1.
ताजिर अजब हूं बाबा, मैं चांद बेचता हूं।
दो रोटियों में पूरा मैं चांद बेचता हूं।।
मेला लगा हुआ है हर शै के ताजिरों का
बाज़ार में अकेला मैं चांद बेचता हूं।।
सब मेरी राह देखें, सब मुन्तजि़र हैं मेरे
किस ने मुझे ना चाहा,मैं चांद बेचता हूं।।
रोको ना मुझ को साहब, आऊंगा फिर कभी मैं
है दूर मुझ को जाना, मैं चांद बेचता हूं।।
एक आस हल्की हल्की, उम्मीद बनती बनती
लफ़्ज़ों का ये तमाशा मैं चांद बेचता हूं।।
मैं इश्क़ हूं सरापा, तू हुस्न है मुजस्सम
आ करले मुझ से सौदा, मैं चांद बेचता हुं।।
ये ख़्वाब यूँ ही देखे, यारो इसे जगा दो
आक़िब यही है कहता, मैं चांद बेचता हूं।।
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2.
कभी आधा नहीं खुलता कभी पूरा नहीं खुलता।
अगर चाबी ग़लत हो तो कोई ताला नहीं खुलता।।
हमारी जामा जे़बी पर ज़माना रश्क करता है
तुम्हारे जिस्म पर लेकिन ये पहनावा नहीं खुलता।।
वही दस्तक तो दस्तक है जो अन्दर तक उतर जाए
हर एक दस्तक पे वरना दिल का दरवाज़ा नहीं खुलता।।
समझ सकता है दीवाना ही दीवाने की बातों को
कभी दानिशवरों से कोई दीवाना नहीं खुलता।।
कभी दिन रात सरमस्ती, कभी हर लम्हा मदहोशी
कभी तो मुद्दतों दिल का ये मैख़ाना नहीं खुलता।।
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3.
उम्र मंज़िल के इन्तजार में है।
यानी गाड़ी बस अब उतार में है।।
दिल बहुत पुर सुकून था पहले
अब ये मछ्ली नदी की धार में है।
जिस की ख़ातिर हुए हैं सौ बीमार
ऐसा क्या लुत्फ़ उस अनार में है।
चाहना तुम को या भुला देना
अब कहां मेरे इख़्तेयार में है।
कुछ तो मौक़ूफ़ है सवारी पर
लाख सारा हुनर सवार में है।
हम ने तो ख़ुद से भी हिसाब लिया
ज़िन्दगी! फिर तू किस शुमार में है।
दम निकलने में भी वो लुत्फ़ कहां
जो मज़ा तेरे इन्तज़ार में है।
चाहने वाले दर पे आए हैं
देख, आक़िब भी तो क़तार में है।।