चल रहा था, तब ब्रिटेन में ऋषि युग शुरू हो चुका था। तब आज से 75 वर्ष पूर्व दिए गए उस उक्ति को आज याद करना कितना आवश्यक लग रहा है जब साहित्य के नोबेल से नवाजे गए दुनिया के एकमात्र प्रधानमंत्री, ब्रिटेन के दो बार पीएम रहे विंस्टन चर्चिल ने 1947 में भारतीयों की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए थे। चर्चिल का मानना था कि भारतीयों में शासन करने की काबिलियत नहीं है। भारत को स्वतंत्र भी कर दिया जाए तो भारत पर शासन नहीं कर पाएंगे और यह देश बिखर जाएगा। अब एक भारतवंशी ऋषि सुनक ने उन्हीं के देश का सर्वोच्च पद संभाला है।
ऋषि गुजरांवाला (तत्कालीन भारत, अब पाकिस्तान) के पंजाबी खत्री परिवार से हैं। उनके दादा रामदास 1935 में अंबाला बाला से दक्षिण अफ्रीका और वहां से ब्रिटेन गए। ऋषि सुनक का जन्म 12 मई, 1980 को इंग्लैंड के साउथहैंपटन में हुआ था। सुनक के पिता यशवीर डॉक्टर थे और माँ ऊषा सुनक फार्मासिस्ट थीं।
ऋषि सुनक की शिक्षा विन्चेस्टर कालेज, आक्सफोर्ड व स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालयों में हुई। उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से पी.पी.ई. तथा स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से एम.बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। यहीं उनकी मुलाकात पत्नी अक्षता मूर्ति (नारायण मूर्ति/ सुधा मूर्ति इन्फोसिस) से हुई। पढ़ाई के दौरान ये गर्मी की छुट्टियों में ‘साउथैम्पटन करी हाउस’ में वेटर के तौर पर काम करते थे।
”ऋषि सुनक धर्मपरायण हिन्दू हैं। हालांकि वह विरले ही सार्वजनिक रूप से अपने मज़हब को लेकर बात करते हैं। मैं तो पूरी तरह से ब्रिटिश हूँ। यह मेरा घर और देश है। लेकिन मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत भारतीय है। मेरी पत्नी भारतीय है। मैं हिन्दू हूँ और इसमें कोई छुपाने वाली बात नहीं है।” (गार्डियन)
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा हैं, “उन्होंने अपनी दोहरी पहचान में संतुलन रखने की बात की है। वह एक ऐसी पीढ़ी से आते हैं जो ब्रिटेन में पैदा हुई हैं लेकिन उसकी जड़ें कहीं बाहर हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि बचपन में उनके वीकेंड हिंदू मंदिरों और साउथेम्प्टन के स्थानीय फुटबॉल क्लब द सेंट्स में मैच के साथ गुजरा करते थे।”( बीबीसी)
ऋषि सुनक का कहना है कि मैं ब्रिटेन का नागरिक हूं। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है। हिन्दू होने के नाते वह सप्ताहांत में मंदिर जाते हैं परंतु इसके साथ ही वह ईसाई धार्मिक अनुष्ठानों में भी भाग लेते हैं। वह अपनी मेज पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखते हैं। ऋषि सुनक लोगों से धार्मिक आधार पर गौ मांस भक्षण त्यागने की अपील भी कर चुके हैं। वह स्वयं गौ मांस का सेवन नहीं करते और शराब भी नहीं पीते। वह ब्रिटेन के ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री होंगे जो शराब का सेवन नहीं करते हों।
42 वर्षीय ऋषि सुनक ने अपना राजनीतिक कैरियर 2015 में ही शुरू किया था। पांच साल के भीतर वे थेरेसा मे और बोरिस जॉनसन की सरकार में ऊंचे पदों पर पहुंचे और वित्त मंत्री बन गए। यह चकित करने वाली प्रगति है और भारत में तो इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। संसद में प्रवेश करने के सात साल बाद प्रधानमंत्री बन जाना विस्मयकारी है। ऋषि सुनक सबसे पहले ब्रिटिश नागरिक हैं और उसके बाद उनकी वंश परंपरा आती है। यह दिखाता है कि ब्रिटिश लोगों को प्रतिभा की कद्र करना आता है और वे समय रहते उसे पुरस्कृत करना भी जानते हैं। ऋषि भारत में होते तो आज सदन में पीछे की बेंचों पर बैठे होते, या यदि सत्ता पक्ष में होते तो ज्यादा से ज्यादा उन्हें किसी राज्यमंत्री के दर्जे से नवाज दिया गया होता। या फिर दलगत या जातीय राजनीति में ही अपनी प्रतिभा को तिरोहित कर रहे होते।
वर्तमान परिस्थितियों में ब्रिटेन को आज एक ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व की जरूरत थी, जिसे वित्तीय प्रबंधन के मामलों में महारत हासिल हो। अतीत में ऋषि खुद को साबित कर चुके हैं। उन्हें इसलिए भी चुना गया है क्योंकि मौजूदा विकल्पों में वे ही सबसे बेहतर थे।
