प्रकृति लिखे
कितनी लिपियों में
सौन्दर्य-कथा
सुन सको तो
गंध-गायन सुनो
पुष्प-कण्ठों का
क्षण को सही
बुझने से पहले
लड़ी थी लौ भी
सौ-सौ कानों से
कनेर ने सुनी हैं
हवा की बातें
सन्त असन्त
सबका ही होना है
एक ही अन्त
कण-कण से
पी लेना चाहे पानी
प्यासा सूरज
जग में कौन
तुमसे बड़ा साथी
सुनो पीपल
नतमस्तक
डॉलर देवता को
समूचा देश
साँसों का साथी
और कौन है भाई
वृक्षों के सिवा
ऐसे ही नहीं
बेंचकर ज़मीर
हुए अमीर
चढ़ी जिन्दगी
खराद मशीन पे
छीलती उम्र
डेबिट होती
ज़िन्दगी के खाते से
उम्र रोज़ाना
कुछ तो बोली
स्थूल पेड़ों से हवा
झूम उठे हैं
बैठ गया हूँ
उम्मीदों के साये में
काहे का डर
भारी ज़ेबों में
कंजूसी लिये मिले
कई अमीर
सत्य को बेंच
ले ली हैं झूठी चीज़ें
ख़ुशी के लिए?
पतझड़ को
जवाब देती आईं
नर्म कोपलें
शिला-शिला में
छुपी काल-कथाएँ
युगों-युगों की
प्यार से ज़्यादा
कौन रंग मुखर
धरती पर