1.
एक पत्ता निराशा का, एक आस का
ज़िन्दगी वृक्ष जैसे अमलतास का
क्या करें लेके सन्देह की एक सदी
एक क्षण ही बहोत तेरे विश्वास का
इस को घाटे, नफे में ना यो तौलिये
प्रेम तो नाम है केवल आभास का
अब जो हम सत्य को सत्य कहने लगे
आगया है समय अपने बनवास का
ज्ञात अज्ञात हैं, और अज्ञात ज्ञात
हमसे पूछे कोई खेल इतिहास का
पंक्ति से भी कम था हृदय का बखान
जिसको समझा मैं पन्ना उपन्यास का
मुझसे बोली मेरे कर्मो की कुंडली
लेखा जोखा हूँ मैं तेरे हर श्वास का
आज हसनैन सेवा में है आपकी
कीजे स्वीकार प्रणाम इस दास का
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2.
राह, मंज़िल, सफ़र के ख़्वाब नहीं।
ज़िन्दगी, तू जो हम-रकाब नहीं।।
रौशनी का कोई हिसाब नहीं
यार सूरज! तेरा जवाब नहीं।
ज़िन्दगी पर जमूद तारी है
इस से बढ़ कर कोई अज़ाब नहीं।
लफ़्ज़ दर लफ़्ज़ नित नए मफ़हूम
दिल है ये, काग़ज़ी किताब नहीं।
आतिश-ए-शौक़ से जो ख़ाली हो
राख का ढेर है, शबाब नहीं।
जिस की ताबीर भी निकल आए
अपनी क़िस्मत में ऐसा ख़्वाब नहीं।
तोड़ना दिल का है गुनह आक़िब
ये अमल बाइस-ए-सवाब नहीं।
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3.
बड़ा होने पर यह बच्चे अड़े हैं।
है पछतावा हमें कि हम बड़े हैं।।
पड़ोसी के लिए रख्खे हैं वह फल
इधर से और उधर से जो सडे़ हैं।
मुझे सूरज से हमदर्दी है लेकिन
यह साए तो मेरे पीछे पड़े हैं।
उन्हें भी वक़्त में अपना बनाया
जो अपने आप से बरसों लड़े हैं।
मुझे भी शौक़-ए-पस्पाई नहीं है
अगर दुश्मन के तेवर भी कड़े हैं।
तुम्हारी गुफ़्तगू में दिलकशी है
कि लफ़्ज़ों की जगह हीरे जड़े हैं।
उन्हें तुम फ़ासलों से मत डराना
जनाब आक़िब तो बस अब चल पड़े हैं।