यूके के प्रधानमंत्री के रूप में ऋषि सुनक का निर्वाचित होना एक दुर्लभ संयोग है। एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति को सरकार में सबसे ताकतवर पद पर बिठा देना, जब एक ऐसी दुनिया में जहां बहुतेरे लोगों के लिए नस्ल, धर्म, जाति के मसले पर तटस्थ बने रहना मुश्किल होता है, वहां संसद के सदस्यों ने अपने नेता के रूप में भूरी चमड़ी वाले एक हिंदू को चुन लिया। जबकि ब्रिटिश आबादी में केवल 7.5 प्रतिशत ही एशियाई हैं। अमेरिका की राजनीति में अश्वेतों की एक बड़ी भूमिका अरसे से रही है, जबकि ब्रिटेन में भारतीयों या एशियाइयों की वैसी स्थिति नहीं है।
1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल जो स्वयं कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य थे, ने कहा था कि “भारत को ब्राह्मणों के शासन में छोड़ कर जाने का मतलब एक निर्दयतापूर्ण और धूर्त लापरवाही होगी।“ उनके विचार में अंग्रेजों के भारत से जाने पर उनके द्वारा तैयार की गई सारी पब्लिक सर्विसेज- ज्यूडिशियल, मेडिकल, रेलवे और पब्लिक वर्क्स-खत्म हो जाएंगी और भारत सदियों पहले वाले क्रूर तथा असभ्य मध्य युग की गर्त में समा जाएगा, परन्तु आज उसे झुठलाते हुए चर्चिल की पार्टी का ही एक भारतवंशी नेता ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन गया है।
क्या हम कल्पना भी कर सकते हैं, नस्लवादी विंस्टन चर्चिल ऐसी किसी भी सम्भावना पर किस तरह की टिप्पणी कर बैठते? हिंदू धर्म के बारे में चर्चिल के जो विचार थे, वो किसी से छुपे नहीं हैं। वे हिंदुओं को जंगली और जाहिल कहते थे। और आज उसी ब्रिटिश हुकूमत के शीर्ष पर एक ऐसा व्यक्ति विराजा है, जो न हिंदू है, बल्कि खुलेआम हिंदू धर्म का पालन करता है। ऋषि सुनक ने मंत्रिपद की शपथ भी गीता पर हाथ रखकर ली थी और अपनी पार्टी के नेतृत्व के लिए कैम्पेन करते समय उन्होंने गो-पूजा करते हुए और जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की उपासना करते हुए अपने फोटो और वीडियो ट्वीट किए थे।
यह समझा जाना जरूरी हैं कि ऋषि सुनक को ब्रिटेन वासियों ने न तो उनके अल्पसंख्यक या एशियाई मूल अथवा हिन्दू होने की वजह से प्रधानमंत्री चुना है बल्कि केवल और केवल एक ब्रिटिश नागरिक के रूप में उनकी योग्यता के आधार पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद पर बैठाया है।
बाहरी दुनिया के हिसाब से सोचें तो ब्रिटेन के नजरिए में कोई बदलाव नहीं आने वाला है। यह पश्चिमी खेमे से ही सख्ती से जुड़ा है और अमेरिका पर निर्भर रहने वाला है।… महत्वपूर्ण बात यह है कि सुनक की निजी पृष्ठभूमि के बजाय उनके पेशेवर रुख ने लोगों का दिल जीता है।
ऐसे में भले ही पूरी दुनिया में भारतीय मूल के लोग जश्न मना रहे हों लेकिन सच्चाई यही है कि ऋषि संवैधानिक रूप से अपने देश (ब्रिटेन) की सेवा करने के लिए पद पर पहुंचे हैं और उनके पास विकल्प सीमित हैं। उनकी विदेश नीति भी यूरोप, अमेरिका, रूस और चीन पर केंद्रित हैं।
ऋषि सुनक में कुछ तो है कि कंजर्वेटिव पार्टी में रहने के 7 वर्ष के भीतर ही वह पार्टी में शीर्ष पद पर पहुंच गए। कंजर्वेटिव पार्टी ने ऋषि सुनक की प्रतिभा को देखा और उनमें विश्वास व्यक्त किया कि वह ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को सुधार कर पटरी पर ला सकेंगे। हालांकि सुनक के लिए भी ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि सारा यूरोप मंदी में जा रहा है। यूक्रेन युद्ध के कारण तेल संकट महंगाई को बढ़ा रहा है ऐसे में यदि ऋषि सुनक ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके तो यह एक बहुत बड़ा कदम होगा जो भारत के लिए भी गर्व की बात होगी। लेकिन वह ऐसा कर सकेंगे या नहीं, यह आने वाला समय ही बताएगा।
ऋषि सुनक को लेकर पाकिस्तान में एक दिलचस्प बहस भी चल रही है। उनकी तुलना नए पाकिस्तान का सपना दिखाने वाले इमरान खान से की जा रही है क्योंकि- ऋषि सुनक इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं, इमरान खान भी ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़े हैं। ऋषि ने फिलॉसफी, पॉलिटिकल साइंस और इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है, इमरान खान ने भी फिलॉसफी, पॉलिटिकल साइंस और इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की थी। ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए, इमरान खान भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे।
लेकिन ऋषि दूसरे मुल्क में रहकर भारत का नाम रोशन कर रहे हैं जबकि इमरान खान पर सरकारी खजाने में चोरी साबित हो चुकी है। ऋषि सुनक ब्रिटेन को संकट से निकालने की बात रहे हैं, जबकि इमरान सत्ता से बेदखल होने पर जिहाद का नारा दे रहे हैं।