“मौसम था बेहद सुहाना,
बादलों का भी था आना जाना।
बारिश की छिटपुट बूंदे थी,
तो हवा का भी था तराना।
चारों तरफ थी फैली हरियाली,
मगर बीच में एक महल था पुराना।”
कच्छ के मांडवी शहर से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है विजय विलास पैलेस। कई वर्षों के बाद फिर एक बार कच्छ यात्रा के दौरान परिवार के साथ विजय विलास पैलेस देखने का अवसर प्राप्त हुआ।
करीब 4000 वर्षों से भी पुराना कच्छ का वैभवशाली इतिहास विविध समृद्धि और रचनात्मक संस्कृति से भरा पड़ा है। सन 1540 और 1948 के बीच कच्छ पर जाडेजा राजवंश का शासन हुआ करता था, जो अपने आप को भगवान श्री कृष्ण के वंशज मानते हैं। इस रियासत की स्थापना राजा खेंगारजी प्रथम ने की थी जो सन 1549 में कच्छ के पहले राव बने और उन्होंने भुज को अपनी राजधानी बनाया। 19वीं शताब्दी में प्रागमल जी द्वितीय के शासनकाल में भवनों का खूब निर्माण हुआ था। भुज का प्राग महल और मांडवी का विजय विलास महल इन्हीं के शासनकाल में बने।
विजय विलास पैलेस का निर्माण कच्छ के महाराज श्री खेंगारजी तृतीय के शासनकाल में हुआ था। यह महल उनके पुत्र और साम्राज्य के वारिस युवराज श्री विजयराज जी के लिए बनाया गया था जो गर्मियों में यहां समय बिताते थे। उनके नाम पर ही इस महल का नाम विजय विलास पैलेस रखा गया है। यह महल 800 एकड़ में फैला हुआ है। चारों तरफ आँखों को सुकून देने वाली हरियाली ही हरियाली है। इसके छतरी नुमा गुंबज बंगाली और राजस्थानी वास्तुकला के अनुसार बनाए गए हैं। महल का निर्माण कार्य सन 1919 में शुरू हुआ और सन 1929 में पूरा हो गया। महल का निर्माण राजपूत वास्तुकला के अनुसार किया गया है जिसे बनाने में लाल बालू पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसके दरवाजे, खिड़कियां, झरोखे और अन्य कारीगरी के लिए राजस्थान, बंगाल और कच्छ के कारीगरों को बुलाया गया था। बगीचों के बीचो बीच बने इस महल में संगमरमर के फव्वारे बने हैं।
इस अद्भुत एवं शाही महल की दीवारों पर परिवार की और अन्य तस्वीरें टंगी हुई है। महाराजाओं के शासनकाल में बने चित्र मौजूद है इसके साथ महाराजाओं की शिकार की गई ट्रॉफीज भी सजाई गई है। महाराजा द्वारा शिकार किया गया शेर, राजाओं के शिकार के शौक को दर्शाता है। यह मशहूर एवं आलीशान महल गुजराती ,हिंदी ,भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग का भी हिस्सा रहा है।
सन 2001 में फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारिकर द्वारा दिग्दर्शित एवं आमिर खान एवं अन्य कलाकारों द्वारा अभिनीत फिल्म” लगान” तथा बंगाली भाषा की विख्यात साहित्यकार मैत्रेयी देवी द्वारा रचित एवं बंगाली भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास”न हन्यते “पर आधारित संजय लीला भंसाली द्वारा दिग्दर्शित हिंदी फिल्म”हम दिल दे चुके सनम” के कई दृश्यों को इस महल में फिल्माया गया है जिसमें सलमान खान, ऐश्वर्या राय एवं अन्य कलाकारों ने अभिनय किया है। यह अत्यंत सुंदर एवं अलंकृत महल, कच्छ की अमूल्य विरासत है।
पैलेस से 8 किलोमीटर की दूरी पर बहुत ही लाजवाब मांडवी बीच है। शाम के वक्त डूबते सूर्य का नजारा देखते ही बनता है। समंदर के किनारे घुड़सवारी, ऊंट सवारी आदि का मजा लिया जा सकता है। इसके अलावा मांडवी में स्थित “श्यामजी कृष्ण वर्मा मेमोरियल” को भी देखना ही चाहिए। सन 1857 में मांडवी शहर में जन्मे भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों में से एक गिने जाने वाले श्याम जी कृष्ण वर्मा को सम्मान प्रदान करने एवं लोक जागृति के उद्देश्य से हमारे प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इसकी स्थापना करवाई।
