नवरात्र यानी देवी माँ की आराधना का पर्व हर साल देश में श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाता है। प्रतिदिन माँ की पूजा-अर्चना की जाती है। माँ प्रथम गुरु है, माँ प्रथम आचार्य है और बेटी को लक्ष्मी, दुर्गा के रूप में ही स्वीकार किया जाता है। यह हमारे देश की संस्कृति का सुखद, गौरवशाली पक्ष है, पर आज जिन विकृतियों का शिकार सामाजिक जीवन हो गया है वह अत्यंत ही पीड़ादायक है। दुनिया भर के लोग भारत में पर्यटन के लिए आते हैं। वे यह भी जानते हैं कि भारत में बेटियों का विशेष सम्मान है, पर जब यह समाचार मिलता है कि विदेशी महिला के साथ दुराचार या बलात्कार हो गया तो यह एक व्यक्ति का अपराध नहीं रहता, पूरे देश को बदनाम करने वाला राष्ट्रीय शर्म का विषय हो जाता।
अब भी बालिकाएं, बेटियां हमसे अपने हक के लिए लड़ रही हैं। चांद तक पहुंच चुकी दुनिया में, बालिकाओं की खिलखिलाहट आज भी उपेक्षित है। अपनी खिलखिलाहट से सभी को खुशी देने वाली लड़कियां आज भी खुद अपनी ही खुशी से महरूम हैं। आज भी वह उपेक्षा और अभावों का सामना कर रही हैं। गरीबी और रूढ़ियों के चलते लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। लाख प्रतिभाशाली होने के बावजूद वह प्राथमिक शिक्षा से आगे नहीं बढ़ पाती। कम उम्र में ही उनकी शादी कर दी जाती है या शादी करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में बहुत-सी लड़कियां गरीबी के बोझ तले जी रही हैं लड़कियों को शिक्षा मुहैया नहीं हो पाती। दुनिया में हर तीन में से एक लड़की शिक्षा से वंचित है। लड़कियां आज लड़कों से एक कदम आगे हैं, लेकिन आज भी वह भेदभाव की शिकार हैं।
बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी वह भेदभाव, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। इसलिए लड़कियों को शिक्षित करना हमारा पहला दायित्व है और नैतिक अनिवार्यता भी। शिक्षा से लड़कियां न सिर्फ शिक्षित होती हैं बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास भी पैदा होता है। वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं साथ ही यह गरीबी दूर करने में भी सहायक होती है।
कोई दिन ऐसा नहीं होता जब पूरे देश में किसी न किसी भाग में बालिग अथवा नाबालिग के साथ दुराचार का समाचार न मिले। अब तो बलात्कारी इतने क्रूर या बलवान हो गए कि वे इज्जत लूटते हैं, गला भी घोंटते हैं। समाचार मिलता है कि युवती का अपहरण हुआ और कार में ही उसके साथ गैंगरेप के बाद आधी मरी, पूरी लुटी युवती को सड़क पर फेंक गए।
बेटियां हमारे समाज की संस्कृति की परिचायक होती हैं। बेटियों के सम्मान और उनकी सुरक्षा से ही समाज की प्रगति संभव है। बेटियां हमारे घर की रौनक होती हैं और उनके बिना सृष्टि अधूरी है। बेटियां मन की शक्ति तथा साधना की अभिव्यक्ति हैं। उनके अधिकारों की रक्षा करें। ऐसा वातावरण निर्मित करें ताकि उनका किसी भी प्रकार का शोषण न होने पाए।
अपराधियों को देश के कानून के मुताबिक दंड मिले। कुछ दिन पुलिस दौड़ेगी, अपराधी पकड़े जाएंगे, कानूनी प्रक्रिया और बहुत से केसों में सिफारिशी प्रक्रिया भी चलेगी और जेल की सलाखों के पीछे अपराधी पहुंच जाएंगे। सवाल यह है कि किसी घटना के बाद सख्त कानून बनाने की घोषणा, दुआ प्रकट करने का वक्तव्य या सदा चिंता करने वाले नेताओं की चिंताओं से भरे समाचार कब तक सुनते रहेंगे! हर प्रबुद्ध नागरिक के समक्ष प्रश्न यह है कि आखिर देश का वातावरण इतना वासनामय कैसे हो गया कि प्रतिवर्ष हजारों बालिकाएं और युवतियाँ बलात्कार जैसे अपराध का शिकार हो रही हैं। क्या पुरुष मानसिकता ही विक्रृत हो गई है?
जहां भारत की एक बेटी का अपहरण करने वाले को वंश सहित नष्ट करना ही मर्यादा पुरुषोत्तम का पौरुष माना जाता है, वहां आखिर हमारी वर्तमान पीढ़ी क्यों भटक गई? दोष इस देश को चलाने वालों का भी है। कौन नहीं जानता कि अधिकतर अपराध शराब के नशे में होश गंवाकर ही किए जाते हैं, पर अधिकतर उत्सव, खुशी के मौके भी शराब के साथ ही मनाए जाते हैं।
सरकारें चाहती हैं कि लोग शराब पियें। सरकारी खजाना भरने की चिंता रहती है, पर इससे समाज की सेहत कितनी विकृत होगी अथवा सड़क दुर्घटनाओं में कितने लोग मारे जाएंगे, इसकी परवाह सत्ता के शिखरों पर आसीन और दुर्घटनाओं के बाद मगरमच्छीय आंसू बहाने वालों को नहीं। दुखद समाचार यह भी सुनने को मिलता है कि एक वृद्धा का अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म किया गया, हत्या कर दी गई।
इस सारे लज्जाजनक और दुखद कांड में शराब का दोष ज्यादा है और शराब पिलाने वालों का तो है ही। सरकार की नाक तले विज्ञापनों द्वारा समाज का वातावरण इतना वासनामय और विलासिता पूर्ण हो चुका है कि अबोध मन और उम्र के लड़के-लड्कियां जब वे सब देखते हैं तो उनकी भी सुप्त इच्छाएं जागती हैं। प्रत्यक्ष जीवन में जो वर्जित है, अपराध है वह सब खुले रूप से चैनलों और समाचार पत्रों के माध्यम से दिखाया जाता है।
शरीर का भद्दा प्रदर्शन करके नोट कमाने वाले तो सुरक्षित घरों में पहुंच जाते हैं, पर यह सब देखकर भटका हुआ वर्ग अपनी अनियंत्रित वासनाओं को पूरा करने के लिए किसी को भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। देश के शासक और मीडिया कंपनियों के मालिक इतने स्वार्थी हो गए कि वे युवा पीढ़ी के अपराध की ओर बढ़ते कदमों को देखते हुए भी वासना फैलाने के इस धंधे को बंद करने को तैयार नहीं। शिक्षा के मंदिरों में नैतिक शिक्षा देने का कोई प्रयास नहीं धर्म निरपेक्षता के ठेकेदार गिरते हुए सामाजिक स्तर को नहीं देखते, लेकिन नैतिक शिक्षा में उन्हें सांप्रदायिकता की बू आने लगती है। अगर स्कूलों कालेजों में शिक्षा के साथ सामाजिक नैतिकता को नहीं जोड़ा गया तो वर्तमान पीढ़ी कहां तक पहुंच जाएगी, इसका अनुमान भी भयावह है। आखिर क्यों युवक-युवतियों के विवाह पूर्व संबंधों को सहजीवन कहकर मान्यता दे दी और कानून भी उनके संरक्षण के लिए आ गया। क्या यह भारत का जीवन मूल्य है? क्या बिना विवाह के शारीरिक संबंध किसी सही दिशा में ले जा सकते हैं? इस संबंध से उत्पन्न हुए बच्चे कैसा भविष्य पाएंगे, यह चिंता भी किसी को नहीं है। दुख यह भी है कि नारी की पूजा करने वाले देश में लाखों वेश्याएं हैं। पाठ पूजा, दान पुण्य, तीर्थ स्नान करके स्वर्ग प्राप्ति का रास्ता दिखाने वाले इस देश के लाखों धर्म गुरु भी उन बेचारियों को इस संसार में बसे नर्क से छुड़ाने के लिए कुछ नहीं करते। कन्या-पूजन के पर्व पर बेटियों की अस्मिता की रक्षा के लिए समाज गंभीरता से सोचे।
बेटियों के प्रति मन में सकारात्मक सोच रखें। उन्हें खेलने-कूदने की आजादी दें। शासन द्वारा बेटियों के लिए कई अभियान संचालित किए जा रहे हैं। इन्हीं में से एक है बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान। यह बेटियों के प्रति सभी भेदभाव खत्म करने का अभियान है। बेटियों को आगे बढ़ने एवं नई ऊंचाईयों को छूने के लिए प्रेरित करें। जहां नारियों की पूजा होती है, सम्मान मिलता है वहां देवता निवास करते हैं। शक्ति, विद्या और लक्ष्मी जिसके पास है उसके पास सब कुछ है। उन्होंने कहा कि एक अच्छी माँ सौ शिक्षकों से भी ज्यादा प्रभावशाली होती है।
हम सभी के सामने से हाल के दिनों/ महीनों में वह खबर गुजरी है जिसमें क्रिकेटर महेन्द्र सिंह धोनी की प्यारी सी बेटी के बारे में इतनी गिरी हुई बात लिखी है जिसे अपनी कलम की नोंक पर लाने में भी शर्म महसूस कर रहा हूं। खबर की जानकारी सबको है लेकिन विरोध बस वहां सिमट कर रह गया है जहां धोनी को पसंद करने वाले और ना पसंद करने वाले बंटे हैं।
हाथरस में अंधेरे में जला दी गई बेटी की राख बुझ चुकी है, वह ऑनर किलिंग है या रेप के बाद हत्या, या कुछ और… नहीं पता, लेकिन एक बेटी मरी है, मार दी गई है या मरवा दी गई है.. बस इस सच को जानते हैं हम सभी।
कैसे मनाएं हम बेटी दिवस, बेटी का दिवस जब हर दिन हर रोज तिल तिल कर बेटियां मारी जा रही है, बार-बार लगातार। नवरात्रि में 9 दिन पूजी जा रहीं हैं कन्याएं, ढूंढ-ढूंढकर लाई जाती हैं कन्याएं, तस्वीरें सजी मिलती हैं, कन्या पूजन की। लेकिन हाय रे यथार्थ ….
देह से नहीं तो गंदे शब्दों से, विकृत मानसिकता से, सड़ी हुई सोच से, विचित्र विचारों से और लूट लेने वाली नजरों से, बेटियां रोज मारी जा रही हैं। कैसे कहें हम कि मेरे घर आई एक नन्ही परी, जब कि उस परी के पंखों को तोड़ देने का माहौल हमारे आसपास पसरा हुआ है।
विश्वभर में प्रथम अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर 2012 को मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 19 दिसंबर 2011 को इस बारे में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें बालिकाओं के अधिकारों एवं विश्व की उन अद्वितीय चुनौतियों का, जिनका कि वह मुकाबला करती हैं, को मान्यता देने के लिए 11 अक्टूबर 2012 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। 24 जनवरी 1966 को स्व. इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं थीं। इस दिन को यादगार बनाने के लिए भारत में भी प्रतिवर्ष राष्ट्रीय बालिका दिवस का भी आयोजन होता है।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की प्रेरणा कनाडियाई संस्था प्लान इंटरनेशनल के बिकॉज आई एम गर्ल अभियान से मिली। इस अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर लड़कियों के पोषण के लिए जागरूकता फैलाई जाती थी।
हर जगह अपना योगदान करने वाली और चुनौतियों का सामना कर रही लड़कियों के अधिकारों के प्रति लिए जागरूकता फैलाने, उनके सहयोग के लिए दुनिया को जागरूक करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मकसद है बालिकाओं के मुद्दे पर विचार करके इनकी भलाई की ओर सक्रिय कदम बढ़ाना। गरीबी, संघर्ष, शोषण और भेदभाव का शिकार होती लड़कियों की शिक्षा और उनके सपनों को पूरा करने के लिए कदम उठाने पर ध्यान केंद्रित करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है।