मांडवी का 72 जिनालय जो कि जैन संप्रदाय का पवित्र तीर्थ धाम है, भी दर्शनीय स्थल है। इसकी कला एवं कारीगरी बेजोड़ है। यहां पर 72 छोटी छोटी देरियां बनाई हुई है जिसमें जैन धर्म के तीर्थंकर विराजमान है।
अगर आप मांडवी स्थित इस महल को और अन्य स्थानों को देखना चाहते हैं तो आपको भुज आना पड़ेगा। भुज से हर 15-20 मिनट में बस या टैक्सी मिल सकती है। आप अपनी निजी कार के जरिए भी आ सकते हैं। हिंदुस्तान के हर एक शहर से भुज को कनेक्ट करने के लिए ट्रेन – बस सेवा उपलब्ध है। भुज का डोमेस्टिक एयरपोर्ट है जहां से मुंबई, दिल्ली फ्लाइट कनेक्टेड है। वैसे देश विदेश से आने वाले अधिकतर यात्री अहमदाबाद आकर फिर बस या टैक्सी से ही यात्रा करते हैं। भुज जो ‘गेट वे रण आफ कच्छ’ कहा जाता है और फिल्मों की खूबसूरत शूटिंग लोकेशन का भी केंद्र है। भुज जिसका नाम द ग्रेट रण ऑफ कच्छ के साथ जुड़ा है, 7500 स्क्वेयर किलोमीटर के एरिया में फैला है। यह दुनिया के सबसे बड़े साल्ट डेजर्ट की सूची में भी शामिल है। “द ग्रेट रण ऑफ कच्छ” हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच इंटरनेशनल बॉर्डर की बाउंड्री है। कुछ समय पहले रिलीज हुई फिल्म “भुज” सन 1965 में हिंदुस्तान-पाकिस्तान की लड़ाई पर आधारित है, जो कि भुज में ही फिल्माई गई है।
प्रतिवर्ष होने वाला रणोत्सव जो दिसंबर से लेकर फरवरी तक चलता है, वहाँ का रास्ता भी भुज से होकर जाता है। यहाँ देश विदेश के हजारों पर्यटक कच्छ के सफेद रण एवं रणोत्सव का आनंद जरूर लेते हैं।
इसके अलावा भुज में अनेक आकर्षण के केंद्र है जैसे कि हमीरसर लेक, आइना महल, कच्छ म्यूजियम, स्वामीनारायण मंदिर, प्राग महल, भुजियो डूंगर, भुजिया फोर्ट आदि।
गुजरात के कच्छ में स्थित आशापुरा माता का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। आशापुरा माता को कई समुदाय अपनी कुलदेवी के रूप में मानते हैं। यह हमारी भी कुलदेवी है अतः प्रतिवर्ष अचूक दर्शन हेतु वहां जाना होता है। आशापुरा माता का मुख्य मंदिर जो “माता नो मढ़” नाम से जाना जाता है, भुज से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पर भक्तों की ऐसी मान्यता है कि माता से सच्चे मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है। यात्री यहाँ देश-विदेश से माता के दर्शन के लिए आते हैं। टेलीविजन पर कई वर्षों से प्रसारित सीरियल (गुजराती भाषा के सुप्रसिद्ध लेखक तारक मेहता द्वारा लिखित कहानी पर आधारित) “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” में आशापुरा मंदिर एवं कच्छ के रण को दर्शाया गया है।
कच्छ एक सूखा प्रदेश है अतः यहां घूमने के लिए सर्दियों का मौसम ही बेहतर रहता है। कच्छ और भुज की फेमस एवं चटाखेदार “दाबेली “को कैसे भूल सकते हैं? प्रत्येक यात्री इसका जी भर के लुत्फ उठाते तो है साथ में इसके मसाले के कई पैकेट भी साथ में लेकर जाते हैं।
“कच्छ का यह रण हिंदुस्तान का तोरण है
चांदनी रात की सफेद धरती
लगता है जैसे चांद जमीन पर उतर आया है
प्रकृति की कठिनाइयों को दिल पर नहीं लेते कच्छ के लोग
जीवन को सजाते हैं, रंगों से, कला से, संगीत के सुरों से
मांडवी का नीला समंदर भी यहीं है पास में
यहां खुशबू है उत्साह की, उत्सव की, रंगों की, कलाकारी की
खुशबू है गुजरात की
आपने कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।
कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में!
हैंं!”
– अमिताभ बच्चन
शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने हमारे महानायक को पर्दे पर गुजरात पर्यटन के इस विज्ञापन में न देखा हो!
जी हाँ, कच्छ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा।